संयम स्वर्ण महोत्सव Posted December 8, 2017 Report Share Posted December 8, 2017 * ६ सितंबर १९२९ को बेलगांव काँग्रेस के समय श्री चौंडे महाराज के आग्रहपर गोरक्षा संमेलन की अध्यक्षता म. गांधीजीने की। तब से वे प्रत्यक्ष गोसेवा के कार्य में आये। श्री. जमनालालजी बजाज द्वारा वध में १ फरवरी १९४२ को गोसेवा सम्मेलन आयोजित किया गया था। उसका उदघाटन म. गांधीजीने किया था व अध्यक्षता विनोबाजी ने की थी। तब से विनोबाजी का सीधा संबंध गोसेवा से है। * विनोबाजी ने संकल्प किया कि पूरे भारत मे गोवध-बंदी करने का निश्चय शासन की ओर से जाहिर न हुआ तो वे ११ सितंबर १९७६ से आमरण उपवास करेंगे। इस 'गोसेवा महाव्रत' का प्रचार घर-घर, गांव-गांव जाकर खुले आम किया जाये। * जब हम स्वराज्य प्राप्त कर लेंगे, पाँच मिनिट में एक कलम से गोवध-निषेध कानून पास कर देंगे। - लोकमान्य तिलक * जब तक गोवध होता है, तब तक मुझे ऐसा लगता है कि मेरा खुद का ही वध हो रहा है। मेरे सारे प्रयत्न गोवध रोकने के लिए ही है। - म. गांधी * गोरक्षा मुझे मनुष्य के सारे विकासक्रम में सब से अलौकिक चीज मालूम हुई है। गाय का अर्थ इन्सान के नीचे की सारी मूरू दुनिया करता हूँ। इस में गाय के बहाने इस तत्वद्वारा मनुष्य को सभी चेतन सृष्टि के साथ आत्मीयता करने का प्रयत्न है | - म. गांधी * गाय की रक्षा करो, सबकी रक्षा हो जायेगी। - म. गांधी भारतीय संस्कृति में गाय (भारतीय धर्म मीमांसा सन १९७९, पृथ्वी प्रकाशन, वाराणसी) - डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल भारतीय संस्कृत में गो-तत्व की बडी महिमा है। जिसे गौ-पशु को हम लोक में प्रत्यक्ष देखते है। वह दूध देनेवाले प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। दूध अमृत-भोजन है। वह जीवनभर मनुष्य की देह को सींचता है। भारतीय जलवायु में गोरस-युक्त भोजन ही मानव-शरीर का सर्वोत्तम पोषक है। वह वह स्थूल अन्न के साथ मिलकर भोजन में पोषक-तत्वोंकी संपूर्णता प्रदान करता है। पाँच-सहस्त्र-वर्षों के राष्ट्रीय-अनुभव का निचोड यही है कि घी, दूध, दही, मड़ा भारत की शीतोष्ण-जलवायु में आयुष्य, बल, बुद्धि और खोज की वृद्धि के लिए साक्षात अमृत है। लोकोक्ति यहाँ तक कहती है की 'तक्र भेजोगुण है, वह इंद्र के राजसी भोजन में भी नही है। (तक्र शक्रस्य दुर्लभम्) विदुर का कथन है कि, जिसके पास गो है, उसने भोजन में उत्तम रस का आनंद पा लिया (समाशा गोमाताजिता उद्योग पर्व ३४-३५) स्थूल-दृष्टि से कृषि के लिये भी गों का अनंत उपकार है। एक और गों के जाए बछडे हल खींचकर खेतो को कृषि के लिये तैयार करते है, दूसरी ओर गों का गोबर भूमि की उर्वरा-शक्ति को बढाने के लिए श्रेष्ठ-खाद है, जो सड-फूलकर रश्मियों के प्रकाश और जीवाणुओं से उसे भर देती है। 'कृषि यहाँ का राष्ट्रीय व्यवसाय है। कृषि से ही भारत में जीवन की सत्ता है? जैसा कहा है – राज्ञां सत्वे ह्यसत्वे वा, विरोषो नोपलक्ष्यते। कृषी बलविनाशेतु, जायते जगतो विपत्। अर्थात् - राजाओं के उलट-फेर से कोई विशेष-घटना नहीं घटती। पर यदि किसान का हास होता है, तो सारे जनसमुदाय मे विपत्ति छा जाती है। व्यास जी ने तो यहाँ तक कहा है कि जो किसान नही हैं, या किसानी का व्यापार नही जानता, उसे उस राष्ट्र की समिति का सदस्य नही होना चाहिए - दुग्ध गीतामृतं महत् गीतारूपी सुंदर दूध श्री कृष्णाजीने पिलाया गायें कौनसी थी? उषनिषदः उन गायोंसे कृष्णजीने यह उत्तम गीतामृतम् पिलाया। ऐसी भाषा हम कहीं देखते नहीं। उपलब्ध साहित्य के आधार पर यह निभ्रान्त रूप से कहा जा सकता है कि वर्णित आध्यात्मिक साधना के प्रथम प्रवर्तक जैनियों के प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभनाथ है, जिन्हे आदि ब्रह्मा कहा गया है और श्रीमद भागवत में जिनका निम्न शब्दों मे चित्रांकन हुआ है - ‘इति हस्म सकलवेदलोकदेवब्राह्मणगवां परमगुरोर्भगवत: ऋषभाख्यस्य विशुद्धचरितमीरितं पुंसो समस्त दूरचरितानि हरणाम्।' इस तरह (हे परीक्षित) सम्पूर्ण वेद, लोक, देव, ब्राह्मण और गो के परमगुरू भगवान ऋषभदेव का मह विशुद्ध चरित्र मैंने तुम्हें सुनाया। यह मनुष्यों के समस्त पापों को हरनेवाला हैं। महाभारत में कहा गया है गोधन राष्ट्र समृद्ध करता है, 'गोधनं राष्ट्रवर्धनम्' गावः पवित्रा मांगल्य गोषु लोकाः प्रतिष्ठिता। गवां श्वासात पवित्रा भू स्पर्शनात किल्वीष क्षमा:।। - अग्रिपुराण 1 Link to comment Share on other sites More sharing options...
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