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उर्जा और खाद के लिए गोबर पर शोध


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आज विभिन्न विदेशी कम्पनियों को बिजली बनाने के लिये देश में बुलाया जा रहा है। रासायनिक खाद के आयात और सब्सिडी में अरबों खरबों रूपये खर्च हो रहे है। परन्तु इन सब के स्वदेशी स्त्रोंत पशु और पशु उत्पाद की पूर्ण उपेक्षा की जा रही है, जो सतत् विकास के लिए नुकसानदायक है। कैलिफोर्निया में ९० हजार बुढीं अपंग और बाँझ गायों के गोबर से चलने वाली पावर जनरेटिंग इकाई से १५ मेगावाट विद्युत के अतिरित १६० टन राख खाद एवं ६०० गैलन गौमुत्र कीटनाशक के रूप में प्राप्त हो रहा है। ४५ मिलियन डालर से स्थापित इस परियोजना से प्रति वर्ष २ मिलियन के खर्च पर १० मिलियन डॉलर की प्राप्ति हो रही है। भारत में ‘नाडेप' पद्धति के अनुसार एक गोवंश के वार्षिक गोबर से बनाई गई खाद का मुल्य ३० हजार रूपये से भी अधिक होता है एवं गुणवत्ता भी कहीं अधिक होती है। बायोगैस संयंत्रो द्वारा गावों की विद्युत आपूर्ति गायों से ही हो सकती है।

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