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प्रथम धारा मूल संस्कार विधि : जबलपुर 22 सितंबर 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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Blog Entries posted by Vidyasagar.Guru

  1. Vidyasagar.Guru
    आज 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन तिलकनगर इंदौर की धरातल पर विराजमान राष्ट्रसंत श्री 108 विद्यासागर जी ससंघ (33 मुनिराजों) के दर्शन करने पहुँचे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ
     


     
  2. Vidyasagar.Guru
    17 फरवरी 2024 शाम 5 बजे 
    संत शिरोमणि आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का मंगल विहार मुरमुंदा  फार्म हाउस से चंद्रगिरी डोंगरगढ  के लिए अभी-अभी हुआ!
     
    आचार्य श्री ससंध का प्रवेश चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में कुछ ही देर में
     
    15 फरवरी लगभग दोपहर 2 : 30 बजे 
    आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज का डोंगरगढ़ से विहार हो गया🙏
    मुरमूँदा रात्रि विश्राम
     
     
  3. Vidyasagar.Guru
    *⛳कल  दिनाँक 5/06/2022 रविवार को मुंबई में अंतर यात्री महापुरुष आचार्य श्री पर आधारित एक फिल्म का ट्रेलर एवम गीत-संगीत का विमोचन(लॉन्च) आदरणीय महावीर जी अष्टगे (आचार्य श्री के ग्रहस्थ जीवन के भाई), प्रभात जी ,इंदु भाभी जी ,किरीट भाई दोशी गोरेगॉव सभी के हस्ते  उनकी गरिमामयी उपस्थिति में किया गया।
    ⛳ पिक्चर बेहद ही खास पिक्चर संत शिरोमणि आचार्य श्री की जीवनी पर आधारित है पूरी फिल्म की कास्टिंग भी वहां पर उपस्थित थी,आचार्य श्री के जीवन पर आधारित यह पिक्चर 26 जून को प्रदर्शित की जा रही है..... फिल्म के प्रोडक्शन में वंडर सीमेंट का भी सहयोग मिला है  डायरेक्टर अनिल कुलचानिया ने बताया कि पिक्चर का दूसरा पार्ट भी बनेगा।
     
     




     
     
  4. Vidyasagar.Guru
    जय जिनेन्द्र 
    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाईल ऐप्प का प्रिन्ट (फ्लेक्स / पोस्टर ) निकालकर अपने मंदिर मे लगाए 
    जगह अनुसार ( बड़े से बड़ा पोस्टर लगाए )
    प्रिंट करने के लिए  पीडीएफ़ डाउनलोड कर सकते हैं। 
     
     
    पोस्टर के साथ अपनी फोटो  क्लिक कर यहाँ  अपलोड करें |
    https://vidyasagar.guru/gallery/category/76-1
     
     
     

     
    Achary shree app poster.pdf
  5. Vidyasagar.Guru
    आज जबलपुर में  परिवर्तन समारोह में आचार्यश्री की पिच्छी श्री राहुल जैन आईएएस, सचिव वित्त मंत्रालय भारत शासन को मिली 
    हम सभी उनके इस महापुण्य की अनुमोदना करते है
    श्री राहुल जी जैन तत्कालीन जिलाधीश रीवा ने रुआबाँधा पँचकल्याणक में आचार्यश्री का स्वयं का चौका लगा कर पड़गाहन किया था
     
     
     
     
     
    आचार्य श्री की पिच्छी आईएएस अधिकारी राहुल जैन-श्रीमती रूपल जैन को मिली
    जबलपुर में विराजमान संत शिरोमणि आचार्य भगवन विद्यासागर महाराज की पिच्छी लेने का सौभाग्य मध्य प्रदेश के सीनियर आईएएस अधिकारी राहुल जैन (2005) और उनकी पत्नी श्रीमती रूपल जैन को प्राप्त हुआ।
    उल्लेखनीय है 2 माह पूर्व राहुल जैन के पिता दयोदय महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे मल्ल कुमार जैन को आचार्य श्री ने छुल्लक दीक्षा प्रदान की थी पूरा परिवार धर्म से जुड़ा हुआ है और मात्र 43 वर्ष की उम्र में राहुल जैन को पिच्छिका लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है उनके पुण्य की हम सभी बहुत-बहुत अनुमोदना करते हैं। ऐसे ही संयम के मार्ग पर चलते रहे 
    मुकेश जैन ढाना सागर
  6. Vidyasagar.Guru
    केशलोंचअपडेट - श्री बीना बारह जी
    दिनाँक - 22 फरवरी 2019, शुक्रवार
    आज श्री अतिशय क्षेत्र बीना बारह जी में विश्व वंदनीय आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज एवं
    मुनि श्री श्रमण सागर जी मुनि श्री निश्छल सागर जी मुनि श्री सन्धान सागर जी के केशलोंच हुए |
     





     
  7. Vidyasagar.Guru
    आशीर्वाद : दयोदय तीर्थ प्रणेता संत शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज
    प्रेरणा स्तोत्र   मुनि श्री १०८ संधानसागर जी महाराज
     
    मान्यवर,
    आपके पास पटाखों के पोस्टर-पम्पलेट-स्टीकर आदि भेज रहे हैं, इन्हें यथोचित स्थान (स्थानीय विद्यालय, अस्पताल, पुलिस स्टेशन, मन्दिर एवं अन्य सार्वजनिक स्थान ) पर लगाकर हमारे इस महान् यज्ञ में एक अर्घ्य समर्पित कर
    पुण्य लाभ प्राप्त करें।
    पूज्य मुनि श्री द्वारा आपका नाम हमें मिला।आप कर्मठ कार्यकर्ता हैं, यह विश्वास करते हैं आप इस सभी सामग्री का सदुपयोग कर हमारेअभियान को आगे बढ़ाने में हमारी मदद करेंगे।
     
    धन्यवाद सहित,
    दयोदय महासंघ परिवार
     
    प्रिंट करने के लिए 
     
     
    सोश्ल मीडिया के लिए 
  8. Vidyasagar.Guru
    💲®
                 *समाधि मरण सूचना*
    *🦚परम पूज्यनीय आचार्य भगवन श्री विद्यासागर🦚* जी महामुनिराज के संघस्थ *ब्र. सुनील भैया अनंतपुरा इंदौर के परम् पूज्यनीय पिताजी श्री शिखर चंद नायक जी ने १:४५ पर सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर में देह त्याग दिया है पूज्य आचार्य श्री जी अपने मुखारविंद से कल दो बार सम्बोधन किया और चारों प्रकार के आहार का त्याग किया ने आज प्रातः ही णमोकार का उच्चारण सुनते सुनते देह को त्याग दिया*
    *२७ सितंबर २०१९ को प्रातः ७:३० बजे सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर में उठावनी होगी* 
    *ॐ शान्ति*
    *✏सौमिल जैन ललितपुर*
    *📲9793633522*
    💲®
     
    –---------------------------------
    24 se 19
     
    संघस्थ ब्र. सुनील भैया अनंतपुरा इंदौर के पिताजी श्री शिखर चंद जी नायक की  सल्लेखना प्रारम्भ नेमावर में
     
     
    सल्लेखना प्रारम्भ नेमावर में
    ~~`||||||~~~~~~`
    परम पूज्यनीय आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के संघस्थ ब्र. सुनील भैया अनंतपुरा इंदौर के पिताजी श्री शिखर चंद जी नायक की समाधि सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर में प्रारंभ हुई आज आचार्य भगवन ने अपने पवित्र मुख से ओम ओम ओम ओम का उच्चारण किया
     










  9. Vidyasagar.Guru

    प्रतियोगिता सुचना
    प्रतियोगिता निम्न लिंक से खुलेगी 
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSe4ky6NaCLYmqIFRaC18U_BsZZIAfOOvpmzeDRDKEge3bUKWQ/viewform?usp=sf_link
     
    प्रतियोगिता मे आप 3 फरवरी  2022  रात्री 10 बजे तक दे सकते हैं उत्तर |
  10. Vidyasagar.Guru
    कर्म कैसे करें : स्वाध्याय एवं प्रतियोगिता भाग 2 
    मुनि श्री क्षमासागर जी के समाधि दिवस पर आयोजित प्रतियोगिता 
     
     
    संसारी जीव अनादिकाल से कर्म संयुक्त दशा में रागी-द्वेषी होकर अपने स्वभाव से च्युत होकर संसार-परिभ्रमण कर रहा है। इस परिभ्रमण का मुख्य  कारण अज्ञानतावश कर्म-आस्रव और कर्मबंध की प्रक्रिया है जिसे हम निरंतर करते रहते हैं। कर्म बंध की क्रिया अत्यन्त जटिल है और इसे पूर्ण रूप से जान पाना अत्यन्त कठिन है, लेकिन यदि हमें केवल इतना भी ज्ञान हो जाए कि किन कार्यों से हम अशुभ कर्मों का बंध कर रहे हैं तो सम्भव है हम अपने पुरुषार्थ को सही दिशा देकर शुभ कर्मों के बंध का प्रयास कर सकते हैं|
     

     
    मुनिश्री क्षमा सागर जी  ने 18 प्रवचनों से जन-साधारण को कर्म सिद्धान्त के जैनदर्शन में प्रतिपादित विषयों से अवगत कराने हेतु अत्यन्त सरल भाषा में उन परिणामों को स्पष्ट किया है जिनके कारण हम निरन्तर अशुभ कर्मों का बन्ध करते रहते हैं। 
     
    लेके आए आपके लिए सामूहिक ऑनलाइन स्वाध्याय का विशेष प्रयोग 
    *फ़ॉर्म लिंक* 
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSd1koVSRICZzWxwZ_zdqmtZHMfvyzIDaI-8kMMPJKek9akPBQ/viewform?usp=sf_link
    *स्वाध्याय लिंक* 
    https://vidyasagar.guru/blogs/blog/48-1
     
    पंजीकरण सूची 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1oWSQc98MryRn9JWRqcU_dJjRTpXhhCQ_ifpuojiBy-8/edit?usp=sharing
     
     

     

     
     
     
     
     
  11. Vidyasagar.Guru
    प्रसंग – ०५/०२/२०१९ को भाग्योदय से केन्द्रीय जेल की ओर विहार और जेल में चल रहे वृहद् हथकरघा केंद्र का निरिक्षण ।
     
     
    ⛳ सबकी धड़कने बढ़ गयी जब हमारे अनियत विहारी गुरुदेव ससंघ अचानक ही संत भवन से निकले ... सब के मन में कौतुहल कि क्या हो रहा है ... पहले लगा शायद अस्पताल के निरीक्षण के लिए जा रहे हैं लेकिन जब भाग्योदय के प्रमुख प्रवेश द्वार के बाहर निकले तो सबकी दृदय गति में अचानक ही तेज़ संचार हो गया ... किसी को कुछ नहीं पता .... सारे शहर में ये खबर आग की तरह फैल गयी कि गुरूजी का भाग्योदय से विहार हो गया... क्या...???
    ⛳ लेकिन शनैः शनैः स्पष्ट हुआ कि गुरुदेव जेल जा रहे हैं गए हैं आदरणीया ब्र. रेखा दीदी (पूर्व डीएसपी) की देख रेख में उनके निर्देशन में पल्लवित हो रहे भव्य हथकरघा केंद्र जिसका नाम बड़े बड़े अक्षरों में जेल में अंकित है आचार्य विद्यासागर हाथकरघा एवं कालीन प्रशिक्षण केंद्र, केंद्रीय जेल सागर का निरीक्षण करने जा रहे हैं ... और भक्तजन रास्तो का पता करते करते गुरुदेव के संग विहार में शामिल होने लगे ...।
    ⛳ जेल के बाहर हजारों की संख्या में भक्तो का समूह एकत्रित हो गया और जेल के अन्दर जाने की जद्दोजहद करने लगे तब एक सज्जन ने कहा कि भाई लोगो को जेल आने के लिए इतना आतुर तो कभी नहीं देखा ... लेकिन गुरूजी नए श्रमजीवियों के ऊपर कृपा बरसाने गए है और अपना आशीष लुटाकर वापिस भाग्योदय पहुँच गए । 
    ⛳ इसके साथ ही भक्तों के मन में सवाल जग रहे थे कि अभी तो गुरु जी के स्वास्थ्य में थोडा सुधार हुआ है और गुरूजी फिर इतना लंबा पद विहार कर गए ... लेकिन उनसे पूछे कौन ... लेकिन फिर लगा जेल में बंद नए श्रमजीवी भी तो अपने परम उपकारी गुरुदेव के दर्शन के अभिलाषी हैं तो... गुरुभक्तों की मुराद गुरूजी ही तो पूरी करेंगे ...।
    पावन वो धरा जहाँ ऐसे संत हो
    साक्षात् भगवंत सदा जयवंत हो
     
    ✍ पुष्पेन्द्र जैन नैनधरा सागर
     
    @Pushpendra Jain Naindhara
  12. Vidyasagar.Guru
    इंदौर 15 नवम्बर 2020
    इंदौर में विराजमान संत शिरोमणि आचार्य गुरुदेव श्री विद्यासागर महाराज का ससंघ पिच्छिका परिवर्तन समारोह संपन्न हुआ
    आचार्य श्री की  पिच्छी राजेंद्र जी जैन वास्तु-श्रीमती अंचल वास्तु इंदौर को लेने का सौभाग्य को प्राप्त हुआ
     
    सभी नाम इस प्रकार हैं 
     

     
     
     
  13. Vidyasagar.Guru
    दिनांक - 27 जून 2020 ,शनिवार
    जहाँ हम भक्त टकटकी लगाए एकटक अपने आचार्य भगवन् गुरूवर श्री विद्यासागर जी को अपलक देख रहे थें कि गुरुजी का इस वर्ष का चौमासा कहा होगा,लेकिन यहाँ गुरुकृपा की बारिश और और बढ़ती जा रही है.......
        इंदौर नगरी में विगत 5 माह उपरान्त जिनशासन की अनूठी प्रभावना में गुरु आज्ञा से हुआ नवीन उपसंघ
     
     
     
     
    27 जून 2020 #रेवतीरेंज #भावनात्मकदृश्य😊👣
    #विहार पूर्व, आचार्य भगवन की वंदना करते हुए सभी संघस्थ एवं विहाररत मुनिराज।
     
     
     

     
    *सभी मुनिराज की सूचि लिंक पर अपडेट हो गई हैं |
    *आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज  ससंघ* 
    https://vidyasagar.guru/sangh/
    *मुनिश्री संभवसागर जी ससंघ*
    *मुनिश्री विनम्रसागर जी ससंघ*
    *मुनि श्री संभवसागर जी ससंघ विहार अपडेट*
    मुनिश्री विनम्रसागर जी ससंघ विहार अपडेट
    *शिष्य महाराज संघ सूचि* 
    https://vidyasagar.guru/aagyaanuvartee-sangh/
     
     
     

     
    ✨मुनि श्री १०८ संभव सागर जी महाराज
    ⭐मुनि श्री १०८ विराटसागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ विशदसागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ निर्मोहसागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ निष्पक्षसागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ निस्पंदसागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ निष्कामसागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ नीरजसागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ निस्संगसागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ समरससागर जी महाराज 
    ⭐मुनि श्री १०८ संस्कारसागर जी महाराज 
    11 मुनिराजों का गुरुचरणों से मंगल विहार.....
    🚩सम्भावित विहार दिशा👉🏻 भोपाल म.प्र.
    ✨पूज्यवर श्री १०८ विनम्रसागर जी महाराज जी
    ⭐मुनि श्री १०८ निःस्वार्थसागर जी महाराज जी,
    ⭐मुनि श्री १०८ निष्पृहसागर जी महाराज जी,
    ⭐मुनि श्री १०८ निश्चलसागर जी महाराज जी,
    ⭐मुनि श्री १०८ निर्भीकसागर जी महाराज जी,
    ⭐मुनि श्री १०८ नीरागसागर जी महाराज जी,
    ⭐मुनि श्री १०८ निर्मदसागर जी महाराज जी,
    ⭐मुनि श्री १०८ निसर्गसागर जी महाराज जी,
    ⭐मुनि श्री १०८ ओंकारसागर जी महाराज जी।
    🚩दिशा - अगली सूचना जल्दी मिलेगी
    9 मुनिराजों का गुरुचरणों से मंगल विहार.....
    ■समस्त श्रावको से विनम्र निवेदन■
    ★ विहार के दौरान सरकारी नियमो का ध्यान रखें।
    ★ मार्ग के दोनों और निश्चित दुरी बनाकर ही वंही से आरती, वन्दन, नमन करें।
    ★राह में कंही भी मुनिराजो के पाद प्रक्षालन का प्रयास न करें।
    ★ भीड़भाड़ से बचें, मास्क का प्रयोग करें।
    ★विहार के फोटो,वीडियो वायरल करने का प्रयास बिल्कुल भी न करें।
    👉🏻आपकी एक जरा सी असावधानी गुरुचरणों के विहार में बाधा का कारण बन सकती है।
     
     
     
  14. Vidyasagar.Guru
    समय, धन और बुद्धी तीनों को प्रदूषित कर रहा है मोबाइल: आचार्यश्री विद्यासागरजी
    ✍🏻 पुनीत जैन (पट्ठा) खातेगांव


    मैंने यह कार्य किया, ऐसा मत कहो। काम तो सब हो रहे हैं, बस अपने-अपने दायित्व निभाते जाओ। संकल्प और विकल्पों की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए। संयोजना सही होती है तो कार्य भी उसी के अनुरूप होता जाता है।
    कर्म सिद्धांत को समझ कर अपने कर्तव्य को करते रहना चाहिए। शास्त्रों में कर्तव्य के बारे में बहुत कुछ बताया गया है। कर्तव्य हो कृतित्व ना हो, कषायों का उन्मूलन हो। हम अच्छे और धार्मिक कार्यों द्वारा ही कषायों को खत्म कर सकते हैं।
    उक्त उद्गार नेमावर में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने चातुर्मास अवधि में सेवारत कार्यकर्ताओं के सम्मान समारोह के अवसर पर कहे। शनिवार को प्रातः काल की बेला में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की पूजा के अवसर पर चातुर्मास अवधि में सेवारत खातेगांव, हरदा, अजनास, संदलपुर, नेमावर बानापुरा, इंदौर के कार्यकर्ता और समाज जनों द्वारा आचार्य श्री जी को श्रीफल समर्पित किया गया। 
    वहीं ट्रस्ट कमेटी द्वारा कार्यकर्ताओं के सम्मान स्वरूप उनसे आचार्य श्री की पूजन में अष्टद्रव्य समर्पित करवाया गया। इस अवसर पर आचार्यश्री ने कहा कि आप कर्तव्य करेंगे तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होगी। जिसका जैसा पुण्य होगा, कार्य भी वैसा ही होगा यह निश्चित है। अरिहंत देव द्वारा बताई गई विधि से कर्तव्य करेंगे तो हम भी कर्म को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने में समर्थ होंगे। आप लोगों को नाम उल्लेख ज्यादा नहीं करना चाहिए। हमारा आशीर्वाद भी हमेशा कार्य के लिए होता है, कर्ता के लिए नहीं। आचार्यश्री ने मोबाइल के दुरुपयोग और भविष्य में उससे होने वाली हानियों के बारे में बताते हुए कहा कि आज विद्यालयों में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों ही मोबाइल के कारण अपने मार्ग से भटक रहे हैं। मोबाइल का सीमित उपयोग होना चाहिए। बच्चों को इस अपव्यय से बचाना चाहिए। किंतु इसके लिए आवश्यक है कि पहले माता-पिता स्वयं इस मोबाइल रूपी बीमारी से बचे। बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ भी अपने बच्चों को मोबाइल के लगातार प्रयोग से रोकते हैं। आज लोग गर्भ में बच्चा आते ही उनके लिए मोबाइल खरीद लेते है, मोबाइल के कारण खान-पान रहन-सहन सब कुछ बिगड़ रहा है। मोबाइल समय, धन और बुद्धी तीनों को प्रदूषित कर रहा है। अतः इन सब से बचने के लिए मोबाइल का प्रयोग सीमित करना होगा। 
    आचार्यश्री के वचनों से प्रेरित होकर विद्यासागर कॉलेज के संचालक आलोक जैन और हरदा नगर पालिका अध्यक्ष सुरेंद्र जैन सहित सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सप्ताह में एक दिन मोबाइल का उपयोग नहीं करने का संकल्प लिया। इसके साथ ही सुरेंद्र जैन द्वारा आजीवन चाय एवं काफी का त्याग भी किया गया।






  15. Vidyasagar.Guru
    खातेगांव! आचार्यश्री विद्यासागर जी और मूकमाटी पर पीएचडी करने वाले 12 शोधार्थियों की किताबों का रविवार को सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर में विमोचन हुआ। कार्यक्रम के संयोजक प्रवेश सेठी, प्रफुल्ल पाटनी ने बताया कि अब तक देश के विभिन्न प्रान्तों के 50 से ज्यादा शोधार्थियों ने आचार्यश्री और उनके द्वारा रचित मूकमाटी महाकाव्य पर पीएचडी की है। इन्ही में से 12 शोधार्थियों द्वारा जमा की गई थीसिस पर आधारित किताबों का विमोचन आचार्यश्री के ससंघ सानिध्य में किया गया। ट्रस्ट कमेटी के कार्याध्यक्ष संजय मेक्स, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरेश काला सहित अन्य पदाधिकारियों ने सभी शोधार्थियों को प्रशस्ति पत्र और साहित्य देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन ब्र संजय भैया ने किया

     
    नेमावर! आचार्यश्री विद्यासागर जी और मूकमाटी पर पीएचडी करने वाले 12 शोधार्थियों की किताबों का रविवार को सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर में विमोचन हुआ। कार्यक्रम के संयोजक प्रवेश जैन, प्रफुल्ल पाटनी ने बताया कि अब तक देश के विभिन्न प्रान्तों के 50 से ज्यादा शोधार्थियों ने आचार्यश्री और उनके द्वारा रचित मूकमाटी महाकाव्य पर पीएचडी की है। इन्ही में से 12 शोधार्थियों द्वारा जमा की गई थीसिस पर आधारित किताबों का विमोचन आचार्यश्री के ससंघ सानिध्य में किया गया। ट्रस्ट कमेटी के कार्याध्यक्ष संजय मेक्स, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुरेश काला सहित अन्य पदाधिकारियों ने सभी शोधार्थियों को प्रशस्ति पत्र और साहित्य देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन ब्र संजय भैया ने किया। मुनिश्री संभवसागरजी ने भी आशीर्वचन दिए। जैन समाज के प्रवक्ता नरेंद्र चौधरी, पुनीत जैन (पट्ठा) ने बताया कि 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस के अवसर पर भी एक विशेष कार्यक्रम होगा, जिसमें देशभर के करीब 500 शिक्षक यहां उपस्थित होंगे।
    शोधार्थी जिनकी किताबों का विमोचन हुआ-
    • साधना सेठी कटारिया वस्त्रापुर अहमदाबाद: आचार्यश्री के विचारों का दार्शनिक अनुशीलन • बारेलाल जैन टीकमगढ़: हिंदी साहित्य की संत काव्य परंपरा के परिप्रेक्ष्य में आचार्य विद्यासागर के कर्तव्य का अनुशीलन • शालिनी गुप्ता कुसमी जिला बलरामपुर: भक्ति काव्य के मूल्य और आचार्य विद्यासागर का काव्य • माया जैन उदयपुर: आचार्य विद्यासागर व्यक्तित्व एवं काव्य कला • किरण जैन मनोरमा कॉलोनी सागर: जैन दर्शन के संदर्भ में मुनि श्री विद्यासागर जी के साहित्य का अनुशीलन • सुधीर जैन अरेरा कॉलोनी भोपाल: आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के साहित्य एवं श्रीमद्भगवद्गीता का तुलनात्मक अध्ययन • अनिल सिरवैया भोपाल: आचार्य विद्यासागर का साहित्य एक अनुशीलन • प्रशांत कुमार जैन राघोगढ़ जिला गुना: आधुनिक हिंदी काव्य के विकास में आचार्य विद्यासागर जी का योगदान • निधि गुप्ता गाजियाबाद: आचार्य विद्यासागर के साहित्य में जीवन मूल्य • रमाशंकर दीक्षित कटनी: आचार्य विद्यासागर केंद्रीत प्रमुख शोध ग्रंथों का अनुशीलन • सुनीता दुबे विदिशा: आचार्य विद्यासागर की लोक दृष्टि और उनके काव्य कलागत अनुशीलन • सुदाणी जल्पावी मोटाबारमण जिला अमरेली: मूकमाटी महाकाव्य में व्यक्त लोकोपयोगी विचार  
     
    दिगम्बर जैनाचार्य सन्त शिरोमणि 108 श्री विद्यासागर महाराज के विपुल वाङ्मय सम्बन्धी शोधकार्य
     
  16. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता क्रमांक 2 लिंक 
     
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdy9V536No2lIbU36VflF7tOe8mXUwfqRRnGfNbZo13SkNi6A/viewform?usp=sf_link
     
    उत्तर प्राप्त सूची एवं प्रतियोगिता अनुभव 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1RK50g3d7mXiq7JnwFQ8G5yYsPiLcnqJYw9AEJpG9lwo/edit?usp=sharing
     
     

  17. Vidyasagar.Guru
    मुनि श्री विनम्रसागर जी महाराज जी ने बताया  - सिद्धक्षेत्र नेमावर ( म.प्र.) वैशाख सुदी ११ को आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज ने प्रथम बार जगत कल्याण भाव से सिद्धदायक मंत्र दिया एवम उसकी ११ माला का जाप करने को कहा ।
    ।। ॐ ह्रीं अर्हं णमो सव्वसिद्धायदणाणं मनोवांछित सिद्धिदायकं भवतु ।।
     
     
     
    रोजाना इस मंत्र की ११ माला आचार्य भगवन ने समस्त आचार्य संघ एवम ब्रह्मचारी भैया दीदी, श्रावक गृहस्थ को फेरने के लिए कहा है   बहुत कम होता है आचार्य भगवन कोई भी जाप सामूहिक करने के लिए कहे हम सभी को भी यह जाप देना चाइए ताकि सभी कार्य अच्छे से निर्विघ्न पूर्ण हो
  18. Vidyasagar.Guru
    कर्म कैसे करें : स्वाध्याय एवं प्रतियोगिता 
    प्रतियोगिता पंजीकरण फ़ॉर्म भर जुड़ सकते हैं स्वाध्याय में हमारे साथ |
    संसारी जीव अनादिकाल से कर्म संयुक्त दशा में रागी-देषी होकर अपने स्वभाव से च्युत होकर संसार-परिभ्रमण कर रहा है। इस परिभ्रमण का मुख्य  कारण अज्ञानतावश कर्म-आस्रव और कर्मबंध की प्रक्रिया है जिसे हम निरंतर करते रहते हैं। कर्म बंध की क्रिया अत्यन्त जटिल है और इसे पूर्ण रूप से जान पाना अत्यन्त कठिन है, लेकिन यदि हमें केवल इतना भी ज्ञान हो जाए कि किन कार्यों से हम अशुभ कर्मों का बंध कर रहे हैं तो सम्भव है हम अपने पुरुषार्थ को सही दिशा देकर शुभ कर्मों के बंध का प्रयास कर सकते हैं|
     

     
    मुनिश्री क्षमा सागर जी  ने 18 प्रवचनों से जन-साधारण को कर्म सिद्धान्त के जैनदर्शन में प्रतिपादित विषयों से अवगत कराने हेतु अत्यन्त सरल भाषा में उन परिणामों को स्पष्ट किया है जिनके कारण हम निरन्तर अशुभ कर्मों का बन्ध करते रहते हैं। 
     
    लेके आए आपके लिए सामूहिक अनलाईन स्वाध्याय का विशेष प्रयोग 
    *फ़ॉर्म लिंक* 
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSf36rwc8d_x8KCKAtv3wyWgTdupDG25YFqCQ4RKKP8jiMo-og/viewform?usp=sf_link
    *स्वाध्याय लिंक* 
    https://vidyasagar.guru/blogs/blog/48-1
     
    पंजीकरण सूची 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1aGzU6H8F7N9Plwm2K-ELi-65FVlIDnqsM3bZoe6c79Q/edit?usp=sharing
     
     
  19. Vidyasagar.Guru
    आसक्ति, आतुरता, अतृप्ति और अधीरता
    पर्वत के शिखर से नदी बहती है। अपने दोनों तटों के मध्य नियंत्रित वेग और निर्धारित दिशा की ओर जब वह प्रवाहित होती है तब विशाल सागर का रूप धारण कर लेती है। नदी जब अपने कूल-किनारों के मध्य नियंत्रित वेग और निर्धारित दिशा की ओर प्रवाहित होती है तो सागर में समाहित होती है और जब अपने कूल-किनारों का उल्लंघन कर देती है, उन्हें छोड़ देती है तो मरुस्थल में भटककर खो जाती है। नदी; सागर में सिमटकर भी मिटती है और मरुस्थल में भटककर भी मिटती है। नदी का सागर में सिमट जाना अपने क्षुद्र अस्तित्व को विराट रूप प्रदान करना है और मरुस्थल में भटक जाना अपने अस्तित्व को विनष्ट कर डालना है। नदी सागर में तभी जा पाएगी जब उसकी दिशा सही और नियंत्रित हो |बस इसी और नियंत्रित के निर्धारण का नाम संयम है | 
     
    सन्त कहते हैं अपने जीवन की धारा को तुम शांति के सागर तक पहुँचाना चाहते हो तो उसे सही दिशा और नियंत्रित वेग में प्रवाहित करो। यदि तुम्हारे जीवन में सही दिशा और नियंत्रण होगा तो तुम शाति के सागर तक पहुँच पाओगे अन्यथा विषयों के मरुस्थल में भटककर नष्ट-भ्रष्ट हो जाओगे। ऊर्जा तुम्हारे पास है; उसका उपयोग कैसे करना है इस विषय में आज के लिए चार बाते हैं- दिशा, दशा, दृष्टि और सृष्टि। 
     
    सबसे महत्वपूर्ण बात है दिशा की। दिशा मतलब डायरेक्शन। संयम कहता है अपनी विषयगामी इन्द्रियों और मन को सही दिशा देना। अभी तुम्हारी चेतना किस दिशा में जा रही है? जिनकी चेतना इन्द्रियों और विषयों की तरफ भागती है, समझ लेना उनके जीवन की दिशा गलत है। ये रॉग (गलत) डायरेक्शन है। राँग (गलत) डायरेक्शन में चलने वाले व्यक्ति की जिंदगी की दशा बहुत खराब होती है।
     
    आज तुम्हारी दिशा क्या है? किधर बढ़ रहे हो? पाँच इन्द्रियाँ और मन; ये हमारी चेतना को भटकाने वाले तत्व हैं। सही दिशा में चलने वाला व्यक्ति धीमी गति से चलकर भी अपने गन्तव्य तक पहुँच जाता है और गलत दिशा में तेज गति से दौड़ने वाला भी भटकता रहता है। अपने मन को टटोलकर देखो, क्या स्थिति है? सही दिशा में चलने वाले हो या दिशाहीन बनकर दौड़ने वालों में शामिल हो? कहाँ हो? यदि सही दिशा में चलने वाले होगे तो नियमत: अपने लक्ष्य के नजदीक पहुँचोगे और दिशाहीन होकर दौड़ोगे तो भटकते ही रह जाओगे।
     
    आज तक का इतिहास तो यही बताता है कि मनुष्य दौड़ रहा है, बड़ी तेज गति से दौड़ रहा है। केवल दौड़ना-दौड़ना-दौड़ना ही उसके जीवन में जुड़ा हुआ है। उसका अपना कोई लक्ष्य नहीं; नहीं। मुम्बई जाना हो और कलकत्ता की गाड़ी में बैठोगे तो कहाँ पहुँचोगे? कलकत्ते की गाड़ी में बैठने वाला व्यक्ति कभी मुम्बई नहीं पहुँच सकता। मुम्बई पहुँचने के लिए मुम्बई की गाड़ी में ही बैठना हांग।
     
    तुम चाहते हो सुख, शांति, संतुष्टि और प्रसन्नता। तुम्हारी जो दिशा है क्या वह सुख की ओर जाती है? क्या वह शांति, संतुष्टि और प्रसन्नता की ओर जाती है? अनुभव करो, जाँचों, परखो और देखो। केसे माने कि मेरी दिशा सही है? कैसे जानें कि मैं गलत दिशा में तो नहीं चल रहा हूँ? क्या इष्ट है तुम्हारा? तुम्हारे जीवन का उद्देश्य क्या है?
     
    सुख, शांति, संतुष्टि और प्रसन्नता चाहते हो पर तुमने कभी इस बात का आकलन करने की कोशिश की कि जिस रास्ते पर मैं चल रहा हूँ उस रास्ते पर चलकर आज तक किचित भी सुख, शांति और संतुष्टि पाई या रंच मात्र भी प्रसन्नता हमें मिली। जो प्राप्त हुआ उसकी समीक्षा करके देखो। यदि ये चीजें प्राप्त कर लीं तो समझ लेना आप राइट डायरेक्शन में हो, सही दिशा में हो और यदि नहीं पा सके तो आपको अपनी दिशा बदलने की जरूरत है।
     
    क्या हमने भोगों को भोगा?
    अपने मन को पलटकर देखो, आपके मन में सुख-शांति कब आती है? जब मनोवांछित पदाथों को पाते हो तब या अपने मन को नियंत्रण में रखते हो तब? मन के नियंत्रण में सुख-शांति मिलती है अथवा मनोवांछित की प्राप्ति में? मनोवांछित मिलने पर तो सुख-शांति मिल जाती है लेकिन जब मनोवांछित नही मिलता है तब क्या होता है? तकलीफ होती है। ईमानदारी से बोली मनोवांछित पाने के बाद तुम्हें कितनी देर के लिए शांति मिलती है और मन को नियंत्रण करने पर क्या होता है? तकलीफ होती है। मन को नियंत्रित कर लिया, मन को रोक लिया, मन को समझा लिया, मन मार लिया तब क्या होता है?
     
    एक व्यक्ति है जिसके मन मे मिठाई खाने की इच्छा है और मिठाई खाने के लिए लालायित है। चार प्रकार की मिठाईयाँ उसकी थाली में हैं लेकिन उनमें उसकी मनपसंद मिठाई नहीं है। चार प्रकार की मिठाईयाँ होने पर भी अधिक की चाह है। एक दूसरा व्यक्ति है जिसने मीठे का त्याग किया हुआ है उससे कहा जा रहा है मिठाई खाओ। वह कहेगा नहीं आज मेरा मीठे का त्याग है; मैं नहीं खाऊँगा। अब बताओ कौन ज्यादा सुखी है? जिसका त्याग है वह सुखी है और जो भोग रहा है वह सुखी नहीं है।
     
    सूत्र लीजिए सुखी होने की दिशा है नियंत्रण। मन पर नियंत्रण, इन्द्रियों पर नियंत्रण और इच्छाओं पर नियंत्रण। जितना नियंत्रण होगा तुम उतने सुखी रहोगे और जितना उनका भोग करोगे उतना दुखी रहोगे। तय करो किस दिशा में जा रहे हो? नियंत्रण की दिशा में या भोगों की प्राप्ति की दिशा में। मन को शांति कहाँ मिलती है?
     
    नहीं, भोगों ने हमको भोगा है
    संत कहते है मन की शांति भोग में नहीं नियंत्रण में है क्योंकि मन कभी भी शांत नहीं होता। जैसे ईधन से अग्नि को बुझाया नहीं जा सकता वैसे ही विषयों से मन को कभी तृप्त नहीं किया जा सकता। इच्छाओं की पूर्ति तृप्ति का साधन नहीं बनती। इच्छाओं के नियंत्रण से ही इच्छाएँ तृप्त होती हैं।
     
    अनुभव करने की कोशिश करो। बताओ भूखा कौन है? किसी व्यक्ति की थाली में दो लड्डू हैं; अपने लड्डू खाकर पड़ोसी की थाली के दो लड्डुओं पर जिसकी नजर है वह अथवा जिसे भूख जिसे खाने की इच्छा नहीं है वह सुखी है। ध्यान रखना! भोगों की ओर जितना अधिक भागोगे उतनी अधिक व्याकुलता होगी और भोगों से जितना विरक्त होगे उतनी ही निराकुलता होगी।
     
    अभी तुम्हारी एक ही सोच है इन्द्रिय विषयों का जितना भोग करूंगा मैं उतना सुखी होऊँगा। इसलिए भोग करने के लिए साधन चाहते हो और साधन मिलने के बाद उनसे सुख पाना चाहते हो। सुख; साधन और सामग्री से नहीं मिला करता; सुख अंतर की एक परिणति है। मेरे कहने मात्र से मत स्वीकारो। अपने अनुभव को टटोलकर देखो। आज तक पाँच इन्द्रिय के विषयों का भोग करने के बाद तुम्हारा अनुभव क्या है? विषयों को भोगने के बाद क्या आज तक किसी भी इन्द्रिय विषयक स्थायी तृप्ति की अनुभूति हुई? नहीं हुई तो फिर अपना डायरेक्शन चैन्ज (दिशा बदलते) क्यों नहीं करते?
     
    डायरेक्शन चेन्ज करो। अपने जीवन की दिशा बदली। महाराज! दिशा बदलने की बात मत करो। आप तो ऐसा कोई उपाय बता दो जिससे जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं उसी रास्ते से काम हो जाए।न भूतो न भविष्यति: न आज तक कभी हुआ है और न आगे कभी होगा।
     
    एक युवक ट्रेन में सवार था। वह अपने घुटनों पर सिर रखकर जोर-जोर से रोए जा रहा था। ट्रेन में ज्यादा भीड़ नहीं थी, सामने की सीट पर एक बूढ़ी अम्मा बैठी थी और पूरा कम्पार्टमेंट खाली था, ये दो ही थे। उस वृद्धा को युवक का रोना अच्छा नहीं लगा। उसने पहले तो सोचा कि शायद परिजनों का वियोग-विछोह सहा नहीं जा रहा होगा इसलिए रो रहा है। लेकिन जब वह काफी देर तक रोता रहा तो उस अम्मा से रहा नहीं गया। उसने उस युवक को पुचकारकर पूछा- बेटे। क्यों रो रहे हो? उधर से कोई जबाब नहीं मिला तो वह विकल हो उठी। बेटे! बता तो सही तू रो क्यों रहा है? फिर भी कोई जबाब नहीं। बुढ़िया अपने स्थान से उठी, उसके बालों को सहलाते हुए प्यार से पूछा- बेटे बता तो सही तू क्यों रो रहा है? तू मुझे अपनी माँ समझ। युवक ने धीरे से आँखें खोली, ऊपर देखा और वापस घुटनों पर सिर रखकर और जोर-जोर से रोने लगा। अब तो उसके साथ-साथ बुढ़िया भी रोने लगी। उसने युवक को झकझोर कर हिलाया और बोली बेटे! तुझे मेरी कसम; बता तू क्यों रो रहा है? तू मुझे अपनी माँ समझ; मैं तेरी हर संभव मदद करूंगी। मुझसे तेरा रोना देखा नहीं जा रहा।
     
    उस युवक ने कहा क्या बताऊँ माँ मैं गलत गाड़ी में बैठ गया हूँ। अम्मा ने कहा बेटे। गलत गाड़ी में बैठने पर रोने से क्या फायदा? अगले स्टेशन पर उतर कर गाड़ी बदल लेना, मामला ठीक हो जाएगा। उसने कहा- अम्मा! मैं भी यही सोच रहा हूँ पर क्या बताऊँ रिजर्वेशन है नहीं, यहाँ कम्पार्टमेंट खाली है, पता नहीं दूसरी गाड़ी में सीट मिलेगी या नहीं मिलेगी।
    बंधुओं! ऐसे लोगों में कहीं तुम भी तो शामिल नहीं हो। सब रो रहे हैं और रोने का कारण भी पता है। गलत गाड़ी में बैठे हैं।
     
    सन्त कहते हैं। भैया! गाड़ी बदल लो। महाराज! बदल तो लें पर ये लगेज ढेर सारा है उसका व्यामोह मनुष्य को व्याकुल करता है।ध्यान रखो जब तक आप अपने जीवन की दिशा को सुनिश्चित नहीं करोगे संयम प्रकट नहीं होगा। राँग डायरेक्शन (गलत दिशा) से राइट डायरेक्शन (सही दिशा) में आइए। अपनी दिशा को बदलिए।
     
    आसक्ति की खुजलाहट : खुजलाहट की आसक्ति
    पाँच इन्द्रियों के विषयों ने आज तक कभी किसी को तृप्त नहीं किया। जैसे कोई खाज खुजाकर अपनी खाज मिटाना चाहता है तो क्या खुजाने से आज तक किसी की खाज मिटी है? खुजाने से खाज नहीं मिटती। खुजाते वक्त थोड़ी देर की राहत जरूर महसूस होती है लेकिन बाद में उतनी ही तीव्र जलन होती है। ये अभ्यस्त विषय है इसलिए जब भी खाज उठती है तो कोई भी समझदार व्यक्ति खाज खुजाता नहीं उस पर कोई लोशन या मरहम लगा लेता है ताकि खाज खत्म हो जाए।
     
    सन्त कहते हैं ध्यान रखो पंच इन्द्रिय-विषयों की खाज जब भी उठे उसे खुजाकर शांत नहीं किया जा सकता। उस खाज से मुक्त होना चाहते हो तो उस पर भेद-विज्ञान की मरहम लगा दो, वैराग्य का लोशन चढ़ा दो, खाज मिट जाएगी। आज तक का इतिहास है इन्द्रिय विषयों की दिशा में जो भी गया है वह भटका है। बड़े-बड़े विद्वानों ने भी इन पंच-इन्द्रियों के विषयों के चक्कर में फसकर अपना सर्वनाश किया है, सत्यानाश किया है। इसलिए अपने आप को सम्हालो और इस गलत डायरेक्शन (दिशा) से अपने आपको बचाने की कोशिश करो तब कहीं जाकर तुम अपने जीवन को सफल और सार्थक बना सकोगे।
     
    इन्द्रिय चेतना हमारे चित्त को बहिर्मुखी बनाती है। बहिर्मुखी दृष्टि हमें विषयों में आसक्त बना देती है और ये आसक्ति हमें आतुर बनाती है। आसक्ति, आतुरता, अतृप्ति और अधीरता -ये ही पंच-इन्द्रिय विषयों की निष्पत्तियाँ हैं। किसी भी विषय पर एक बार व्यक्ति का मन आसक्त हो जाए फिर वह उसे प्राप्त करने के लिए एकदम आतुर हो जाता है। और प्राप्त कर ले तो उसे भोगने के लिए अंदर में अधीरता, एकदम उतावलापन आता है और फिर कभी उसे तृप्ति नहीं होती।
     
    अच्छे-अच्छे ज्ञानियों के साथ भी ऐसा घटित हुआ। भागवत का एक प्रसंग है, वेद व्यास के संदर्भ में आता है व्यास जी को अध्ययन करते-करते एक सूत्र मिला
     
    “बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वासमपि कर्षति"
    इन्द्रियों का समूह बड़ा बलवान है जो ज्ञानियों को भी दुख देता है। व्यास जी को ये सूत्र ठीक नहीं लगा। उन्होंने कहा- नहीं; विद्वानों को इन्द्रिय विषय प्रभावित नहीं करते, अविद्वान ही इन्द्रिय-विषयों से प्रभावित होता है। ये चूक हो गई है इसलिए उन्होंने इसकी सन्धि करके इसमें न-खण्डाकार जोड़कर उसका उच्चारण इस तरह से किया-
     
    ‘बलवानिन्द्रियग्रामोऽविद्वांसमपि कर्षति'
    इन्द्रियों का समूह बड़ा बलवान है ये अविद्वानों को दुखी करता है। लिख दिया। सब कुछ सामान्य चल रहा था। एक दिन वे नदी पार कर रहे थे। पैदल नदी पार करने का एक संकरा पुल था। एक छोर से ये आ रहे थे और सामने की दिशा से एक षोडशी युवती आ रही थी। उस युवती ने दूर से ही आवाज लगाते हुए कहा कि व्यास जी आप वहीं रुक जाइए, पुल सकरा है मुझे निकल जाने दो फिर आप निकल जाना। व्यास जी ने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है, पुल में इतनी चौड़ाई है मैं एक ओर हो जाऊँगा तुम निकल जाना। युवती ने कहा- नहीं मैं चाहती हूँ कि पहले आप निकल जाओ फिर मैं निकल जाऊँगी। व्यास जी बोले- कोई बात नहीं मैं आ रहा हूँ तुम एक साइड से निकल जाना।
     
    उस युवती ने देखा कि व्यास जी वापिस नहीं हो रहे हैं तो वह स्वयं वापिस हो गई। व्यास जी की ओर पीठ करके पीछे की ओर चलना शुरू कर दिया। युवती जैसे ही पीछे की ओर गई व्यास जी की चाल तेज हो गई। उन्होंने अपने कदम तेज कर दिए ताकि उस युवती तक पहुँचा जा सके। जैसे ही व्यास जी के कदम तेज हुए कि आकाश से ध्वनि आई -
     
    'बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति'
    ये शब्द सुनकर व्यास जी चौक पड़े। देखते हैं सामने जो युवती थी कहाँ विलीन हो गई पता नहीं। लेकिन ये शब्द उनके कानों में गूंजने लगे-
     
    'बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति'
    ये इन्द्रियों का समूह बड़ा बलवान है जो अच्छे-अच्छे विद्वानों को व्यास जैसे विद्वानों को भी प्रभावित कर देता है। कहते हैं वह युवती कोई और नहीं स्वयं सरस्वती थी जो व्यास जी के भ्रम को मिटाने के लिए प्रकट हुई थी। उन्हें बोध हो गया अपनी अज्ञानता का और सूत्र में किया गया संशोधन उन्होंने वापस ले लिया।
     
    अच्छे-अच्छे ज्ञानियों को भी इन्द्रियासक्ति भटका देती है। इसलिए अपनी इस दिशा को बदलिए आपकी दशा बदल जाएगी। जो इन्द्रिय विषयों की दिशा में बढ़ते गए हैं वे भटके हैं और दुखी हुए हैं तथा जिन्होंने इन्द्रियों को सही दिशा दी, मन को सही दिशा दी वे सम्हले हैं और सुखी हुए हैं।
     
    क्या चाहते ही भटकना और दुखी होना अथवा सम्हलना और सुखी होना। सम्हलना और सुखी होना चाहते हो तो आज से डायरेक्शन चैन्ज कर दो (दिशा बदल दो) और ये तय कर लो कि मैं अब इन्द्रिय-विषयों का रास्ता स्वीकार नहीं करूंगा। न तुम दिशा बदलना चाहते हो और न दशा सुधारना चाहते हो। तुम तो बस अपनी दशा पर रोना जरूर जानते हो।
     
    दिशा बदलना नहीं चाहते, दशा सुधारना नहीं चाहते बस रात दिन अपनी दशा का रोना रोते हो। हे महाराज! आशीर्वाद दे दो बहुत दुखी हूँ। किसी के आशीर्वाद से कोई भी सुखी नहीं होता। सुखी होने के लिए तुम्हें खुद अपनी आत्मा को जगाना होगा। आत्मा को जगाओ, आध्यात्मिक दिशा में बढ़ना शुरु करो तब कहीं जाकर अपने जीवन में कुछ सार्थक उपलब्धि घटित कर सकोगे।
     
    विषयों का चक्कर
    इन्द्रिय-विषयों की स्थिति बहुत भयानक है। शास्त्रकारों ने कहा कि हाथी जैसा बलशाली प्राणी भी अपनी स्पर्शन-इन्द्रिय के व्यामोह में अपना सर्वनाश कर लेता है, मछली रसना इन्द्रिय की चाहत में अपना सत्यानाश कराती है, भौंरा प्राण इन्द्रिय की चाह में अपना विनाश करता है, पतंगा या चमरी गाय अपनी नेत्र इन्द्रिय की चाह में; रूप की चाह में अपना सर्वनाश करती है और हिरन कर्ण इन्द्रिय के विषय में आसक्त होकर अपना विनाश करता है।
     
    ये पाँचों प्राणी एक-एक इन्द्रिय के विषय के कारण अपना विनाश करते है तो जो पाँचों इन्द्रियों का दास है उसका क्या हाल होगा विचार करो। जो अपनी इन्द्रिय को सही दिशा में आगे बढ़ाते हैं, इन्द्रियों पर नियंत्रण करते हैं उनके जीवन की दशा परम सुखमय हो जाती है और जो इन्द्रिय विषयों के दास बन जाते हैं उनकी दशा दुर्दशा कहलाती है।
     
    एक बार कुछ लोग मेरे पास बैठे थे। उनमें से एक आदमी ने बात करते-करते ऐसी बात कह दी जो सामने बैठे हुए व्यक्तियों के लिए उस समय कहना उपयुक्त नहीं थी। कहते-कहते कह दिया कि भैया तुम आदमी हो कि घनचक्कर? लोग तो चले गए पर ये घनचक्कर शब्द मेरे दिमाग में चक्कर लगाता रहा। घनचक्कर शब्द ने जब मेरे दिमाग मे चक्कर लगाया तो कुछ पंक्तियाँ बनीं
     
    आदमी के साथ है जीभ,
    जीभ के साथ है खान-पान,
    नये-नये स्वाद,
    मधुर-मिष्ठान्न का चक्कर।
    आदमी के पास है स्पर्श,
    स्पर्श के साथ है,
    मृदुल-मृदुल वस्तुओं के स्पर्श का चक्कर।
    आदमी के साथ हैं कान,
    कान के साथ है गीत-संगीत,
    मधुर लय-ताल के श्रवण का चक्कर।
    आदमी के पास है अाँख,
    अाँख के साथ है,
    रूप-लावण्य के दर्शन का चक्कर।
    आदमी के पास है शब्द;
    वचन की है शक्ति,
    कहीं भी कुछ भी बकता है,
    बुराई करते नहीं थकता है,
    वचन के साथ है
    अथकन का चक्कर।
    आदमी के पास है मन,
    मन के साथ लगा है
    राग-द्वेष भोग-विलास का चक्कर।
    आदमी के पास हैं प्राण,
    प्राणों के साथ लगा है। सघन चक्कर।
    और इन चक्करों के बीच
    चकराते-चकराते,
    आदमी का नाम हो गया है
    'घनचक्कर'।
    ये चीजें समझना चाहिए। इस घनचक्करपने को खत्म करो। जब तक घनचक्कर बने रहोगे संसार में चक्कर खाते रहोगे इसलिए अब घनचक्कर नहीं बनना है। अपने जीवन को समझना है। जीवन को समझकर उसी अनुरूप अपने आप को आगे बढ़ाने की कोशिश करना है। यदि अपने जीवन की दशा को बदलना चाहते हो तो दिशा को बदली।
     
    आज से तय करो कि अभी तक मैं इन्द्रिय विषयों की तरफ अपनी दृष्टि रखता था अब मैं त्याग की और दृष्टि रखेंगा। अभी तक मेरी दृष्टि भोगवादी थी अब मैं अपने भीतर आध्यात्मिक दृष्टि जगाऊँगा। जो मनुष्य अपने जीवन की दिशा बदलते हैं उनकी दशा बदल जाती है और दशा बदलने से दृष्टि बदलती है। अपनी अंतर्दृष्टि को बदले बिना मनुष्य जीवन में कुछ भी नहीं पा सकता। किसी व्यक्ति से मैं कितने भी नियम-संयम लेने की बात करूं लेकिन उस पर तब तक असर नहीं पड़ता जब तक उसकी दृष्टि नहीं बदलती।
     
    कोई व्यक्ति गुटखा मसाला खाता है; उसे लाख समझाओ कि गुटखा मसाला नहीं खाओ लेकिन वह छोड़ने को राजी नहीं होता क्योंकि अभी उसमें उसकी उपादेय बुद्धि है, उसकी दृष्टि में अभी वह हेय नहीं बना इसलिए वह उसे मजा देता है। उसे पता नहीं इस मजा में जिंदगी की कितनी बड़ी सजा है। अभी उसका मन इस बात को स्वीकारने के लिए राजी नहीं है।
     
    जब तक किसी वस्तु में, किसी विषय-सामग्री में उपादेय बुद्धि है, तुम्हारी दृष्टि में वह अच्छी है तब तक कोई उसे कितना भी समझाए वह उसे छोड़ नहीं सकता। जिस दिन तुम्हारी दृष्टि में ये बात आ जाएगी कि ये चीज ठीक नहीं, ये मेरे लिए हानिकारक है, उपादेय नहीं है, ये तो छोड़ने योग्य है, इसे मुझे छोड़ना है तब एक पल में छूट जाएगी। फिर आपको उपदेश देने की जरूरत नहीं पडेगी।
     
    दिशा बदलोगे, दशा सुधारेगी
    बन्धुओं! दृष्टि बदलिए, अंतर्दृष्टि जगाइए, आध्यात्मिक दृष्टि जगाइए। ऐसे अन्धे बनकर तो अनन्त जन्म गाँवा दिए। ये जन्म भी व्यर्थ न चला जाए। सम्हलो, अपने भीतर की अंतर्दृष्टि जगाओ, स्वयं का अन्तर्विश्लेषण करके देखो कि अभी तक जिस रास्ते मैं चला, जिस दिशा में मैं चला उसका नतीजा क्या निकला। अगर तुम अपनी दिशा की समीक्षा करोगे तो तुम्हारी दृष्टि बदलेगी और दृष्टि बदलेगी तो तुम्हारी सृष्टि बदल जाएगी।
     
    आप लोक में हमेशा ऐसा प्रयोग करते हैं। कभी आपकी गाड़ी गलत ट्रेक (रास्ते) पर चली जाती है तो क्या आप उसी ट्रेक पर चलाते हैं कि रिवर्स में (वापस) लाते हो? क्यों लाते हो रिवर्स में? सही ट्रेक पर आने की क्या जरूरत है? गाड़ी में बैठे हो; गाड़ी चल भी रही है कहीं भी चले जाओ। नहीं महाराज! मंजिल को पाने के लिए सही ट्रेक पर आना जरूरी है। सही बोल रहे हो आप मंजिल तक पहुँचने के लिए सही ट्रेक पर आना जरूरी है।
     
    ये बात मुँह से बोल रहे हो कि अंदर से? यदि तुम अपने अंतर्मन से बोल रहे हो तो भैया सही ट्रेक पर आने में देरी क्यों? इसलिए कि अभी तुमने अपनी मंजिल ही तय नहीं की है। ये जीवन की हकीकत है। मैं पूछना चाहता हूँ आप लोगों से आपके जीवन की मंजिल क्या है? पता ही नहीं। एक दिन हमने पूछा भैया! जिंदगी का क्या उद्देश्य है, क्यों जी रहे हो तो सभा में से एक व्यक्ति ने कहा महाराज जी! इसलिए जी रहे हैं क्योंकि अभी मरे नहीं हैं। ऐसा आदमी जीते जी मरे हुए के समान है।
     
    अपने जीवन की मंजिल तय करो और मंजिल तय करने के बाद देखो कि मैं अपनी मंजिल की दिशा में जा रहा हूँ या उसके विरुद्ध जा रहा हूँ। जब तक तुम अपनी मंजिल तय नहीं करोगे तब तक तुम्हारा उद्धार नहीं होगा।
     
    खुद पता होता नहीं जिनको अपनी मंजिल का।
    मील के पत्थर उन्हें कभी रास्ता नहीं देते।
    तुम्हें अपनी मंजिल का पता होना चाहिए। नहीं तो; न तुम्हारे गुरु तुम्हारा उद्धार कर पाएँगे, न धर्म उद्धार कर पाएगा और न ही शास्त्र उद्धार कर पाएँगे क्योंकि तुम्हारी मंजिल ही तय नहीं है। क्या है तुम्हारी मंजिल? क्या चाहते हो? किसको अपनी मंजिल मानते हो? अभी सोचा ही नहीं है महाराज! कब सोचोगे जब परलोक जाओगे तब। आज तय करो कि मेरी मंजिल क्या है, मेरा लक्ष्य क्या है? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है? मेरे जीने का मकसद क्या है? क्या चाहते हो? सुख चाहते हो कि नहीं? महाराज! सुख चाहते हैं| इसलिए तो आए हैं।
     
    अच्छा ये बताओ अभी सुन रहे हो तो सुख मिल रहा है कि नहीं मिल रहा है? ऐसा तो नहीं लग रहा कि आज तो महाराज लपेट रहे हैं। सुख क्यों मिल रहा है क्योंकि यहाँ जो बातें बताई जा रही हैं वे बातें तुम्हारे मन को अच्छी लगती हैं। तुम्हारे मन को अच्छी लगने वाली एक भी बात नहीं है। ध्यान रखना। संतो का उपदेश व्यक्ति के मन को खुश करने के लिए नहीं होता; संतो का उपदेश व्यक्ति की आत्मा को प्रसन्न करने के लिए होता है। मैं वह बात नहीं कहना चाहता हूँ जो तुम्हारे मन को अच्छी लगे। मैं सदैव वह बात कहना चाहता हूँ जिससे तुम्हारा जीवन अच्छा बने। मन को अच्छी लगने वाली बातें तो तुम आज तक संसार में सुनते रहे हो; जीवन को अच्छा बनाने वाली बात जिस दिन सुन लोगे, जीवन धन्य हो जाएगा।
     
    जीवन को अच्छा बनाओ। जीवन अच्छा तभी बनता है जब मनुष्य अपनी दिशा ठीक करता है, विषयों की लालसा को नियंत्रित करता है, भोगों की आसक्ति को मंद करता है और अपने जीवन में संयम तथा वैराग्य का रास्ता अपनाता है, जीवन अच्छा बनाता है। जीवन को अच्छा बनाना तो चाहते हो पर त्याग-संयम अच्छा नहीं लगता, भोग विलास अच्छा लगता है। तो फिर क्या होगा? फिर विनाश ही तो होगा और अभी तक हुआ भी विनाश ही है।
     
    मैं आपसे कह रहा था लोक जीवन में आप जब कभी भी कोई डायरेक्शन चैन्ज करते (दिशा बदलते) हो। जैसे कोई आदमी बीमार हो; बीमार होते ही डॉक्टर के पास जाते हो, डॉक्टर को दिखाते हो वह प्रिसक्रिप्शन (दवाईयाँ) लिखकर देता है। आप वह दवाई खाते हो। दो-चार दिन तक दवाई खाने के बाद आराम नहीं मिलता तो क्या करते हो? डॉक्टर के पास दोबारा जाते हो, उससे प्रिसक्रिप्शन (दवाईयाँ) चैन्ज कराते (बदलवाते) हो। डॉक्टर प्रिसक्रिप्शन (दवाईयाँ) बदलकर देता है। आप वह दवाई लेते हो; वह दवाई भी सूट (असर) नहीं करे तो डॉक्टर बदलते हो। अब किसी सुपर स्पेशलिस्ट के पास चले और अगर वहाँ भी काम नहीं बना तो फिर आप किसी बड़े हास्पिटल में जाना चाहते हो। हॉस्पिटल बदलते हो और जब अच्छे हॉस्पिटल में जाने के बाद भी लाभ नहीं मिला तो कहते हैं अब जयपुर से काम नहीं चलेगा; मुम्बई चली। आपने शहर बदल दिया और वहाँ जाने के बाद भी यदि आपको आराम न मिले तो फिर क्या करते हो। फिर सोचते हो भैया आजकल एलोपेथिक (अंग्रेजी दवाईयाँ) ठीक नहीं है चलो किसी होम्योपैथी वाले को दिखाते हैं। होम्योपैथी से भी फायदा नहीं मिले तो फिर किसी वैद्य-हकीम के पास अपनी नाड़ी पकड़वाते हो। वहाँ भी काम नहीं बने तो फिर आप नैचुरोपैथी में जाते हो।
     
    सौ रोगों की एक दवा
    मिट्टी, पानी और हवा
    महाराज! हम तो चाह रहे थे आप ऐसा आशीर्वाद दोगे कि कोई बीमारी न हो। आपने तो हमें ऐसा बीमार बना दिया कि सारी पैथियाँ फैल हो गई। भगवान न करे ऐसा हो। लेकिन यदि किसी के साथ ऐसा होता है तो आखिरी क्षण तक परिवर्तन और प्रयोग करता रहता है। और जब सारी पैथियाँ फैल हो जाती हैं तो सिम्पैथी (सहानुभूति) से काम चलाते हो।
     
    पहले आप ने दवाई बदली, फिर डॉक्टर बदला, फिर हॉस्पिटल बदला, फिर पैथी (विधि) बदली। ये सब क्यों बदला क्योंकि आरोग्य चाहिए। ये रोज का अनुभव है। जब कभी भी ऐसा होता है तो परिवर्तन करते रहते हो। अपने जीवन में तुमने अपने भीतर का इलाज कराने में पैथी (विधि या तरीका) क्यों नहीं बदली? तुम जिस पैथी (विधि या तरीके) से अपना ट्रीटमेन्ट (इलाज) करा रहे हो वह तुम्हारी बीमारी को बढ़ाने वाला है।
     
    तुम्हारी बीमारी का ट्रीटमेन्ट (इलाज) हम लोगों के पास है। आ जाओ; रोग जड़ से चला जाएगा। संयमवटी खाओ, संतोष का रसायन पिओ, जीवन आनन्द से कटेगा लेकिन वह तुम्हें पसंद ही नहीं। ध्यान रखना। इलाज तो एक ही है; आज करो तो आज और सौ जन्म बाद करो तो सौ जन्म बाद।
     
    आरोग्य की अनुभूति उन्हें ही मिलती है जो संयम-साधना के रास्ते पर चलते हैं। भोग और विलासिता में रचे-पचे लोग अंदर से अस्वस्थ रहते हैं। अपितु यूँ कहें अस्वस्थ व्यक्ति ही भोग और विलासिता की ओर भागते हैं, स्वस्थ व्यक्ति तो योग और साधना में ही अपने आप को लीन करते हैं।
     
    भोगवादी दृष्टि को बदलो। अध्यात्ममूलक दृष्टि को उद्घाटित करने की कोशिश करो | लेकिन क्या करे अच्छे - अच्छे लोगों की दृष्टि नहीं सुधरती। अगर पंचइन्द्रिय के विषयों में कोई युवा आगे आए तो बात अलग है, अच्छे-अच्छे बूढ़े लोग भी ऐसी गड़बड़ कर देते हैं।
     
    जब जागोगे तभी सबेरा
    मैं एक स्थान पर था। समाज के प्रधान अस्सी वर्ष के थे उन्होंने कहा- महाराज! रात के बारह बजे दो मिस्सी-पराटें न खाऊँ तो मुझे नींद नहीं आती। अस्सी वर्ष के बुजुर्ग, समाज के प्रधान कह रहे हैं कि रात के बारह बजे दो मिस्सी-पराठे न खाऊँ तो मुझे नींद नहीं आती। वहीं उनका पोता बैठा था जो रात में पानी भी नहीं पीता था। मैंने कहा इसको देखकर कुछ तो शर्म खाओ। वह बोले- महाराज! दोष हमारा नहीं; आपका है। गल्ती हमारी नहीं आपकी है। मैंने कहा मेरी क्या गलती? बोले- इसकी उम्र में आप हमको नहीं मिले। सम्हलो, जब सम्हल सको तभी सम्हलो। जब जागो तभी सबेरा। सम्हलो; अपनी लालसा को ठीक करो। अक्सर होता ये है कि -जैसे अवस्था ढलान की ओर बढ़ती है अंदर की आसक्ति प्रबल होती जाती है। अपनी बढ़ती हुई आसक्ति को शांत करना चाहते हो तो अध्यात्म को आत्मसात करो।
     
    अध्यात्ममूलक दृष्टि तुम्हारे भीतर विरक्ति का संस्कार जगाती है। जिस मनुष्य के अंतर्मन में विरक्ति के संस्कार जाग जाते हैं वह कभी गलत रास्ते पर नहीं चलता। दृष्टि में अध्यात्म लाओ। अध्यात्मदृष्टि कहती है कि आत्मा का सुख तुम्हारे भीतर है बाहर नहीं। बाहर के साधन तुम्हें सुविधा दे सकते हैं सुख नहीं। ध्यान रखना सुविधाएँ साधनों से जुटाई जा सकती हैं लेकिन सुख तो भीतर से अर्जित होता है जो अन्त:करण की तृप्ति से प्रकट होता है। ऐसी तप्ति इच्छाओं के नियंत्रण में होती है।
     
    पाँच इन्द्रियों के विषयों को रोको। इन्हें दुखदायी समझो। जिस मनुष्य के भीतर आध्यात्मिक-दृष्टि जाग जाती है वह इस बात को समझता है कि ये एक मृगमरीचिका है। मृगमरीचिका क्या होती है? रेगिस्तान में रेत के कणों पर सूर्य की किरणें जब पड़ती हैं तो रिफ्लेक्शन (चमक) आता है और दूर से ऐसा लगता है कि कोई सरोवर लहलहा रहा है। वहाँ रहने वाला मृग (हिरण) जिसे प्यास लगती है वह सोचता है कि थोड़ी ही दूरी पर सरोवर है। मैं वहाँ पहुँचूँगा और जीभर पानी पीकर अपनी प्यास बुझा लूँगा। बस दस-बीस कदम और, दस-बीस कदम और। दस-बीस कदम सोचते-सोचते हिरण जितना दौड़ता जाता है सरोवर उससे उतना ही दूर होता जाता है।
     
    बंधुओं! इस सच्चाई को समझने की कोशिश कीजिए। तुम्हारे मन में जब कभी किसी भी चीज के विषय में बात आती है तो बस थोड़ा सा और, थोड़ा सा और, थोडा सा और। उस और-और-और का अंतिम छोर कहीं नहीं होता। बस और है छोर नहीं। आज तक का अनुभव है यदि तुम भागते रहोगे तो अपने प्राण गंवा दोगे।
     
    संत कहते हैं जिसे तुम तृप्ति का आधार मानकर चल रहे हो वह तो अतृप्ति का केन्द्र है। उससे तृप्ति कभी नहीं मिलने वाली। न भूतो न भविष्यति। इसलिए दौड़ो मत, यहीं सम्हलो। प्यास बुझाने की अंतहीन चाह में दौड़ने की अपेक्षा प्यासे रहकर थम जाना अच्छा है। दौड़ते रहने से कुछ नहीं मिलने वाला। आज तक का अनुभव हमें यही बताता है- यहाँ जो सावधान हो जाते हैं उनके जीवन में कभी भटकाव नहीं आता और जो यहाँ नहीं सम्हल पाते उनके जीवन में कभी ठहराव नहीं आता। भटक रहे हो, भाग रहे हो, कब तक भागोगे। जिस अवस्था में ही उसी अवस्था में अपने आपको सम्हालो। अध्यात्ममूलक दृष्टि रखो।
     
    यावत्स्वस्थोऽयं देहः यावत् मृत्युश्च दूरतः।
    तावदात्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यसि॥
    जब तक तुम्हारा शरीर स्वस्थ है, जब तक मृत्यु तुम्हारे नजदीक नहीं आती तब तक अपनी आत्मा का हित कर ली, जब प्राण निकल जाएँगे तो क्या करोगे? तुम सोचो कि मेरी उम्र पूरी हो जाए, उम्र पक जाए तब मैं करूंगा। पकने के बाद टपकने के सिवाय कुछ नहीं होगा। पकने के बाद तो टपकना है; टपक जाओगे। इससे पहले कि तुम पको और तुम्हें टपकना पड़े; अपने आपको सम्हाल लो, सबक सीख लो। यदि प्रारम्भ से ही अध्यात्मदृष्टि मनुष्य के अंदर जाग जाती है तो वह कभी भटकता नहीं है। बड़ी अच्छी प्रेरणा दी है इस कवित्व में
     
    जौ लों देह तेरी कोनी रोग से न घेरी
    जौ लों जरा नाही नेरी जासों पराधीन परिहैं 
    जौ लों जम नामा बैरी देय न दमामा
    जौ लों माने कान रामा बुद्धि जाय न बिगारि है
    तौ लों मित्र मेरे निज कारज सम्हार ले रे
    पौरुष थकेंगे फिर पाछे काहे करिहैं
    आग के लगाय जब झोपरी जरनि लागी
    कुआँ के खुदाय पाछे कौन काम सरिहैं।
    बड़ी मार्मिक प्रेरणा है अपनी दृष्टि को बदलने और सृष्टि को सुधारने की। हे! मित्र जब तक तुम्हारा ये शरीर किसी रोग से ग्रस्त नहीं होता, जब तक बुढ़ापा नजदीक नहीं आता जिससे तुम पराधीन हो जाओ। बुढ़ापे को क्या बोलते हैं? अर्धमृतक सम बूढ़ापनो। बुढ़ापे को अर्धमृतक यानी अधमरा क्यों कहते है पता है? बूढ़े को अर्धमृतक अधमरा इसलिए कहते हैं क्योंकि मुर्दे को चार उठाते हैं और बूढ़े को दो उठाते हैं। मुर्दे को चार उठाएँगे अभी दो उठा रहे हैं अर्धमृतक हो गए। बुढ़ापे में तुम्हारे ऊपर पराधीनता हावी होगी ये उम्र का असर है। जब तक मृत्यु रूप शत्रु का विगुल नहीं बजता, जब तक तुम्हारे मन और बुद्धि तुम्हारे हाथ में हैं, तब तक मेरे मित्र! अपनी करनी को सुधार लो, जब तुम्हारा शरीर ही सत्वहीन हो जाएगा तो फिर क्या करोगे।
     
    कितना सुंदर उदाहरण दिया। अरे भैया! ‘आग की लगाय जब झोपरी जरनि लागी' कहीं आग लग जाए और झोपड़ी जलने लगे तो तुम उसे बुझाने के लिए उसी समय कुआँ खोदोगे तो तुम्हें कितना बड़ा विद्वान कहा जाएगा। आग लगने के समय कोई कुआँ खोदे कि झोपड़ी को बुझाना है तो समझ लेना बड़ी गड़बड़ है।
     
    एक आदमी एक लुहार के यहाँ गया और उसकी सबसे बड़ी साईज (आकार) की बाल्टी पसंद करने के बाद बोला इसको घर भेज दो। पैमेन्ट (पैसा) भी दे दिया। चार कदम जाकर लौटा और बोला- सुनो इसको थोड़ा जल्दी भेजना क्योंकि मेरे मकान में आग लगी है। जब आग लगी उस समय तुम बाल्टी खरीद रहे हो। ध्यान रखो आग लगने की सम्भावना तो पल-पल है उससे घबराने से कोई फायदा नहीं होगा। पर आग लगे उससे पहले अग्निशामक की व्यवस्था कर ली। आप लोगों ने आग लगे इससे पहले ही फायर इन्सटिग्विन्सर (अग्निशामक) यंत्र लगा रखा है; क्यों? ताकि यदि आग लगे तो हमें कुछ सोचना न पड़े। आजकल कहीं भी कुछ भी कार्यक्रम होता है तो शॉर्टसकिट से बचने के लिए आप लोग एम. सी.वी. लगाते हैं, फायर सेन्सर लगाते हो, क्योंकि आप चौकस रहते हैं कि कहीं भी किसी प्रकार की दुर्घटना न घटे।
     
    बंधुओं! मैं भी आपसे कहना चाहता हूँ शार्टसकिट कभी भी हो सकती है, एम.सी.वी. लगा लो। एम.सी.वी. और फायर सेन्सर दो चीजे हैं। एम.सी.वी. है तुम्हारे जीवन का संयम। संयम का संकल्प एम.सी.वी. है। संयम जब भी तुम्हारे जीवन में होगा तुम्हारी आत्मा में कभी शॉर्टसकिट नहीं होगा। थोड़ा सा किसी का पावर बढ़ा, वोल्टेज बढ़ा तो अपने आप कट हो जाएगा, आग लग ही नहीं पाएगी। सम्हल जाओगे, संयम उसे काट डालेगा।
     
    ये फायर सेन्सर क्या है? फायर सेन्सर है तुम्हारे अंदर की साधना। थोड़ा सा भी कुछ हुआ तो तुम्हें अवेयर (सचेत) कर देगा। तुम्हारा संकल्प तुम्हें जगा देगा। जाग जाओ, सम्हल जाओ, अब आग लगने वाली है। इस सीमा का उल्लघंन तुम्हें नहीं करना है। तुम्हारे जीवन का सुरक्षा कवच बन जाएगा। एक बात और बताऊँ सामान्यत: ये शॉर्टसकिट दो कारणों से होती है या तो पावर जरूरत से ज्यादा हो जाए तो अथवा दो तार अपनी धारा को छोड़कर एक दूसरे से टकरा जाएँ तो। इसके अलावा तीसरा कोई कारण नहीं होता। पावर ओवर (ज्यादा) हो जाए तो और दो तार एक दूसरे से टकरा जाएँ तो शॉर्टसकिट होती है। आपको एक एम.सी.वी. की व्यवस्था की गई है। पावर ओवर (ज्यादा) होता है तो एम.सी.वी. फ्यूज उड़ा देती है और लाईट कट हो जाती है ठीक इसी प्रकार ये संयम भी एक तरह की एम.सी.वी. है जो तुम्हारे अंदर एक प्रकार का नियंत्रण देता है। नियंत्रण देने से ओवर (ज्यादा) पावर कन्ज्यूम करने (खपाने) की शक्ति तुम्हारे भीतर आ जाती है जिससे कहीं भी शॉर्टसर्किट नहीं होता।
     
    दो तार कब टकराते हैं? नंगी तार टकराने से शॉर्टसकिट होता है इसलिए इन्सुलेटिड वायर रखो। एक ही पाइप में कितने भी हो जाएँ कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इन्सुलेशन चढ़ा है। बस मैं आपसे इतना ही कहना चाहता हूँ यदि तुम्हारी जिंदगी की तार नंगी है तो उस पर नियम-संयम का इन्सुलेशन चढ़ा लो कभी शॉर्टसर्किट नहीं होगा। जिनके जीवन में संयम का इन्सुलेशन चढ़ा है उनके जीवन में कभी शॉर्टसकिट नहीं होता। तुम्हारी तार थोड़ी विचित्र प्रकार की है, न तो नंगी है न सुरक्षित है। तुम्हारी तार पुरानी है, जर-जर है, सैंकड़ों जगह कट लगे हुए हैं। हम कहतें हैं वायरिंग चैन्ज कर (बदल) लो; सो चैन्ज करने (बदलने) के दाम तुम्हारे पास नहीं हैं। मैं कहता हूँ चलो वायरिंग चैन्ज नहीं करते हो तो एक काम करो जहाँ-जहाँ कट शॉक से बच जाओगे इसलिए टैप लगाओ।
     
    ये टैप क्या है? छोटे-छोटे नियमों का टैप अपनी जिदगी की तार पर चढ़ा लोगे तो शॉर्टसर्किट से बच जाओगे। बहुत सारे टैप हैं महाराज जी के पास। मेरे पास संकल्प नाम की एक डायरी है; ले लेना उसमें सब छोटे-छोटे टैप हैं; सब ले लेना।
     
    आज की तारीख में, संयम की तिथि में एक न एक संयम जरूर लेना जो तुम्हारे जीवन के लिए कल्याणकारी है। संयम ही हमारे जीवन का सुरक्षा कवच है। कुरल काव्य में लिखा है- जो व्यक्ति अपने जीवन में संयम रखते हैं वे आगामी जन्मों के लिए अनन्त शक्तियाँ प्राप्त कर लेते हैं। संयम को अपने जीवन के सबसे बड़े खजाने की तरह सुरक्षित रखना चाहिए। जैसे कछुआ अपने हाथ-पैर को सिकोड़कर सुरक्षित रखता है वैसे ही अपनी इन्द्रिय-तप्तियों को भी संयमित और संकुचित बनाकर चलना चाहिए।
     
    यदि ऐसा संयम आपके जीवन में आएगा तभी आपका जीवन धन्य हो सकेगा। इसलिए आज की चारों बातों को ध्यान में रखना है- दिशा, दशा, दृष्टि और सृष्टि। मुझे विश्वास है आप अपनी दिशा बदलोगे, आपकी दशा सुधरेगी, आध्यात्मिक दृष्टि को पकड़ोगे और अपने जीवन में सुख की सृष्टि करोगे।
  20. Vidyasagar.Guru
    आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के दर्शन करने पहुंची पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती
    ✍🏻 पुनीत जैन! खातेगांव 
    गुरुवार शाम प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के दर्शन करने नेमावर पहुंची। उमाभारती ने आचार्यश्री से गंगा, गौ रक्षा, हथकरघा और कश्मीर में धारा 370 खत्म होने के विषय पर भी चर्चा की।  
    उमाभारती ने कहा वो राजनीती से इतर गंगा और गौ की सेवा करनी चाहती हैं। इन दोनों के लिए गंगोत्री से गंगासागर तक पैदल चलना चाहती हैं। आचार्यश्री ने कहा आज के समय जल प्रबंधन बहुत जरुरी है। गौ पालन की ओर सरकार के साथ-साथ आमजन को भी ध्यान देना चाहिए।   
    इस अवसर पर सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र ट्रस्ट की ओर से संजय मेक्स, ब्र. सुनिल भैयाजी, ब्र. संजय भैयाजी, नरेंद्र चौधरी, सुशील काला, राजीव कटनेरा आदि ने स्मृति चिन्ह और साहित्य देकर उमाभारती का अभिनंदन किया। 
    उमाभारती ने कहा आचार्यश्री तो चलते फिरते तीर्थ हैं, साक्षात भगवान के समान हैं। ऐसे ही सतपुरुषों के कारण दुनिया जीवित है और धरती टिकी हुई है।
     
     

     
     
     
  21. Vidyasagar.Guru

    प्रतियोगिता सुचना
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    आचार्य श्री जी के 76 वें जन्म दिवस का पावन प्रकल्प 
    शरद पूर्णिमा 20 Oct 2021 रात्री 7 : 30 बजे 
    अनलाइन प्रश्न मंच Live on Kahoot 
    सामन्य जैन धर्म प्रश्न मंच 
    Kahoot Pin,Zoom Link एवं अन्य जानकारी इस लिंक पर अपडेट करेंगे 
    दो मोबाईल की आवश्यकता होगी 
    अगर आपके घर मे 5 मोबाईल हैं - 4 लोग अपने मोबाईल से काहूत पे जुड़ें 
    और एक मोबाईल को Zoom से जोड़ें |
    Zoom फूल होने पर Youtube चैनल से भी जुड़ सकते हैं 
     
    Topic: Live Kahoot अनलाइन जैन प्रश्न मंच: शरद पूर्णिमा विशेष 
    Time: Oct 20, 2021 07:30 PM India
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    Passcode: 1008
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  22. Vidyasagar.Guru
    धन्य हो गई आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के आगमन से लालित्य नगरी आचार्यश्री के पदविहार में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, ऐतिहासिक रूप में हुआ नगर प्रवेश पगडण्डी कहाँ चली गयी जो पहले थी : आचार्य श्री विद्यासागर जी बुंदेलखंडी 'हओ' पर श्रद्धालुओं को खूब गुदगुदाया आचार्यश्री ने कई किलोमीटर की लंबाई थी अगुवानी के जनसैलाव की  
    ललितपुर। जिस घड़ी का इंतजार ललितपुर वासियों को तीन दशक से अधिक समय से था वह इंतजार 21 नवम्बर को पूरा हो गया जब साधना के सुमेरु   भारतीय संस्कृति के संवाहक संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज अपने विशाल संघ के साथ ललितपुर नगर में प्रवेश किया। 

    आचार्यश्री का पदविहार वांसी से ललितपुर की ओर प्रातःकाल 6 बजे शुरू हुआ।जैसे ही लोंगो ने आचार्य श्रेष्ठ के नगर आगमन की सुनी तो खुशियों का ठिकाना नहीं रहा।कोई पैदल तो कोई गाडी से पदविहार में सम्मिलित होने के लिए पहुंचा। इतनी सुबह सुबह भारी जनसैलाव उमड़ा देख रास्ते में पड़ने वाले गांवों के लोग भी उमड़ पड़े और आचार्यश्री की एक झलक पाने को लालायित देखे गए। जन सैलाव इतना था कि पुलिस प्रशासन लोगों से दूर से ही दर्शन करने की अपील कर रहे थे। बांसी से (ललितपुर से दूरी 20 किलोमीटर) ही हजारों की संख्या में बिना जूते-चप्पल  के श्रद्धालु चल रहे थे। जैसे-जैसे आचार्यश्री के पग आगे बढ़ रहे थे श्रद्धालुओं का जन सैलाव बढ़ता ही जा रहा था। हाइवे पर दूर-दूर तक अपार भीड़ ही भीड़ दिख रही थी। आलम यह था कि रोड की दूसरी ओर चलने वाले वाहनों को भी रुक-रुक चलना पड़ रहा था। इस दौरान आगे-पीछे और बीच में बड़ी संख्या में पुलिस प्रशासन व्यवस्था को सुचारू करने में लगे थे। आचार्यश्री के आगे आगे बैंड बाजे चल रहे थे इसके बाद पचरंगा झंडे लेकर कार्यकर्ता चल रहे थे इसके बाद पुलिस के पदाधिकारी चल रहे थे जो आचार्यश्री के दर्शन  लोगों से दूर से करने की अपील कर रहे थे ताकि पद विहार में बाधा उत्पन्न न हो। इसके बाद आचार्यश्री संघ सहित चल रहे थे पश्चात उनसे कुछ दूरी पर जन सैलाब चल रहा था।

     नगर में पूर्व से विराजमान मुनि श्री अविचल सागर जी ने नदनवारा पहुँचकर आचार्यश्री के चरणों में नमोस्तु पूर्वक नमन किया। रास्ते में रंग-बिरंगे गुब्बारे आकाश में छोड़े जा रहे थे। आचार्यश्री पदविहार करते हुए महर्रा ग्राम स्थित आदिनाथ कालेज प्रांगण में पहुंचे जहाँ पर मुख्य द्वार पर कालेज प्रबन्धन ने आचार्यश्री का वंदन किया। इसके पूर्व जैन पंचायत समिति और पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समिति के पदाधिकारियों ने आचार्यश्री के चरणों में श्रीफ़ल समर्पित कर आरती की।
    आदिनाथ कॉलेज में सबसे पहले आचार्यश्री की पूजन भक्ति भाव से की गई।
    इस अवसर पर उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमारी एक चीज गुम गयी है। मैं आ रहा था, आप लोग भी आ रहे थे। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या वह चीज आप लोगों को मिल गयी? इस पर उपस्थित श्रद्धालुओं ने कहा 'हओ'। इस पर चुटकी लेते हुए आचार्यश्री ने कहा कि ललितपुर में भी 'हव' चलता कि नहीं। इस पर जन समुदाय ने कहा 'हओ'। उन्होंने कहा कि जो मतलब आप लोग समझ रहे हैं वह नहीं है।
    उन्होंने आगे  कहा कि मैं सोच रहा था कि भूल गए हैं आप लोग। उन्होंने कहा कि अब पगडण्डी जीवित है कि नहीं। अब शायद पगडण्डी जीवित नहीं रह पाएगी क्योंकि पगडंडियों पर चलाना तो चाहते हैं लेकिन चलना नहीं चाहते। अंत में उन्होंने कहा कि वाहनों पर लिखा रहता है 'फिरमिलेंगे'। संचालन संघस्थ ब्र. सुनील भैया जी ने किया। एसडीएम सदर घनश्याम वर्मा ने महर्रा पहुँचकर व्यवस्थाओं का जायजा लिया और अधिकारियों को समुचित दिशा निर्देश दिए।

    आचार्यश्री की आहारचर्या महर्रा स्थित आदिनाथ कॉलेज परिसर में हुई। सामायिक के बाद महर्रा से ललितपुर नगर की ओर विहार हुआ जिसमें पूरा नगर उमड़ पड़ा। आज ललितपुर के इतिहास में एक नया इतिहास जुड़ गया। लोग कह रहे थे उन्होंने आज तक किसी संत के नगर आगमन पर इतना जनसैलाव उमड़ते नहीं देखा है।  प्रवेश के दौरान पूरे  रास्ते में पड़ने वाले व्यापारिक प्रतिष्ठानों के मालिकों द्वारा अपने द्वार पर स्वयं सजावट और स्वागत  की गई थी। आचार्यश्री के नगर में प्रवेश करते ही ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शहर थम गया हो, एकमात्र आचार्यश्री के दर्शनों को लाखों आँखे निहार रही थी। सभी समुदाय के लोग आचार्यश्री को नमन कर रहे थे और स्वागत वंदन के लिए खड़े हुए थे। नगर प्रवेश का दृश्य अपने आप में देखने योग्य था।
    पुलिस अधीक्षक ओपी सिंह , अपर पुलिस अधीक्षक के निर्देशन में सुरक्षा व्यवस्था में लगे हुए पुलिस अधिकारी और सिपाही बड़े ही आनंद के साथ आचार्यश्री के आगे और पीछे दौड़ते भागते चल रहे थे। प्रशासन की ओर से सुरक्षा के समुचित प्रबंध किए गए थे। पंचायत समिति ने नगर की सीमा चंदेरा पर भव्य अगुवानी की। इसके बाद विशाल जनसैलाब गल्लामंडी, इलाइट चौराहा, जेल चौराहा, तुवन चौराहा होते हुए विशाल शोभायात्रा स्टेशन रोड स्थित क्षेत्रपाल मंदिरजी पहुँची। रास्ते में लोगों ने श्रद्धालुओं को जल, मिठाई, फल देकर उनका खूब स्वागत किया। रास्ते में जहॉ नवयुवक करतब दिखाते हुए चल रहे थे वहीं अनेक बग्गियां, घोड़े पर ध्वज लेकर चल रहे थे। विभिन्न स्वयंसेवी संगठन अपनी सेवाएं दे रहे थे। जिसने भी आज का यह नजारा देखा कह उठा अद्भुत, अकल्पनीय, ऐतिहासिक, भूतो न भविष्यति। नगर में जब जुलूस चल रहा था तो जिसको जहॉ जगह मिली वहॉ से इन अमूल्य पलों को देखने को आतुर थे। ऐसी कोई छत नहीं थी जिस पर बड़ी संख्या में नगरवासी न हो। कई लोग जब जगह नहीं मिली तो अन्य साधनों पर चढ़कर देख रहे थे। अनेक लोग तो वृक्षों पर चढ़कर इन पलों के साक्षी बन रहे थे। सचमुच अद्भुत नजारा। शब्द ही नहीं है आज के इस भव्यता से पूर्ण मंगल प्रवेश के वर्णन के लिए।

    क्षेत्रपाल मंदिर पहुँचने पर  आचार्यश्री की भव्य अगुवानी की गई । इस दौरान तैयार विशेष मंच से जब आचार्यश्री संघ सहित चल रहे थे वह दृश्य अपने आपमें देखने योग्य, ऐतिहासिक और दर्शनीय था। चारों ओर से इस दौरान आवाज आचार्यश्री नमोस्तु की आवाज गुंजायमान हो रही थी। यह पल सभी अपने मोबाइल में भी कैद कर रहे थे। बैरिकेट लगे होने के बाद भी उसके अंदर पुलिस प्रशासन और स्वयंसेवी संगठनों के कार्यकर्ताओं को हाथ से हाथ पकड़कर सुरक्षा जंजीर बनानी पड़ी। मैं भी इस व्यवस्था में शामिल होकर इन अद्भुत नजरों को करीब से देखकर पुलकित हो रहा था। आज नगर वासियों की भक्ति देख सचमुच लग रहा था कि नगर में चलते-फिरते भगवान आये हैं। अनेक हमारे जैनेतर भाई कह भी रहे थे ये तो धरती के देवता हैं। इनका दर्शन आखिर कौन नहीं करना चाहेगा।
    नगर में उत्सव जैसा माहौल था। पाठशाला के बच्चे आचार्यश्री के अभियान हथकरघा, इंडिया नहीं भारत बोलो आदि की तख्तियां लेकर चल रहे थे। कई किलो मीटर की लंबाई में अगुवानी जुलूस देखने योग्य था।

    आचार्यश्री के नगर आगमन पर स्वागत के लिये पूरा शहर सजाया गया था। सड़क के ऊपर किनारों में झिलमिल चमकनी तो नीचे  रंगोली बनाई गई थी। अनेक स्वागत द्वार बनाये गए थे। शहर के लोग धरती के देवता को अपने बीच पाकर धन्य हो रहे थे। जयकारों से आकाश गुंजायमान हो रहा था। विभिन्न परिधानों में महिलाएं स्वागत के लिए खड़ी थी।उल्लेखनीय है कि जहां बतौर राज्य अतिथि उनका प्रथम नगर बार नगर आगमन हो रहा था तो वहीं वह 31 वर्ष बाद नगर में आ रहे थे। उधर जैन शिक्षक सामाजिक समूह के सदस्यों ने आचार्यश्री के नगर आगमन की ख़ुशी में जिला अस्पताल में फल वितरण किया। नगर सजाने में वीर क्लब का योगदान रहा। 
    इस अवसर पर राज्यसभा सासंद चंद्रपाल यादव, विधायक रामरतन कुशवाहा, सपा जिलाध्यक्ष ज्योति कल्पनीत, नगर पालिका अध्यक्षा रजनी साहू आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे। नगर पालिका के पार्षदगण उपस्थित रहे।
    गोलाकोट, खनियाधाना से बड़ी संख्या में लोग बसों से आये हुए थे साथ ही में गुरुकुल के बच्चे गुरुवर गोलाकोट चलो की तख्तियां लेकर चल रहे थे।
    इस दौरान ललितपुर के साथ ही बार, बांसी,  कैलगुवा, गदयाना, महरौनी, मड़ावरा, पाली, तालबेहट, बबीना,जखौरा, बिरधा, टीकमगढ़, सागर, शिवपुरी, झाँसी, ग्वालियर,बीना, खिमलासा,  दिल्ली, दमोह, ग्वालियर, छतरपुर, बरुआसागर आदि अनेक स्थानों के बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल रहे। नगर के सभी पत्रकार बंधु भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
    जैन पंचायत समिति , पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव समिति, नगर की सभी स्वयंसेवी संस्थाओं, उप समितियों का योगदान उल्लेखनीय रहा। 
    आचार्यश्री के देश-विदेश में लाखों की संख्या में भक्तों को देखते हुए इस भव्य मंगल प्रवेश का जिनवाणी चैनल पर लाइव प्रसारण भी किया गया, जिसे देश -विदेश में देखा देखा गया। 
    उल्लेखनीय है कि आचार्यश्री के सान्निध्य में मसौरा स्थित दयोदय गौशाला परिसर में श्री मज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव 24 नवम्बर से 30 नवंबर तक बड़े ही उत्साह से होने जा रहा है।

    अनियत विहारी का विहार :
    आचार्य विद्यासागर जी महाराज कभी किसी को बता के विहार नहीं करते इसलिए उनके आगे अनियत विहारी संत लिखा जाता है। ललितपुर नगर प्रवेश को लेकर यह देखने भी मिला है। नगरवासी 22 नवम्बर को उनके नगर प्रवेश की पूर्ण संभावना मानकर चल रहे थे। 22 नवम्बर के हिसाब से ही लोग तैयारी में जुटे थे। बाहर से आने वाले इष्ट मित्र, रिश्तेदारों को भी यही सूचना दी गयी थी। लेकिन अचानक ही 21 तारीख को आचार्यश्री का मङ्गल पदार्पण नगर में हो गया। आज जब इतना जनसैलाव उमड़ पड़ा था यदि निर्धारित तिथि 22 नबम्बर को प्रवेश होता तो न जाने कितना जनसैलाव उमड़ता।
    जिलाधिकारी, एसपी पहुँचे आशीर्वाद लेने :
    शाम को क्षेत्रपाल मंदिर पहुंच कर जिलाधिकारी श्री मानवेन्द्र सिंह, पुलिस अधीक्षक श्री ओपी सिंह,  अपर पुलिस अधीक्षक श्री अवधेश विजेता ने आचार्य श्री विद्या सागर जी मुनिराज के दर्शन कर आशीर्वाद लिया और नगर आगमन पर उनको वंदन करते हुए नगरवासियों का सौभाग्य बताया।
    -डॉ. सुनील जैन संचय,ललितपुर मीडिया प्रभारी
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