गुणानुरागी विद्याधर - 82 वां स्वर्णिम संस्मरण
एक बार की बात है सदलगा के पास में निप्पाणी शहर है, वहां चलने के लिए विद्याधर ने मुझसे(महावीर प्रसाद जी) कहा- तब मैंने पूछा क्यों जाना ? तो बोला- "वहां पर आचार्य विनोबा भावे जी भाषण देने के लिए आ रहे हैं मुझको उनके भाषण सुनना है वह देश के लिए और देश के गरीबों के लिए बहुत अच्छा काम करते हैं अच्छा भाषण देते हैं इसलिए हमको उनका भाषण सुनना चाहिए। "तब हम दोनों पिताजी के पास गए और बोले हम लोगों को विनोबा भावे जी का भाषण सुनना है। तब पिताजी ने समझाते हुए ऊंचे स्वर में कहा- वह भूदान के लिए भाषण देने आ रहे हैं अपने पास अभी ज्यादा भूमि नहीं है दान क्या दोगे ? जाओ अभी स्कूल जाओ। यह सुन कर विद्याधर नाराज हो गए। उसे विनोबा भावे के भाषण सुनने की याद आ रही थी। तब मेरे पास पांच रुपये थे, मैंने उसे दे दिया और कहा-तू मित्रों के साथ चला जा। तो वह मित्रों के पास गया, मित्रों ने कहा-एक शर्त पर चलेंगे। हम विनोबा जी का भाषण नहीं सुनेगें। हम जेमिनी सर्कस देखेंगे तुमको भाषण सुनना है तो सुन लेना, विद्याधर तैयार हो गया और चला गया वहां से वापस आकर मुझे सब कुछ बताया। पूरा भाषण सुनाया और सुनाते समय अपनी बातों का समर्थन करते जा रहा था- विनोबाजी गरीबों के लिए कितना अच्छा कार्य कर रहे हैं देश का हित होगा और गरीबों को अभयदान मिलेगा" इस तरह विद्याधर महापुरुषों और प्रसिद्ध नेताओं के भाषण सुनने सदलगा से बाहर जाया करता था। एक बार मेरे साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू का भाषण सुनने गया था।
इस तरह विद्याधर बचपन से ही महापुरूषों की आदर्शता को अपने अंदर सहेजता जा रहा था। आज वो स्वयं लोकादर्श बन गया है। और अनेक महापुरुष, बड़े मंत्री लोग उनके प्रवचन को सुनने के लिए लालायित हो जाते हैं। ऐसे आदर्श महापुरुषों के आदर्शों को सदैव नमन करता हुआ.......
अन्तर्यात्री महापुरुष पुस्तक से साभार
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