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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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करुणा के सागर - 68 वां स्वर्णिम संस्मरण


संयम स्वर्ण महोत्सव

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कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रन्थ में आचार्य कार्तिकेय स्वामी महाराज कह रहे है कि- "जीवाणं रक्खणम धम्मो"  अर्थात जीवों की रक्षा करना धर्म है और धर्म की मूल जड़ गया है। यह सारी बातें ग्रंथों से पढ़ते समय तो बहुत अच्छी लगती है लेकिन वो जीवन में उतारना बड़ा कठिन होता है। आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज के अंदर हमने यह करुणा और दया देखी है जिसको देख कर मन उनके प्रति श्रद्धा से भरकर प्रफुल्लित हो जाता है।


सन 2000 मई जून के महीने का यह प्रसंग जब राजस्थान प्रांत में पानी की बहुत कमी होने से वहां के जानवर भूख और प्यास से मरने लगे,यहां तक कि वहां के किसान उन जानवरों को बिना पैसे में ही देने को तैयार थे, लेकिन कोई लेने के लिए तैयार नहीं था। आचार्य भगवन को जब यह बात मालूम पड़ी तो उन्होंने  एक-दो ब्रहमचारी भाइयों को बुलाकर कहा - आप लोग राजस्थान जाकर वहां के जानवरों को यहां MP में लाकर गौशाला आदि में सब जानवरों को भिजवा दो। आचार्य भगवन का आशीर्वाद लेकर ब्रह्मचारी भैया राजस्थान पहुंचे और सैकड़ों जानवरों को अजमेर (राजस्थान) में इकट्ठा करना शुरु कर दिया, जब राजस्थान और आसपास के प्रमुख गणमान्यों को ( जो आचार्य श्री जी से जुड़े हुए व्यक्ति थे ) यह मालूम चला कि - यह सारे जानवर आचार्य श्री जी की आशीर्वाद से mp में गौशालाओं में जाना है, तो उन लोगों ने एक पूरी की पूरी ट्रेन मालगाड़ी भारत सरकार से लिखा पढ़ी करवाकर बुक कर ली और उन सैकड़ों जानवरों को सारे डिब्बों में धीरे-धीरे भरकर उन डिब्बों में पानी घुसा आदि की व्यवस्था भी कर दी ( क्योंकि यह ट्रेन अजमेर से पेंड्रास्टेशन आने में 3 दिन लगते हैं ) उस समय आचार्य भगवन अमरकंटक में विराजमान थे, उन्हे जब मालूम चला कि अजमेर से गायों को भरकर पूरी ट्रेन आ रही है और 3 दिन में पेंड्रा स्टेशन पर आ जाएगी क्योंकि अमरकंटक से पेंड्रा स्टेशन मात्र 50 किलोमीटर दूरी पर ही था,आचार्य भगवन ने सोचा चातुर्मास स्थापना का समय करीब में है इसलिए पेंड्रा स्टेशन पर चलकर गायों को देख लेंगे। इसके बाद आगे चले जाएंगे  इस सोचकर उसी दिन उन्होंने अमरकंटक से विहार कर दिया।


3 दिन में आचार्य भगवन पेंड्रा संघ सहित पहुँच गये, चूंकि मंदिर के पास ही स्टेशन था और स्टेशन के बाहर ही प्रवचन के लिए मंच बनाई गई आचार्य भगवन के अंदर उन सैकड़ों गायों को देखने की भावना थी इसलिए पैर दर्द ज्यादा ध्यान ना देकर दोपहर में मंच पर पहुंच गए और प्रवचन पूरे ही नहीं हो पाए कि उसी दिन अजमेर से 3 दिन में चलकर  गायों से भरी ट्रेन ( उसी दिन आचार्य श्री जी का दीक्षा दिवस भी था ) आ गई सारे श्रावकों ने ताली बजा दी आचार्य भगवन ने प्रवचन पूरे करके स्वयं स्टेशन पर जा कर डिब्बों में सुरक्षित जानवरों को देखकर बहुत बहुत प्रसन्न हुए सारे जानवरों को आशीर्वाद दिया।आचार्य भगवन के सामने उन डिब्बों से धीरे-धीरे गायों का निकाल कर सुरक्षित पहुँचाया गया।

 

"धनि धन्य है आचार्य भगवन के अंदर की सोच, करुणा,दया और परोपकार की भावना जबकि आज का मनुष्य मनुष्य के प्रति अच्छे भाव नहीं ला पाते।ऐसे समय में दूसरे प्रदेश से सैकड़ों जानवरों को बुलाकर उनको गौशालाओं में सुरक्षित रखना कितना बड़ा कार्य है इसके बाद आचार्य भगवन के उपदेश से तथा आशीर्वाद से बहुत सारे स्थानों पर लगभग 100 से ज्यादा गौशालाओं का निर्माण करा कर उनमें मूक जानवरों को शरण देकर उनकी रक्षा हो रही है यह सब गुरुदेव की अनुकंपा का फल है।और उनके जीवन में ही है जिनवाणी…
 

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