निर्मलता - 59 वां स्वर्णिम संस्मरण
सागर की वर्णी भवन, मोराजी में आचार्य महाराज के सानिध्य में ग्रीष्मकालीन वासना चल रही थी। गर्मी पूरे जोरों पर थी। 9:00 बजे तक इतनी कड़ी धूप हो जाती थी कि सड़क पर निकलना और नंगे पैर चलना मुश्किल हो जाता था। आहार-चर्या का यही समय था आचार्य महाराज आहार-चर्या के लिए प्रायः मोराजी भवन से बाहर निकलकर शहर में चले जाते थे। मोराजी भवन में ठहरना बहुत कम हो पाता था। पंडित पन्नालाल जी साहित्याचार्य का निवास मोराजी भवन में ही था।और वें पड़गाहन के लिए रोज खड़े होते थे। उनके यहां आने का अवसर कभी-कभी आ पाता था।
एक दिन जैसे ही दोपहर की सामायिक से पहले ईर्यापथ प्रतिक्रमण पूरा हुआ, पंडित जी आचार्य महाराज के चरणो में पहुंच गए और अत्यंत सरलता और विनय से सहज ही कह दिया कि- "महाराज अब ततूरी ( कड़ी धूप से जमीन गर्म होना ) बहुत होने लगी है,आप आहारचर्या के लिए दूर मत जाए करें।" सभी लोग पंडित जी का आशय समझ गए आचार्य महाराज भी सुनते ही हंसने लगे।आज भी इस घटना की स्मृति से मन आचार्य महाराज के प्रति अगाध श्रद्धा से झुक जाता है। उनके आचरण की निर्मलता और अगाध ज्ञान का ही प्रतिफल है,कि विद्वान जन उनका सामीप्य पाने के लिए आतुर रहते हैं।
(सागर 1980) आत्मान्वेशी पुस्तक से साभार
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