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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

Chirag Jain (Neemuch)

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  1. इस सूत्र में ( सूत्र १६ , अध्याय १ ) में एक सुधार कर दीजिए। यह धुवाणां नहीं, ध्रुवाणां आएगा ।
  2. आचार्य श्री आदमी को संबोधित करते हुए कहते हैं कि ऊधम करना अर्थात व्यर्थ में ही उद्दंडता का प्रदर्शन करना हेय (छोड़ने योग्य) है| इसकी बजाय हम पुरुषार्थ करे और दमी मी (मेहनती) बने |
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