गुरु दर्शन महिमा - 81 वां स्वर्णिम संस्मरण
जब गुरु ज्ञान सागर जी महाराज हमारे यहाँ दादिया ग्राम में प्रवास कर रहे थे, तब ज्ञान सागर जी महाराज आहार की पश्चात धूप में थोड़ी देर बैठते थे। उस वक्त समाज के लोग ब्रह्मचारी विद्याधर जी के भजन बोलने के लिए कहते थे। किंतु विद्याधर जी मौन बैठे रहते थे। फिर गुरुवर ज्ञान सागर जी महाराज की स्वीकृति पाकर भजन बोलते थे। बड़ी ही मीठी आवाज में भजन गाते थे। रोज नया भजन सुनाते थे, इस कारण बालक-युवा-महिलाऐं सब लोग गुरुवर ज्ञानसागर जी महाराज की आहार के पश्चात मन्दिर जी में एकत्रित हो जाते थे और भजन सुनते थे। एक दिन उन्होंने बड़ा ही सुंदर भजन सुनाया मैंने सुना तो उसे याद कर लिया आज तक अपनी डायरी में सुरक्षित रखा हुआ हूं, वह भजन निम्न प्रकार है---
गुरु दर्शन महिमा
(तर्ज- सावन का महीना पवन करे शोर......)
पावन हुए नयना दरश कर तोर
हियरा रे हरसे ऐसे जैसे लख के चंद्र-चकोर।।
कुगुरु कुदेव ध्याके बहुत दुःख उठाया।
छवि वीतराग ने तो शांत रस पिलाया।।
शांत सुधारस प्याला लगा के एक ठौर।
मनुआ रे झूम उठा रे होकर आनंद विभोर।।1।।
पावन हुए.....
सकल परिग्रह तज के बने हो विरागी।
ममता को त्याग हुए आतम अनुरागी।।
धार दिगम्बर बाना चले हो शिव की और।
धन्य हुआ रे तुमको प्रभु शीश नवा कर जोर।।2।।
पावन हुए.........
कर केशलोंच तन से ममत्व हटाते।
वैराग्यता के भाव उर में जगाते।।
अस्थिर है जग जाना देखा है कर गौर।
दुःख का रे यो सागर जिसका है न कोई छोर।।3।।
पावन हुए.....
महिमा को सुनकर तेरी शरण अब आया।
पुण्य उदय जब आया तब है दर्श पाया।।
पाकर तेरा शरणा जँचे ना कोई और।
बांधी रे मैंने तुमसे अब अपनी जीवन डोर।।4।।
पावन हुए.........
कर्म लुटेरे नाना नाच हैं नचाते।
भव वन में निशदिन है ये भटकाते।।
कर्मों के आगे हाँ चलता है जब जोर।
हटती रे तव कृपा से मिथ्यात्व घटा घनघोर।।5।।
पावन हुए.........
लागी लगन मोरी तुमसे मुनीश्वर।
लगाओगे निश्चय तुम्ही मुक्ति के पथ पर।।
गायन कर में महिमा हे गुरु-वर तोर।
बाज उठी रे वीणा प्रभु नाच उठा मन मोर।।6।।
पावन हुए........
इस तरह सुस्वर नामकर्मोदयी ब्रह्मचारी विद्याधर जी की वाणी आबाल वृद्ध सभी जन को कर्ण प्रिय लगती थी। पूर्व का देव शास्त्र गुरु उपासक, भजन गायककार, गीतकार आज ऐसा साहित्यकार, महामनीषी, महाकवि बन बैठा है कि अनेकों गीतकार, भजन गायककार, साहित्य मनीषियों की रचना का आधार बन पड़ा है। ऐसे महानायक को कोटि-कोटि प्रणाम करता हुआ .....
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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