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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

पिच्छिका परिवर्तन इसलिए होता है🦚


Yug dhirawat

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घाटोल 12/10/23
श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर घाटोल जिला बांसवाड़ा राजस्थान मे परम पूज्य सर्वश्रेष्ठ साधक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि

*पिच्छिका परिवर्तन इसलिए होता है

मोर का औसतन जीवन काल 10 से 25 वर्ष होता है मोर के पंख अगस्त या कार्तिक महीने में झड़ जाते हैं गर्मी आने से पहले यह पंख फिर से आ जाते हैं एक गुच्छे में 150 पंख होते है पिच्छिका और कमंडल मुनि के स्वावलंबन के दो हाथ हैं ,मुनिराज की पिच्छिका में 900 पंख लगते है और   आर्यिका की पिच्छिका मे 600 से 750 पखं लगते हैं,
 दिगम्बर।साधु अपने पास केवल ज्ञान उपकरण के रूप में शास्त्र, शौच उपकरण के रूप में कमंडल व संयम उपकरण के रूप में पिच्छिका को ही रख सकते है। शास्त्र, श्रमण के ज्ञान को बढ़ाने में सहायक होते है, वहीं शौच आदि शरीर शुद्धि क्रिया के लिए कमंडल का उपयोग किया जाता है। दिगम्बर श्रमण (साधु) संयमी जीवन शैली व अहिंसा महाव्रत के निर्दोष पालन करने के लिए मयूर पिच्छिका को हमेशा अपने साथ रखते है। मयूर पिच्छिका का इतना महत्व है कि साधुजन आवश्यकता न होने पर बिना कमंडल व शास्त्र के तो अपनी अन्य क्रियाऐं कर सकते है परंतु बिना पिच्छिका के सात कदम भी नही चल सकते है। 

*पिच्छिका का उपयोग ऐसे करते*

 दिगम्बर जैन श्रमण संयम उपकरण पिच्छिका का उपयोग अपनी दिनचर्या में प्रतिपल करते है। उठते बैठते, विश्राम करते, चलते, आहार आदि समस्त क्रियाओं में | निरंतर परिमार्जन के लिए पिच्छिका सहायक होती है। अतः जब मयूर पंख की कोमलता कम हो जाती है अर्थात मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्के से कठोर लगने लगते है तब ही पिच्छिका को परिवर्तित किया जाता है।

    *पिच्छिका परिवर्तन कब  किया जाता*

अधिकतर श्रावकजन की सोच होती है कि चातुर्मास समाप्त होने पर दिगम्बर श्रमण की पिच्छिका का परिवर्तन होता है, अपितु यह भ्रांति मात्र है। अर्थात् जब मयूर पंख का स्पर्श करने पर हल्की सी चुभन होती है तब यह पिच्छिका वर्ष भर में कभी भी परिवर्तित की जा सकती है। जब पिच्छिका से परिमार्जन करने में छोटे-छोटे 
जीवो की रक्षा नहीं होती  हैऐसा विकल्प मानकरपिछिका को आवश्यकता अनुसार कभी भी परिवर्तित किया जा सकता है आवश्यकता होने पर वर्ष में दो बार भी परिवर्तित किया जा सकता है यदि पिचका में मृदुता है तो 2 वर्ष तक नहीं बदलने में भी कोई दोष नहीं है 

*पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का आयोजन बड़े पैमाने पर क्यो किया जाता*  

 नवयुवाओं में धर्म के प्रति आस्था जागृत करने के लिए, बालकों में जैन संस्कारों के बीजारोपण के लिए, वर्तमान के हिंसात्मक वातावरण में अहिंसा के महत्व को दर्शाने के निमित्त से ही पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है।

*पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम चातुर्मास समाप्ति पर ही क्यों होते हैं*

चातुर्मास निष्ठापन के समय ही कार्तिक मास के आसपास मोर भी अपने पंखों - को स्वतः छोड़ते हैं। जिससे चातुर्मास के निष्ठापन पर नई पिच्छिका के निर्माण के लिए • आसानी से मयूर पंख उपलब्ध हो जाते है, साथ ही साथ चातुर्मास अवधि में समाज द्वारा  पिच्छिका परिवर्तन का कार्यक्रम किसी अन्य समय व शहर में करवाना पसंद नहीं करते इसीलिए भी अधिकतर पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम चातुर्मास समाप्ति पर ही होते हैं। 

 *पिच्छिका के लिए मयूर पंख ही क्यों* 

मयूर पंख में विद्यमान 5 गुणों के साथ ही आगम (शास्त्र) में आचार्य कुंद-कुंद स्वामी जी ने दिगम्बर श्रमणों के लिए मयूर पंख से निर्मित पिच्छिका का ही उल्लेख किया। है। मोर एक ऐसा पक्षी है जो कार्तिक मास के आसपास स्वतः ही अपने पंखो को छोड़ देता है, अतः मोर को बिना घात किए हुए व पूर्णतः अहिंसा के साथ ये पंख उपलब्ध हो जाते है। इसलिए इन मयूर पंखो से ही पिच्छिका का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा मोर एक ऐसा पक्षी है जो बिना किसी विषय वासना के ही अपना जीवन  बिताता है। भावअतिरेक होने के कारण जब मोर के आंख में आंसू आ जाते है तब मोरनी इन आंसुओं को ग्रहण कर लेती है, जिससे उसे गर्भधारण हो जाता है अर्थात मोर को अपने वंश को बढ़ाने के लिए मोरनी के साथ कोई विषय वासना की आवश्यकता नही होती. इसलिए भी मोर पंख ज्यादा अच्छा माना जाता है।

 *मयूर पिच्छिका के 5 गुण कौन-कौन से है* 

मोर पंख देखने में तो अत्यंत सुंदर होता ही है, साथ-साथ इसमें निम्नलिखित 5 गुण पाए जाते है 
1. मृदुता मयूर पंख अत्यंत मृदु होता है किसी कारण से हमारी आंख में कोई छोटा सा तिनका भी चला जाता है तो हमारी आंखों से आंसू आने लगते है परंतु मयूर पंख इतना मृदु होता है कि आंखों में जाने पर भी कोई चुभन नही होती।
2. सुकुमारता मयूर पंख अत्यंत कोमल होता है। इनकी कोमलता के कारण ही परिमार्जन करते समय जो जीव हमें सूनी आंखो से नहीं दिखाई देते उन जीवों की भी | रक्षा करते हुए अहिंसा महाव्रत का पालन किया जा सकता है। 
3. रज ग्रहण नही करती दिगम्बर साधु प्रत्येक क्रिया से पूर्व परिमार्जन करते है अर्थात 
जो भी वस्तु को उठाते रखते है तब पिच्छिका का उपयोग करते हैं, तब पिच्छिका उस धूल को तो हटा देती है परंतु मयूर पंख उस धूल को ग्रहण नही करते।
4. पसीना ग्रहण नही करती • जब श्रमण, परिमार्जन के दौरान अपने शरीर से पिच्छिका
का उपयोग करते है तब मयूर पंख पसीने को ग्रहण नहीं करते। 
5. हल्के - मयूर पंख सुंदर होने के साथ-साथ हल्के भी होते है अर्थात पिच्छिका के रूप में | इनका भार ज्यादा नही होने के कारण ही दिगम्बर साधु इनका उपयोग आसानी से करते है।

 *पिच्छिका परिवर्तन पहले ऐसे होता था* 

चातुर्मास के बाद दिगंबर जैन पिच्छीधारी साधु पिच्छिका का परिवर्तन करते हैं । यह पिच्छिका मयूर के पंखों एंव बेंत की लकड़ी से डंडी और रस्सी से बनती है। मोर अपने पंख अपने आप छोड़ती है और श्रावक उठा लाते हैं फिर श्रावक पिच्छी बनाकर साधु को देता है और ब्रह्मचर्य व्रत, रात्रि भोजन त्याग, पूजन आदि का नियम लेकर श्रावक-श्राविका आदि देते हैं और पुरानी ले लेते हैं। यह वर्ष में एक बार परिवर्तन होता है। विशेष परिस्थयों में बीच मे भी हो जाता है । यह मृदु होते हैं पंख आँख मे जाने पर भी पीड़ा नहीं होती है। रज को ग्रहण नहीं करते है। सूक्ष्म जीवो को भी कष्ट नहीं होता है। यह साधु का चिन्ह है । (सिम्बाल है) इस पिच्छी के बिना करीब 5-7 हाथ ही चल सकते हैं साधु ज्यादा नहीं। यह सयंम का उपकरण श्रावक पुराना घर मे रखते है जिसे देखकर साधु बनने की प्रेरणा मिलती रहती है ।
पहले बुंदेलखण्ड में प्रत्येक घर में श्रावक पिच्छी बनाकर रखते थे कोई साधु चातुर्मास के बाद आते थें विहार करते हुये तो चौके में परिवर्तन कर देते थे वर्तमान में आचार्यो, मुनिराजों, पिच्छीधारी साधुओं से निवेदन है की वर्ष में एक बार ही पिच्छी का परिवर्तन करें जिससे पंखों का प्रयोग कम करना पड़े जरूरत पड़े तो पिच्छी 4-6 महीनें में पलट सकतें है जिससे यह परंपरा हमेशा सुरक्षित रहें ।
*पिच्छिका से परिमार्जन कब किया जाता है*  

 आगमानुसार प्रत्येक आचार्य संघ, मुनिजन, माताजी को आदान निक्षेपण समिति का पालन करते समय कमंडल को उठाते व रखते समय शरीर को उठाते-बिठाते, लिटाते, करवट बदलते समय, धूप से छांव और छांव से धूप मे आते समय शरीर को पिच्छिका से प्रमार्जित करते है साथ ही देवों के समकक्ष गिने/ माने जाने वाले शास्त्रों को उठाते, विराजमान करते समय, शास्त्र को खोलते व बंद करते समय प्रमार्जित करते है। इसके अलावा अन्य दैनिक चर्या को निर्दोष पालन करने में भी पिच्छिका से परिमार्जन किया जाता है।

 *मयूर पिच्छिका के क्या उपयोग हैं* 

दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति में प्रत्येक आचार्य, साधु, आर्यिका एलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिकाजी के लिए संयम उपकरण के रूप में मयूर पिच्छिका अत्यंत आवश्यक व उपयोगी है। दैनिक क्रियाओं में परिमार्जन मंगलाचरण, सामायिक, प्रतिक्रमण, आहार, विहार आदि समस्त क्रियाऐं बिना पिच्छिका के संभव ही नही है। किसी भी परिस्थिति में साधुजन बिना पिच्छिका के एक कदम भी नही चल सकते है और यदि बिना पिच्छिका के 7 कदम तक की दूरी तय कर भी ले तो आगमानुसार इसके लिए उन्हें अपने गुरु से प्रायश्चित भी लेना पड़ता है।

 *पिच्छिका भी आहारचर्या के दौरान अंतराय का कारण हो सकती है* 

संयम का साधन होने से एवं लोक व्यवहार से पिच्छिका को पवित्र उपकरण माना जाता है। आहारचर्या के समय सामान्यतः भोजन में मनुष्य या अन्य पशुपक्षी के बाल आ जाने के कारण मुनि / आर्यिका के लिए अंतराय का कारण बन जाते है फिर तो मयूर पिच्छिका भी मोर के पंख के द्वारा निर्मित होती है। अतः दिगम्बर श्रमण आहारचर्या में | आसान पर बैठने से पहले परिमार्जन करते है और पिच्छिका को 2-3 हाथ की दूरी पर | कायोत्सर्ग करने के बाद ही आहार ग्रहण करते है। आहर के दौरान भोजन में मयूर पंख के आ जाने पर या हवा करने के निमित्त से यदि पिच्छिका का स्पर्श हो जाए तो साधुजन को अंतराय माना जाता है इसलिए आपने कभी ध्यान दिया हो तो प्रत्येक मुनि आर्यिका आहार के समय अपनी पिच्छिका हमेशा 2-3 हाथ की दूरी पर ही रखते है।

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