Yug dhirawat Posted September 29, 2023 Report Share Posted September 29, 2023 घाटोल 29-09-2023 *10 उपवास करने वाले 75 लोगो का उपवास का पारणा महोत्सव सम्पन्न हुआ* *360 घंटे तक बिना भोजन के 15 वे उपवास की साधना चल रही है* *रथ आकर्षण का केंद्र रहता है* *पौराणिक शिल्पकारों की अनूठी कृतियों से पाषाण से निर्मित इस मंदिर को देखते ही यह श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर देता है।* श्री वासूपूज्य दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज मुनि श्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में एवं ब्रह्मचारी रजनीश भैया के निर्देशन मे मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुई, कमेटी ने जानकारी दी कि 28 सितंबर को 10 उपवास करने वाले 75 लोगो का उपवास का पारणा महोत्सव सम्पन्न हुआ जिसमे बागीदौरा,अरथूना,कलिंजरा , डडुका, परतापुर स्थानों से लोग शामिल हुए कुछ लोगो का 15वां उपवास था यानि 360 घंटे तक बिना भोजन के रह कर तप साधना कर रहे है, 30 सितंबर को दोपहर 1 बजे प्रभु की विशाल रथयात्रा श्री वासुपूज्य मंदिर से श्री आदिनाथ मंदिर पहुंचेगी ,1 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे श्री आदिनाथ मंदिर से श्री वासुपूज्य मंदिर वापस आएगी, *श्री वासुपूज्य दिगंबर जैन मंदिर का इतिहास* 725 वर्ष प्राचीन मूलनायक श्री वासुपूज्य भगवान की प्रतिमा से सुशोभित रजत वेदी गर्भ गृह से सहित मानस्थंभ ,चौबीसी आदि 200 प्रतिमाओं से सुशोभित इसके अलावा श्री आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर एवं अहिंसा मंदिर दर्शनीय है ,यहां पर परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज मुनि श्री धर्म सागर जी महाराज मुनि श्री भाव सागर जी महाराज का चातुर्मास चल रहा है, यहां 500 घर की जैन समाज है , *श्री वासुपूज्य दिगम्बर बावनडेरी जिनालय का इतिहास* अहिंसावादी, धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत इस मंदिर की पूरे क्षेत्र में अपनी अलग ही पहचान है, पौराणिक शिल्पकारों की अनूठी कृतियों से पाषाण से निर्मित इस मंदिर को देखते यह श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर देता है। भाव विभोर हो श्रद्धालु स्वतः प्रभु के चरणों में दर्शन हेतु नतमस्तक हो जाते हैं। मन्दिर के अग्र भाग में अंकित शिलालेख जो कि प्राकृत भाषा में अंकित हैं विद्वानों द्वारा उसके आधार पर बताया गया है कि 700 वर्ष पूर्व बड़े-बड़े पाषाणों से निर्मित मन्दिर के स्तम्भ के अग्र भाग में छतरियाँ और उस पर उभारी गई नक्काशी वर्तमान में आधुनिक युग के कारीगरों को भी पछाड़ देती है। मूलनायक वासुपूज्य भगवान के अग्र भाग एवं पृष्ठ भाग में चौबीसी का निर्माण हुआ जो खिले हुये कमल की भाँति सुशोभित होता है ,यह बावनडेरी जिनालय राजस्थान में आध्यात्मिक धरोहर का प्रतिरूप है। जिनालय के प्रत्येक गर्भ में स्थापित पाषाण प्रतिमाएँ अतिशय युक्त होने से आध्यात्मिक भावना जाग्रत कर मोक्षमार्ग की प्रेरणा देती है *रथ का इतिहास* जैन धर्म में दशलक्षण महापर्व प्रमुख हैं। इनके समापन पर प्रभु की प्रतिमा को गन्धकुटी रथ में विराजमान कर नगर भ्रमण कर गाँव के बस स्टैण्ड पर "बड़ के वृक्ष" तले भगवान की भक्ति एवं साधुओ के सान्निध्य में प्रवचन लाभ आदि की परम्परा रही है। यहाँ पूजन एवं साधु-सन्तों द्वारा प्रवचनों के माध्यम से एकत्रित अपार जनसमूह को अहिंसा ,शाकाहार ,नशे से दूर रहने गौपालन का संदेश देकर धर्म की प्रभावना की जाती है। आज से करीब 250 वर्ष पूर्व मंदिर में काष्ठ (लकड़ी) का रथ बनाया गया था यह। जिसमें अतिप्राचीन नक्काशी, बारीक कारीगरी, मानव, हाथी, घोड़े, मेहराब, झरोखे आदि उकेरे गये हैं। जिसको देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। पूर्व के शुरुआती वर्षों में इसे कन्धों पर उठाने की परम्परा रही होगी। काष्ठ का रथ भारी होने से समाज जनों ने इसमें बैलगाड़ी के चार पहिये लगवाये । । विशाल काष्ठ रथ के ऊपर गुम्बज, चारों कोनों पर छत्र, बीच में गुम्बज पर बड़ा छत्र तथा ऊपर नर्तकी स्थापित की गई जो रथयात्रा के समय नृत्य करती है। रथ तीन मंजिला बना हुआ है यह समाज की अमूल्य धरोहर है Link to comment Share on other sites More sharing options...
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