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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

Darshan jain bina

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  1. खिमलासा 10-02-2021 *मोती रत्न चढ़ाकर पूजन की गई, 1008 कलशों से हुआ महा अभिषेक, दिव्य कलशों से हुई ऊर्जामयी शांतिधारा,* श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर खिमलासा जिला सागर (म. प्र.) में राष्ट्रहित चिंतक आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज के शिष्य पूज्य मुनि श्री विमलसागर जी महाराज,मुनि श्री अनंतसागर जी महाराज,मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज,मुनिश्री अचलसागर जी महाराज,मुनि श्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में एवं ब्रह्मचारी रजनीश भैया रहली के निर्देशन में 10 फरवरी 2021 को श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में श्री आदिनाथ भगवान के निर्वाण कल्याणक के अवसर पर प्रातःकाल की वेला में भक्तामर अर्चना 48 रत्न दीपकों द्वारा हुई, मुनि श्री विमलसागरजी महाराज ने भक्तामर स्तोत्र अपने मुखारविंद से पढा, फिर 1008 कलशों से श्री आदिनाथ जी की विशाल प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक हुआ एवं ऊर्जामयी शांति धारा हुई फिर 1008 विशेष द्रव्यो द्वारा सहस्त्रनाम स्तोत्र पूजन हुई, लोगो ने बड़े ही भक्ति भाव से नृत्य करके निर्वाण लाडू चढ़ाया, 11 फरवरी को प्रातः 6:30 बजे अभिषेक,शांतिधारा, पूजन के पश्चात कल्याण मंदिर विधान होगा एवं मुनि श्री के प्रवचन होंगे यह कार्यक्रम श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में होगा। त्रिमूर्ति दिगंबर जैन मंदिर में 15,16,17 फरवरी को होने वाले वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव की तैयारियां भी जारी है, कार्यक्रम में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल सागर जी ने कहा कि आज का दिन स्वर्ण अक्षरो में लिखने लायक है, चतुर्थ काल के पहले ही निर्वाण हुआ था, कैलाश पर्वत पर प्रभु ध्यान में लीन हो गए थे और सिद्धालय में जाकर विराजमान हो गए। दिव्य सामग्री से प्रभु का निर्वाण कल्याणक मनाया गया,मोती,रत्न चढ़ायें गए, भगवान की दिव्य प्रतिमाओं का पंच कल्याणक करके वर्तमान में विराजमान करो तो वहीं पुण्य का अर्जन होता है जो चतुर्थ काल में होता था, भरत चक्रवर्ती ने स्वर्णमयी रत्नमयी जिनालय बनबाये थे। हमारा पुण्य नही है कि कैलाश पर्वत पर विराजमान जिनबिम्बों के दर्शन हो जाए, आस्था और संकल्प से आज भी कैलाश पर्वत की प्रतिमाओं के दर्शन हो सकते है, प्रभु की पूजा-अर्चना में कमी नहीं रखना चाहिए,जो जितना लुटाता है उतना पाता हैं, 1008कलशों का विशेष महत्व है, सौधर्म इन्द्र 1008 हाथ बना कर अभिषेक करता है।
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