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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

संयम स्वर्ण महोत्सव

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  1. समाधि-मरण परम पूज्य आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की शिष्या आर्यिका श्री अकम्पमती माता जी की संघस्थ आर्यिका श्री 105 अवगममति माताजी का समाधिमरण ब्यौहारी जिला शहडोल मप्र में आज 24 मई को प्रातः 11:15 बजे धर्मध्यान पूर्वक हो गया है। अंतिम डोला शाम 5 बजे की संभावना है। ॐ शांति।
  2. जब तक ज्ञान नहीं होता तब तक परिणामों का नियंत्रण नहीं हो पाता। मोक्ष मार्ग का यदि श्रवण ही कर ले तो हमारे परिणाम भी उस पर चलने के हो जाते है। अंत समय में भी यदि हम धर्म के मार्ग पर चलकर मृत्यु को प्राप्त होते है तो भी हमारा कल्याण हो सकता है। यद्यपि हमें आज के काल में अवधि ज्ञानी नहीं मिलते लेकिन आज जो मोक्षमार्ग तीर्थंकरों के द्वारा लिखाया गया उस पर ही बढ़ना चाहिये। गुरूवर ने बताया रोगी व्यक्ति लौकिक चिकित्सा से निराश होकर अन्त में आध्यात्मिक चिकित्सा में संतो के पास आता है। मन के अधीन होना छोड़ देना कठिन है लेकिन संभव है स्वाध्याय एवं क्रिया करना दोनों आवश्यक है। कृत, कार्य, अनुमोदना तीनों से व्यक्तियों को पुष्प लाभ होता है। गुरूओं की वाणी अजर-अमर बनाने वाली होती है। परिणामों की विचित्रता पर ज्ञानी को श्रद्धान रखना चाहिए।अशांति मन में होती है शरीर तो मन द्वारा नियंत्रित होता है। धर्मध्यान के लिए छहों संघनन सहायक होते है। अच्छा श्रावक दो बार ही अहार ग्रहण करता है। एक बार ग्रहण करता है वह योगी है। दो बार ग्रहण करता है वह भोगी तथा तीन बार करता है वह रोगी है। मोक्ष मार्ग पक्का रास्ता है इस पर दुर्घटना नहीं होती है यदि हमें अच्छा मार्गदर्शक रूपी गरू का सानिध्य प्राप्त होता है। आज गुरूवर का सुबह 8:30 बजे पाद प्रक्षालन महरौनी से पधारे श्रद्वालुओं द्वारा किया गया एवं तत्पश्चात् गुरूवर का पूजन किया गया। यह जानकारी डॉ. धर्मेन्द्र जैन द्वारा दी गई एवं संचालन ब्रह्मचारी सुनील भैया जी इन्दौर द्वारा किया गया।
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