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गोवध का प्रस्ताव  अमान्य किया, तब गांधीजी


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मद्रास में कॉग्रेस का २६ वाँ अधिवेशन चल रहा था। गांधीजी श्रीवास आयंगर के मकान में ठहरे थे। वे उन दिनों किसी कारणवश राजनीति से अलग रह रहे थे। शाम के समय गांधीजी आगंतुकों से सामान्य बातचीत कर रहे थे। तभी श्री आयंगर एक मसौदा उनके सामने लेकर आए, जिसमें हिंदू-मुस्लिम समझौते की बात थी। गांधीजी ने उसे सरसरी तौर पर देखते हुए कहा - भाई, इसमें क्या देखना है? किसी भी शर्त पर हिंदू-मुस्लिम समझौता हो सके तो वह मुझे मंजूर ही होगा। श्री आयंगर मसौदा लेकर आगे की प्रक्रिया पूर्ण करने चले गए और गांधीजी शाम की प्रार्थना के बाद सो गए। प्रात: उठते ही गांधीजी ने तत्काल महादेव देसाई और काका कालेलकर को जगाया और बोले, ‘मुझसे रात में बडी गलती हो गई। मैंने मसौदे पर बिना विचारे ही कह दिया कि ठीक है। उसमें मुस्लिमों को गोवध करने की आम इजाजत दी गई है। भला यह मुझसे कैसे बदश्त होगा। मैं तो स्वराज्य के लिए भी गो रक्षा का आदर्श नहीं छोड सकता। अत: उन लोगों को जाकर तुरंत कह आओ कि यह प्रस्ताव मुझे मान्य नहीं है। परिणाम चाहे जो हो, पर मैं बेचारी गायों का जीवन संकट में नहीं डाल सकता। वह प्रस्ताव तत्काल अस्वीकृत कर दिया गया।' गांधीजी की यह जीवदया उन लोगों के लिए अनुकरणीय है, जो अपने स्वार्थ के लिए निरीह जीवों के प्राण लेने में तनिक भी नहीं हिचकते। वस्तुत: मूक प्राणियों के प्रति संवेदना रख हम स्वयं को सच्चा मानव ही सिद्ध करते हैं।

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