आसमां में चाहे हो
कितने भी तारे,
पर विद्यागुरु ही है ,
इस धरती के सितारे,
चाँद की चांदनी भी,
क्या प्रकाश फैला पायेगी?
जब मेरे गुरु की आभा
पर उसकी नज़र जायेगी।
शरद पूर्णिमा के चाँद ,
से शीतलता हमने पाई है,
हर जन्म में मिले विद्यागुरु,
बस यही प्रार्थना दोहराई है।।