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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. Vidyasagar.Guru
    गुरु पूर्णिमा, 3 जुलाई 2023 
    गुरुदेव के 56 वें मुनि दीक्षा अवसर पर कालजयी महाकाव्य 'मूकमाटी "पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता हुई  जिसमें 12 देशों के 1800 प्रतियोगी ने भाग लिया था आज उसका पुरस्कार सम्मान समारोह आयोजित हुआ । 
     www.Vidyasagar.guru वेबसाइट के माध्यम से  आन लाइन संपन्न इस प्रतियोगिता में 400 पुरुष व 1400 महिलाएं शामिल थी। पुरुस्कार देने के लिये  उज्जवल पाटनी जी दुर्ग एवं  पुरस्कार पुण्यार्जक श्री राजकुमार विनोद बड़जात्या रायपुर व विद्यासागर डॉट गुरु वेबसाईट  के संचालक सौरभ जयपुर यहाँ आये व बिजेताओं को पुरस्कार प्रदान करें। पुरस्कार में चलचरखा की जरी वाली  साड़ी,  छोती दुपहा, पानी का छला मरुदेवी हस्तशिल्प की सुंदर लेपटॉप  बैग, पूर्णायु की अमृत धारा, लवण भास्कर चूर्ण (इस का उल्लेख मूकमाटी में है व प्रश्न भी आया था उपहार  में प्शांतिधारा का देशी घी डब्वा एवं प्रमाण पत्र भी प्रदान किया गया 
    104 प्रतियोगी के शत प्रतिशत 100 अंक आये हैं, उसमें लकी ड्रा से 11 प्रतियोगी के नाम एवं 70 प्रतिशत अंक मे से 45 नाम सांत्वना पुरस्कार के निकाले गए थे | सभी विजेताओं को फोन पर सूचित कर पुरस्कार समारोह मे आमंत्रित किया गया था |
    आए विजेताओं को  आचार्य भी को नमन कर पुरस्कार प्रदान किया गया । 
    जो नहीं आ सके उन्हें कोरियर के माध्यम से पुरस्कार भेजा जाएगा |
     
    प्रमाण पत्र लिंक 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1dN9amldpgPlplyCPnT7JN_0s7GK4aFaN/edit?usp=sharing&ouid=108041101357652563056&rtpof=true&sd=true
     
     
    अंक प्राप्त सूची 
     
    56 विजेताओं के नाम 
     
     
     
     
    पुरस्कार एवं सम्मान समारोह 
     
     
    प्रतियोगियों का विश्लेषण
     


     

     
    आपको यह प्रतियोगिता कैसी लगी , कमेन्ट में अवगत कराएँ |
     
  2. Vidyasagar.Guru
    संत शिरोमणि आचार्य भगवन गुरुदेव श्री विद्यासागर महाराज ससंघ का वर्षायोग चातुर्मास डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में हो रहा है 
    कलश स्थापना समारोह 2 जुलाई 23 को दोपहर 1 बजे से श्री चंदगिरी जैन तीर्थ क्षेत्र डोंगरगढ़ में होगी

  3. Vidyasagar.Guru
    परम गुरुभक्त 
    अनेक संस्थाओं से जुड़े
    इंदौर जैन समाज के गौरव 
    देवरी के मूलनिवासी *श्री संजय जी मैक्स* 
    की अभी-अभी *डोंगरगढ़ में आचार्य भगवान के ससंघ सानिध्य* में समाधि हो गई है
    *अंतिम क्रियाएं 5 जून को सुबह 6:00 बजे डोंगरगढ़ में संपन्न होगी*

     
  4. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता के उत्तर गूगल  फ़ॉर्म पर देने होंगे 
    अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता गूगल फ़ॉर्म प्रश्न पत्र लिंक
     

     
     
    मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता पंजीकरण प्रारंभ 
     

     
    जिन्होंने प्रतियोगिता भर दी हैं उनकी सूची 
     

     
    पंजीकरण के बाद आपको whatsapp समूह का लिंक मिलेगा, जिसके माध्यम से आप समूह में जुड़ पाएंगे 
     
     
     
     

     
    https://youtu.be/QHcuD9mqbRc
  5. Vidyasagar.Guru
    आत्मा का स्वभाव जानना और देखना है |
    दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा वस् धनवान |
    कहीं न सुख संसार में, सब जग देखलियों छान ||
    राजा राणा छत्रपति हाथिन के अश्वार |
    मरना सबको एक दिन अपनी – अपनी बार ||
    -  आचार्य श्री विद्यासागर महाराज
     
    29/05/2023 सोमवार
    डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि एक बड़ा वृक्ष है जिसकी छाँव में बहुत सारी गाये आदि बैठे थे और वहाँ के वातावरण में कुछ ठंडक थी | इसके पीछे क्या रहस्य है यह छाँव कहा से आ रही है और इसमें कुछ ठंडक का एहसास भी हो रहा है जिससे पशु – पक्षी आदि वहाँ एकत्रित हो गये है | उस वृक्ष को किसने लगाया या वह अपने आप ही उग गया है | जब उस वृक्ष के बारे में गहराई से शोध करते हैं तो पता चलता है कि वह वृक्ष एक सरसों के दाने जितना बड़ा बीज से उत्पन हुआ है और वह जो कुछ भी आज है उसे सब कुछ धरती से प्राप्त हुआ है | वह आज भी इतनी ऊंचाई पर होने के बाद भी अपनी जड़ से जुड़ा हुआ है जिसके कारण उसको भूमिगत जल से जल कि प्राप्ति हो जाती है जिससे वह स्वयं ठंडा रहता है और उसकी छाँव में भी कुछ ठंडक का एहसास होता है | आप लोग जो आज कल दिनभर कूलर के सामने बैठे रहते हैं वह शुरुवात में ठंडी ठंडी हवा देता देता है परन्तु कुछ घंटो बाद वह उतनी ठंडी हवा नहीं देता उसमे से भी हल्की गर्म हवा आने लगती है क्योंकि आपके कमरे का वातावरण में बाहर कि हवा का प्रवाह बंद होने के कारण ऐसा होता है जबकि उस वृक्ष कि छाँव में हमेशा ठंडक बनी रहती है चाहे बाहर लू चल रही हो तो भी छाँव में आते ही कुछ ठंडक का एहसास होने लगता है | आत्मा का स्वभाव जानना और देखना है | किसी भी वस्तु आदि को देखने  और जानने में कोई समस्या नहीं है लेकिन उस वस्तु को पकड़ने कि, खरीदकर अपने पास रखने कि  और छिनने का स्वभाव आत्मा का नहीं होता है | इसलिए जो व्यक्ति अपने स्वभाव में रहता है वह संतोषी होता है उसके भाव, परिणाम शांत रहते है |
     
     
    दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा वस धनवान |
    कहीं न सुख संसार में, सब जग देखलियों छान ||
    धन के बिना निर्धन दुखी है और तृष्णा के कारण धनवान भी और – और – और धन चाहिये के चक्कर में दुखी रहता है पर वह किसी से कहता नहीं है | इस संसार में कितने चक्रवर्ती हुए है कितने अरबपति, ख़राबपति हुए है पर आज तक कोई संतुष्ट नहीं हुआ है धन, दौलत, हीरा, मोती, सोना, चांदी आदि जमा कर - कर के | इस संसार में जो कुछ बाहर कि वस्तु आदि है वह सब सुखाभास है | जो सच्चा सुख है वह हमारे भीतर है जो इसे जान लेता है वह फिर पैसे के पीछे नहीं जाता जबकि उसके पीछे पैसा भागता है |
    राजा राणा छत्रपति हाथिन के अश्वार |
    मरना सबको एक दिन अपनी – अपनी बार ||
    इस धरती पर कितने ही राजा, महाराजा हुए है जिनके पास सैकड़ों, हजारों कर्मचारी, महल, धन, दौलत, हीरा, मोती, सोना, चांदी आदि होते हुए भी आज वे कहाँ है कुछ पता नहीं | कितने आये और कितने चले गए ऐसे ही सबको एक दिन जाना है यह निश्चित है जिसको कोई रोक नहीं सकता है | बारह भावना में यह सब कुछ लिखा है जिसे हमें प्रतिदिन पढना चाहिये और उसका स्मरण भी करना चाहिये| दिगम्बर मुनिराज जो इस तपती गर्मी में पहाड़ पर जाकर तप करते हैं जहाँ बाहर लू चल रही हो और निचे चट्टान भी तप रही हो ऐसे में वो अपने तप में ऐसे लीन रहते हैं जिससे उनके कर्मों कि निर्जरा होती है | आज आप लोग तप के बारे में सुन रहे हैं अच्छा है जिसके बारे में सोचने से भी आपको पसीना आता है ऐसे में वो मुनिराजों कि तपस्या क्या गजब होती होगी जो शिखरों में, बड़े – बड़े पहाड़ कि गुफाओं में अपनी तपस्या करते होंगे | कभी चंद्रगिरी के पहाड़ में भी कई साधुओं ने तप किया होगा | ऐसे तपस्वियों के प्रभाव से ही आपको यहाँ आकर शान्ति का अनुभव होता है | तो सोचो उन तपस्वियों को कितनी शान्ति का अनुभव होता होगा और वे कितने आनंदीत होते होंगे | एक – एक पल में कितने – कितने कर्मों कि निर्जरा होती होगी | इस प्रकार आप अपने स्वभाव में रहकर अपना आत्मकल्याण कर सुख – शांति से अपना जीवन जी सकते हैं | आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री श्रेणिक जी परिवार को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन  (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी निशांत जैन (निशु) ने दी है |
  6. Vidyasagar.Guru
    आत्मविश्वास से हर कार्य संभव है |
    सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र मोक्षमार्ग में आवश्यक है |
    -  आचार्य श्री विद्यासागर महाराज
    26/05/2023 शुक्रवार
     
     
     
    डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि विश्वास बहुत महत्वपूर्ण है चाहे वह आपके रिश्ते में हो या धर्म में | जब तक विश्वास होता है सब कुछ ठीक लगता है विश्वास में ही श्रद्धा, भक्ति, भाव निहित होता है | विश्वास में जहा कमी होती है वहाँ पर अरुचि होने लगती है | उसमे हमारा मन नहीं लगता है ध्यान इधर – उधर भटकता है | और जिसमे हमारी रूचि होती है वहाँ चाहे दिन हो या रात मन लगा रहता है और उत्साह बना रहता है | आपकी रूचि अच्छे या बुरे कार्य में होगी तो उसके अनुरूप ही उसका फल आपको मिलेगा | अणुव्रत और महाव्रत दोनों  अपनी – अपनी जगह महत्वपूर्ण है | अणुव्रत का पालन आप लोग करते हैं  और महाव्रत का पालन महाव्रती करते हैं  | कुछ लोग पूछते हैं महाराज यदि अणुव्रत को तोड़ सकते हैं या यह किसी कारण टूट जाये तो क्या करें | जिसमे रूचि होती है वहाँ चाहे वह छोटा (अणुव्रत) हो या बड़ा (महाव्रत) हो वह हर पल उसका ध्यान रखता है और वह उसका विवेक और उत्साह पूर्वक पालन करता है | और यदि अणुव्रत टूट जाये तो उसका टूटने का कारण क्या है क्यों टूटा इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है | आचार्यों ने बताया है कि व्रतों का उत्साह पूर्वक अपनी शक्ति अनुरूप पालन करना चाहिये जिससे उसमे रूचि बढती रहे और मन शांत रहे | जिस प्रकार एक गीतकार अपने सुर का ध्यान रखता है कि कहा ऊँचा लेना है और कहा निचा लेना है | वह अपने गीत के माध्यम से अकेले ही भक्ति करने में सक्षम होता है | एक और व्यक्ति उस गीतकार के साथ मृदंग (तबला) बजाने के माध्यम जुड़ना चाहता है| तो गीतकार कहता है कि यदि तुमने कुछ आगे पीछे बजा दिया तो मेरा गीत गड़बड़ हो जायेगा तो तबला बजाने वाला कहता है कि नहीं कुछ गड़बड़ नहीं होगी आप निश्चिन्त रहो | मेरे मृदंग वादन से आपके गीत में और आनंद और उत्साह आ जायेगा | इसके बाद एक नृत्यकार आ जाता है और कहता है कि आपके गीत और मृदंग्वादन के साथ मै नृत्य करना चाहता हूँ तो गीतकार कहता है यदि तुम कुछ ऊपर निचे कर दिए तो हमारा कार्य गड़बड़ हो जायेगा तो नृत्यकार कहता है नहीं ऐसा नहीं होगा आप मुझपर विश्वास रखो मेरे नृत्य से आपके गीत  में और आनंद और उत्साह आ जायेगा | आप के गीत गायन में कुछ ऊपर निचे हो सकता है पर मेरे नृत्य में कभी गड़बड़ी नहीं हो सकती | आपने सौधर्म इंद्र का ताण्डव तो देखा ही होगा जिसमे ना गीत कि और ना ही मृदंग (तबला) कि आवश्यकता होती है | इस प्रकार हमें सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र को मोक्षमार्ग में आवश्यक मानना चाहिये | मोक्षमार्गी को अपना अटूट आत्मविश्वास इसपर बनाये रखना चाहिये | आज आप लोगो ने इतने अच्छे से मोक्षमार्ग के बारे में सुना इसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ |
     

     
    आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य प्रतिभास्थली कि ब्रह्मचारिणी सोनल दीदी मीनल दीदी  परिवार को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन  (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी | श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हाथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके | उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी निशांत जैन (निशु) ने दी है |
     
     
  7. Vidyasagar.Guru
    अभी अभी डोंगरगढ़ मे हुआ परिणाम घोषित 
     
     
     
     

     
     
     
     
    ज्ञान सागर जी प्रश्न प्रतियोगिता अंक तालिका .pdf
  8. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता प्रारंभ  
    प्रतियोगिता का समय बढ़ाया गया : 20 मई  प्रातः 8 बजे तक भाग ले सकते हैं 
    प्रतियोगिता में भाग लेने का लिंक ( प्रश्न पत्र ) खोलें 
    👇👇👇👇👇
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdu2ZruSYmhK8FCubpJJumzoJPFzyA6MBppxT_SjEQUtJlZaQ/viewform
     
    उत्तर प्राप्त सूची 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1jh5TQa-MmLD8Ow_-UmNrAITyb6CP2Vc_tvKqCD4Gb2Q/edit#gid=0
     
     
    प्रतियोगिता मे आप 19 मई  रात्री 10 बजे तक भाग ले सकेंगे 
    महाकवि आचार्य ज्ञान सागर जी के 51 वें समाधि दिवस के उपलक्ष्य में आचार्य ज्ञान सागर जी प्रश्न प्रतियोगिता का हो रहा हैं आयोजन  प्रतियोगिता का स्वरूप ऑनलाइन होगा  प्रतियोगिता में शामिल होकर जीत सकते हैं आकर्षक उपहार  24 मई 2023 श्रुत पंचमी को डोंगरगढ़ ( छत्तीसगढ़ ) में होगा विजेताओं का सम्मान एवं पुरस्कार वितरण समारोह, जहां विराजमान हैं युग के महान आचार्य विद्यासागर जी महाराज  प्रत्येक प्रश्न पर दिया हुआ हैं - किस संस्मरण / विषय का स्वाध्याय करना हैं   
     
    whatsapp समूह से जुडने के लिए निम्न फोटो पर क्लिक करें 
     

     
    प्रतियोगिता में भाग लेने का लिंक खोलें 
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdu2ZruSYmhK8FCubpJJumzoJPFzyA6MBppxT_SjEQUtJlZaQ/viewform
     
     
    उत्तर प्राप्त सूची 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1jh5TQa-MmLD8Ow_-UmNrAITyb6CP2Vc_tvKqCD4Gb2Q/edit#gid=0
     
     
  9. Vidyasagar.Guru
    30 अप्रैल 23 
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        🍄आज रात्री विश्राम🍄
               🍄देवकट्टा🍄
        (सामुदायिक भवन देवकट्टा) 
    https://maps.app.goo.gl/1aq2mu9CJMVUjPag7
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       🍁कल की आहार चर्या 🍁
            🍁डोंगरगढ🍁
     (दिंगबर जैन मंदिर डोंगरगढ) https://maps.app.goo.gl/bZU4uqHtQskjfvNn8
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    29 अप्रैल  23 
    Ratri vishram Vali jagah aagman

     
    28 अप्रैल 23 
              आज दोपहर में
        💫सामयिक उपरांत💫
             👣मंगल विहार👣 
            🔻 खैरागढ🔻 
                    से हुआ।
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        🍄आज रात्री विश्राम🍄
               🍄कुम्ही🍄
           (प्रथमिक शाला कुम्ही जि.राजनांदगाव)     https://maps.app.goo.gl/B7nGxc8is1yTKQWV7
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       🍁कल की आहार चर्या 🍁
           🍁खपरी सिरदार🍁
       (प्राथमिक पूर्व माध्यमिक शाला) https://maps.google.com/?cid=2472308077340531023&entry=gps
    ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     
     
    27 april 23
              आज दोपहर में
        💫सामयिक उपरांत💫
             👣मंगल विहार👣 
           🔻 छुईखदान🔻 
                    से हुआ।
    ➖➖➖➖➖➖➖
        🍄आज रात्री विश्राम🍄
     🍄मामा भांजा छुई इंडस्ट्रीज टेकेपार🍄
    https://maps.app.goo.gl/WkgXTkimtcJatNBcA
           
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
              🍁खैरागढ🍁
       (दादाबाडी परिसर कुशल भवन खैरागढ)
    https://maps.app.goo.gl/CV8x1Z2TscDAjrQ9A
        
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    26 april 23

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          🍄आज रात्री विश्राम🍄
                 🍄घर्घोली🍄
            (फॉरेस्ट रेस्ट हॉउस )
    Ghirgholi
    https://maps.app.goo.gl/6HoLmKid3CHTyYar8
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
            🍁छुईखदान 🍁
        (दिगंबर जैन मंदिर, संत भवन) 
    Jain Mandir
    https://maps.app.goo.gl/QZxxsvXyMKV2i9kt6
     
     
    25 april 23
     
            आज दोपहर में
     💫सामयिक उपरांत💫
           👣मंगल विहार👣 
           🔻नरौधी 🔻 
                  से हुआ।
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          🍄आज रात्री विश्राम🍄
            🍄 देवपूरा गंडई 🍄
       (श्री महावीर राईस मिल)
    Shree mahaveer rice mill
    https://maps.app.goo.gl/bBVsc1vtmAa2EGxu8
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     🍁कल की आहार चर्या 🍁
    🍁विजय बाजार नर्मदा चौक के पहले 🍁
        जि.कबीरधाम 
     
     
    24 april 23
     
          🍄आज रात्री विश्राम🍄
             🍄 उडिया खुर्द 🍄
           (श्वेता पब्लिक स्कूल ) 
    Odiya Khurd
    https://maps.app.goo.gl/499VN2w6J9c5K5QB6
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     🍁कल की आहार चर्या 🍁
          🍁 सहसपुर लोहारा 🍁
          ( डॉक्टर करनावट के निवास परिसर ) 
                जि.कबीरधाम 
    Mahavir Medical Store
    https://maps.app.goo.gl/CQ6goKzbvsq3BXCV8
     
     
    22 april 2023
    ➖➖➖➖➖➖➖
          🍄आज रात्री विश्राम🍄
                  🍄 कवर्धा 🍄
           ( गुरुकुल पब्लिक स्कूल कवर्धा ) 
    Gurukul Public School
    https://maps.app.goo.gl/YNmNSfBynL4rnQYXA
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     🍁कल की आहार चर्या 🍁
             🍁 नवागांव 🍁
          ( प्राथमिक शाला नवागांव) 
                जि.कबीरधाम 
    Govt. Primary School Nawagaon
    https://maps.app.goo.gl/fc8du8LmjYaYZBmD6
     
     
    21 april 2023
        🍄आज रात्री विश्राम🍄
     🍄कवर्धा से 5 किमी पहले 🍄
     ( दिनेश जी चोपड़ा जी का गोडाउन ) 
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     🍁कल की आहार चर्या 🍁
             🍁 कवर्धा 🍁
          ( सरस्वती शिशु मंदिर कवर्धा) 
                जि.कबीरधाम 
    Kawardha
    https://maps.app.goo.gl/dhamM7QQdxt1ynxR7
     

     
    20 april 23
    ➖➖➖➖➖➖➖
        🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄पौंडी🍄
     ( उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ) 
    https://maps.app.goo.gl/uXf5V3eHVcspk5hf7
     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
     🍁कल की आहार चर्या 🍁
             🍁 राम्हेपुर 🍁
          ( हाई स्कुल ,शक्कर कारखाना के पास) 
                जि.कबीरधाम 
    https://maps.app.goo.gl/qqLTcpyaWe31MNaH6
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    19 अप्रैल 2023 
     
     आज दोपहर में
     💫सामयिक उपरांत💫
     👣मंगल विहार👣 
     🔻पंडरिया 🔻 
      से हुआ।
    https://www.instagram.com/p/CrOUElSNOa0/?igshid=MDJmNzVkMjY=
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     🍄आज रात्री विश्राम🍄
     🍄पांडा तराई 🍄
     ( कावेरी राइस मिल ) 
    https://maps.app.goo.gl/GpfiomDhLj3r89GA7
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
     🍁 खडोद🍁
     (प्राथमिक शाला खडोद) 
      जि.कबीरधाम
    https://maps.app.goo.gl/GN3TYqmwFULWjTA3A
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     🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
     
     
    17 अप्रैल 23 

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        🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄मुनमुना 🍄
    https://maps.app.goo.gl/1CbyF41gqoYMBiTdA
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
             🍁सगौना🍁
          (प्राथमिक शाला सगौना)
                जि.कबीरधाम
    https://maps.app.goo.gl/kdxCtFTmVVAtf5RHA
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    16 april 23
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        🍄आज रात्री विश्राम🍄
              🍄 कुकदुर -🍄
    (प्राथमिक लघु वनोपज स.समिती) 
    https://maps.app.goo.gl/hKNhwNVqgyQKZZRp6
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
             🍁लोखान🍁
                (ग्राम पंचायत)
                जि.कबीरधाम
    https://maps.app.goo.gl/irX3svXg6X5vaPyP6
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    15 april 23

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       🍄आज रात्री विश्राम🍄
     🍄 आगरपानी घाट टेन्ट में🍄 
    https://maps.app.goo.gl/6v2EivDVqoZrwEZa7
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
             🍁पौलमी🍁
                (ग्राम पंचायत)
                जि.कबीरधाम
    https://maps.google.com/?q=22.400701,81.367562&entry=gps
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    14 अप्रैल  23 

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     🍄आज रात्री विश्राम🍄
      🍄भेलकी🍄 
    Bhelki
    https://maps.app.goo.gl/BMGqpAYxV1mTSby96
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
       🍁प्राथमिक शाला अधचरा ग्राम🍁
    Adhcharap
    https://maps.app.goo.gl/ujADEKAx3bNNHE26A
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    13 अप्रैल  23 
     🍄आज रात्री विश्राम🍄
      🍄उध्वौर के आगे 5:30 कि.मी (म.प्र)🍄 
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
       🍁थाडपत्रा (म.प्र.)🍁
                 (संभावित)
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    12  अप्रैल 23 
     🍄आज रात्री विश्राम🍄
      🍄गोपालपूर (म.प्र)🍄 
    https://maps.app.goo.gl/hBvnG3zTPoBasGfs6
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     गोपालपूर से आगे 4:30 कि.मी
     🍁कल की आहार चर्या 🍁
       🍁उध्दौर(म.प्र.)🍁
                 (संभावित)
    https://maps.app.goo.gl/ZUmsxn8Qc9Ez4dEt6
     
     
     
    10 april 23 
    आज रात्री विश्राम
      🍄एकिकृत शासकिय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रुसा तिरहा(म.प्र)🍄 
    Govt Hiegher Secondary School, Roosa
    https://maps.app.goo.gl/NsDBZ1eLk47EwdSG8
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
       🍁जाडा सुरंग (म.प्र.)🍁
                 (संभावित)
    Jadasurang Ryt.
    https://maps.app.goo.gl/7D3Hck9J35MVsRrC6
     
    9 april 2023
     🍄आज रात्री विश्राम🍄
      🍄करंजिया (म.प्र)🍄 
    Karanjia
    https://maps.app.goo.gl/fEALpyb3iTrhPZgt9
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     🍁कल की आहार चर्या 🍁
       🍁अमलडीहा(म.प्र.)🍁
                 (संभावित)
    अमलडीहा, शासकीय प्राथमिक शाला, अमलडीहा
    https://maps.app.goo.gl/oZMTLjGpj7aCTBhQA
     
    8 अप्रैल 23 
     🍄आज रात्री विश्राम🍄
         🍄ग्राम -कबीर (म.प्र)🍄 (परिक्षेत्र सहायक कार्यालय) 
    Kabir 
    https://maps.app.goo.gl/giZMXq1yBFXJsZV56
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     🍄कल की आहार चर्या 🍄
    जगतपुर सम्भावित 
        Jagatpur
    https://maps.app.goo.gl/a68SKrZP8pNhc9PK8
     
     
     
    *बिग ब्रेकिंग...8 अप्रैल 23*
    *दिगंबर मानसरोवर के राजहंस संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज* का ससंघ विहार *सर्वोदय जैन तीर्थक्षेत्र अमरकंटक मप्र* से अभी-अभी हुआ
    👇👇MD👇👇
    संभावित दिशा- *बुधगांव माल, कारोपानी चल चरखा महिला प्रशिक्षण हथकरघा एवं रोजगार केंद्र जिला डिंडोरी*
    👇👇👇👇👇
    *कारोपानी* अमरकंटक से 66 किमी जबलपुर मार्ग पर डिंडोरी से 14 किमी पहले दाहिने हाथ पर स्थित है
    *(यह मेरे मन का अनुमान है)*
    🙏🙏🙏🙏🙏
     
     
  10. Vidyasagar.Guru
    मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अमरकंटक में आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन करने के बाद ट्वीट किया...
    आचार्यश्री विद्यासागर जी अद्भुत संत हैं। वे केवल जैन धर्म के नहीं, राष्ट्र के संत हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि हम अपने नेत्रों से उनके दर्शन कर पा रहे हैं।
    आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज करोड़ों लोगों को धर्म और मोक्ष का मार्ग दिखा रहे हैं। जो सनातन भारतीय परंपरा है, उस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए और महावीर स्वामी जी ने जो राह दिखाई है, उस पर चलने के लिए जन-जन को प्रेरित कर रहे हैं। गुरुदेव के कक्ष में पहुंचकर उन्हें श्रीफल समर्पित किया और आशीर्वाद प्राप्त किया इस अवसर पर आचार्य भगवान से उन्होंने कुछ विषयों पर चर्चा भी की और बाद में कहा गुरुदेव आपके दर्शन पाकर के मैं धन्य हो जाता हूं और दुगनी ऊर्जा प्रदेश के विकास के लिए आ जाती है। कक्ष में निर्यापक मुनि प्रसादसागर महाराज, मुनि श्री चंद्रप्रभसागर महाराज, मुनि श्री निरामयसागर महाराज और प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी विनय भैया बंडा उपस्थित थे इसके पश्चात मुख्यमंत्री ने नवनिर्मित मंदिर को देखा और खूब प्रशंसा की बाद में जीव दया के पुरस्कार वितरण के लिए पहुंचे जहां पर दयोदय महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेमचंद प्रेमी और उनकी टीम ने मुख्यमंत्री का स्वागत किया। और पुरस्कार के लिए चयनित गौशालाओं के लिए उन्होंने पुरस्कार दिए
     
     


     
     
     
     






  11. Vidyasagar.Guru
    आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के ससंघ सानिध्य में सर्वोदय जैन तीर्थक्षेत्र अमरकंटक में 25 मार्च से 2 अप्रैल तक होने वाले पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव के माता-पिता बनने का सौभाग्य श्री पंकज जैन जज -श्रीमती रश्मि जैन को मिला और महोत्सव के *सौधर्म-शचि इंद्राणी बनने का सौभाग्य श्री प्रमोद जैन कोयला- श्रीमती सविता जैन को मिला आपके पुण्य की बहुत बहुत अनुमोदना जैन समाज की तरफ से आपको बहुत-बहुत बधाइयां और शुभकामनाएं
     
  12. Vidyasagar.Guru
    . 21 मार्च 23, सुबह 8.28 बजे
     
     
     
     

    🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈
    दिगंबर मानसरोवर के राजहंस संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज का ससंघ मंगल प्रवेश सर्वोदय जैन तीर्थ क्षेत्र अमरकंटक मैं हुआ
    👇👇👇👇
    जैन तीर्थक्षेत्र चंद्रगिरी डोंगरगढ से 24 दिन में 265 किमी का हुआ पद विहार
    👉🏼 6 नवंबर 2003 मैं हुआ था मंदिर जी का शिलान्यास
    🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈🏳️‍🌈
    प्रमुख पात्रों का चयन 22 मार्च को दोपहर 1 बजे से आचार्य संघ के सानिध्य में संपन्न होगा 
    👉🏼 पंचकल्याणक 25 मार्च से 2 अप्रैल तक
    👉🏼 पंचकल्याणक गजरथ महोत्सव के प्रतिष्ठाचार्य है बाल ब्रह्मचारी विनय भैया बंडा
    🙏🙏🙏🙏🙏
    मुकेश जैन ढाना
    एमडी न्यूज सागर
  13. Vidyasagar.Guru
    प्रथम पुरस्कार  
     
     
     
     
    द्वितीय पुरस्कार    
     
     
     
    तृतीय पुरस्कार 
     
     
     
     
    कुसुम जैन     मंदसौर 
    बहुत सुंदर लगी महाराज जी विचार पढ़ने को मिले सही मायने में हम बहुत बड़ी ग़लती करते हैं जानते हैं कि जैसे कर्म करेंगे फल भी वैसा ही मिलेगा फिर भी करते जाते हैं और बुरे फल भोगते हैं 
     
    Ruchi Bhandari   (Pune)
    In chapter 12  Maharaj shri has said that feeling happy at someone's hurt, pain sadness etc is the worst kind  of bad karma that one can generate. This is so true. It shows the importance of being empthatic towards  others whether humans or other living beings; That hurting anyone is going to hurt us more than we can think of.
     
     
    अरुण श्री जैन    सवाईमाधोपुर
    अच्छी लगी प्रतियोगिता कर्म कैसे करे इसका ज्ञान इस प्रतियोगिता के माध्यम प्राप्त हुआ हमेशा अच्छे कर्म ही करना चाहिए बुरे कर्म से नरक जाने का रास्ता बनता है
     
    Dr Saroj Jain Gujrat
    पूज्य मुनि श्री क्षमा सागर जी के कर्म सिद्धांत संबंधी प्रवचनों पर आधारित यह प्रतियोगिता बहुत अच्छी है। एक लंबी प्रतीक्षा के बाद इस प्रतियोगिता को पुनः प्रारंभ किया गया ,अत्यधिक प्रसन्नता हुई।हमारी भावना हैं कि इस तरह की प्रतियोगिताएं निरंतर चलती रहें ताकि हम अपने जीवन को एक अच्छी दिशा दे सकें।
     
    Seema jain    Garhakota
    प्रतियोगिता आयोजित कर आपने बहुत हीसार्थक प्रयास किया ।साधुवाद।स्वाध्याय करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।मुनि श्री क्षमासागर जी ने बहुत ही सरल शैली मे कर्म सिद्धांत को समझाया है।
     
    Sandhya Jain     Bargi, Jabalpur  
    "Muni Shri ke pravachan aacharan mein laane yogya hain hamari yahi prathna hai inke pravachan se hamen Sambhal milta rahe
     
    सौ. सपना जितेंद्र लोहाड़िया (jain)    खंडवा (मध्य प्रदेश )
    अतिशय मार्मिक इतने करीब से अपने कर्मो के बारे में सोचने के लिए शायद प्रथम बार अवसर मिला 🙏🏻🙏🏻🙏🏻धन्य धन्य गुरुवर की वाणी धन्य धन्य जैन धर्म 🙏🏻
     
    ashokJain    Bhopal
     प्रतियोगिता बहुत ही उपयोगी लगी। यह सिर्फ एक प्रतियोगिता ही नही बल्कि जीवन मे क्या महत्वपूर्ण है ये भी पता चला। स्वाध्याय करके जाना की हम क्या करते है या क्या किया है उन सब का फल हमे मिलेगाऔर उसी का फल हमे मिला है ।
     
    All feedback 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1x4jgLd0nmzK3hqwv9w5zxvKzj-Vdvdz9Gq0X20zKxqw/edit?usp=sharing
  14. Vidyasagar.Guru

    सूचना
    💫 धरती के देवता, हम सभी के भगवन् , अनियत विहारी, अध्यात्म सरोवर के राजहंस, परम पूज्य युग श्रेष्ठ, संत शिरोमणि आचार्यश्री १०८ विद्यासागर जी महामुनिराज के आज कवर्धा में में केशलोंच हुए 💫
  15. Vidyasagar.Guru

    कर्म कैसे करें
    हम सभी लोग एक ऐसी प्रक्रिया पर विचार कर रहे हैं जिससे कि हमारा पूरा व्यक्तित्व निर्मित हुआ है और आगे भी हमें अपने व्यक्तित्व को किस तरह निर्मित करना है ये भी हमारे हाथ में है। इस सबकी जानकारी के लिये हम लोगों ने पिछले दिनों एक प्रक्रिया शुरू की है, उसमें जो एक बात आई थी कि हम जैसा चाहें वैसा अपना जीवन बना सकते हैं तो इसका आशय क्या है? हम जैसा चाहें तो हम तो बहुत अच्छा चाहते हैं फिर बनता क्यों नहीं है ? तो जैसा चाहें वैसा जीवन बना सकते हैं, इसका आशय समझना पड़ेगा। जैसी हमारी दृष्टि होगी वैसा हमारा जीवन बनेगा। अब दृष्टि हमें अपनी स्वयं जैसी हमारी चाहत है वैसी बनानी पड़ेगी। हम अपने जीवन को जैसा चाहते हैं हमें फिर वैसी ही दष्टि से सारे संसार को देखना पडेगा। क्योंकि बहत गौर से हम इस बात पर विचार करें और देखें, अनुभव करें तो जैसा हमारा दृष्टिकोण होता है, वैसा ही हमारा जीवन बन जाता है। भले ही हमारा कैसा ही जीवन रहे, अभावग्रस्त जीवन भी हो लेकिन हमारी दृष्टि निर्मल है तो फिर हमें किसी चीज का अभाव भी तकलीफ नहीं दे पायेगा। 

    और बहुत सारी चीजों का सद्भाव भी हो लेकिन हमारे अन्दर दृष्टि ठीक ना हो और हम हमेशा यही सोचते रहें कि कम है और होना चाहिये। तो बताइये क्या हम उन सारी चीजों से अपने जीवन को सुखी बना पाएँगे उन चीजों के सद्भाव में भी ? इतना महत्वपूर्ण है हमारे अपने दृष्टि का ठीक होना। और जब भी हम ये कहते हैं कि हम जैसा चाहें वैसा अपना जीवन बना सकते हैं तो उसके मायने यही है कि हम जीवन को किस दृष्टि से देखते हैं। 

    हम रागपूर्ण दृष्टि से देखते हैं या कि द्वेष देखते हैं या कि समतापूर्वक अपने जीवन को देखते हैं, ये हमारे ऊपर निर्भर है। चाहे जैसा जीवन हमें वर्तमान में मिला हो अपने पूर्व के संचित कर्मों के फलस्वरूप मिला हो। लेकिन यदि उस जीवन में हम अपनी दृष्टि को ठीक रखें तो आगे के जीवन को भी हम बहुत ऊँचाई दे सकते हैं। हमने समझा है कि यदि हम सबके प्रति दुर्भावना रखते हैं और दूसरे के सुख में स्वयं दुःखी होते हैं तो मानियेगा ये हमारी दृष्टि हमें नरक की तरफ ले जाएगी। यदि हम अपने को ही सब कुछ समझते हैं और सबका, गुणवान का भी तिरस्कार करते हैं तो अन्ततः हम अपनी मनुष्यता और देवत्व से नीचे गिरकर के, पशुता के लिये तैयारी कर रहे हैं। यदि हम संतोषपूर्वक जो प्राप्त है उसकी तरफ देखते हैं और अप्राप्त के लिये हम चिन्तित नहीं हैं और ना ही जो प्राप्त नहीं है हमें उसके लिये कोई दुःख है, हम जितना है उतने में सन्तुष्ट हैं, तो हम तैयारी कर रहे हैं फिर से मनुष्य होने की और यदि इससे भी ज्यादा ऊँचे उठ जायें, यदि हमारी दृष्टि इतनी निर्मल हो जाये कि हम राग-द्वेष इन दोनों से पार होने के लिये प्रयत्न करें तो जरूर हम अपने जीवन को देवत्व की तरफ ले जा सकते हैं। इसके मायने है जब ये कहा जाये कि हम जैसा चाहें वैसा जीवन बना सकते हैं तो इसके मायने हैं कि हम अपनी दृष्टि को जिस तरह की दिशा दे दें वैसा ही मेरा जीवन बनना शुरू हो जाता है। 

    एक सेठजी के यहाँ पर एक व्यक्ति काम करता था, नौकरी करता था। जब खाली टाइम होता था गपशप का, तो सेठजी और भी सबको बिठाकर के और चुटकुले वगैरहा सुनाते थे। क्या बोलते, जोक्स वगैरह ताकि थोड़ा इन्टरटेन हो, लेकिन अब कितने दिन तक सुनायेंगे वो, तो फिर वो ही चुटकुले रिपीट होने लगे। लेकिन अब चूंकि सेठजी सुना रहे हैं इसलिये हँसी नहीं आने पर भी हँसना पड़ता था, बनावटी हँसना पड़ता था। और एक व्यक्ति तो उसमें ऐसा था कि उसको जैसे ही सेठजी ने चुटकुला शुरू किया और हँसना शुरू कर देता था ताकि सेठजी प्रसन्न रहें। अब एक दिन ऐसा हुआ कि सेठजी ने चुटकुले सुनाए। सब तो हँसे लेकिन वो ही जो सबसे ज्यादा हँसता था, वो नहीं हँसा। तो सेठजी ने कहा कि क्यों तुमने आज चुटकुले नहीं सुने हैं, तो उसने कहा कि रोज सुनता हूँ आज भी सुने हैं कोई नई बात नहीं है। अरे तो तुम्हें हँसी नहीं आई। तो उसने कहा कि अब हँसने का क्या काम ? कल से मैं तो आपकी नौकरी छोड़ रहा हूँ। समझ में आया, कल से आपकी नौकरी छोड़ रहा है, अब हँसने का क्या काम। ऐसा ही हम अगर अपने जीवन में अपना दृष्टिकोण बना लें कि अब तो इस संसार से पार होने की प्रक्रिया शुरू कर रहा हूँ, क्या शत्रु और क्या मित्र, क्या राग और क्या द्वेष, क्या किससे लेना और क्या किसका देना। शांतिपूर्वक अपना जीवन जीना है किस-किसकी नौकरी-चाकरी करें। किस किसके मुताबिक हँसे, किस-किस के मुताबिक रोएँ, किस-किसको सन्तुष्ट करें। संसार में इतना ही तो करना पड़ता है अपने लिये और क्या करते रहते हैं दिन भर। अगर ऐसी हमारी दृष्टि बन जावे कि सिर्फ मुझे अपने आत्म-कल्याण के लिये जो करना है वो करना है। सारी दुनिया को सन्तुष्ट करना है तो आज तक कोई भी नहीं कर पाया। भगवान भी नहीं हो पाये ऐसे कि जो सबको सन्तुष्ट कर सकें अपने जीवन से। नहीं है “अतावे जमाना नहीं है खिताब के काबिल, तेरी रजाये है कि तू मुस्कुराये जा'। ये नेहरू जी को साहू शांतिप्रसादजी ने सुनाया था। उन दिनों जब वो जरा परेशान थे। तब नेहरूजी ने कहा कि मैं बहुत मुश्किल में हूँ जहाँ-जहाँ सँभालता हूँ वहाँ मुश्किल खड़ी हो जाती है। किस किसको सँभालू, किस-किस को समझाऊँ। उनको शैरो-शायरी का शौक था तो ये सुनाया था और ये इतना बड़ा मेसेज है कि संसार में ऐसे ही रहना चाहिये। अगर इस संसार से पार होना चाहते हैं तब। राग-द्वेष दोनों का नाम ही संसार है और संसार कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है। कोई अलग-अलग चीज नहीं है हमसे हमारे भीतर ही है वो। जितना राग-द्वेष है उतना संसार हमने अपने हाथ से निर्मित कर लिया है और जितना हम उसको कम करते चले जाएँगे उतना हमारा संसार कम होता चला जाएगा। “सराग संयम संयमासंयमाकामनिर्जरा-बालतपांसि देवस्य।" 

    आचार्य भगवन्तों के चरणों में बैठे, उमास्वामी महाराज के और उनसे पूछे कि मैं मनुष्य हूँ और क्या कभी देवताओं जैसी ऊँचाई छू सकता हूँ तो वो कहते हैं कि हाँ, अगर हम अपने जीवन को संयमित और नियन्त्रित कर लें लेकिन ध्यान रहे दृष्टि की निर्मलता के साथ आत्म-नियन्त्रण की प्रक्रिया होनी चाहिये। हम लोग अपने जीवन को कई वजह से अनुशासित और नियन्त्रित कर लेते हैं। चार लोगों में यश और ख्याति पाने के लिये जीवन में नियन्त्रण हम कर लेते हैं जिससे कि वाहवाही हो कि कित्ते बढ़िया व्यक्ति हैं। कितने उपवास करे इन्होंने, कितनी साधना है इनकी, कितनी तपस्या है इनकी, ऐसी ख्याति पूजा के लिये भी हम कई बार अपने जीवन को नियन्त्रित कर लेते हैं। उसकी चर्चा नहीं है दृष्टि की निर्मलता के साथ अगर आत्म-नियन्त्रण है। मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसलिये बहुत सारी चीजें मैंने छोड़ रखी हैं, ये संयम नहीं कहलाएगा। हाँ जब मैं स्वस्थ हो जाऊँगा, तब भी इन चीजों को ग्रहण नहीं करूँगा तो हो गया फिर संयम। विदेश में अपने स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत सारी चीजें नहीं खाते लोग। अपने यहाँ पर भी यदि डॉक्टर अपन से कह दे कि ये चीज मत खाना, नहीं तो तबीयत और बिगड जाएगी और मरना पड़ेगा, फिर तो आप बिल्कुल छोड़ देंगे, लेकिन उसके पीछे, उस नियन्त्रण के पीछे कहीं कोई दृष्टि की निर्मलता नहीं है। आत्म कल्याण की दृष्टि ही वास्तव में दृष्टि की निर्मलता है। ऐसी दृष्टि से अगर हम संयम का पालन करते हैं, सराग संयम इसलिये कह दिया कि जो संयमी है, वे मुनि, साधु-संत कहलाते हैं, लेकिन जब वे धर्मोपदेश देते हैं, आहार-विहार इत्यादि करते हैं तो यह क्रिया थोड़ी सी राग से युक्त तो है भले ही प्रशस्त राग है, कल्याणकारी है स्वयं के लिये भी दूसरे के लिये भी, इसलिये इसे सराग संयम कहते हैं। ऐसा आत्म-नियन्त्रण जिससे कि अभी परोपकार भी हो रहा है। ये अगर अपने जीवन में दृष्टि की निर्मलता के साथ यदि हम अपने ऊपर लगाम लगा लेवें, अपने ऊपर स्वयं अंकुश रख लेवें, अपने इन्द्रिय और मन के विषयों को सीमित कर देवें, तो संभव है कि हम अपने आगामी जीवन में देवत्व को प्राप्त कर सकते हैं। 
    आचार्य भगवन्तों ने लिखा कि पुण्य का अर्जन करके देवत्व प्राप्त करना ज्यादा कठिन नहीं है, लेकिन महाव्रतों का पालन करके और ध्यानपूर्वक कर्मों की निर्जरा से देवत्व प्राप्त करना महादुर्लभ है। हम ये ही तो चाहते हैं कि हमारे जीवन में देवत्व आये। हम देवता बनें स्वर्ग के। ये बिल्कुल अलग बात है कि कब बनेंगे हम। जब तक हमारे भीतर यहाँ मौजूदा जिन्दगी में देवत्व नहीं आयेगा, जैसे अपन कह देते हैं कि भैया बड़े देवता आदमी हैं। मतलब ज्यादा राग-द्वेष में नहीं पड़ते किसी के, ज्यादा प्रपंच में नहीं पड़ते, सीधी सी बात है। अपना आत्म-नियन्त्रित जीवन जीते हैं। यही तो देवत्व है वो यहाँ जब आयेगा तब जाकर के देवताओं वाली पर्याय मिलेगी। यहीं से शुरूआत करनी पड़ेगी। कदाचित् किसी की सामर्थ्य ना हो अपने को पूरी तरह से आत्म-नियन्त्रित करने की, जैसे कि मुनिजन आत्म-नियन्त्रण का पालन करते हैं वैसी ना हो तो सद्गृहस्थ है, श्रावक के व्रतों का पालन करता है। जीवन को थोड़ा-थोड़ा अच्छा बनाना शुरू किया है तो अब जरूर से एक दिन बहुत अच्छा जीवन बन जाएगा। श्रावक भी दृष्टि की निर्मलता के साथ अगर वो अपने व्रतों का पालन करता है, ख्याति, पूजा, लाभ की आकांक्षा नहीं है, कोई शारीरिक सम्बल पाने के लिये, या शारीरिक बल बढ़ाने के लिये, स्वास्थ्य के संरक्षण के लिये, या भयभीत होकर के अनुशासन नहीं है। आत्मानुशासन है यदि श्रावक के जीवन में भी, तो वो भी देवत्व की ऊँचाई पाने के लिये कारण बनेगा और अब। अगर ये दोनों दष्टि की निर्मलता के साथ हैं तो बहत ऊँचे देवों में जाकर उत्पन्न होंगे और अगर ये दोनों चीजें दृष्टि की निर्मलता के साथ नहीं हैं तब फिर देवता तो बनेंगे, मगर देवताओं में भी बहुत केडर हैं। एक तो किंग टाइप के देवता हैं और एक पिऑन टाइप के देवता भी हैं, ये ध्यान रखना। आप देवता का मतलब ये मत समझना, उनमें भी बहुत केडर हैं। इन्द्र है वहाँ और एक जगह किलविष जाति के भी देव हैं जो कि बिल्कुल सभा के बाहर जहाँ जूते-चप्पल उतारे जाते हैं बिल्कुल वहाँ बैठने को मिलता है उनको पूरी जिन्दगी भर और एक बैठा रहता है लॉर्ड बनकर के, इन्द्र बनकर के। आपने अगर अपने जीवन को आत्म नियन्त्रित तो किया है लेकिन ख्याति पूजा लाभ आदि की आकांक्षा से किया है, दृष्टि की निर्मलता नहीं रही है तो देवत्व तो पायेंगे आप लेकिन निकृष्ट देवों में उत्पन्न होंगे। ऐसे ही श्रावक के जीवन में, ऐसे ही साधु के जीवन में इसलिये दृष्टि की निर्मलता अत्यन्त आवश्यक है। यदि दृष्टि निर्मल नहीं है अर्थात् “आत्म अनात्म के ज्ञानहीन, जे जे करनी तन करन-छीन", यदि आत्मा और अनात्मा के बीच का हमें भेद विज्ञान नहीं है तब फिर हम जो-जो भी बाह्य आचरण करते हैं चाहे मुनियों के समान आचरण करें, चाहे श्रावक का आचरण करें लेकिन वो हमें देव पर्याय की प्राप्ति तो कराएगा, लेकिन सौधर्म इन्द्रादि जो स्वर्ग के देव हैं उनकी प्राप्ति नहीं। उतनी ऊँचाई नहीं पहुँच पायेगी उतना देवत्व नहीं आ पायेगा। ये सावधानी रखने की आवश्यकता है। “सम्यक्त्वं च।", इसलिये अगला वाला सूत्र जोड़ा है कि कोई अगर व्रत नियम संयम ना भी ले, लेकिन अकेले अगर दृष्टि की निर्मलता है तो यह डेफिनेट है कि वो ऊँचे देवों में ही उत्पन्न होगा। एक मात्र देवायु का ही बंध करेगा और यदि दृष्टि की निर्मलता नहीं है, देव तो बनेगा पर उतनी ऊँचाई नहीं छू पायेगा। ऐसा लिखा हुआ है कि मिथ्यात्व के साथ भी देवायु का बंध हो सकता है, आत्म-नियन्त्रण की वजह से। आगे कह रहे हैं कि “अकामनिर्जरा बालपतांसि देवस्य।" 

    देव तो ये भी बनते हैं जो कि मजबूरी में परवश होकर भोग-उपभोग की सामग्री का त्याग कर देते हैं। कारागार में, जेल में बन्द कर दिया गया वहाँ पर सारी सुख-सुविधाएँ छीन लीं। जमीन पर सोना पड़ रहा है। ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ रहा है। सब मजबूरी में करना पड़ रहा है, परवश होकर के। उसमें जो कर्मों की निर्जरा होगी उससे भी देवायु का बंध होगा, वह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। हाँ, और बाल तप, मिथ्यात्व के साथ नाना प्रकार के वेश बनाकर के और फिर जो तपस्या की जाती है वो बाल तप कहलाती है। ऐसे मिथ्या दृष्टि के द्वारा की जाने वाली तपस्या भी उसे देव पर्याय की प्राप्ति में निमित्त बन सकती है। लेकिन अगर देव पर्याय पानी है तो दृष्टि की निर्मलता के साथ पाना। सम्यग्दर्शन के साथ पाना। क्यों ? कहीं-कहीं पर देव पर्याय की प्रशंसा करी और कहीं पर देव पर्याय की प्रशंसा नहीं करी, क्यों ? अगर मिथ्यात्व के साथ देव पर्याय पाओगे तो वहाँ जाकर के भोग-विलास में इतने रच-पच जाओगे कि जितनी कमाई करी वो सब वहाँ गँवा करके और अन्ततः निकृष्ट पर्याय पाओगे और अगर सम्यग्दर्शन के साथ देवों में गये तो फिर क्या है उस भोग-विलास की सामग्री मिलने पर भी उससे निस्पृह होकर के धर्मध्यान के ज्यादा अवसर हैं। उन सबको प्राप्त करके तीर्थंकर के समवशरण में साक्षात् भगवान के चरणों में बैठकर के और अपने आत्म-कल्याण के लिये लगते हैं और मरण के समय कभी सम्यग्दृष्टि दुःखी नहीं होता। देव पर्याय के भोग-विलास छूटने पर वो कहता है कि बहुत अच्छा रहा। अब जाता हूँ। वहाँ पर मनुष्य में उत्पन्न होकर के मैं तो अपनी मुक्ति की साधना करूँगा। तब वो देव पर्याय उसके लिये लाभकारी हो जाती है। इसलिये दृष्टि की निर्मलता के लिये एक सूत्र अलग से रखा कि “सम्यकत्वं च'। सम्यग्दर्शन के द्वारा तो देव पर्याय ही हमारे लिये आगे जीवन को ऊँचा उठाने में कारण बनती है। भैया ये तो जीवन एक बीज की तरह हमारे हाथ में आया है। अगर हम गौर से देखें ये तो एक बीज है, इस बीज को कहाँ कैसे बोना है, किन भावनाओं की जमीन में बोना है, ये पर्याय एक सीड (बीज) की तरह है। आप जैसी जमीन में बोयेंगे, आप तिर्यन्च बनना चाहें, मनुष्य से मनुष्य बनना चाहें, देव बनना चाहें, नरक जाना चाहें, चौराहे पर खड़े हैं, चारों रास्ते खुले हुए हैं, और किसी के लिये नहीं खुले हैं, नरक से कोई नरक में नहीं जा सकता, देव में नहीं जा सकता, सिर्फ मनुष्य और तिर्यन्च में आ सकता है। देव से पुनः कोई देव में नहीं जा सकता, नरक में नहीं जा सकता मनुष्य और तिर्यन्च हो सकता है। तिर्यन्च से कोई भी चारों जगह जाये तो जा सकता है और मनुष्य से चारों जगह जा सकता है। तिर्यन्च में भी बहुत रिस्ट्रिक्शन्स हैं, कहाँ-कहाँ कितनी दूर तक जा सकते हैं। मनुष्य में जहाँ चाहें, वहाँ जा सकते हैं।

    और एक बहुत बड़ी चुनौती भी है। हम अपनी उस सुविधा का लाभ उठाना चाहें तो लाभ उठा सकते हैं और उसको चूकना चाहें तो चूक भी सकते हैं। इसलिये जैसे कि एक बीज (एक सीड) जैसी भूमि पाता है वैसा आगे बढ़ जाता है। 

    मुझे वो उदाहरण याद आ गया। सुना ही देता हूँ, फिर थोड़ी सी चर्चा करूँ इन सूत्रों पर। एक पिता ने अपने बच्चों को और कुछ बीज सौंपकर के और तीर्थयात्रा की तैयारी करी थी। तीन बच्चे थे और तीनों को बीज सौंप दिये। मैं लौटकर के आऊँगा और वापिस ले लूँगा। वे उत्तराधिकारी किसको बनायें, इस बात के लिये चिन्तित थे और परीक्षा करना चाहते थे कि तीनों बेटों में सबसे ज्यादा योग्य कौन है ? तीनों को बीज सौंपकर के चले गये। वापिस लौटे तो पहले वाले से पूछा कि क्या किया उन बीजों का, पहले वाले ने कहा कि आपके लौटने के इन्तजार में तो वो बीज खराब हो जाते इसलिये मैंने बेच दिये। आप कहियेगा मैं फिर से बाजार से खरीदकर के आपको दे देता हूँ। लेकिन पिता ने कहा कि वे बीज तो नहीं हैं जो मैंने तुम्हें सौंपे थे। उसने कहा हाँ ये तो मिस्टेक हो गई और दूसरे ने यही सोचा था कि पिताजी अगर वो ही बीज माँगें तो क्या करेंगे तो उसने तिजोरी में बन्द करके रख दिये थे। लेकिन वर्षों के बाद जब निकाले तो वे तो सब घुन गये थे, खराब हो चुके थे। बीज तो थे लेकिन वो सब खराब हो चुके थे। दूसरे ने इस तरह से बीजों को सँभाला और तीसरे वाले ने कहा कि पिताजी सब बीज रखे हुए हैं। अभी देखेंगे और ले गया वो पीछे जो थोड़ी सी जमीन पड़ी थी घर में। उसमें वो बीज डाल दिये थे जिनमें से कि पौधे उग आये थे और एक-एक पौधे में कई-कई बीज। उसने कहा कि पिताजी ये बीज ज्यों के त्यों वे तो नहीं हैं उन्हीं की संतान हैं ये। कौन है सबसे ज्यादा योग्य, सब समझ रहे हैं। लेकिन अपने जीवन में झाँककर देखना पड़ेगा। ये तो कहानी है। अपने जीवन में झांक के देखना पड़ेगा कि जो जीवन ले के आये थे उसको कहीं कोड़ियों के दाम बेच तो नहीं दिया अपन ने। और कहीं भोग-विलास में लगाकर के उसे सड़ने के लिये मजबूर तो नहीं कर दिया। ठीक तिजोरी में रखे हुये, सड़ गये जो बीज हैं, क्या सचमुच, हमने उसे अपने भावनाओं की निर्मलता की जमीन में, दृष्टि की निर्मलता की जमीन में बोकर के। दृष्टि की निर्मलता कैसी, जिससे कि मेरे जीवन से सबको लाभ मिले। ये बीज सबके लिये सुगन्ध फैलायें इसके लिये उसने थोड़ी सी जमीन में उनको बो दिया था। जिनसे कि फूल निकलें और सबको सुगन्ध मिले और अपना भी कुछ बिगड़ा नहीं, ज्यों के त्यों बने रहे। क्या जीवन को इस दृष्टि से नहीं जिया जा सकता ? इस दृष्टि से अगर कोई अपने जीवन को जीता है तो वो तो यहाँ भी देवत्व के साथ जी रहा है, आगे भी वो अपने जीवन को उस ऊँचाई तक ले जा पाएगा जहाँ कि ये स्वर्ग के देव क्या देवाधिदेव पहुँचे हैं, उस ऊँचाई तक भी अपने जीवन को ले जा सकता है।
     
    हमारा चुनाव हमें स्वयं करना पड़ेगा कि हमें क्या चुनना है अपने जीवन में। ये चारों चीजें अपन ने समझीं। बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह चुनना हो तो, हम नरक चुन रहे हैं मान के चलें। अगर छल-कपट की जिन्दगी चुननी हो तो मानियेगा कि तैयारी है पशु बनने की। और अगर संतों का जीवन चुनना है, मानियेगा कि मनुष्य होने का चांस फिर से एक और मिलेगा और अगर थोड़े से ऊपर उठकर के अपने जीवन को ऐसा जीयें जिससे कि अपना भी आत्म-कल्याण हो और सब जीवों का मेरे माध्यम से आत्म-कल्याण हो, ऐसी दृष्टि से भी जीवन को जिया जा सकता है तब फिर हम देवताओं के जैसी ऊँचाई को भी हासिल कर सकते हैं और भी इन दो सूत्रों के अलावा जब अकलंक स्वामी के चरणों में बैठते हैं तो वे बहुत छोटी-मोटी बातें बता रहे हैं कि अगर देवता बनना है, स्वर्ग के देव बनाना है, कैसे परिणाम होते होंगे ? हम क्या वैसे परिणाम कर सकते हैं। इसके बारे में कह रहे हैं कल्याण मित्र संसर्ग। इससे भी देवायु का बंध होता है। हमेशा ऐसा मित्र चुनना जो कि आत्म-कल्याण की बात करता हो। ऐसा कल्याण मित्र सौभाग्य से मिलता है। अपने आत्म-कल्याण के लिये कोई चिन्तित हो यह तो बहुत सामान्य सी चीज है, लेकिन कोई किसी के आत्म-कल्याण के लिये चिन्तित हो ऐसा मित्र मिलना तो बहुत कठिन है। वो कह रहे हैं कि कल्याण मित्र संसर्ग जैसे कि वारिषेण मिल गये थे पुष्पडाल को। 12 वर्ष तक छाया की तरह उनके साथ रहे और उनके मन में उठने वाले विचारों को पहचानते रहे और एक दिन जब बिल्कुल ही स्थिति ऐसी हो गयी कि पुष्पडाल अब गिरे, तब गिरे, तब जाकर के ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर दिया जिससे कि हमेशा के लिये वे सँभल गये। 

    ऐसा कल्याण मित्र मिलना जीवन में भैया ऐसे मित्र तो मिलते हैं कि आओ जरा पार्क में घूम कर आयें। आओ जरा थियेटर में चल करके आयें। आओ जरा और किसी जगह इन्टरटेन करें। लेकिन ऐसे मित्र मिलना बहुत कठिन है कि आओ आज बैठकर के जरा तत्त्व चर्चा कर लें। आओ बैठकर के थोड़ा भगवान का ध्यान कर लें, आज पूजन कर लें, अपन दोनों एक साथ बैठकर के। आओ आज तो थोड़ा सा सुनकर आयें जरा कल्याण की दो बातें। ऐसे मित्र मिलना आज के समय में बहुत मुश्किल है। ऐसे मित्र दूसरे के बनना, कोई ना मिले अपने लिये, कोई बात नहीं है. लेकिन अपन ऐसे मित्र बनेंगे दसरे के तो फिर अपने लिये देवत्व की प्राप्ति हो सकती है। दूसरा मिले या ना मिले ये तो हमारा पुण्य लेकिन हम ऐसे मित्र बनें दूसरे के जब भी बन पायें तो उससे हमारा ही कल्याण होगा। उसका तो हो जाएगा। एक चीज कह रहे हैं कि कल्याण मित्र संसर्ग और फिर दूसरा कह रहे हैं कि आयतन सेवा। सच्चे देव गुरु शास्त्र की सेवा करना और इतना ही नहीं जो सच्चे देव गुरु शास्त्र के फोलोअर हैं उनकी भी सेवा करना। 

    बताइये अगर हम पूजा करके लौटे हैं तो भगवान की सेवा करी या जिनालय की सेवा करी हमने, लेकिन जो जिनालय के दर्शन करके लौटा है उसके साथ अगर हमने अच्छे से व्यवहार नहीं किया है तो इसके मायने क्या है, क्या यह आयतन की सेवा कहलायेगी। आयतन छः होते हैं कि नहीं होते। जिनेन्द्र भगवान, गुरु और शास्त्र और उनके फोलोअर्स। वो भी आयतन है बताइये, हम सब एक-दूसरे के आयतन हैं अगर देखा जाए तो क्योंकि सब सच्चे देव, गुरु, शास्त्र के भक्त हैं तो हम एक-दूसरे के लिये कल्याण में निमित्त हैं। आयतन तो वो ही है जो कि हमारे कल्याण में निमित्त बने। तो क्या हमारे अपने साधर्मी के बीच ऐसा सेवा का भाव नहीं होना चाहिये। जरूर से होना चाहिये? ये आयतन की सेवा कहलाएगी। इससे भी हमारे अन्दर देवत्व की प्राप्ति होती है और फिर कह रहे हैं, धर्म श्रवण। धर्म श्रवण करना भी देवत्व की प्राप्ति में कारण बनता है, बन सकता है क्या? लगता तो नहीं है, क्योंकि बहुत लोग सुनते हैं धर्म श्रवण तो, सब क्या देवता बनेंगे? जिसकी दृष्टि धर्म श्रवण से निर्मल बन जाएगी वो जरूर निमित्त बनेगा। एक कारण बनेगा। धर्म श्रवण, है आपको याद उस चोर का नाम तो मुझे याद नहीं है लेकिन वो चोर था, हाँ विद्युत चोर होगा जिसको कि उसके पिताजी ने कहा था कि सुनो उस रास्ते से मत जाना वहाँ पर भगवान महावीर का समवसरण है। वहाँ से जाओगे तो गड़बड़ हो जाएगी। तुम्हारी चोरी सब छूट जाएगी। उपदेश अगर सुनने में आ गया कानों में। और एक बार ऐसा मौका आया कि उधर से निकलना पड़ा तो दोनों कानों में उसने उँगली लगा ली थी, सुनना ना पड़े लेकिन उतने बीच में उसको काँटा लग गया और काँटा लग गया तो उसको निकालने के लिये हाथ छोड़े, उतने में दो शब्द कान में पड़ गये कि देवों के पलकें नहीं झपकतीं और छाया नहीं पड़ती। चल रही होगी वहाँ चर्चा समवसरण में देवों की, देवों की छाया नहीं पड़ती और पलकें नहीं झपकतीं। 

    धर्म संयोग से श्रेणिक के मंत्री अभय कुमार के द्वारा वह पकड़ा गया। पकड़ने के बाद में अभय कुमार ने सोचा कि इससे कैसे करवायें पता कि इसने अपराध किया है चोर है, तो ऐसा बना दिया बिल्कुल कि जैसे वो स्वर्ग में पहुँच गया हो। और देवी देवता सब खड़े हुए हैं सेवा में जब उसको तो कोई दवाई पिलाकर के बेहोश कर दिया था और जब वह उठा तो देखा और कहा गया उससे कि अब तुम देव हो और स्वर्ग में आ गये हो। तुमने क्या-क्या अपने जीवन में अपराध किये उन सबको कह दो क्योंकि अब तो तुम स्वर्ग में आ गये हो। उसको भी एक बार लगा कि आ गये लगता है स्वर्ग में, लेकिन देखा कि इन लोगों की तो पलकें झपक रही हैं और इनकी छाया पड़ रही है, भगवान महावीर स्वामी झूठ नहीं बोल सकते। उन्होंने तो कहा था कि देवों की तो पलकें नहीं झपकती, उनकी तो छाया नहीं पड़ती। मतलब ये सब मेरे साथ फ्राड किया जा रहा है। ये सब बेईमानी है, उसने कुछ नहीं बताया और जब कुछ भी साबित नहीं हो सका कि चोर है, तो अभय कुमार ने कहा कि जाओ साबित तो हो नहीं सका, पर कुछ ना कुछ बात जरूर है, तुम बच नहीं सकते थे मेरी चतुराई से, कैसे बच गये तब फिर उसने अभय कुमार के चरणों में झुक कर कहा ऐसा पूछते हो तो मैं यही कहूँगा कि मुझे किसी और ने नहीं बचाया, जिनेन्द्र भगवान की वाणी ने बचा लिया। जब मुझे जिनेन्द्र भगवान के दो शब्दों ने इस विपत्ति से बचा लिया तब अगर मैं उनके पूरे धर्म को श्रवण करूँ तब तो मैं संसार की हर विपत्ति से ही बच जाऊँगा। धर्म श्रवण भी हमारे जीवन को बहुत बड़ी ऊँचाई दे सकता है। 

    ये उदाहरण है अपने प्रथमानुयोग में। आज भी हम इसको अपने जीवन में लागू कर सकते हैं। लेकिन दृष्टि निर्मल होना चाहिये। धर्म श्रवण मेरे कल्याण में कारण बने ऐसी दृष्टि से, कितनी कम भी बुद्धि क्यों ना हो दो बातें तो सबके समझ में आती हैं भैया अपने कल्याण की। किसके समझ में नहीं आती और कब समझ में आ जाये यह कहा नहीं जा सकता। जब समझ में आ जाये तभी जो है अपने कल्याण के लिये तत्पर हो जायें। कोई व्यक्ति ऐसी भावना भाये तो भी देव पर्याय मिलेगी। धर्म श्रवण की भावना भले ही कुछ समझ में नहीं आता हो, चलो बैठेंगे। एक व्यक्ति को सुनाई नहीं पड़ता था, दिखाई नहीं पड़ता था ऐसा उदाहरण आता है और सभा में सबसे आगे बैठता था। लोगों ने उससे पूछा कि तुम सुन तो पाते ही नहीं हो, ना देख पाते हो। बोला कि नहीं, ये दो आँखें बाहर की भले ही न देखती हों, ये बाहर के कान भले ही न सुनते हों लेकिन मेरी अन्तर आत्मा सनती है। मेरी अन्तर आत्मा देखती है। हाँ, मैं आगे बैठता है। मैं अपनी अन्तर आत्मा से देखता हूँ, मैं सुनता हँ अपने अन्तर आत्मा से वो आवाज, मेरे कल्याण की आवाज और भैया जो अपने अन्तर आत्मा की आवाज न सुने और बहुत सारी आवाज सुनता रहे, धर्म श्रवण भी करता रहे तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। 

    ये कान कितना सा सुन पाते हैं, भीतर से सुनने की अगर आकांक्षा हो तो वो धर्म श्रवण हमारे जीवन को देवत्व की ऊँचाई दे सकता है। वो कह रहे हैं तपस्या में तत्परता। भले ही शरीर कमजोर हो, नहीं बनता अपन से, पर मैं करूँ ऐसी भावना हो, मैं कुछ कर पाता, मैं अपने जीवन के लिये थोड़ी तपस्या कर पाता। कर कुछ भी नहीं पा रहे हैं। हिम्मत ही नहीं हैं, एक आसन तक नहीं हो पा रहा है, दो बार खाना पड़ रहा है, लेकिन मन में क्या विचार है, ऐसा हमारा जीवन हो जाता कि एक ही बार खाते। आज हम भी उपवास कर लेते। ऐसी भावना भाने में क्या लग रहा है बताओ? और शक्ति है तो करेंगे और शक्ति नहीं है तो भावना तो भाई जा सकती है। और कह रहे हैं तप में तत्परता रखता है वो भी देवायु का बंध करता है और जिसको ज्ञान की ललक है भले ही अंगूठा छाप है, लेकिन ज्ञान की ललक है बहुश्रुतवान के चरणों में जाकर के बैठ जाता है कि कुछ सुनाओ, अरे तुम्हारे को समझ में तो आता ही नहीं है, तुम्हारे को क्या सुनायें ? नहीं हम तो सुनेंगे, आप सुनाओ तो, भले ही कुछ समझ में नहीं आता। ऐसी जिसके अन्दर भावना है वो देवता नहीं बनेगा तो क्या बनेगा, बताओ। जो संसार के प्रपंच से बचकर के, राग-द्वेष से बचने के लिये, चार बातें जानने की आकांक्षा रखता, भले ही उसकी बुद्धि में नहीं आती है तो उसकी भावना की निर्मलता उसको ऊँचाई पर ले जाएगी और कह रहे हैं कि जो सद्पात्र के लिये दान देने की हमेशा भावना भाता है, अकेले भावना की बात कर रहे हैं। 

    भैया, देवत्व और कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है जहाँ “टू ऐरर इज हुमेन, टू कन्फेस इज डिवाइन” जहाँ हम गलतियाँ करते हैं वहाँ हम मनुष्य हैं और जहाँ हम अपनी गलतियों को स्वीकार करके उन्हें सम्भालने के लिये प्रयत्न करते है वहाँ हमारे भीतर देवत्व आना शुरू हो जाता है। जहाँ हम गलती करने वाले के प्रति भी मन में सद्भाव रखते हैं। वहाँ से देवत्व की शुरूआत होती है। गलती करने वाले को गलत मानने वाली तो दुनिया है भैया लेकिन गलती करने वाला अपने को गलत मानें हम क्यों उसे गलत माने, हम तो उसके प्रति सद्भाव ही रखेंगे। इतनी ऊँची अगर अपनी दृष्टि की निर्मलता हो जावे तब तो फिर कोई बात ही नहीं है। 

    एक छोटी सी घटना है। बहेलिये ने जाल बिछाया और एक कबूतरी उसमें फँस गयी। अब फँस गई वो तो कबूतर ऊपर बैठा पेड़ के ऊपर, वो भी दुःखी और वो कबूतरी फँस गई वो भी दुःखी। क्या करें ? उसी पेड़ के नीचे बहेलिये ने अपना डेरा डाल दिया। कबूतरी ने जाल में बन्द होने के बाद भी आवाज दी कबूतर को कि दुर्व्यवहार नहीं करना। मुझे भले ही पकड़ लिया है, लेकिन आया अपने पेड़ की शरण में है, इसलिये मदद करना। बताओ आप, तिर्यन्च है वो। पता नहीं ऐसा हुआ कि नहीं अपन मत करो विश्वास ऐसा लगता है मन में, अरे कहाँ होता है ऐसा सब कुछ। लेकिन करना पड़ेगा विश्वास ऐसा भी संभव है। कबूतरी कह रही थी और कबूतर ने सुना तो उसका संक्लेश कम हो गया। जितने तिनके लाया था वो घोंसला बनाने के लिये वो सब धीरे-धीरे नीचे गिरा दिये और इतना ही नहीं जब उसको लगा कि अभी तो कम है मामला तो और तिनके लाया बटोर के, सब नीचे गिरा दिये। ऐसा ढेर सा लग गया। फिर वहीं से जलती लकड़ी उठाकर के लाया, उसमें डाल दी आग जला दी, सारी रात ठण्ड में ये पेड़ के नीचे कैसे काटेगा थोड़ी गर्माहट हो जाएगी और फिर जब नहीं रहा गया तो फिर अपना घोंसला भी उसमें गिरा दिया ताकि और थोड़ी अग्नि जल जाये। अब क्या करूँ, इसके लिये क्या करूँ, और दुःख भी है कि कबूतरी की तो जान चली ही जाएगी, अब जब इसकी चली ही गई तो इसी अग्नि में मेरी भी चली जाए, ऐसा सोचकर उस अग्नि के निकट आने वाला था और बहेलिया सब देख रहा है। उसका मन बदल गया, उसने फौरन कबूतर को एक तरफ हटाकर के और जाल खोलकर के कबूतरी को भी उड़ा दिया। 
    एक का देवत्व दूसरे के लिये भी भीतर देवत्व उत्पन्न कर सकता है। देवत्व और कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है। हमारे भीतर की सद्भावनायें देवत्व है और हम किसी अपराधी से, अपराधी व्यक्ति के प्रति भी अगर हम अपनी सद्भावना व्यक्त करेंगे तो मानियेगा कि हम तो देवताओं जैसे ऊँचे हो ही जाएंगे। उसको भी कोई रास्ता मिलेगा। उस बहेलिये के बारे में लिखा है कि उसने जीवन भर फिर जाल से हिंसा करना छोड़ दिया। छोटी सी एक घटना उसके जीवन को इतना परिवर्तन कर गई। भैया, हमारे जीवन में भी ऐसा परिवर्तन आये और अपन भी अपने जीवन में ऐसी तैयारी करें जिससे कि हमारा जीवन बहुत अच्छा बने। 

    इसी भावना के साथ बोलिये आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी मुनि महाराज की जय। 
    ००० 
     
  16. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता क्रमांक 3  लिंक 
     
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSeXKI1pA3o9jIwcfwLtf-idNv1CX96N8coNASsiSpYZEQB9Kw/viewform?usp=sf_link
     
     
     
    उत्तर प्राप्त सूची एवं प्रतियोगिता अनुभव 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1Ks6KfEmPVOIQ4P30g8ADRciHj96gIiAarOTyC6aBB7A/edit?usp=sharing
     

  17. Vidyasagar.Guru
    श्री. मज्जीनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव अमरकंटक🚩🛕
       25 मार्च से 1 अप्रैल 2023
                 🛕🛕🛕🛕🛕
    💫युग शिरोमणि, जन जन के संत, आचार्य भगवन श्री १०८ विद्यासागरजी महामुनिराजजी
    💫निर्यापक श्रमण मुनिश्री १०८ प्रसादसागरजी महाराजजी
    💫मुनिश्री १०८ चंदप्रभसागरजी महाराजजी
    💫मुनिश्री १०८ निरामयसागरजी महाराजजी
    ससंघ के मंगल सानिध्य में होगा 🛕सर्वोदय तीर्थ क्षेत्र अमरकण्टक में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव🛕 
    🎤प्रतिष्ठाचार्य :- वाणीभूषण प्रतिष्ठासम्राट बा. ब्र. विनय भैया जी बंडा
    🪷कार्यक्रम सूची🪷
    25 मार्च 2023 शनिवार
    ➡️ध्वजारोहण,घटयात्रा
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    26 मार्च 2023 रविवार
    ➡️ सकलिकरण,ईंद्र प्रतिष्ठा,गर्भ कल्याणक (पूर्व रुप)
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    27 मार्च 2023 सोमवार
    ➡️गर्भ कल्याणक (उत्तर रुप)
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    28 मार्च 2023 मंगलवार
    ➡️जन्म कल्याणक
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    29 मार्च 2023 बुधवार
    ➡️ तप कल्याणक
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    30 मार्च 2023 गुरुवार
    ➡️ ज्ञान कल्याणक (पूर्वार्ध)
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    31 मार्च 2023 शुक्रवार
    ➡️ ज्ञान कल्याणक (उत्तरार्ध)
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    1 अप्रैल 2023 शनिवार
    ➡️ मोक्ष कल्याणक, कलशारोहण
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  18. Vidyasagar.Guru
    प्रतियोगिता क्रमांक 2 लिंक 
     
    https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSdy9V536No2lIbU36VflF7tOe8mXUwfqRRnGfNbZo13SkNi6A/viewform?usp=sf_link
     
    उत्तर प्राप्त सूची एवं प्रतियोगिता अनुभव 
    https://docs.google.com/spreadsheets/d/1RK50g3d7mXiq7JnwFQ8G5yYsPiLcnqJYw9AEJpG9lwo/edit?usp=sharing
     
     

  19. Vidyasagar.Guru
    छुईखदान छत्तीसगड में 
    संत शिरोमणी गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के पावन सानिध्य मे छुईखदान मे मानस्तंभ मे श्री जी को विराजमान किया
     
     
     
     
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