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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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  1. Vidyasagar.Guru
    🆎 
    मुहली में कल वेदी प्रतिष्ठा का आयोजन
    ⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨
    _*पूज्य आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ* के पावन सानिध्य में कल 15 मार्च को प्रातःकालीन बेला में, *मुहली (मुँहाली)* में श्रीजी की वेदी प्रतिष्ठा का मंगल आयोजन किया जा रहा है। इससे समाज मे अत्यंत हर्ष व्याप्त है। *प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्र.श्री सुनील भैया जी* के कुशल निर्देशन में यह मांगलिक कार्यक्रम सम्पन्न होगा।_
    *कल की आहार चर्या- मोहाली में ही होगी।*

    *अनिल जैन बड़कुल, ए बी जैन न्यूज़ समूह*
  2. Vidyasagar.Guru
    स्थान  एवं पता - जीवाजी विश्व विद्यालय मार्ग एवं उच्च न्यायालय मार्ग  गोविन्द पुरी चौराहा
    निकटतम प़सिध्द स्थान - सचिन तेन्दूलकर मार्ग ग्वालियर
    पत्थर/साइज़ (माप) - मकराना व्हाईट KS2 4 - 10/4 - 10/21,1 फीट
    लागत - लगभग 10 लाख
    लोकार्पण दिनांक - महावीर जयन्ती 29/3/2018
    पुण्यार्जक - सकल जैन समाज ठाटीपुर ,भारतीय जैन मिलन,जैन मिलन ठाटीपुर,जैन मिलन महिला ठाटीपुर एवं डा०विनोद जैन परिवार
    अध्यक्ष - ज्ञानचन्द् जैन
    अध्यक्ष - जेनमिलन ठाटीपुर, अतिवीर ज्ञानचन्द् जैन
    अध्यक्ष - जैन मिलन महिला ठाटीपुर वीरागंना उर्मिला जैन पुण्याजृक
    उपाध्यक्ष - हरीश चन्द् जैन
    सचिव - प्रमोद जैन दिगम्बर जैन समाज ठाटीपुर गुलाब चन्द की बगीची,ठाटीपुर ग्वालियर
     
     

     

     
     
     
     










     
     

     
     
  3. Vidyasagar.Guru
    पूज्यगुरूदेव आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी
                           एवं
    संघस्थ मुनिश्री
     
    मुनिश्री सौम्यसागर जी 
    मुनिश्री दुर्लभसागर जी 
     मुनिश्री निश्चलसागर जी 
     मुनिश्री श्रमणसागर जी
     मुनिश्री संधानसागर जी
     
     
    के   तीर्थोंदय धाम, इंदौर   में हुए  केश लोच |
       
  4. Vidyasagar.Guru
    इंडिया नहीं भारत बाेलाे का संदेश देने निकली दुपहिया वाहन रैली, 150 मिनट में पूरी की 11 किमी की परिक्रमा
     
    इंडिया नहीं भारत बाेलाे का संदेश देने मंगलवार दाेपहर डेढ़ बजे भाग्याेदय तीर्थ परिसर में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का आशीर्वाद लेकर शहर में निकली दोपहिया वाहन रैली ने 11 किलोमीटर की परिक्रमा दाे घंटे तीस मिनट में पूरी की। मंगलवार का दिन युवाओं ने देश के नाम किया और करीब एक हजार दुपहिया वाहन पर सवार 1500 से अधिक युवाअाें अाैर वरिष्ठ जनाें ने “इंडिया नहीं भारत बोलो “ का संदेश शहर के लाेगाें काे दिया। रैली शहर के सभी सामाजिक संगठनों ने एक साथ मिल कर निकाली। भाग्योदय तीर्थ से हाथों में तिरंगा लेकर निकला ये कारवां भगवानगंज चाैराहे , गुजराती बाज़ार , कटरा नमकमंडी , परकोटा होते हुए सिविल लाईन पहुंचा फिर वहां से गोपालगंज तीन बत्ती , बड़ा बाजार , मोतीनगर चाैराहे के रास्ते से भाग्योदय तीर्थ पहुंचा। जहां अाचार्य श्री ने युवाओं से कहा कि अंग्रेज़ों की देन इंडिया नाम से देश को मुक्ति मिलना ही चाहिए। तभी हमारे देश की दशा व दिशा दोनों बदलेगी । रैली में अागे चल रहे डीजे की धुन पर युवा देश भक्ति के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। वीरेन्द्र मालथौन ने बताया कि भारत बोलो अभियान के अगले चरण में बुंदेलखंड से सैकड़ों चार पहिया वाहनों का क़ाफ़िला दिल्ली जाएगा। जहां इंडिया गेट पर प्रदर्शन किया जाएगा। 

    इस रैली में जैन पंचायत, विप्र समाज, रोटरी क्लब, संजोग समिति, विश्व हिंदू परिषद, वैश्य महासम्मेलन, सोशल ग्रुप, विचार संस्था, जैन मिलन, धर्म रक्षा संगठन, भारत रक्षा मंच सहित 22 संगठनों के सैकड़ों सदस्यों ने भागीदारी की। रैली में देवी प्रसाद दुबे, अनिल दुबे, प्रकाश बहेरिया, सुरेन्द्र मालथौन, रिषभ मड़ावरा, शिवशंकर मिश्रा, पप्पू तिवारी, सूरज सोनी, डॉ. आज़ाद जैन, स्वतंत्र खिमलासा, अनिल नैनधरा, निकेश गुप्ता, सचिन, कपिल मलैया, विक्रम सोनी, मोनू, राम शर्मा, अनिल तिवारी, सुरेन्द्र पटना, महेश बाबा, सुकुमाल जैन, देवेन्द्र जैना, अजित नायक, मनोज लालो, अखिलेश समैया, रिषभ गढाकोटा, सोनू जैन, शालू जैन, डॉ. राहुल जैन, प्रदीप, अजय बंडा, मनीष दलपतपुर, अजय, शिवशंकर मिश्रा, पप्यू तिवारी, एके शर्मा, राम शर्मा, आशीष गोस्वामी, अरुण दुबे, हनी दुबे, दीपक वाजपेयी, रामकृष्ण गर्ग, मृदुल पन्या सहित विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल थे। 

    क्यों चाहते हैं आचार्य श्री नाम में बदलाव : राशि बदल जाती है नाम से, इसलिए आचार्य विद्यासागर चाहते हैं कि भारत का नाम केवल भारत हो। क्योंकि इतिहास भारत का गौरवशाली है इंडिया का नहीं, दूध की नदियां भारत में बहती थीं इंडिया में नहीं। 

    इंडिया नहीं भारत बाेलाे का संदेश देने मंगलवार दाेपहर डेढ़ बजे भाग्याेदय तीर्थ परिसर में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का आशीर्वाद लेकर शहर में निकली दोपहिया वाहन रैली ने 11 किलोमीटर की परिक्रमा दाे घंटे तीस मिनट में पूरी की। मंगलवार का दिन युवाओं ने देश के नाम किया और करीब एक हजार दुपहिया वाहन पर सवार 1500 से अधिक युवाअाें अाैर वरिष्ठ जनाें ने “इंडिया नहीं भारत बोलो “ का संदेश शहर के लाेगाें काे दिया। रैली शहर के सभी सामाजिक संगठनों ने एक साथ मिल कर निकाली। भाग्योदय तीर्थ से हाथों में तिरंगा लेकर निकला ये कारवां भगवानगंज चाैराहे , गुजराती बाज़ार , कटरा नमकमंडी , परकोटा होते हुए सिविल लाईन पहुंचा फिर वहां से गोपालगंज तीन बत्ती , बड़ा बाजार , मोतीनगर चाैराहे के रास्ते से भाग्योदय तीर्थ पहुंचा। जहां अाचार्य श्री ने युवाओं से कहा कि अंग्रेज़ों की देन इंडिया नाम से देश को मुक्ति मिलना ही चाहिए। तभी हमारे देश की दशा व दिशा दोनों बदलेगी । रैली में अागे चल रहे डीजे की धुन पर युवा देश भक्ति के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। वीरेन्द्र मालथौन ने बताया कि भारत बोलो अभियान के अगले चरण में बुंदेलखंड से सैकड़ों चार पहिया वाहनों का क़ाफ़िला दिल्ली जाएगा। जहां इंडिया गेट पर प्रदर्शन किया जाएगा। 

    इस रैली में जैन पंचायत, विप्र समाज, रोटरी क्लब, संजोग समिति, विश्व हिंदू परिषद, वैश्य महासम्मेलन, सोशल ग्रुप, विचार संस्था, जैन मिलन, धर्म रक्षा संगठन, भारत रक्षा मंच सहित 22 संगठनों के सैकड़ों सदस्यों ने भागीदारी की। रैली में देवी प्रसाद दुबे, अनिल दुबे, प्रकाश बहेरिया, सुरेन्द्र मालथौन, रिषभ मड़ावरा, शिवशंकर मिश्रा, पप्पू तिवारी, सूरज सोनी, डॉ. आज़ाद जैन, स्वतंत्र खिमलासा, अनिल नैनधरा, निकेश गुप्ता, सचिन, कपिल मलैया, विक्रम सोनी, मोनू, राम शर्मा, अनिल तिवारी, सुरेन्द्र पटना, महेश बाबा, सुकुमाल जैन, देवेन्द्र जैना, अजित नायक, मनोज लालो, अखिलेश समैया, रिषभ गढाकोटा, सोनू जैन, शालू जैन, डॉ. राहुल जैन, प्रदीप, अजय बंडा, मनीष दलपतपुर, अजय, शिवशंकर मिश्रा, पप्यू तिवारी, एके शर्मा, राम शर्मा, आशीष गोस्वामी, अरुण दुबे, हनी दुबे, दीपक वाजपेयी, रामकृष्ण गर्ग, मृदुल पन्या सहित विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल थे। 

    क्यों चाहते हैं आचार्य श्री नाम में बदलाव : राशि बदल जाती है नाम से, इसलिए आचार्य विद्यासागर चाहते हैं कि भारत का नाम केवल भारत हो। क्योंकि इतिहास भारत का गौरवशाली है इंडिया का नहीं, दूध की नदियां भारत में बहती थीं इंडिया में नहीं।
     

     
    भाग्योदय में विद्यासागर महाराज ने कहा मेथी में किसमिस डालोगे तो वह दवाई का काम करेगी
    सागर. संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में मंगलवार को धर्मसभा संबोधित करते हुए कहा कभी- कभी अवसर के रूप में मेथी का उपयोग खाने में करना चाहिए, मेथी खाओगे और उसमें किसमिस और डाल दोगे तो उससे उल्टी नहीं होगी। और वह दवाई का काम करेगी और इससे स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा होगा। आचार्य श्री ने कहा भिन्न-भिन्न माध्यम से हमारा परिणाम शुद्ध होता है। आप के परिणामों को बांधने के लिए पूजन,अभिषेक, जाप, विधान आदि हो जाते हैं पर यह सब उल्टी को रोकने का काम करते हैं। उन्होंने कहा मुनि महाराज उपदेश देकर आप को सिखाते हैं। उपाय आपको ढूंढना होगा, तब कार्य की प्राप्ति होगी। आचार्य श्री का पूजन पाएगा स्थित आदिनाथ मंदिर के महिला मंडल, काकागंज जैन समाज और महिला मंडल ने की। पाद प्रक्षालन सोमचंद जैन राजकुमार जैन और विधान चौधरी मानक चौक परिवार ने किया। आचार्य श्री की आहार चर्या ब्रह्मचारी दीपक भैया,ब्रह्मचारी अलका दीदी, कुसुम जैन, नीरज जैन,अनामिका के चौके में हुई। इस अवसर पर दीपक और उनके परिवार ने सहस्त्रकूट जिनालय के लिए दो प्रतिमाएं विराजमान कराने की घोषणा की। इसके अलावा सहस्त्रकूट जिनालय के लिए एक दर्जन से अधिक लोगों ने प्रतिमाएं विराजमान कराने की घोषणा की। 

    सागर. संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ में मंगलवार को धर्मसभा संबोधित करते हुए कहा कभी- कभी अवसर के रूप में मेथी का उपयोग खाने में करना चाहिए, मेथी खाओगे और उसमें किसमिस और डाल दोगे तो उससे उल्टी नहीं होगी। और वह दवाई का काम करेगी और इससे स्वास्थ्य भी बहुत अच्छा होगा। आचार्य श्री ने कहा भिन्न-भिन्न माध्यम से हमारा परिणाम शुद्ध होता है। आप के परिणामों को बांधने के लिए पूजन,अभिषेक, जाप, विधान आदि हो जाते हैं पर यह सब उल्टी को रोकने का काम करते हैं। उन्होंने कहा मुनि महाराज उपदेश देकर आप को सिखाते हैं। उपाय आपको ढूंढना होगा, तब कार्य की प्राप्ति होगी। आचार्य श्री का पूजन पाएगा स्थित आदिनाथ मंदिर के महिला मंडल, काकागंज जैन समाज और महिला मंडल ने की। पाद प्रक्षालन सोमचंद जैन राजकुमार जैन और विधान चौधरी मानक चौक परिवार ने किया। आचार्य श्री की आहार चर्या ब्रह्मचारी दीपक भैया,ब्रह्मचारी अलका दीदी, कुसुम जैन, नीरज जैन,अनामिका के चौके में हुई। इस अवसर पर दीपक और उनके परिवार ने सहस्त्रकूट जिनालय के लिए दो प्रतिमाएं विराजमान कराने की घोषणा की। इसके अलावा सहस्त्रकूट जिनालय के लिए एक दर्जन से अधिक लोगों ने प्रतिमाएं विराजमान कराने की घोषणा की।
  5. Vidyasagar.Guru

    युगद्रष्टा
    इसके बाद संसार का एक भव कम हुआ और प्राप्त हुए नवम भव में वह जैसा चाहता था वैसा ही बना, बल्कि कहीं उससे भी ज्यादा। बदला-सा लगता है पर बदला हुआ कुछ नहीं होता, पर्याय बदलती है, तरंग की तरह उत्पन्न हुई और विलीन हो गयी, फर्क इतना है कि कभी उस तरंग को विलीन होने में दो-चार सेकेण्ड लगते हैं तो कभी दो-चार वर्ष या कुछ अधिक पर, विलीनता अनिवार्य है। वही जमीं है, वही जम्बूद्वीप, वही पश्चिम दिशा, वही मेरू, वही गन्धिल देश जिसमें पूर्व में रहता था पर, अब वह विजयार्ध पर्वत पर पहुँचा जो उस देश के मध्य में था, वह पृथ्वी से पच्चीस योजन ऊँचा है और ऊँचे-ऊँचे शिखरों से ऐसा शोभित होता है, मानो स्वर्ग को ही प्राप्त करना चाहता हो। उस पर्वत के ऊपर दो श्रेणियाँ हैं, जो उत्तर और दक्षिण श्रेणी के नाम से प्रसिद्ध हैं । बस उन्हीं श्रेणियों में विद्याधरों के निवास बने हैं। चूँकि वह पर्वत विद्याधरों से आराध्य हैं, मुनिगण उस पर विचरण करते हैं, इसीलिए पूज्य हैं। उस पर्वत के शिखरों पर किन्नर और नागकुमार जाति के देव रहते हैं, उन शिखरों पर अनेक सिद्धायतन अर्थात् जिनमन्दिर बने हैं। झगझगाते सफेद चाँदी के समान शिखरों का दर्शन मन को विशुद्ध करने वाला है। उस पर्वत की उत्तर श्रेणी में अलका नाम की उत्तम नगरी है। उस नगरी में चारों दिशाओं में चार ऊँचे-ऊँचे दरवाजों सहित उन्नत प्राकार हैं, चारों ओर एक परिखा है, बड़े-बड़े पक्के मकान हैं, उन पर शिखर, उस पर पताकायें, हर घर में वापिकायें उनमें कलहंस पक्षियों का कलरव, फल-फूल सहित उद्यान, चारों ओर सम्पन्नता, शील सहित स्त्रियाँ और पौरुष सहित पुरुष, धान्य के खेत, खुशहाली का वातावरण है। ऐसी अलकापुरी में वह जयवर्मा, राजा अतिबल और रानी मनोहरा के महाबल नाम का पुत्र हुआ। पुत्र पुण्यवान था, जिस कारण से चारों तरफ सौहार्द का माहौल बना रहता था। उस महाबल का शरीर सुन्दरता में बस एक ही था और उसके गुण अनेक थे, जैसे कि सूर्य एक शरीर वाला होता है पर उसकी सहस्र किरणें चारों तरफ बिखर कर लोगों को आनन्दित करती हैं, ठीक उसी तरह वह अपने गुणों से सबके दिल में बसा था। इन अनेक योग्यताओं को देखकर अतिबल ने अपना राज्य पद महाबल को दे तपश्चर्या के लिए गमन किया। विद्याधरों का जीवन तो भूमिगोचरियों जैसा ही होता है, पर विद्याएँ सिद्ध करना और उनकी प्राप्ति से जीवनयापन करने की मुख्यता से ही वे विद्याधर कहलाते हैं। वहाँ भी वंश, कुल, परम्परा और वर्ण व्यवस्था चलती है। राजा अतिबल ने दीक्षा के लिए हजारों राजाओं के साथ वन में गमन किया उनके साथ अनेक विद्याधरों ने वन में जाकर दीक्षा ली। पवित्र जिनलिङ्ग को धारण करके वे कर्म शत्रु को जीतते थे, जीतने का भाव नहीं गया था, गुप्ति, समिति की सेना से घिरे रहते, निर्दोष तपश्चरण करते क्योंकि उनको मालूम था कि बिना खून-पसीना एक किए जब सामान्य-सा राजा भी वश में नहीं आता तो फिर ये तो अनादि से मोह मल्ल के द्वारा पाले हुए अनेक शत्रु हैं, इनको जीतने में एक क्षण भी प्रमाद करना पूर्व की सारी जीत को हार में बदलना है इसलिए वे अतिबल-श्रमण रात्रि में शयन किए बिना धर्मध्यान, शुक्लध्यान रूपी मंत्रियों को लिए गुप्त मंत्रणा करते और सुबह से युद्ध छेड़ देते।
     
    अतिबल को यह बल वंश परम्परा से मिला था, कर्म को अच्छी तरह करो और धर्म को भी, यह उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखा था। अतिबल के पिता शतबल थे, जो प्रजा को पुत्र की तरह प्रेम करते थे। बहुत भाग्यशाली शतबल ने चिरकाल तक राज्य-भोग भोगा और बाद में अतिबल को राज्य देकर स्वयं भोगों से निष्पृह हो गए। उन्होंने सम्यग्दर्शन से पवित्र होकर श्रावक के व्रत ग्रहण किए, विशुद्ध परिणामों से देवायु का बंध किया और अनेक योग्य तपश्चरण करते हुए समाधिमरण पूर्वक शरीर छोड़ा और अब माहेन्द्र स्वर्ग में बड़ी-बड़ी ऋद्धियों के धारक देव हुए। अतिबल राजा के दादा का नाम सहस्रबल था। अनेक विद्याधर राजाओं से नमस्कृत उनके चरण कमल जब राज्य भार छोड़कर वन की ओर चले तो उत्कृष्ट जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर वे चरण सिद्धलोक में विराजमान हो, हमेशा के लिए भव्य जीवों के ध्यान के योग्य हो गए। ऐसी कुल परम्परा में ही आज महाबल राजा हुए हैं। यथानाम तथाकाम की उक्ति सार्थक करते हुए शत्रुओं के बल का संहार करना, अन्याय को मिटाना और पूर्वजों द्वारा प्राप्त हुए इस राज्य को निष्कण्टक रखने की शपथ ली थी, अपने दैव और पुरुषार्थ से यह सब उन्होंने कर दिखाया। आश्चर्य है कि इस प्रचण्ड वीरता के साथ भी क्षमा, कोमलता, निर्लोभिता,परोपकार भाव, निर्मदता आदि भी उनके अन्तस् में उतने ही समृद्ध हो रहे थे। प्रजा में कोई भय नहीं, कोई आगामी उत्पात की आशंका नहीं, अन्याय शब्द तो सुनने में ही नहीं आता, प्रत्येक व्यक्ति तीन पुरुषार्थों का बराबर पालन करता। यौवन के शिखर पर पहुँचते-पहुँचते वह लोकप्रियता के शिखर पर अनायास चढ़ गया था। प्रत्येक अंग से टपकता सौन्दर्य ऐसा था मानो कामदेव ने अपना निवास छोड़कर उनके शरीर को ही अपना निवास स्थान बना लिया हो। नखों की किरणों से दैदीप्यमान पद कमलों में अंगुलिदल की शोभा-सी कठोर पिंडरियाँ, केले के स्तम्भ-सी जंघायें, करधनी से घिरा नितम्ब, गहरी नाभि, वृक्षशाखा सी दो भुजायें, कसा हुआ वक्षःस्थल, केयूर से घिसे बाजू स्कन्ध, कमल-सा मुख, ललित कपोल, दो नेत्रों के बीच पर्वत-सी ऊँची नाक, कुण्डलों से शोभित कर्ण, लम्बी टेढ़ी भौएँ और धुंघराले काले कुन्तल, वन में भ्रमर को भी तिरस्कृत कर रहे थे। अनेक प्रकार उत्सवों और महोत्सवों में रमण करता हुआ, अपने स्त्री, पुत्रों के साथ वह अतिशय सुखी था। अनेक उत्सवों में गृहोचित एक योग्य उत्सव आता है, जिसे आचार्यों ने वर्ष-वृद्धि दिवस का नाम दिया, अर्थात् वह विशेष दिन जब किसी व्यक्ति का जन्म होता है, जिसे आज-कल वर्षगाँठ, वर्थडे आदि कहा जाता है। अरे! उन विजयार्ध की श्रेणी में भी यह उत्सव मनाये जाते हैं, कोई आश्चर्य नहीं, जैसी यहाँ कर्मभूमि वैसी ही वहाँ, अन्तर सिर्फ काल परिवर्तन का है। महोत्सवों को मनाना गृहोचित कर्म है, इसमें सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि का विवाद करना भी अनुचित है। बाहर से सम्यग्दर्शन के लक्षण, जो अरिहन्त, गुरु, शास्त्र की श्रद्धा है, सो तो कुलक्रम से चले आ रहे हैं और वह षट्कर्मों का पालन करता हुआ, अनेक गीतवादित्र, रंगावली, गृह सजावट से युक्त अन्दर राज्य के सभामण्डप में उचित बधाइयों को प्राप्त करता हुआ नृत्य रस का आनन्द लेता हुआ, पुण्य के सागर में डूबा हुआ है। मंत्रिमण्डल भी साथ में राजा की तरह हर्षित है। अपने स्वामिन् की प्रसन्नता से सभी मंत्रीगण भी प्रसन्न थे, परन्तु प्रसन्नता का सही कारण अपने प्रभु को बताना चाहिए, यह समय है ताकि हमारे प्रभु का आगामी भविष्य भी उज्ज्वल हो, इसी अभिप्राय से सम्यग्दर्शन से विशुद्ध हृदय वाले स्वयंबुद्ध नाम के मंत्री ने कहास्वामिन् ! विद्याधरों की यह उत्कृष्ट लक्ष्मी आपके पुराकृत पुण्य का फल है। पुण्य धर्म से होता है और धर्म पञ्चपापों का त्याग, इन्द्रिय संयम तथा समीचीन ज्ञान से होता है, इसलिए हे महाभाग! यदि आप अपनी चंचल लक्ष्मी को स्थिर रखना चाहते हैं और इस पुण्य से अरिहंत-सी पुण्य विभूतियाँ पाना चाहते हैं तो अर्हंत प्रणीत धर्म में अपना उपयोग लगायें।

    इतना सुनते ही चार्वाक मत को मानने वाला महामति मंत्र अपने अभिप्राय को पुष्ट करने लगा और कहा राजन्! यह मंत्री तो अधर्म के नशे में चूर है, कहाँ पुण्य कहाँ पाप? कहाँ स्वर्ग.कहाँ नरक? प्रत्यक्ष दिखने वाले पञ्चभूतों से बना यह शरीर है जैसे महुआ, गुड़, जल आदि पदार्थों को मिलाने से मादक शक्ति उत्पन्न हो जाती है, उसी प्रकार शरीर बनने पर उसमें चेतना भी उत्पन्न हो जाती है। शरीर की शक्ति क्षीण होती है तो आत्मा भी शक्ति रहित हो जाती है। यों तो हम देखते हैं कि प्रत्येक पदार्थ की कार्य करने की एक निश्चित सीमा होती है, उसके बाद वह पदार्थ काल के गाल में समा जाता है, इसलिए आप प्रसन्न रहिए। खाना, पीना, मौज उड़ाना कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगता इसलिए धार्मिकता का नकाब ओढ़कर लोग अपने अहं की पुष्टि करते हैं, इसलिए जो मिला है, उसका ही जी भर भोग करो। प्राप्त हुए भोगों से मिलने वाले सुख को छोड़कर किसी और अलौकिक सुख की कल्पना तो ऐसी है कि “आधी छोड़ पूरी को जावे, पूरी मिले न आधी पावें" तभी तीसरा मंत्री संभिन्नमति कुछ मन्द हास्य लिए हुए जीव की परिकल्पना को थोथा कहने लगा और विज्ञानवाद की पुष्टि करने लगा। कहते हैं-"मुण्डा-मुण्डा मतिर्भिन्ना' और चौथा शतमति मंत्री भी शून्यवाद के विचार रखने लगा। विपरीत अभिप्राय रखने वाले तीनों मंत्री अपने-अपने मत की पुष्टि कर रहे हों, ऐसा ही नहीं, किन्तु स्वयंबुद्ध मंत्री के कथन को भी झूठा करने का प्रयास बरकरार था। कहीं ऐसा न हो राजा इसकी बात मान ले और हम लोग मुँह की खा-के रह जायें। वस्तुतः यह सदियों से होता आया है, अपनी प्रज्ञा से स्वयंबुद्ध मंत्री ने तीनों मतों का जोरदार खण्डन किया और अपनी वाग्मिता से सभासदों का मन प्रसन्न कर जिनेन्द्र प्रणीत धर्म का प्रतिपादन किया। राजा ने बुद्धिमान स्वयंबुद्ध के वचनों को स्वीकार किया और उचित  सत्कार कर सम्मानित किया। सत्य है जब अहं को ठेस पहुँचती है तो क्रोध आता है, जिससे मात्सर्य बढ़ता है और वही नरक पतन का कारण हो जाता है। बात मिथ्यादृष्टि को सम्यक् बनाने की नहीं, बात तो अहं को गलाने की है, देखा जाय तो राजा को अभी सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं है, परन्तु राजा होने पर भी मार्दवता से ओतप्रोत है। सत्य को स्वीकार करने का बल है। अन्य मंत्रियों का वह अहं उन्हें नरक ले गया। अपने पालक के कल्याण की चिन्ता रखने वाला स्वयंबुद्ध मंत्री जब मेरुपर्वत पर अकृत्रिम चैत्यालयों की वन्दना में तत्पर था, तभी उसने आकाशगामी दो मुनिराज देखे, जिनके शुभ नाम थे, आदित्यगति और अरिंजय । मंत्री उनके सम्मुख गया, प्रणाम किया, वन्दना, पूजा की और कहा अवधिज्ञान रूपी नेत्र से सुशोभित तप प्राप्त महाऋद्धियों के स्वामी आप हमें यह बतायें कि विद्याधरों का अधिपति राजा महाबल भव्य है या अभव्य? इसे कहते हैं दूरदर्शिता, यह नहीं पूछा कि राजा सम्यग्दृष्टि है या मिथ्यादृष्टि? ठीक ही तो है, यह दृष्टि तो कई बार समीचीन हो जाती है, विपरीत हो जाती हैं, पर भव्यता से उसकी मुक्ति की नियामकता प्राप्त होती है। हमें अपने प्रभु को धर्मपथ पर बढ़ाना है, स्वयं को सम्यग्दृष्टि कहकर अपने अहं को नहीं बढ़ाना यही तो सम्यग्दृष्टि की धर्मरुचि है।ज्येष्ठ मुनिराज ने कहा- हे भव्य! तुम्हारा स्वामी भव्य है। उसे तुम्हारे वचनों पर विश्वास है, आगामी दशवे भव में वह तीर्थङ्कर होगा। अभी तुम्हारे राजा ने दो स्वप्न देखे हैं, उनमें से एक का फल है आगामी भव में प्राप्त होने वाली विभूति और दूसरे का फल है आयु की अल्पता। अब राजा की आयु मात्र एक माह शेष रह गयी है। इसलिए हे भद्र! इसके कल्याण के लिए शीघ्र यत्न करो प्रमादी मत बनो।
    भला भाग्य होने पर जब उचित पुरुषार्थ किया जाता है तो कार्य की सिद्धि अवश्य होती है, काललब्धि के आश्रित रहकर मूढ मत बनो।
     
    इतना कहकर दोनों मुनिराज क्षण भर में गगन में अन्तर्हित हो गए। मुनिराज के वचनों से मंत्री का मन बहुत प्रसन्न हुआ और व्याकुल भी। व्याकुलता को लिए हुए वह शीघ्र की महाबल के पास पहुँचा। राजा स्वप्न के फल जानने की प्रतीक्षा में था, मंत्री ने स्वप्न फल सहित ऋषिवर के वचन राजा को सुना दिए। आश्चर्य । अपनी तीर्थङ्करता को निश्चित जानकर भी महाबल ने   अपना धैर्य नहीं खोया, विवेक नहीं लुटाया और सम्यक् पुरुषार्थ करने को उद्यत हुआ।
    अपना वैभव, राज्य भार सब पुत्र को सौंपकर समस्त लोगों से पूछकर सिद्धकूट चैत्यालय पहुँचा। वहाँ सिद्ध प्रतिमाओं की पूजा कर निर्भय हो संन्यास धारण किया। बुद्धिमान राजा ने जीवन पर्यन्त के लिए गुरु की साक्षी पूर्वक आहार, जल तथा शरीर से ममत्व छोड़ दिया। इसी व्रत के साथ वह चार आराधनाओं की परम विशुद्धि को धारण कर रहा था। प्रायोपगमन संन्यास धारण करता हुआ बाईस दिन तक सल्लेखना धारण की। समस्त परिग्रह से रहित होते हुए वह मुनि के समान तपस्वी जान पड़ता था। मुनि के समान इसलिए कहा क्योंकि मुनि के योग्य केशलोंच आदि कर दुर्धर चर्या का पालन नहीं किया।
     
    अन्त समय में मात्र नग्न होकर अपने आपको मुनि मानना और मनवाने का हठाग्रह आर्ष विरुद्ध आचरण है। मंत्री ने अपने स्वामी की अंत समय तक सेवा कर अपने मंत्रीपद के कार्य को बखूबी निभाया। तदनन्तर वह महाबल भव का मूल कारण यह शरीर उसमें मोह रहित होता हुआ प्राण त्याग करके ऐशान स्वर्ग को प्राप्त हुआ। वहाँ वह श्रीप्रभ नाम के अतिशय मनोहर विमान में उपपाद शय्या पर बड़ी ऋद्धि का धारक ललिताङ्ग देव हुआ। महाबल ने बहुत ही उत्कृष्ट तप किया पर मन में भोगों की आकांक्षा का संस्कार पूर्णतः नहीं गया। जब तक यह भोगों की वासना बनी रहती है, तब तक निर्मल सम्यग्दर्शन का दर्शन कहाँ ? बाहर से कोई कुछ भी कहे, कितना ही अपने को सम्यग्दृष्टि माने पर मन जानता है कि भोगों की चाह अभी कितनी विद्यमान है, पूर्णतः संसार में मेरा कण मात्र भी नहीं, इस त्रिजगत् में मैं शून्य हूँ।
    कर्तृत्व, भोक्तृत्व, स्वामित्व मेरा अहंकार है, यह सब भावना भाते हुए भी जब मन भोगों के आडम्बर में भी दिगम्बर रहे तो तन का दिगम्बर होना सार्थक समझो अन्यथा देवियों का भोग ही हाथ लगता है, मुक्ति का नहीं। यह अनादि की इच्छाएँ एक ही भव में दफन कहाँ हो सकती हैं? गलती बहुत कुछ सुधरी, जयवर्मा ने मुनि बनकर जो भोगों की इच्छा की, वैसी महाबल ने व्रतों के बिना मात्र सल्लेखना धारण करके नहीं की, वह तो मन के किसी कोने में छिपा संस्कार था, जिसने एक भव और बढ़ा दिया वरना अणुव्रतों को धारण कर यदि गृहस्थधर्म का अनुपालन कर सल्लेखना मरण करता तो निश्चित ही आठवें भव में मुक्ति का पात्र बनता। कोई बात नहीं भव्य है मुक्ति तो मिलेगी, पुरुषार्थ जो उन्नति की राह पर हो रहा है, किन्तु आठवें भव में न मिलकर नवमें भव में मिलेगी। भोगों को न छोड़ना पड़े इसलिए, जो लोग मात्र ज्ञान मार्ग का सहारा लेकर अपने को अध्यात्म के शिखर पर बैठा लेते हैं, वे अन्त समय में धड़ाम से गिरते हैं और भवभव के लिए मनुष्यत्व की योग्यता से भी हाथ धो बैठते हैं। उस शुष्क अध्यात्म की अपेक्षा यह सक्रिय आचरण अच्छा है, जो कम से कम अपने पुरुषार्थ से अपने संसार की सीमा तो बना लेता है।
     
  6. Vidyasagar.Guru
    ललितपुर पात्र चयन
     
    सौधर्म इंद्र- श्रेष्ठि श्री विनोद कामरा परिवार
    कुवेर- श्रेष्ठि श्री ज्ञान चंद जी जैन इमलिया, अध्यक्ष गौशाला।
    महायज्ञनायक - श्रेष्ठि शिखरचंद सराफ परिवार
    राजा श्रेयांस का पात्र बनने का सौभाग्य  श्री वीर चन्द्र जी सर्र्राफ जी के परिवार को प्राप्त हुआ
     
  7. Vidyasagar.Guru
    आज दोपहर 3: 15  बजे Live तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय 1 प्रतियोगिता Kahoot पर होगी
    ज़ूम लिंक 
     
    Join at www.kahoot.it
    or with the Kahoot! app
    Game PIN:
    3311637
     
    Topic: तत्वर्थ सूत्र अध्याय 1 प्रतियोगिता
    Time: Sep 10, 2021 03:15 PM India
    Join Zoom Meeting
    https://zoom.us/j/3317710589?pwd=U2pZZHhXN3RKSWwzaE54akFGVzIvQT09
    Meeting ID: 331 771 0589
    Passcode: 108
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    Kahoot PIN 3 15 पर 
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    चैनल पर लाइव 
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    दो मोबाईल साथ रखें (दो मोबाईल ना होने पर :split screen कर भी भाग ले सकते हैं 
     
    अध्याय 1 स्वाध्याय 
    shttps://vidyasagar.guru/paathshala/tattvarthasutra/adhyay-1/
     
  8. Vidyasagar.Guru
    केवल ज्यादा पैसों की बोली लगाने से कुछ नहीं होता, तनाव को कम करने के लिए दान देते हैं। जबकि तन को दूर करने के लिए दान दिया जाता है। यह उद्गार राष्ट्रीय जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने देवरी के दिगंबर जैन मंदिर परिसर में व्यक्त किए। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज सुबह गोपालपुरा से देवरी नगर पहुंचे जहां देवरी जैन समाज द्वारा धूमधाम से अगवानी की गई। इसके बाद आहार चर्या का सौभाग्य नन्हे भाई जैन परिवार को मिला।
     
    प्रवचन के दौरान आचार्यश्री ने कहा कि आप लोग केवल देहरी पर रह रहे हैं इसलिए भीतर की बात समझ में नहीं आती है, देहरी घर के बाहर रहती है। जैसे बीना जी अतिशय क्षेत्र की देहरी देवरी है और अभी में देहरी पर आया हूं। उन्होंने कहा जब भीतर पहुंचो तभी भगवान से परिचय होता है। देहरी के बिना मंदिर में प्रवेश नहीं होता। आप लोग शांतिनाथ भगवान की ओर जा रहे हैं, इसलिए देहरी के बिना नहीं पहुंचा जा सकता है। आप लोगों को अपना कल्याण करना है तो भीतर जाना होगा। केवल जाने के लिए ज्यादा पैसाें की बोली लगाने से कुछ नहीं होता है। तनाव को टेंशन को कम करने के लिए लोग दान देते हैं तन को दूर करने के लिए दान दिया जाता है।

    राष्ट्रीय जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर महाराज देवरी नगर से दोपहर 3 बजे ससंघ बिहार करते हुए शाम करीब 5 बजे अतिशय क्षेत्र बीना बारह पहुंचे। जहां उन्होंने गजरथ स्थल का मुआयना किया एवं बीना बारह में चल रहे मंदिरों का निर्माण कार्य और प्रतिमाओं का अवलोकन किया। शोभायात्रा में अखिलेश जैन, तेजी राजपूत, मयंक चौरसिया नपाध्यक्ष, प्रमोद जैन, ऋषभ जैन, रजनीश जैन, गौरव पांडे, विनीत, अभय, विनोद, कमल, मुकेश जैन ढाना, आकाश, अप्पू चौधरी, नीरज जैन, कल्लू बड़कुल आदि शामिल रहे। 
  9. Vidyasagar.Guru
    आज जो होगा, अद्भुत होगा

    पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज, समस्त मुनिराज एवम आर्यिकाओं के मंगल सानिध्य में आज, बड़ी संख्या में बहनों को आत्मकल्याण के पथ पर चलने हेतु दीक्षित/संस्कारित करेंगे।  बीती रात इन बहनों ने केशलोंच भी कर लिए हैं।
    यद्यपि इस सम्बन्ध में कोई सार्वजनिक घोषणा नही की गई है । सम्भावना है कि इन बहनों को 10 प्रतिमा के संस्कार (गृह त्याग) प्रदान किये जावेंगे। संघ में सम्भवतः यह प्रथम सुअवसर देखने को मिलेगा।

     
    जो भी होगा - आपको वेबसाईट पर इसी लिंक पर अपडेट किया जाएगा 

  10. Vidyasagar.Guru
    अहंकार पतन और समर्पण उन्नति की ओर ले जाता है: आचार्यश्री
     
    अहंकार ही दुख का बड़ा कारण है, जीवन की मूलभूत समस्या अहंकार है। मैं भी कुछ हूं यह जो सोच है यही अहंकार है। अहंकार का जोर इतना जबरदस्त रहता है कि वह धर्म को भी अधर्म बना देता है। पुण्य को पाप में बदल देता है। अहंकार को सत्य समझाना अत्यंत कठिन कार्य है। यह बात नवीन जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने कही। 

    उन्होंने कहा कि अहंकार अंधा है। अहंकारियों की स्थिति अंधों जैसी होती है। उनके पास आंखें होती हैं लेकिन फिर भी उन्हें दिखाई नहीं देता। रावण की पूरी लंका तबाह हो रही थी लेकिन रावण को लंका व अपने खानदान का तबाह होना कहां दिख रहा था। कंस की आंखें थीं लेकिन वह श्रीकृष्ण की शक्ति व सामर्थ्य को कहां देख सका। दुर्योधन आंखों वाला होकर भी क्या अहंकारी नहीं था। अहंकार विवेक का नाश कर देता है। अहंकार से ही क्रोध भी आ जाता है। अहंकार बड़ा खतरनाक है। अहंकार मीठा जहर है। अहंकार ठग है जो मानव को हर पल ठग रहा है। मानव में जो ’मैं’ और ’मेरापन’ है यही अहंकार की जड़ है। मैं ही परिवार का संरक्षक हूं। मैं ही समाज का कर्णधार हूं। मैं ही प|ी और बच्चों का भरण-पोषण कर रहा हूं। यही अहंकार मानव को दुखी बनाए हुए हैं। ऐसा झूठा अहंकार ही मानव को दुखी बना रहा है। उन्होंने कहा कि आज हमारे दांपत्य जीवन में, पारिवारिक व सामाजिक जीवन में जो संघर्ष, मनमुटाव, मनोमालिन्य दिख रहा है, उसका मूल कारण अहंकार है। 

    यदि प|ी पति के प्रति और पति-पत्नी के प्रति, बाप-बेटा के प्रति और बेटा-बाप के प्रति, शिष्य-गुरू के प्रति और गुरू-शिष्य के प्रति समर्पण व सहयोग का रुख अपनाएं तो जीवन में व्याप्त सारी विसंगतियां समाप्त हो जाएं। अहंकार का समाधान विनम्रता है, मृदुता है। जो सुख विनम्रता व मृदुता में है वह अकड़ने में नहीं है। जो मृदु होगा उसे मौत कभी नहीं मिटाएगी। वह देर-सबेर मरेगा तो वह मरकर भी अमर हो जाएगा। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, क्राइस्ट ये ऐसे महापुरुष हुए हैं जो हमेशा विनम्रता में जिए हैं और अहंकार की गंध इनके किसी व्यवहार में कभी नहीं आई। मान करें तो विनय नहीं और विनय बिना विद्या भी नहीं आती है। 

    अहंकार पतन की ओर ले जाता है और समर्पण उन्नति की ओर। अहंकार मृत्यु की ओर एवं समर्पण परम सुख की ओर। कुतर्क नर्क है, समर्पण स्वर्ग है। आचार्यश्री के प्रवचन के पूर्व बांदरी में आयोजित पंचकल्याणक महामहोत्सव के प्रमुख पात्रों ने समस्त आचार्य संघ को श्रीफल भेंट कर आशीर्वाद लिया। आचार्यश्री की आहारचर्या सुभाषचंद्र संदीप रोकड़या के यहां संपन्न हुई । 
  11. Vidyasagar.Guru
    पूज्य मुनि श्री 108 संधानसागर जी महाराज के गृहस्थ जीवन के पिताश्री श्रीमान अशोक कुमार जी काला जयपुर ,राजस्थान निवासी की आज आचर्य श्री के द्वारा णमोकार मंत्र सुनते हुए 6:57 प्रातः काल में उत्कृष्ट समाधी हुई | वे पिछले 9 दिन में 7 दिन जल उपवास एवं 2 दिन उपवास पर थे | आरम्भ-परिग्रह एवं घर का त्याग कर वे पिछले 2 माह से यहीं ज्ञानसागर व्रती आश्रम में साधनारत थे | नवमी के दिन 9 दिन के उपवास त्याग पूर्वक 72 वर्ष की आयु में उन्होंने नश्वर देह का इस सिद्धोदय क्षेत्र पर सम्पूर्ण संघ की उपस्तिथि में त्याग दिया |      


     
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    आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री सन्धान सागर जी महाराज के ग्रहस्थ अवस्था के पिताजी की समाधि आचार्य श्री ससंघ के सानिध्य में आज सुबह 6 बजे नेमावर तीर्थ क्षेत्र में हो गयी है।🙏🙏🙏
     
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    19 Nov 2019
    🙏🙏🙏गुरु चरणों में चल रही है संलेखना🙏🙏🙏
    संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री 108 विद्यासागर जी महामुनिराज के परम शिष्य मुनि श्री 108 संधान सागर जी मगराज जी के ग्रस्थ अवस्था के पिताजी श्री अशोक जी काला सप्तम प्रतिमाधारी जयपुर (राजस्थान) निवासी नेमावर आश्रम प्रवासी श्री अशोक जी काला की संलेखना श्री सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर मैं गुरु चरणों मे चल रही है। पिछले 8 दिनसे बे मात्र जल ले रहे है आज अष्टमी का उपवास है👏👏👏👏
     





  12. Vidyasagar.Guru
    स्वराज सम्मान समारोह के तहत महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में जैन समाज के शीर्षस्थ संत आचार्य विद्यासागर के सानिध्य में “जरा याद करो कुर्बानी इस कार्यक्रम में देश के अमर शहीदों के वंशजों का श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र समिति खजुराह्य द्वारा सम्मान किया गया। इस अवसर पर सभी अमर शहीदों के साथ ब्रिटिश हुकूमत द्वारा की गई बर्बरता, उनकी फांसी आदि को लेकर डाक्यमेटी फिल्म भी दिखाई गई। जैसे ही डाक्यूमेंट्री फिल्म में अंग्रेजों की बर्बरता और देश के वीर सपूतों को फांसी देते दिखाया गया तो उनके वंशजों की आंखों से आंसू बहने लगे। कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो गई। अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर के वंशज शाह मुहम्मद खान ने कहा कि बादशाह बहादुर शाह की अस्थियां रंगून में रखी हैं। मेरा आचार्य श्री से आग्रह है कि वह देश की सरकार से कहें कि अस्थियां वापस भारत लाई जाएं।
     
    राष्ट्र हित चिंतक परम पूज्य 108 आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महामुनि राज के अवचेतन में चलने वाले विचार चक्र को पकड़ने का प्रयास हमने इससे पहले सर्वोदय सम्मान 2018 के माध्यम से किया था, जिसमें देश के अलग अलग हिस्सों में नेपथ्य में काम करने वाले नायकों का सम्मान किया गया था, उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए खजुराहो में स्वराज सम्मान वर्ष 2018 का आयोजन किया गया |
     
    सम्मान का मुख्य उद्देश है कि देश की बाल युवा पीढ़ी अपने इतिहास से वाकिफ हो, उस बलिदान के इतिहास से जिसके कारण वे आज खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं, यह बाल युवा पीढ़ी आजादी के रणबांकुरों के बलिदान से प्रत्यक्ष अवगत हो और जाने की आजादी हमें बहुत आसानी से नहीं मिली थी इसके लिए लाखों जाने अनजाने लोगों ने अपने प्राणों की आहुति लगाई थी| याद करो बलिदान कार्यक्रम में 18 शहीद परिवारों को स्वराज सम्मान से सम्मानित किया गया है| इतिहास क्रम के माध्यम से चुने गए उदाहरण के तौर पर महाराणा प्रताप से लेकर श्रीकृष्ण सरल तक शहीदों में दक्षिण भारत की जैन रानी महादेवी अबबका चोटा भी शामिल है, जिन्होंने 6 बार पुर्तगालियों और अंग्रेजों को पराजित किया और मूड बद्री में अपनी रियासत को आजाद रखा तो दूसरी तरफ नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निजी अंगरक्षक व ड्राइवर कर्नल निजामुद्दीन के सुपुत्र मोहम्मद अकरम को भी आमंत्रित और सम्मानित किया गया है| 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार का गठन किया गया ,उसके 75 वर्ष पूर्ण होने पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था जरा याद करो बलिदान कार्यक्रम की रूपरेखा उस समय बनी जब अपने एक उपदेश में उन्होंने कहा कि शरीर राष्ट्रीय संपदा है|
     
    सम्मान समारोह मे क्रांतिकारी बलिदानियों के वंशजो को सम्मानित किया गया जिनके नाम निम्न प्रकार है -
     

     
     
     
     
    इस स्वर्णिम अवसर पर आचार्य श्री के विशेष उद्बोधन सुनें -
     
     
  13. Vidyasagar.Guru
    रामनवमी पर विशेषः

     
     रहलीः राम को जानना और रामायण को जानना अलग-अलग है राम को जानना स्वयं की कायाकल्प करना है, तन मन और आत्मा का परिवर्तन भिन्न होता है साधर्मी के लिए सहोदर भी उस उदर को छोड़ने तैयार हो जाता है जिसमें धर्म की रक्षा ना होती हो। विभीषण के लिए राम बैरी (दुश्मन), रावण बंधु सहोदर फिर भी विभीषण आधीरात लंका छोड़कर राम के दल में पहुंचाता है जहां पूराराम दल मंत्रणा कर रहा था । दुश्मन के मिलने आने पर आगबबूला हुए लक्ष्मण और दिन में आने की बात कहते हैं पर राम लक्ष्मण को शांति का आदेश देकर विभीषण को बुला लेते हैं क्योंकि विभीषण ने अभय के साथ मिलने का समय मांगा था राम की यही शांति की धारा जो शत्रु  भी मित्र बन जाता है आज सारा संसार चारों ओर शत्रुता युद्ध और भय के वातावरण में है संसार के सारे देश चुप और संदेह में कब क्या हो जाए कहां विस्फोट हो जाए।
               पर भारत ने युद्ध विराम के लिए बोलना शुरू कर दिया तो सारे देश भारत के विचारों का समर्थन करने लगे। यही राम का काम और नाम भारत में रामनवमी का यही तो महत्व है पर याद रखो हम राम को मानते हैं और राम की बात को भी मानते हैं तभी भारत महान बनेगा।
  14. Vidyasagar.Guru

    केश लोच सूचना
    पूज्यगुरूदेव आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी
                           एवं
    संघस्थ मुनिश्री
     
     
    मुनिश्री दुर्लभसागर जी 
    मुनिश्री निरामयसागर जी 
     मुनिश्री श्रमणसागर जी
     मुनिश्री संधानसागर जी
     

    के   प्रारम गार्डन, (निर्वाण गार्डन के पास), इंदौर   में हुए  केश लोच |
     
  15. Vidyasagar.Guru
    ‘फास्ट फूड’ के चलन ने संसार को जकड़ लिया है जबकि इसमें शुद्धता की कोई गारंटी नहीं होती : आचार्यश्री
     
    वर्तमान समय में ‘फास्ट फूड’ के चलन ने संपूर्ण संसार को जकड़ लिया है। फास्ट फूड वह जहर है जिसमें शुद्धता की कोई गारंटी नहीं होती एवं साथ ही वह शाकाहारी है कि नहीं इसकी भी कोई प्रमाणिकता नहीं रहती।‘फास्ट फूड’ का असर सबसे ज्यादा बच्चों में देखा जाता है। उसकी मुख्य वजह हम बच्चों को समय से घर में ही बनी शुद्ध वस्तुओं को समय के अभाव में उपलब्ध नहीं करा पाते या आलस्य के कारण बच्चों को बिना देखे समझे कुछ भी खिलाते रहते हैं। 

    इससे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी मानसिक स्थिति एवं याददाश्त पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यह बात नवीन जैन मंदिर में अाचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने प्रवचन देते हुए कही। उन्हाेंने कहा कि ‘जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन’ इसको हम सभी ने चरितार्थ होते देखा है। राष्ट्र में व्याप्त जितने भी जघन्य कृत्य हिंसा, उपद्रव आदि होते हैं उनमें से अधिकांश मामलों में व्यक्ति की तामसिक प्रवृत्ति ही काम करती है। उन्हाेंने कहा कि स्वर्ण को शुद्धता के लिए एक बार नहीं अनेक बार तपाना पड़ता है। फिर उसे आप कहीं भी कैसे भी रखो या उपयोग करो उसकी शुद्धता में वर्षों बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके विपरीत लोहा में अवधि पर्यंत जंग भी लग सकती है और वह खराब भी हो सकता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्वर्ण की तरह ही खोट रहित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि बुरी आदतों को त्याग करने के लिए हमें संकल्पित होने की महती आवश्यकता है। संकल्प शक्ति से ही इस जीव का कल्याण हो सकता है। व्यक्ति किसी भी नशे को त्याग करने के लिए एवं छोटे से नियम लेने के लिए भी समय सीमा में बांधना चाहता है। एेसा प्रतीत होता है, जैसे किसी वस्तु की नीलामी चल रही है। भैया! ऐसा नहीं होता, नियम तो पूर्ण संकल्प, भक्ति, समर्पित भावना के साथ ही लिया जाता है। यदि जबरदस्ती नियम दे भी दिया जाए तो वह अधिक समय तक कारगार सिद्ध नहीं हो सकता। आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति को घर की बनी शुद्ध एवं पौष्टिक वस्तुएं या व्यंजन अच्छे नहीं लगते उसे तो होटल का खाना ही अच्छा लगता है यह धारणा ठीक नहीं है। शरीर के प्रति मोह का त्याग एवं जिव्हा इंद्रिय को वश में करने की कला से हमें पारंगत होना जरूरी है। बाहर के वस्तुओं के प्रति आकर्षण का भाव हमारे चारित्र पर भी दुष्प्रभाव डाल सकता है। हम जब फास्ट फूड के त्याग की बात करते हैं, तब तुम्हारी इसके प्रति अशक्ति के भाव दृष्टिगोचर होने लगते हैं। तरह-तरह के बहानेबाजी एवं तुम्हारे कंठ अवरूद्ध हो जाते हैं। कोई भी प्रिय वस्तु का त्याग करना या कोई छोटा सा नियम लेने में भी इस शीतकाल में भी व्यक्ति को पसीना आने लगता है। कर्मों की मुक्ति की बात करो तो कंपकपी छूटने लगती है, फिर हम कैसे कर्मों की निर्जरा कर पाएंगे। सच्चे देव, शास्त्र, गुरू के प्रति श्रद्धान जरूरी है। हमें यदि अपने शरीर को निरोग रखना है तो सात्विक भोजन ग्रहण करना होगा। गरिष्ट भोजन एवं प्रचुर मात्रा में तेल, घी की वस्तुओं के सेवन से बचना होगा, तब ही आत्म कल्याण कर पाओगे। 
  16. Vidyasagar.Guru
    मुख्यमंत्री का संदेश लेकर आचार्य श्री के पास पहुँचे जल संशाधन मंत्री सिलावट
    आचार्य श्री ने कहा भारत को लाक डाउन ही रखो अच्छे परिणाम आयेंगे
     
     
     
    इंदौर। तीर्थोंदय तीर्थ क्षेत्र सावेर रोड पर विराजित दिगम्बर जैन समाज के सबसे बड़े संत आचार्य श्री १०८ विद्या सागर जी महाराज के पास आज मप्र शासन के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का संदेश लेकर जल संशाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट पहुँचे।
    आचार्य श्री संघ के ब्रह्मचारी सुनिल भैया और मीडिया प्रभारी राहुल सेठी ने बताया कि श्री सिलावट ने आचार्य श्री से आग्रह किया की आप ऐसा आशीर्वाद दो की मप्र सहित पूरे देश से ये रोग समाप्त हो जाए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश की सभी जनता के लिए विशेष आशीर्वाद माँगा है। क़ोरोना के लिए आचार्य श्री ने कहा की अभी भारत को लाकडाउन ही रखो, इसी से अच्छे परिणाम आयेंगे। वैसे ये काम किसी एक व्यक्ति का नहीं है। भारत में लोकतंत्र स्थापित है। इसलिए सभी लोगों को अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। योग्यता अनुसार कार्य करना चाहिए, जिससे परिणाम आने लगेंगे। दो माह में परिणाम दिखने भी लगेंगे। देश-विदेश में भी इस लाकडाउन की प्रणाली को स्वीकारा है। इस समय देश की सभी जनता की सरकार के द्वारा दिए जा रहे दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। सरकार के सभी निर्णय देश के हित में ही है। इधर मंत्री सिलावट ने आचार्य श्री से आग्रह किया है की आपको इंदौर में रह कर पूरे देश की जनता को आशीर्वाद देना है, यही मेरी आपसे विनय है। 

     
     
    जैसे परीक्षा देने जाते हो वैसे घर पर बैठे
    आचार्य श्री ने कहा कि जिस प्रकार कोई विद्यालय या महाविद्यालय में परीक्षा देने जाता है तो दूर-दूर बैठना पड़ता है। उसी प्रकार इस समय अपने घर में भी एक-दूसरे से दूर बैठना चाहिए। यह समय सबकी परीक्षा का ही चल रहा है। इसी से फिर आप सभी इस कठिन परीक्षा में सफल हो सकेंगे।
     
  17. Vidyasagar.Guru
    *आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ का आगमी कार्यक्रम* 
    गुरूदेव को इंदौर हाई कोर्ट के समस्त जज व वकील सदस्यों ने निवेदन किया है कि गुरूदेव हाई कोर्ट में आकर समस्त सदस्यों को आशीर्वाद प्रदान करें। गुरूदेव ने आशिर्वाद स्वरूप उन्होंने कहा कि वहां तैयारी शुरू कर दे।
    🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
     *देश के इतिहास में पहली बार किसी जैन संत के प्रवचन हाईकोर्ट में होंगें।*
     🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
    *उसके बाद आचार्य श्री के प्रवचन SP office में रीगल चौराहा पर समस्त प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस प्रशासन के लिए होंगें ।*
    🙏🙏🙏🙏🙏
    *आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ इंदौर की जनता को राजबाड़ से संदेश देंगे। उसके बाद ससंघ प्रतिभास्थाली रेंवती रेज के लिए विहार होगा।*
    🙏🙏🙏🙏🙏
  18. Vidyasagar.Guru
    आज दिनांक 7/01/2020 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के  संघचालक श्री मोहन जी भागवत  ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया।
     
     


  19. Vidyasagar.Guru
    स्थान - श्री दिगम्बर जैन पंचायती नसियां जी ब्यावर
    प्रसिद्ध स्थान - (नारेली जिला अजमेर)
    साइज - 16*16*31
    पत्थर - सफेद मकराना मार्बल 
    लागत - ₹ 27 लाख
    पुण्यार्जक का नाम - श्री दिगम्बर जैन पंचायत के सदस्यों द्वारा ब्यावर
    शिलान्यास तारीख - 13 मई 2018 (रविवार)
    शिलान्यास सानिध्य पिच्छीधारी - प्रेरणा श्री 108 मुनि पुंगव सुधा सागर जी महाराज, श्री 108 मुनि प्रमाण सागर जी महाराज
    शिलान्यास सानिध्य प्रतिष्टाचार्य - श्री प.घनश्यामदास जी जैन शास्त्री/श्री प.अभिषेक जैन शास्त्री
    जी पी एस लोकेशन - श्री दिगम्बर जैन पंचायती नसिया सूरज पोल गेट बहार ब्यावर राजस्थान 305901- https://maps.google.com/?cid=4874196284490782414
     

     
     

     



     
     
     
     
  20. Vidyasagar.Guru
    सतवास पंचकल्याणक हेतु सिद्धोदय सिद्धक्षेत्र नेमावर से उपसंघ का विहार:
    • मुनिश्री विराटसागर जी
    • मुनिश्री दुर्लभसागर जी
    • मुनिश्री संधानसागर जी
     ______________;
    *नेमावर से मुनिसंघ का मंगल विहार-*
     
    *परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से-*
    ● पूज्य मुनिश्री विराट सागर जी महाराज
    ● पूज्य मुनिश्री दुर्लभ सागर जी महाराज
    ● पूज्य मुनिश्री संधान सागर जी महाराज
    *उपसंघ का मंगल विहार नेमावर जी से सतवास की ओर हुआ।* 
     
    आगामी 8 से 14 दिसम्बर तक आयोजित होने बाले *पंचकल्याणक महोत्सव* में पूज्य मुनिसंघ सानिध्य प्रदान करेंगे।

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  21. Vidyasagar.Guru
    दिन में खाना सबसे अच्छा होता है। डबल रोटी को रसायन द्वारा फुलाया जाता है, उसमें जो छोटे छिद्र होते हैं उसमें जहरीले छोटे कीटाणु रहते हैं वह नुकसानदेह हैं रात्रि 12 बजे के बाद जो भी खाना पीना करते हो वह विषाक्त बन जाता है यह बात आचार्य विद्यासागर महाराज ने भाग्योदय तीर्थ परिसर में रविवारीय प्रवचन में कहीं । 

    आचार्य श्री ने कहा शरीर की प्रकृति के अनुसार खाना चाहिए रात में सूर्य की ऊष्मा का अभाव होने पर छोटे-छोटे जीवों की उत्पत्ति शुरू हो जाती है अष्टमी और चतुर्दशी को उपवास रखने से शरीर को आराम मिलता है। उपवास की परंपरा भारत में है काया को शुद्ध रखने के लिए उपवास किया जाता है जैन परंपरा में इसे थोपा नहीं गया है। इसे हम कर्तव्य के रूप में करते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि सूर्य के उदय के साथ ही कमल खिलता है और सूर्य अस्त होने पर कमल बंद हो जाता है कमल अकाल में कभी नहीं खिलता है कमल का नियम है जब तक सूर्य है तब तक ही खाऊंगा पी लूंगा बाद में निशाचर नहीं बनूंगा। आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि सौम्य सागर महाराज ने कहा कि भावों की यात्रा का माध्यम भाषा है उन्होंने कहा आचार्य श्री के आशीर्वाद से 5 प्रतिभास्थली स्कूल देश में चल रहे है पहले वहां अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती थी लेकिन अब हिंदी माध्यम से पढ़ाई हो रही है वहां पर पहले लोगों को लगा कि हिंदी में पढ़ाने से कुछ नुकसान होगा लेकिन आज स्थिति यह है स्कूलों में छात्राओं को एडमिशन नहीं मिल पा रहे हैं क्योंकि आजकल लोग संस्कारित शिक्षा बच्चियों को मिले इसके लिए प्रतिभास्थली जैसे स्कूलों का चयन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जहां हम सब लोगों का चिंतन खत्म होता है उससे कई गुना बाद आचार्य श्री का चिंतन शुरू होता है। 

    राजस्व और परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत ने भाग्योदय तीर्थ पहुंचकर आचार्य श्री को श्रीफल समर्पित कर दर्शन कर आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर आचार्य श्री ने कहा कि मौका मिला है तो अच्छे काम करना राजपूत ने कहा कि गुरुदेव अच्छे काम ही करने का मन है। इस अवसर पर पूर्व विधायक सुनील जैन, सुधा जैन ,न्यायाधीश एमके जैन, प्रेरणा जैन , अक्षय जैन और ऋचा जैन, नीरज जैन, प्रीति जैन, महेश बिलहरा,मुकेश जैन ढाना,सुरेंद्र जैन , राकेश जैन ,आनंद जैन , देवेंद्र जैन , ऋतुराज जैन, राजेश जैन , सौरभ जैन, सट्टू जैन, प्रेमचंद जैनर,अनिल जैन आदि उपस्थित थे। 

    सहस्त्रकूट जिनालय में मूर्ति विराजमान करने की स्वीकृति : छोटेलाल जैन सलैया,अशोक कोठारी, डॉ श्वेता जैन विमल जैन सिहोरा, गुड्डू जैन, जिनेंद्र जैन, सपना जैन, अभिषेक प्रतिभा जैन, प्रकाश जैन सानोधा, कमल जैन निलेश कुमार बंडा, अनमोल जैन बड़ोदा, सुरभि जैन, कैलाश सिंघई, बबिता जैन पटिया,झुन्नी लाल जैन, अनुभा जैन सिहोरा ने दी। 
     
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