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प्राणी रक्षा और शाकाहार


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सन १९६० तक देश से मांस नियति नही होता था। १९६१ से मांस निर्यात १ करोड रुपयों का हुआ है। एवम् देश में नशाबंदी भी १९६१ से समाप्त की गई है। कर्नाटक राज्य मद्यपान संयम बोर्ड के अध्यक्ष सचानंद हेगडे ने कहा है, की राज्य में शराब से सरकार को वर्ष में १०,००० करोड की आय होती है, वह परोक्षरुप से २२,००० करोड रुपये का नुकसान होता है। २५ लाख लोग मौत के मुँह में जाते है। सडक हादसे और बलात्कार जैसी वारदाते शराब पिए व्यक्तियों द्वारा की जाती है। उन्होंने कहा है की, इसके दुष्परिणाम के बारे में जनजागृती करने के लिए बोर्ड की ओर से राज्य भर में कार्यक्रम चलाए जा रहे है।

(राज्यस्थान पत्रिका २४-५-२०१२)

 

देश आजाद हुआ तभी सिर्फ ३०० कत्लखाने थे, वर्तमान में यह संख्या ३६,००० से ज्यादा है। उसमें भी आधुनिक और यांत्रिक कत्लखाने है। इस उद्योग को कृषि उद्योग का दर्जा दिया गया है। इस कारण से केंद्र सरकार और राज्य सरकार अनुदान देती है, और इनकम टेक्स में भी छूट देती है। ज्यादा तर यांत्रिक कत्लखाने, पोल्ट्रीफार्म राजनेता और उनके प्रतिनिधी ही चला रहे है। अरबो रुपये अनुदान के रुप में सरकार ने दिया वह किसी खेत में भी उत्पन्न नहीं होता है। पशु का कत्ल करने के उद्योग को कृषी उत्पादन का दर्जा खत्म करने के लिए सरकार से मांग करनी चाहिए और सरकारद्वारा अनुदान बंद कराना चाहिए और आयकर में छूट देना भी बंद करना चाहिए।

 

भारतीय पशुकल्याण बोर्ड चेन्नई के माध्यम से प्रस्तुत एक हजार जनसंख्या के पीछे सन १९५१ में दूध देनेवाले ४३० पशु थे। सन २००१ में सिर्फ ११० पशु थे। उसके बाद पशुगणना आंकड उपलब्ध नही है। शायद कुछ महिने पहिले वर्तमान पत्र में पढ़ा था की, पशुगणना अभी होनेवाली है। मगर जानकारोंसे मालूम हुआ है की वर्तमान में सिर्फ ४० पशु ही दूध देनेवाले है। इसका मतलब अवैध रुप से भारी संख्या में दूध देनेवाले पशुओं की कत्ल हो रहीं है। इसके अलावा केंद्रीय सांख्यिकी विभाग पशुधन से प्राप्त होनेवाली दुध उत्पादन सन २००७-०८ का प्रतिव्यति प्रतिदिन का रु. ३.७५ (१/४ लीटर) है। दूध, दही, घी, छाछ वगैरे के लिए यह उत्पादन बहुतही कम है। इस कारण से भारी मात्रा में दूध में स्वास्थ्यघातक पदार्थ डिटर्जेंट पावडर और पशुओं की चरबी का मिलावट हो रहा है, यह भी भारत सरकार की रिपोर्ट है। याने अप्रत्यक्ष रुपसे जनता को मांसाहार खिलाया जा रहा है वह अन्य खाद्यपदार्थ में भी मांसाहार का उपयोग भारी मात्रा में होता है। कानूनी ग्रीन मार्क लगा रहता है, मगर वे सिर्फ नंबर लिखते है, वो कोड नंबर मांसाहार का होता है। देश की शाकाहारी जनता को अप्रत्यक्ष रुप में मांसाहार का सेवन करना पडता है।

 

 देश में ५० वर्ष में शुद्ध शाकाहारी जनता में मांसाहार और शराब का सेवन करनेवालोंकी संख्या भारी मात्रा में बढ़ गई है। जैसे आहार होता है वैसी बुद्धी होती है। इसके लिए हमारे देश के भ्रष्ट नेता ही जिम्मेदारी है। उनके मांस, मदिरा आहार से भारी मात्रा में महिलाओं का शोषण होता है, परिवार में कलह-क्लेश और तलाक जैसी घटना मांसाहार और शराब से ही हो रहीं है। अंडा शाकाहार है ऐसा झूटा प्रचार करके अंडा खाने की आदत लगाई गई है।

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