अनुकम्पा - संस्मरण क्रमांक 46
☀☀ संस्मरण क्रमांक 46☀☀
? अनुकम्पा ?
सागर से विहार करके आचार्य महाराज संघ सहित नैनागिरी आ गए।वर्षाकाल निकट था पर अभी बारिश आई नहीं थी। पानी के अभाव में गांव के लोग दुखी थे। एक दिन सुबह सुबह जैसे ही आचार्य महाराज शौच क्रिया के लिए मंदिर से बाहर आए, हमने(क्षमासागर जी) देखा कि गांव के सरपंच ने आकर अत्यंत श्रद्धा के साथ उनके चरणों में अपना माथा रख दिया और विनोद भाव से बुंदेलखंडी भाषा में कहा कि- "हजूर!आपखों चार मईना ईतई रेने हैं और पानू ई साल अब लों नई बरसों, सो किरपा करो,पानू जरूर चानें हैं।"
आचार्य महाराज ने मुस्कुराकर उसे आशीष दिया,आगे बढ़ गए रात आई-गई हो गई,लेकिन उसी दिन शाम होते-होते आकाश में बादल छाने लगे।दूसरे दिन सुबह से बारिश होने लगी,पहली बारिश थी।3 दिन लगातार पानी बरस रहा।सब भीग गया। जल मंदिर वाला तालाब भी खूब भर गया।
चौथे दिन सरपंच ने फिर आकर आचार्य महाराज के चरणों में माथा टेक दिया और गदगद कंठ से बोला कि- "हजूर!इतनो नोई कई ती, भोत हो गओ,खूब किरपा करी।
आचार्य महाराज ने सहज भाव से उसे आशीष दिया और अपने आत्म चिंतन में लीन हो गए। मैं सोचता रहा कि इसे मात्र संयोग मानूँ या आचार्य महाराज की अनुकंपा का फल मानूँ।जो भी हुआ वह मन को प्रभावित करता है।
(नैनागिरी 1982)
? आत्मान्वेषी पुस्तक से साभार ?
✍ मुनि श्री क्षमासागर जी महाराज
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