निर्भयता - संस्मरण क्रमांक 42
☀☀ संस्मरण क्रमांक 42☀☀
? निर्भयता ?
बुंदेलखंड में आचार्य महाराज का यह पहला चातुर्मास था।
1 दिन रात्रि अंधेरे में कहीं से बिच्छू आ गया, और उसने एक बहन को काट लिया।पंडित जगनमोहन लाल जी वही थे, उन्होंने उस बहन की पीड़ा देखकर सोचा कि बिस्तर बिछा कर लिटा दूं, तो जैसे ही बिस्तर खोला,उसमें से एक सर्प निकल आया उसे जैसे तैसे भगाया गया।
दूसरे दिन पंडित जी ने आचार्य महाराज को सारी घटना सुनाइ, और कहा कि- महाराज यहां तो चातुर्मास में आपको बड़ी बाधा आएगी।पंडित जी की बात सुनकर आचार्य महाराज हंसने लगे।बड़ी उन्मुक्त हसीं होती है महाराज की। हँसकर बोले कि- "पंडित जी यहाँ हमारे समीप भी कल दो,तीन सर्प खेल रहे थे।यह तो जंगल है।जीव-जंतु तो जंगल में ही रहते हैं। इसमें चातुर्मास में क्या बाधा?वास्तव में,हमें जंगल में ही रहना चाहिए और सदा परिषद सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए कर्म निर्जरा परीषय-जय से ही होती है
उपसर्ग और परीषय को जीतने के लिए इतनी निर्भयता व तत्परता ही साधु की सच्ची निशानी है।
कुंडलपुर (1976)
? आत्मान्वेशी पुस्तक से साभार?
✍ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
शिक्षा- धन्य है ऐसे आचार्य महाराज,जो किसी भी बाधा, उपसर्ग से नहीं डरते बल्कि निरंतर मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ते जा रहे हैं और निश्चित ही आगामी भवों में जल्द से जल्द मुक्ति को प्राप्त कर लेंगे,हमें भी अपने मार्ग में आई हुई बाधाओं का सामना करते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए। ?
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