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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का देश के नाम सन्देश


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  1. भारत खेत खलिहानों का देश है, कत्लखानो का नहीं, ग्वालों किसानों का देश है, वधिकों का नहीं।
  2. क्रूरतम अपराधी को मृत्यू-दण्ड मिलता है। निरपराध प्राणियों को मृत्यू-दण्ड देने का अधिकारी बूचडखानों को क्यों मिल रहा है?
  3. पशु-धन हमारी प्राकृतिक धरोहर है, इसके विनाश से न तो हरियाली बचेगी, न ही खुशहाली।
  4. विदेशी-मुद्रा के लिये दुधारू पशुओं का कत्ल कराके माँसनिर्यात करना और विदेशों से भारत में दूध-पाऊडर और गोबर का आयात करना अर्थ-नीति नहीं, अनर्थ-नीति है।
  5. स्वतन्त्रता-दिवस मनाना तभी सार्थक है जब भारत के पशुपक्षियों को भी जीने की स्वतन्त्रता मिले। क्या हमारा देश केवल मनुष्यों का देश है?
  6. पशुओं का शक्तिदायक व स्वास्थ्यवर्धक दूध पीकर उन्हीं का खून करके उनका खून बेचना 'मातृदेवो भव' वाक्य का घोर अपमान है, मातृहत्या-तुल्य भीषण अपराध है।
  7. देश की उन्नति माँस, मछली, अण्डा और मदिरा से असंभव है। क्योंकि हिंसा का धन, मन को त्रस्त और तन को अस्वस्थ करता है, अत: दवाइयों में खर्च होता है- देशोन्नती के लिये नहीं बचता।
  8. भारतीय संस्कृति आतंकवादी नहीं, अहिंसावादी रही है इसलिये मॉस-उद्योग लोक तन्त्र का नहीं, लोभ तन्त्र का विभाग है। एक और पर्यावरण की रक्षा के लिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देना और दूसरी और कत्लखानों में जानवर कटवा कर प्रदूषण फैलाना नीति नहीं, अनीति है |
  9. 'अनुपयोगी' प्राणियों का नाश देश का विनाश है क्योंकि कोई प्राणी कभी भी अनुपयोगी नहीं होता।
  10. कत्लखानों को दुग्ध-उत्पादन केन्द्रों में परिवर्तित करना और कसाईयों को ग्वालों में रूपान्तरित करना उनकी आजीविका का उपयोग है। इससे भारत में पुन: दूध-घी की नदियाँ बहेंगी।
  11. हमारे राष्ट्र-ध्वज के तीन वर्ण शान्ति, प्रेम और अहिंसा के प्रतीक है, तिरंगे को कलंकित होने से बचाएँ।
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