हाजिरजवाबी ब्रम्हचारी विद्याधर - 102 वां हीरक संस्मरण
ज्ञानरथ के सार्थवाह गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज को कोटिशः प्रणाम करता हूँ.... हे गुरुवर! आपके लाडले शिष्य ब्रम्हचारी विद्याधर जी आपको तो जवाब नही देते थे किन्तु अज्ञानियों के अज्ञान अंधकार को दूर करने के लिए कम शब्दों में, टू द पॉइंट बोलकर संतुष्ट करके निरुत्तर कर देते थे। इस सम्बन्ध में नसीराबाद के आपके। अनन्य भक्त रतनलाल पाटनी जी ने विद्याधर के हाजिर जवाबी का संस्मरण सुनाया-
हाजिरजवाबी ब्रम्हचारी विद्याधर
"१९६८ ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान नसीराबाद में ज्ञानसागर मुनिराज ने अपने प्रिय मनोज्ञ शिष्य, ब्रम्हचारी विद्याधर जी को हिन्दि भाषा मे पारंगत बनाने हेतु राजकीय व्यापारिक स्कूल नसीराबाद के प्रधानाध्यापक श्री मोहनलाल जी जैन को कहा- आप विद्याधर जी को हिन्दी भाषा, लिपी, छन्द, व्याकरण सिखायें। तब मोहनलाल जी उन्हें हिन्दी का अध्ययन कराने लगे। इसके साथ ही विद्याधर जी की मनोभावना अंग्रेजी सीखने की भी हुई। तो मोहनलाल जी ने अपने ही राजकीय व्यापारिक स्कूल नसीराबाद के अंग्रेजी के अध्यापक श्रीमान् रामप्रसाद जी बंसल को अंग्रजी पढ़ाने का पुण्यार्जन दिया। इसके अतिरिक्त ज्ञानसागर गुरु महाराज ने छगनलाल पाटनी अजमेर को विद्याधर जी से धर्म-चर्चा के लिए समय दिया। साथ ही नसीराबाद के पण्डित चम्पालाल जी शास्त्री भी विद्याधर जी से धर्म-चर्चा करते थे। सुबह से लेकर रात्रि १० बजे तक विद्याधर जी ज्ञानाराधना में लीन रहते। एक दिन मजाक में हमने कहा- भैया जी! आप इतना पढ़कर क्या करोगे ? कोई नोकरी करना है क्या ? तो हँसते हुए बोले- 'क्या करना है- क्या नही करना है ? इसको जानने के लिए अध्ययन कर रहा हूँ।' यह जवाब सुनकर फिर कभी कोई प्रश्न करने की हिम्मत नही हुई।"
इस तरह ब्रम्हचारी विद्याधर जी अपनी तार्किक बातों से संक्षिप्त में ही संतुष्ट कर देते थे। यह बुद्धिमत्ता बचपन से ही उनके व्यक्तित्व में झलकती है। सतत ज्ञानाराधना से प्रज्ञा को पैनापन प्रदान करने में पुरषार्थ करते रहते थे।उनका यह वैशिष्ट्य आज भी देखने को मिलता है की कम शब्दों में संतोषपूर्ण आनन्ददायक समाधान देते है। ऐसी प्रज्ञा को नमन करता हु.....आप सम ज्ञानसागर में गोता लगाना चाहता हूँ जिसमे अज्ञानता की श्वाँसे रंध जाएँ.....
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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