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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. गुरुवर के स्वर्ण दीक्षा प्रसंग पर आचार्यश्री द्वारा रचित संपूर्ण साहित्य एवं प्राचीन आचार्यों द्वारा रचित महत्वपूर्ण ग्रंथों को प्रकाशित करने का मानस बना था । यह ग्रंथ सैट मात्र रु.11000/- की न्यौछावर राशि देकर किसी भी मंदिर, पुस्तकालय, मुनि संघ, विद्यालय को भेटकर कौण्डेश ग्वाले की तरह आचार्य कुंदकुंद बनने का स्वर्णिम अवसर भी आप प्राप्त कर सकते हैं । आप इन ग्रंथों को अपने घर में स्वाध्याय के लिए रख सकते हैं। महोत्सव के प्रथम चरण में 50 ग्रंथ प्रकाशित किए गए हैं, शेष समापन बेला में प्रकाशित करने की भावभूमि बनी है।

     

    अभी आप नीचे दिए गए बटन से आप रु.11,000/- जमा कराके ज्ञान दान कर सकते हैं, यह ग्रंथ आपको जैन विद्यापीठ, सागर (म.प्र.) द्वारा कुरियर के माध्यम से भेजे जायेंगे |
     
    113.png
  2. ss.jpg।। पिच्छिका परिवर्तन समारोह ।।
                    किशनगढ़ राजस्थान

    सम्मानीय महानुभाव, जय जिनेन्द्र।
    परम पूज्य मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ससंघ का पिच्छिका परिवर्तन समारोह दिनांक 17 दिसंबर 2017 दिन रविवार को दोपहर 1:30 बजे किशनगढ़ राजस्थान में आयोजित होगा। कृपया पधारें और इस संयम उपकरण परिवर्तन देखकर, अपनी विशुद्धि बढ़ाएं, पुण्यार्जन करें।

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  3. पंचकल्याणक महोत्सव की तैयारियां लगभग पूर्ण

    • 23 से 29 नवम्बर होंगे कई भव्य आयोजन 25 को उपनयन संस्कार होगा अनूठा कार्यक्रम
    • शिवपुरी में जन्मकल्याणक का जुलूस तो कोलारस में आदिकुमार की बारात निकलेगी
    • लालकिला की तर्ज़ पर बनाया गया है विशाल पांडाल का गेट 

    शिवपुरी
    सेसई के इतिहास में पहली बार श्री शांतिनाथ (नौगजा) दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र सेसई में श्री 1008 मज्जिनेंद्र जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवम गजरथ महोत्सव का आयोजन आगामी 23 नबम्बर से होने जा रहा है। जिसमें सेसई अतिशय क्षेत्र पर नवीन चौबीसी एवं, मानस्तंभ निर्माण पूर्ण होने के बाद जिन प्रतिमाओं पर सूर्य मंत्र दिया जायेगा जिससे यह प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित होकर पूज्यनिय हो जायेंगी। आयोजन को लेकर तैयारियों जोरों पर है। जिसके लिए सेसई में ए.बी. रोड पर एक विशाल मैदान को भव्य रूप दिया जा रहा है। 30 नवम्बर तक चलने वाले इस आयोजन में आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के प्रिय शिष्य प्रशममूर्ति 108 श्री अजितसागर जी महाराज संसघ का मंगल सानिध्य मिलेगा। 

     

    पंचकल्याण महोत्सव के अध्यक्ष जीतेन्द्र जैन ने जानकारी देते हुये बताया कि महोत्सव में दस हजार समाज बंधुओं के आगमन के मद्देनजर 85 बाई 225 फुट का विशाल डोम बनाया जा रहा है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकसाथ कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं। एवं जैन परंपरानुसार शौध की भोजन शाला तथा सामूहिक भोजन शाला का अस्थायी निर्माण कराया जा रहा है। इसके अलावा व्रती श्रावकों के लिए भी अलग से भोजन की व्यवस्था की गई है। इसके लिए 95 गुणा 155 वर्गफीट में भोजनशाला बनाई जा रही है। वहीं महामहोत्सव में शामिल प्रमुख पात्रों व इंद्र-इंद्राणियों के लिए अलग से 35 गुणा 135 वर्गफीट में भोजनशाला बनाई जा रही है। यहां आने वाले समाज बंधुओं के ठहरने हेतु 50 आधुनिक कमरों का भी निर्माण किया जा रहा है।


    महोत्सव के कार्यकारी अध्यक्ष राजकुमार जैन जड़ीबूटी एवं चौधरी अजीत जैन ने बताया कि प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्र. अभय भैया 'आदित्य' इन्दौर के निर्देशन में विधिविधान से कार्यक्रम होंगे। जिसमें  23 नवंबर को विशाल घटयात्रा जुलूस गजरथ (ऐरावत हाथी) बग्घी घोड़े बाजे-गाजे के साथ निकाली जाएगी। 24 नवम्बर को गर्भ कल्याण की पूर्व क्रियाऐं व 25 नवम्बर को गर्भ कल्याणक मनाया जायेगा। 26 नवम्बर रविवार को जन्म कल्याणक के दिन शोभायात्रा निकाली जाएगी। इसके बाद नवनिर्मित पांडुक शिला पर 1008 कलशों से भगवान का अभिषेक होगा। इसके लिये गौशाला में पांडुकषिला का निर्माण किया गया है। 27 नवम्बर को भगवान के तप कल्याणक के दिन आदिकुमार की बारात कोलारस नगर में निकाली जायेगी। 28 नवम्बर को ज्ञानकल्याणक के दिन भगवान का समोषरण लगेगा तथा 29 नवम्बर को मोक्ष कल्याणक मनाया जायेगा। सप्ताह भर के इन कार्यक्रम में अनेक राज्यों से जैन समाज के श्रद्धालु पहुंचेंगे। 

     

    जिनवाणी चैनल पर होगा सीधा प्रसारण


    आयोजन समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि आगामी 23 नवम्बर से जहां 30 नवम्बर तक पंचकल्याणक महोत्सव होगा। जिसमें 23 नवम्बर को उज्जैन की पार्टी द्वारा जम्मू स्वामी का वैराग्य नाटक का मंचन किया जायेगा। वहीं 27 नवम्बर को सूरत  एवं 28 नवम्बर को जबलपुर की पार्टी द्वारा रात्रि में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जायेगा। 30 नवम्बर को नवीन प्रतिमाऐं वेदियों में विराजमान की जायेंगी तथा शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा का बज्रलेप के बाद प्रथम महामष्तकाभिषेक होगा। पंचकल्याणक के कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण टीवी जिनवाणी चैनल पर किया जाएगा।

  4. संयम स्वर्ण महोत्सव 2017-18 आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के 50वे दीक्षा दिवस के उपलक्ष्य में 

    मंडला मध्यप्रदेश 28,29 और 30 नवम्बर 2017

    समय प्रातः 5.30 से 7 बजे तक  

    स्थान:- श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर धर्मशाला 

    मार्गदर्शन:-राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त योगाचार्य डॉ नवीन जी जबलपुर मध्यप्रदेश

    आयोजक:-संयम स्वर्ण महोत्सव समिति

  5. संयम स्वर्ण महोत्सव व सन्त श्रीरोमणी आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के आर्शीवाद से 
     विद्या भूमि स्कूल छिंदवाड़ा में 3000 के लगभग बच्चो के बीच 
    तनाव मुक्ति व मोटिवेशनल प्रोग्राम के बाद बच्चों ने छमा वाणी पर्व मनाया व मांस व का त्याग कर शाकाहारी भोजन का नियम लिया 
    योग शिविर छिंदवाड़ा  (1).jpeg

  6. जबलपुर, मध्यप्रदेश, भारत 

    high court decision : महाराजा छत्रसाल के समय का है ये प्रसिद्ध जैन तीर्थ, अब यहां बनेगा भव्य मंदिर

     

    कुंडलपुर में बड़े बाबा के मंदिर नवनिर्माण की राह का रोड़ा दूर, हाईकोर्ट ने एनजीटी का आदेश किया निरस्त

     

    जबलपुर। जैन धर्म के तीर्थ दमोह जिले के कुंडलपुर में स्थित भगवान महावीर (बड़े बाबा) का एेतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल के समय का निर्मित है। इस मंदिर के नवनिर्माण का मामला कई दिनों से अदालत में लंबित था। लेकिन मंगलवार को हाईकोर्ट में सुनवाई के बाद मंदिर नवनिर्माण की राह का आखिरी रोड़ा भी अलग हो गया है। म.प्र. हाईकोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की भोपाल बेंच के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें निर्माणाधीन मंदिर स्थल वन भूमि में होने के चलते रोक लगा दी गई थी। चीफ जस्टिस हेमंत गुप्ता व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बेंच ने जयपुर की संस्था जैन संस्कृति रक्षा मंच के अध्यक्ष मिलाप चंद डांडिया पर न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए एक लाख रुपए कॉस्ट भी लगाई है।
    यह है मामला
    प्रकरण के अनुसार जैनों के प्रमुख तीर्थस्थल कुंडलपुर में स्थित भगवान महावीर (बड़े बाबा) का एेतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल के समय का निर्मित है। मंदिर का गर्भगृह जमीन के नीचे था। साथ ही गर्भगृह में स्थापित बड़े बाबा सहित अन्य देवी-देवताआें की प्रतिमाएं कतारबद्ध एक ही पत्थर की दीवार पर थीं। ये जिस पत्थर से निर्मित थीं, वह क्षरणीय था। लिहाजा मंदिर के संचालक श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र कुंडलपुर पब्लिक ट्रस्ट ने इस मंदिर का पुननिर्माण करने का फैसला लिया। पुराने मंदिर से कुछ दूरी पर नये मंदिर का निर्माण करने का प्रस्ताव लाया गया। बड़े बाबा की प्रतिमा को भी अन्य प्रतिमाओं से अलग कर नये मंदिर में स्थापित किया गया। राज्य सरकार ने भी 2014 में इस निर्माण कार्य को कुछ शर्तोंं के साथ अनुमति दी।
    सुको में राज्य सरकार के आदेश को चुनौती
    जैनों की जयपुर स्थित मुख्यालय वाले जैन संस्कृति रक्षा मंच ने राज्य सरकार के इस आदेश को सीधे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। मंदिर को पुरातात्विक महत्व का निरुपित करते हुए मंच ने सुको में कहा कि यहां कोई निर्माण नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुरातत्व विभाग ने मंदिर नव निर्माण के लिए नोटिफिकेशन जारी किया है। इसमें ये सभी बिंदु समाहित हैं। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि मंच बार-बार इस मसले कों कोर्ट मे न घसीटे।
    हाईकोर्ट ने भी की निरस्त
    अतिरिक्त महाधिवक्ता समदर्शी तिवारी (एएजी) ने कोर्ट को बताया कि इसके बाद रियाज मोहम्मद नामक व्यक्ति ने इस मसले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिसे कोर्ट ने सुको के निर्णय के आधार पर खारिज कर दिया। इस पर जैन संस्कृति रक्षा मंच के अध्यक्ष मिलाप चंद ने स्टडी सॢर्कल सोसायटी भोपाल के नाम से एनजीटी के मंदिर निर्माण स्थल वनभूमि पर होने के मसले को लेकर याचिका दायर कराई। इस पर एनजीटी ने 27 मई 2016 को मंदिर निर्माण कार्य स्थगित कर दिया। इसके खिलाफ ट्रस्ट ने फिर हाईकोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने 26 सितंबर 2016 को एनजीटी के उक्त आदेश पर रोक लगाते हुए निर्माण कार्य जारी रखने के निर्देश दिए।
    एनजीटी में हुआ खुलासा
    एएजी तिवारी ने बताया कि सुको द्वारा प्रतिबंधित किए जाने से संस्कृति रक्षा मंच के अध्यक्ष ने दूसरी संस्था से एनजीटी में याचिका लगवाई। याचिकाकर्ता सोसायटी ने एनजीटी को दिए अपने जवाब में बताया कि उक्त याचिका के लिए दसतावेज उन्हें मिलाप चंद जैन ने ही उपलब्ध कराए थे। तिवारी ने तर्क दिया कि एनजीटी में दायर उक्त याचिका में बाद में संस्कृति रक्षा मंच के अध्यक्ष जैन हस्तक्षेपकर्ता बन गए। सुप्रीम कोर्ट के मना करने के बावजूद मिलाप चंद बार-बार मामले को कोर्ट में किसी न किसी बहाने घसीट रहे हैं। उन्होंने इसे न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया।
    यह कहा कोर्ट ने
    ओपन कोर्ट में डिवीजन बेंच ने कहा कि पहले सुप्रीम कोर्ट, फिर म.प्र. हाईकोर्ट मंदिर निर्माण को सही ठहरा चुके हैं। इसके बावजूद एनजीटी ने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर अनुचित तरीके से निर्माण पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। लिहाजा कोर्ट ने एनजीटी का 27 मई 2016 का आदेश निरस्त कर दिया। कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया का मिलापचंद जैन ने दुरुपयोग किया है। इसलिए वे एक लाख रुपए कॉस्ट हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति को जमा करें। विस्तृत आदेश की फिलहाल प्रतीक्षा है।

     

    source :- https://www.patrika.com/jabalpur-news/mp-high-court-latest-judgement-for-kundalpur-jain-temple-in-damoh-dist-1977087/

  7. राष्ट्रीय संगोष्ठी और अभा कवि सम्मेलन भी

    भोपाल। आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के पचासवे दीक्षा वर्ष के अवसर पर 5 नवम्बर रविवार को भोपाल के विधानसभा परिसर में जैन दर्शन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, जैन समागम 2017 और अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है। संगोष्ठी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा. कृष्णगोपाल संबोधित करेंगे।

    आयोजन के सूत्रधार रवीन्द्र जैन पत्रकार ने बताया कि आचार्यश्री का संयम स्वर्ण महोत्सव पूरे देश में श्रध्दा व आस्था से मनाया जा रहा है। 5 नवम्बर को आचार्यश्री का 46 वां आचार्य पदरोहण दिवस है। इस अवसर पर भोपाल में मुख्य कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। 

     

    राष्ट्रीय संगोष्ठी : 5 नवम्बर रविवार को विधानसभा स्थित मानसरोवर सभागृह में सुबह 10 बजे "जैन दर्शन की प्रासंगिकता और दायित्व बोध" पर संगोष्ठी का शुभारंभ होगा। पवन जैन आईपीएस विषय प्रवर्तन करेंगे। संगोष्ठी को आरएसएस के सह सरकार्यवाह डा. कृष्णगोपाल जी एवं जैनधर्म के विद्वान डा. वीरसागर जैन दिल्ली संबोधित करेंगे। संगोष्ठी की अध्यक्षता मप्र के वित्त मंत्री जयंत मलैया करेंगे।

     

    जैन समागम 2017 :  इसी सभागार में दोपहर एक बजे जैन समागम 2017 शुरू होगा। इसमें जैन समाज के अधिकारी, राजनेता, उद्योगपति, समाजसेवी, डाक्टर, इंजीनियर, सीए, वकील, साहित्यकार पत्रकार शामिल होकर आचार्यश्री के व्यक्तित्व, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सरोकार, जैनत्व की स्वीकारिता, जैन विरासत का संरक्षण व संवर्धन, संतों की सुरक्षा और परस्पर सहयोग विषयों पर विमर्श करेंगे। जैन समागम को मप्र के श्रमायुक्त शोभित जैन, ग्वालियर कलेक्टर राहुल जैन, समाजसेवी ह्रदयमोहन जैन सहित समाज की कई हस्तियां संबोधित करेंगी। बाल ब्रह्मचारी विनय भैया समापन उद्बोधन देंगे। जैन समागम का संचालन नितिन नांदगांवकर करेंगे।

     

    अभा कवि सम्मेलन : विधानसभा परिसर में शाम 6.30 अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया है। कवि सम्मेलन में पवन जैन भोपाल, गजेन्द्र सोलंकी दिल्ली, रमेश शर्मा चित्तौड़गढ, तुषा शर्मा मेरठ, चौधरी मदनमोहन समर भोपाल, दिनेश दिग्गज उज्जैन और अशोक सुन्दरानी सतना अपनी रचानाएं प्रस्तुत करेंगे। रात्रि 10 बजे आचार्यश्री के चित्र की आरती के साथ समारोह का समापन होगा।

     

    - रवीन्द्र जैन पत्रकार 
      आयोजन के सूत्रधार 
       9425401800

  8. आगामी 5 नवम्बर को हैं आचार्य पदारोहण दिवस

    padarohan.jpg

     

    आपसे अनुरोध है की आप सभी कार्यक्रमों को आने वाले  आचार्य पदारोहण दिवस 5 नवम्बर  पर अपने समाज की एकता को सम्मिलित करके इन कार्यक्रमों को प्रस्तुत करे एवं अपने आस पास  सभी मंदिरों तक यह सन्देश  पहुचाये.

     

    संस्कृतिक कार्यक्रम 

    https://vidyasagar.guru/files/category/4-1 

     

    आचार्य श्री के भजन यहाँ से डाउनलोड करें

    https://vidyasagar.guru/musicbox/songs/2-भजन/

     

     

     

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  9. sharad poornima.jpg 

    शरद पूर्णिमा के लिए भजन संकलन
    https://vidyasagar.guru/musicbox/play/104-1

    महापुरुष के लक्षण - शरद पूर्णिमा के लिए नाटक
    https://vidyasagar.guru/files/file/31-1

    एक मिनिट प्रतियोगिता
    https://vidyasagar.guru/files/file/18-1

    हाइकू प्रतियोगिता
    https://vidyasagar.guru/files/file/19-1

    तस्वीरे - अंतर्यात्री महापुरुष आचार्य विद्यासागर जी
    https://vidyasagar.guru/gallery/album/76-1

  10. 1 minute ago, ANKURJAIN1811 said:

    payumoney पर payment करते समय transaction बार बार fail हो रहा है। Payment कैसे करें?

    फ़ैल होने का कारन देखिये - अथवा पेमेंट आप्शन change  कीजिये 

  11. 4 minutes ago, Nisheeth Jain said:

    मैने २००रु्पये पेमेंट कर दिये हैम मुझे किताब कहां से मिलेंगी 

     

    आपके घर के पते पर पोस्ट से भेजी जाएगी 

    यह पुस्तके एक साथ नहीं मिलेगी - आपको नया भाग  लगबघ 2 महीने के अन्तराल में मिलेगा 

  12. संतत्व से सिद्धत्व तक के अविराम यात्री, गतिशील साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी दिगम्बरत्वरूपी आकाश में विचरण करने वाले एक आध्यात्मिक सूर्य हैं। भारत की पवित्र भूमि को पावन करने वाले महापुरुषों में आप एक दैदीप्यमान महापुरुष हैं। राष्ट्र, समाज एवं प्राणी मात्र के आप शुभंकर हैं। मोक्ष पिपासुओं के लिए आप शीतल व निर्मल जल की धार हैं। आपको क्या कहूँ...। आप तो साक्षात् चलते-फिरते तीर्थकर-सम भगवन्त हैं। अनेक बार दर्शनों के पश्चात् भी जिनके दर्शन की प्यास लगी ही रहती है, ऐसे आचार्यप्रवर श्री विद्यासागरजी के संयम पथ के पचास वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर गुरु चरणों में हम गुरुचरणानुरागियों द्वारा कुछ ऐसे पुष्प अर्पण करने के भाव बने, जिनसे जन-जन का कल्याण हो सके, जो राष्ट्र निर्माण में सहायक हो सकें, संस्कृति एवं संस्कार जिनसे संरक्षित रह सकें, भारत की भारतीयता जिससे सुरक्षित रह सके। ऐसे वे पुष्प आचार्य श्री ज्ञानसागरजी द्वारा बोए गए बीज से बने आचार्य श्री विद्यासागरजी रूपी वृक्ष से झरने वाले थे, जो मोती की भाँति बिखरे थे सर्वत्र। किन्हीं की डायरियों में, किन्हीं की स्मृतियों में अथवा संस्मरणों में। अब उन्हें माला का रूप देकर अर्पण करना था गुरु चरणों में, 'तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा' की भावना से। इस भावना ने आकार पाया 'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम' के रूप में।

    यूँ तो हर रचना या ग्रन्थ अपने आप में महत्वपूर्ण है, किन्तु यह पाठ्यपुस्तक साधारण नहीं है, क्योंकि इसमें समाविष्ट है। गुरु की महिमा क्या है, गुरु वचनों की पालना कैसे होती है, किस प्रकार अनुसरण करके गुरु के नाम के साथ अपनी पहचान एकाकार की जाती है। ऐसे जीवन्त उदाहरण, जिन्हें साक्षात् आचरण में उतारा गया है, जिया गया है व पालन किया गया है।

    आचार्य श्री विद्यासागरजी के प्रवचनों के चयनित अंश, उनके द्वारा रचित ग्रंथों में व्यक्त महत्वपूर्ण धारणाएँ व विचार, उनकी प्रेरणा और आशीर्वाद से संचालित मानव कल्याणकारी कायाँ, तीर्थीद्धार, मंदिर निर्माण व जीष्णौद्धार, राष्ट्र, संस्कृति, शिक्षा, स्वभाषा, संस्कार, शुद्ध आहार-विहार, जिनधर्मानुशासन तथा सिद्धान्तों आदि पर उनके विशिष्ट विचार, उनके द्वारा लिखित कुछ सामान्य कविताएँ एवं संक्षिप्त शब्दों में निबद्ध किंतु भावों से गहन 'हाइकू' कविताएँ अथवा विभिन्न अवसरों पर प्रकट किए गए उद्गारों तथा दिव्य देशना को ही सात पाठ्यपुस्तकों के रूप में सँजोकर इस पत्राचार पाठ्यक्रम में प्रस्तुत किया जा रहा है।

    uddeshya.png'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठ्यक्रम'का उद्देश्य है आचार्य भगवन्त के आहवान को जन-जन की आवाज बनाने के लक्ष्य को पूर्ण करना। जैसे, ‘भारत, भारत बने, गारत नहीं', 'अहिंसा भारत का प्राण हो', 'शिक्षा जीवन का निर्माण करे, निर्वाह नहीं', 'भारतीय संस्कृति एवं संस्कार सुरक्षित रहें', 'श्रमण धर्म अपने धर्मी में वास करे' आदि-आदि।

    जैन धर्म के मौलिक सिद्धान्तों के पर्याय के रूप में, जिनका जीवन है, ऐसे युगशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी के जीवन चरित्र को पढ़कर अध्येता अपने जीवन का निर्माण कर सकें। किसी ऐतिहासिक महापुरुष का जीवन चरित्र जब पढ़ते हैं तो लगता है कि एक बार, बस एक बार ही सही उनका प्रत्यक्ष दर्शन हो जाए। वर्तमान के महापुरुष का, वर्तमान में ही जीवन चरित्र प्रस्तुत कर, इस परम सौभाग्य को प्राप्त कराना भी इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य है।

    सरल से दिखते इस पत्राचार पाठ्यक्रम का कार्य अत्यंत दुरूह, समय व श्रम साध्य था। इसकी सामग्री संकलित करने तथा लिखने में अनेक भव्यात्माओं का अथक श्रम समाहित है। इसमें डॉ. जयकुमार जैन, शास्त्री, मुजफ्फर नगर, उत्तरप्रदेश के साथ अनगिनत भव्यजनों का सहयोग मिला। कइयों ने सहभागिता की। कुछ ने लिखा, किसी ने सामग्री एकत्रित की, किसी ने छाँटी, अन्य ने आचार्यश्रीजी के प्रवचनों को सुना फिर संगणीकृत (कम्प्यूटराइज्ड) किया। उन सभी सहयोगियों, विद्वानों व लेखकों आदि, जिनका भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष इसमें सहयोग मिला, उन सबके प्रति हम कृतज्ञ हैं। पर हम जो भी हैं उसी टोली के सदस्य हैं। कौन-किसका आभार व्यक्त करे, किसके प्रति कृतज्ञ होवें।

    यह पाठ्यक्रम पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हो इसके पूर्व हम गुरुणांगुरु आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज को स्मरण करते हुए, हम हमारे आराध्य आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागरजी महाराज के चरणों में, उनके द्वारा की गई गुरु चरण सान्निध्य की अनुभूतियों के संकलन रूप पुष्प ‘प्रणामांजलि' को समर्पित करते हुए अनंतानंत बार नमोऽस्तु निवेदित करते हैं। आचार्य संघ के चरणों में भी भक्तिभाव पूर्वक बारम्बार नमन करते हैं।

    कुछ भव्य प्राणी इन्हें पढ़कर मोक्षमार्ग पर प्रवृत्त हो जाएँ, किन्हीं के कषायों में कमी आ जाए,  कोई-कोई के पुण्योदय से कर्मों की निर्जरा हो जाए, कोई नि:स्वार्थ भाव से लोक कल्याणकारी कार्यों में निष्काम समर्पित हो जाएँ और उनके उपयोग का शुद्धोपयोग हो जाए, तो समझो इस असाध्य श्रम की प्रतिष्ठा हो गई और पत्राचार पाठ्यक्रम का होना सार्थक हुआ।

    'संयम स्वर्ण महोत्सव' की प्रस्तुति के रूप में 'आचार्य श्री विद्यासागर पत्राचार पाठयक्रम' की इस प्रथम कृति में सुधी, मनीषी एवं विद्वान् आदि समस्त पाठकगण अवगाहन करें तथा जन-जन तक इस कृति का प्रचार-प्रसार एवं आत्मलाभ हो, ऐसी शुभभावना एवं सत्प्रेरणा को स्वीकार करके जीवन को सफल, सुफल करें। इस पुस्तक के लेखन एवं सम्पादन में जो त्रुटियाँ रह गई हों, वो हमारी हैं और जो कुछ भी अच्छा है वह गुरुवर का है।

    गुरुचरणानुरागी 

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  13. पाठ्यपुस्तक १ - प्रणामांजलि

    यह प्रथम पाठ्यपुस्तक है जो आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के दीक्षा दिवस पर पाठकों तक पहुँचेगी। इसमें आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा इन पचास वर्षों में अपने गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज को जिन-जिन रूपों में स्मरण किया गया है, उन विषयों को 10 अध्यायों के रूप में बाँटा गया है। एक दिव्य पुरुष आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज का निर्माण जिनके द्वारा हुआ है ऐसे अलौकिक पुरुष आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज को वह जिस समर्पित भाव से एवं याचक भाव से स्मरण करते हैं, वे भाव आत्मा को स्पन्दित कर देते हैं। जिनको पूरी दुनिया भगवान तुल्य मानती है, वो स्वयं अपने गुरु का गुणगान करते नजर आते हैं तो युगों-युगों से चली आ रही भारत की गुरु-शिष्य परंपरा जीवंत हो जाती है।

     

    पाठ्यपुस्तक २ - अनिर्वचनीय व्यक्तित्व

     

    इस पाठ्यपुस्तक में आचार्यश्री के धरा पर अवतरण, दिव्य चेतना की प्रासि से लेकर आचार्य पद की प्राप्ति तक की यात्रा है। एक आचार्य के रूप में इतने बड़े संघ के संचालन की नीति, सरल हृदयी परंतु दृढ़ अनुशासक की उनकी भूमिका और आगम के अनुरूप श्रेष्ठतम आचरण पर प्रकाश डाला गया है। उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षक एवं सौम्य है उतना ही आभ्यन्तरीय व्यक्तित्व भी निर्मल एवं पवित्र है। मर्यादा पुरूषोत्तम कुशल साधक के रूप में उनके जीवन का यह हिस्सा सामान्य श्रावक ही नहीं वरन समस्त साधु समाज के लिए भी प्रेरणा और चिंतन का विषय है। संस्मरणों के माध्यम से आचार्यश्रीजी के अन्तरंग की साधना को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है वह भावुक पाठकों के हृदय में सीधे उतर कर सच्चरित्रवान बनने की प्रेरणा देती है।

     

    पाठ्यपुस्तक ३ - श्रमण परंपरा संप्रवाहक

     

    इस पाठ्यपुस्तक में श्रमण संस्कृति की अनादिकालीनता सिद्ध की गई है एवं तीर्थकर महावीर स्वामी जी की श्रमण परम्परा की आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा आगमानुसार किस तरह से संवद्धित किया गया, इसका वर्णन है। जैन समाज द्वारा आज भी अपनी मूल संस्कृति को उसके मूलरूप में ही जीवित रखा गया है।

    जैनदर्शन में आत्मा के मोक्ष की प्राप्ति में सल्लेखना पूर्वक मरण का अपना एक विशेष महत्व बताया गया है। सल्लेखना क्यों, जैसे नाजुक विषयों पर वैज्ञानिक दृष्टि से बात रखी गयी है। गुरुदेव की सोच इतनी विशाल है कि वो हर विषय वैज्ञानिक, ताकिक और भावनात्मक पहलुओं से व्याख्या करते हैं।

     

    पाठ्यपुस्तक ४ - सर्वविध साहित्य संवर्द्धक

    प्रथम खण्ड : गुरुवर की साहित्यिक यात्रा 

    कालिदास, माघ, हर्ष और भारवी जैसे कवियों की परंपरा को समृद्ध करने वाले श्रमणाचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज के सुशिष्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की साहित्यिक कला कौशल विरासत में प्राप्त है। कभी वो कवि मन हो जाते हैं तो कभी गूढ़चिंतक, कभी वो आलोचक बन जाते हैं तो कभी भाषा विद्वान्। आपके द्वारा विभिन्न भाषाओं एवं विभिन्न विधाओं में साहित्य की विपुल संवर्द्धना हुई है। संस्कृत भाषा में छह शतक, धीवरोदय (अप्रकाशित चम्पू काव्य), शारदानुति, पंचास्तिकाय (अप्रकाशित काव्य) एवं पचास के करीब जापानी छंद 'हाइकू'। हिन्दी भाषा में मूकमाटी महाकाव्य, छह शतक एवं पाँच सौ के करीब 'हाइकू'। कन्नड, हिन्दी, बंगला, प्राकृत एवं अंग्रेजी भाष में कविताएँ आपके द्वारा साहित्य जगत् को प्रदान की गई हैं। और प्रवचनसार, नियमसार, रत्नकरण्डक श्रावकाचार आदि २२ आर्ष प्रणीत ग्रंथों, संस्कृत की ९ भक्तियों एवं स्वरचित संस्कृत के छहों शतकों का हिन्दी भाषा में पद्यानुवाद भी किया गया है। इस पाठयपुस्तक में आपके द्वारा रचित साहित्य के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला गया है।

     

    द्वितीय खण्ड : सुभाषितामृत -

    आचार्यश्रीजी के प्रवचनों के बीच में अनेक ऐसे सुभाषित वचन और क्रांतिकारी पंक्तियाँ होती हैं जिन पर पूरे शास्त्र लिखे जा सकते हैं। कहा भी गया है कि जीवन बदलने के लिए लंबे-लंबे पोथी-पत्रों की जरूरत नहीं है। कब, कहाँ कौन सी एक लाइन सुनकर जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाए, कोई नहीं जानता। इस पाठ्यपुस्तक में उनके महान् साहित्य और मर्मस्पर्शी प्रवचनों से अनेक ऐसे विचारों को प्रस्तुत किया गया है जो पाठक के सोचने के तरीके को बदलने की ताकत रखते हैं। आपके व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पर २ डी.लिट्., २७ पी.एच्.डी., ८ एम.फिल., २ एम.एड. एवं ६ एम.ए. के लघु शोध प्रबंध अब तक लिखे जा चुके हैं। आपके साहित्य में जीवन के समग्र पहलुओं पर विचार किया गया है। इस कारण आपके साहित्य से विश्व साहित्य की संवर्द्धना हुई है।

     

    पाठ्यपुस्तक ५ - तीर्थ शिरोमणि

    प्रथम खण्ड : भवोदधिपोत 

    एक महान् तीर्थोंद्वारक और तीर्थप्रणेता के रूप में आचार्यश्री जैन समाज के हृदय में युगोंयुगों तक स्थापित रहेंगे। कुण्डलपुर बड़ेबाबा से लेकर नेमावर सिद्धोदयक्षेत्र तक और सर्वोदय

    अमरकंटक से लेकर विदिशा शीतलधाम एवं रामटेक क्षेत्र तक गुरुदेव के आशीर्वाद से विशाल तीर्थ बने हैं। ये तीर्थ आने वाली सदियों तक जिन संस्कृति का परचम लहराएँगे। यह पाठ्यपुस्तक आपको तीर्थ क्या है, तीर्थ की महत्ता क्या है एवं जैन तीर्थ संवर्धन में गुरुदेव का योगदान क्या है, इससे परिचित कराएगी।

    द्वितीय खण्ड : अर्हन्निर्माण 

    इस पाठ्यपुस्तक में आगमोत जिनबिम्ब प्रतिष्ठा का संक्षित वर्णन है। जो स्वयं भगवान् बनने चले हैं एवं अनेक भव्यात्माओं को भी साथ लिए हैं, ऐसे भावी भगवान् आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा जिनबिम्बों की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर, कैसे भगवान् बना जाता है इस पर आधारित जो प्रवचन दिए हैं, उन प्रवचनांशों को प्रस्तुत किया गया है।

     

    पाठ्यपुस्तक ६ - राष्ट्रगरिमा संजीवक

    प्रथम खण्ड : शिक्षा से निर्वाह नहीं निर्माण 

    प्राचीन भारत में शिक्षण कार्य गुरुकुलों में चारित्रनिष्ठ साधकों द्वारा किया जाता था। इससे विद्यार्थियों का निर्वाह नहीं, निर्माण हुआ करता था। आचार्य श्री विद्यासागरजी की प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में गहरी आस्था है। गुरुकुल परंपरा को पुनर्जीवित करने का उन्होंने बीड़ा उठाया है। उनका संदेश है 'शिक्षा अर्थ सापेक्ष न होकर कर्म और कौशल सापेक्ष हो'।

    वे चाहते हैं कि आज विदेशी शिक्षा पद्धति से प्रदूषित होते जा रहे समाज में प्राचीन भारतीय गुरुकुल शिक्षण पद्धति का अनुसरण करते हुए सम सामयिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के मन में संस्कारों का पल्लवन हो सके और आदर्श प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम के अंकुर फूट सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही उनके आशीर्वाद से 'प्रतिभास्थली' रूप तीन शिक्षण संस्थान खड़े किए गए हैं। इनमें ब्रह्मचारणी बहनों के रूप में आदर्श शिक्षकों / गुरुओं की पौध तैयार कि गई है, जो निस्पृह व नि:स्वार्थ भाव से बिना वेतन की अपेक्षा किए इस सेवा कार्य को तन-मन से कर रही हैं। एक महान् शिक्षाविद् के रूप में प्राचीन और वर्तमान शिक्षा के बारे में उनके क्रांतिकारी विचारों को इस पाठ्यपुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।

    द्वितीय खण्ड : शील की रक्षा, देश की सुरक्षा 

    आचार्यश्रीजी को भारतीय संस्कृति के पोषक, प्रचारक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है। यह पाठ्यपुस्तक भारतीय संस्कृति-संस्कार और जैन संस्कृति संस्कार एवं जैन संस्कृति ने भारतीय संस्कृति पर क्या प्रभाव डाला और वैश्वीकरण ने भारतीय संस्कृति पर क्या प्रभाव डाला इन विषयों पर आचार्यश्रीजी की दृष्टि / चिंतन से आपको अवगत कराएगी। तृतीय खण्ड : वतन को बचाओ पतन से –

    जैन दर्शन सूक्ष्मतम अहिंसा में विश्वास करता है और अहिंसा ही विश्व की अधिकांश समस्याओं का समाधान है। इस पाठ्यपुस्तक में जैन दर्शन तथा अन्य दर्शनों में अहिंसा की महत्ता पर प्रकाश डाला गया है। आचार्यश्रीजी को 'सर्वोच्च अहिंसक' क्यों कहा जाता है, इस पाठ्यपुस्तक में आप जानेंगे। मांस निर्यात निषेध, अहिंसा दीक्षा के साथ-साथ हिंसा रोकने के लिए अहिंसक व्यवसाय करने का भी गुरुदेव ने शंखनाद किया, जो अपने आप में अनूठा है। फलत: शांतिधारा दुग्ध योजना, जैविकीय खेती, हथकरघा संवर्धन की मुहिम देश के कोने-कोने में फैल रही है। अहिंसा को कैसे जिया जाता है, जीवन में कैसे उतारा जा सकता है, राष्ट्र और समाज के समक्ष इसके जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। चतुर्थ खण्ड : इण्डिया हटाओ भारत लौटाओ -

    यह अद्भुत पाठ्यपुस्तक एक श्रमण के राष्ट्र निर्माण के संकल्प की विलक्षण गाथा से आपको परिचित कराती है। इंडिया नहीं भारत बोली, अंग्रेजी नहीं हिन्दी बोली, कार्य और व्यवहार में मातृभाषा का उपयोग करो, मतदान, राजतंत्र, लोकतंत्र, स्वदेशिता, स्वरोजगार आदि विषयों पर गुरुदेव के विचार क्रांतिकारी हैं। इन भारतीयता प्रधान विचारों की देश के प्रधानमंत्री से लेकर मूर्धन्य बुद्धिजीवियों ने भी सराहना की है। गुरुदेव भारतीय संस्कृति के प्रखर रक्षक और हिमायती हैं। यह पाठ्यपुस्तक देश के जनप्रतिनिधियों, शासकों, प्रशासकों, नीति निर्धारकों, राष्ट्र निर्माताओं के लिए दिशा सूचक है, जिससे राष्ट्र निर्माण का कार्य सुचारु रूप से हो सके।

    पाठ्यपुस्तक ७ - आस्था के ईश्वर

    आचार्य श्री विद्यासागरजी 'महाराजा' हैं और महाराजा के चरणों में राजा-प्रजा, विद्वान् और कवि, बुद्धिजीवी एवं सामान्य सभी नतमस्तक होते हैं, कभी ज्ञान की ललक में, कभी आशीर्वाद की चाह में, कभी मार्गदर्शन की आशा लिए। उनके अद्भुत व्यक्तित्व की शरण में जो भी आता है, वह उनका हो जाता है। उनके आभामण्डल में आकर प्रत्येक भव्यात्मा को आनंद की अनुभूति होती है, एक अलौकिक शांति का एहसास होता है। भारत के लगभग सभी शीर्षस्थ राजनेताओं, अधिकारियों और बुद्धिजीवियों ने आचार्यश्रीजी के चरणों में माथा टेका है। इन सौभाग्यशाली व्यक्तियों द्वारा गुरु दर्शनों से हुई रोमांचकारी अनुभूतियों को इस पाठ्यपुस्तक में प्रस्तुत किया गया है, जिन्हें पढ़कर गुरुओं के प्रति आस्था बलवती हो उठती है।

    विभिन्न जाति, धर्म, प्रांत और कार्यक्षेत्र की इन शीर्षस्थ विभूतियों की गुरुदेव और उनके चिंतन के प्रति आस्था, यह बताती है कि आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी महाराज जाति और धर्म जैसे छोटे बंधनों से परे एक महान् चिंतक और राष्ट्रसंत हैं। दुनिया के विभिन्न देशों से उच्चशिक्षित नौकरी पेशेवरों ने अपना काम छोड़कर गुरुदेव की प्रेरणा से समाजहित में जीवन समर्पित कर दिया है, यह विश्वस्तर पर विश्वसंत के रूप में गुरुदेव के प्रभाव का परिचायक है।

     

    इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने वाले प्रतिभागी गुरुदेव के एक अंश को भी जीवन में उतार पायें तो अद्भुत परिवर्तन निश्चित है, क्योंकि इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना भी बहुत बड़ा सौभाग्य है। इस अवसर का पूरी शक्ति से लाभ उठाकर पहले भीतर से बदलें और फिर बाहर को बदलें।

     

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  14. 26 minutes ago, Jain said:

    फॉर्म आया था, मैंने ऐसे ही भर दिया था पूरी जानकारी नहीं दी थी । मैंने आपको मेल से सूचित किया है। कृपया देखें।

    अगर आपकी सुचना पूरी नहीं होगी तो आपको जैन विद्यापीठ से फ़ोन आ जायेगा 

     

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