त्रिसंध्याभिवंदी - संस्मरण क्रमांक 45
☀☀ संस्मरण क्रमांक 45☀☀
? त्रिसंध्याभिवंदी ?
आचार्य भगवन चारों दिशाओं में दिग्वंदना करने के बाद तीनों काल की सामायिक से पहले अथवा बाद में स्वयंभू स्तोत्र प्रतिदिन पूर्वाह्न,मध्यान्ह,औरअपराह्न में पढ़ते हैं।इस प्रकार 24 तीर्थंकरों की स्तुति वह तीव्र राग भक्ति से पढ़ते हैं। नंदीश्वर भक्ति भी तीनों संध्याओं में आप पढ़ते हैं। सामायिक पाठ- सत्त्वेषु मैत्री.......(संस्कृत वाला सामायिक पाठ) इसका भी पाठ करते हैं।इस प्रकार अर्हतभक्ति, तीर्थंकरभक्ति,तीर्थभक्ति, चैत्यभक्ति इत्यादि भक्तियों के प्रति तीव्र अनुराग के साथ आत्मा की विशुद्धि होती है और सब प्रकार के आस्रव रुक जाते हैं।
आचार्य भगवन जब सामायिक में लीन हो जाते हैं तो एक नहीं अनेकों- अनेकों चमत्कार घटित हो जाया करते हैं।
खातेगांव की वह घटना जब आचार्य श्री जी आहार चर्या के बाद सामायिक में लीन थे,तब उनका दिव्य शरीर पाटे(तखत, जिस पर गुरुजी बैठकर सामायिक करते है)से ऊपर उठ चुका था,लोगों की यह दृश्य देखने के लिए बहुत अधिक संख्या में भीड़ उपस्थित हो चुकी थी,और महान पुण्यशाली है वे जीव जिनने यह दृश्य अपनी आंखों से देखा।
उस दिन के बाद से आचार्य श्री जी ने कभी भी दरवाजे खोलकर सामायिक नहीं की।
ऐसा एक बार ही नहीं हुआ,अनेकों बार घटित हो चुका है, जब आचार्य भगवंत सामायिक में अपनी आत्मा का चिंतन करते हैं तो स्वर्गों के देवता भी उनके चरणों मे आकर नतमस्तक हो जाते हैं।
अभी गर्मियों में डोंगरगढ़ की पहाड़ियों में 45 डिग्री के टेम्प्रेचर में आचार्य श्री जी जब 12 बजे सामायिक करते थे, तो उनके कमरे का दरवाजा,कमरे की सारी खिड़कियां बंद रहती थी, इतनी भीषण गर्मी में ढाई घंटे सामायिक करतेे थे।
इस भीषण पंचमकाल में भी हमें अपनी आंखों से ऐसी महान आत्मा का दर्शन हो रहा है वास्तव में हमारी आंखें और हमारे जीवन पूज्य आचार्य भगवन को देखकर धन्य हो गया।हमारा जन्म लेना सफल हो गया कि हमने ऐसे आचार्य भगवान के शासनकाल में जन्म लिया,जो आगे चलकर भविष्य में तीर्थंकर की सत्ता को धारण करके अपना और सारे विश्व का कल्याण करेगें।और हम तो यही भावना भाते हैं कि उन्हीं के चरणों में इस जीवन का समाधि मरण पूर्वक दिगंबर अवस्था में मरण हो और भव भव में आपके ही चरणों का सानिध्य हमें प्राप्त होता रहे।???
? अनासक्त महायोगी पुस्तक से साभार ?
✍ मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महामुनिराज✍
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