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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

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भगवान ऋषभदेव, बाहुबली, भरत आदि की प्राचीन दिगम्बर जैन परम्परा से आज तक के सभी आचार्यो कुन्दकुन्द देव, भद्रबाहू, चन्द्रगुप्त मौर्य ने योग परम्परा को शाश्वत मोक्ष का मार्ग बताकर वियोग (कायोत्सर्ग) की मुद्रा में ध्यान लगाकर आत्म कल्याण किया है तथा इसे अपनाकर सभी जीवों को आत्म कल्याण करने का उपदेश दिया है। आचार्य उमास्वामी ने भी तत्त्वार्थ सूत्र में योग को प्ररूपित किया है।

 

परम पूज्य 108 मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने अर्हम् योग का मूल मंत्र देकर दिगम्बर जैन संस्कृति की ऋषभ योग परम्परा को पुनः जीवित कर विश्व कल्याण एवं विश्व शांति के मंगल मार्ग का आह्वान कर नई ऊर्जा का संचार कर दिया है। अर्हम् योग में णमोकार मंत्र का अन्तरनाद, योग मुद्राएं पंच नमस्कार), कायोत्सर्ग की मुद्राएं जीवन को सरल, सहज एवं स्वाभाविक बनाने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। इस मंगल भावना के साथ यह अर्हम् योग पुष्प पुस्तिका गुरूदेव के चरणों में समर्पित है। आशा है सभी पाठक इसे जीवन में अपनाकर अपना एवं जगत के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

सेवा में

एक गुरू भक्त

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