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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

समाधिकरण


संयम स्वर्ण महोत्सव

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समाधिकरण

 

जिसने भी जन्म पाया है, जो भी पैदा हुआ है उसे मरना अवश्य होगा, यह एक अटल नियम है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक लोग इस पर परिश्रम कर के थक लिये कि कोई भी जन्म लेता है तो ठीक, मगर मरता क्यों हैं? मरना नहीं चाहिये। फिर भी इस में सफल हुआ हो ऐसा एक भी आदमी इस भूतल पर नहीं दिख पड़ा रहा है। धन्वन्तरिजी वैष्णवों के चौबीस अवतारों में से एक अवतार माने गये हैं। कहा जाता है कि जहां वे खड़े हो जाते थे, वहां की जड़ी बूटियां भी पुकार-पुकारकर कहने लगती थीं कि मैं इस बीमारी में काम आती हूं, मैं अमुक रोग को जड़ से उखाड़ डालती हूं। मगर एक दिन आया कि धन्वन्तरि खुद ही इस भूतल पर से चल बसे । जड़ी बूटिया यहीं पड़ी रहीं और धन्वन्तरि शरीर त्याग कर चले गये, उनका औषधिज्ञान इस विषय में कुछ भी काम नहीं आया।

 

मुसलमानों में भी लुकमान जैसे हकीम हुए हैं जो कि चौदह पीरों में से एक पीर कहे जाते हैं। मगर मौत आकर उनका भी लुकमा कर देगी। जैसे सिंह हिरण को और बाज तीतर को धर दबाता है, वैसे ही मौत मनुष्यों को एवं सभी शरीरधारियों को हड़प लेती है। वह कब किसको अपना ग्रास बनायेगी यह निश्चित रूप से हम तुम सरीखा नहीं जान सकता है। अनेक लोग मौत से बचने के लिए टोणा-टामण, जन्तर-मन्तर करते हैं। ताबीज बनाकर गले में बांधते हैं। फिर भी मौत अपना दाव नहीं चूकती, समय पर आ ही दबाती है। उससे बचने के लिए शरीरधारी के पास कोई चारा है ही नहीं। ऐसी हालत में समझदार आदमी मौत से डर कर क्यों भागे; और भाग कर जावे भी कहां, उसके लिए जगह भी कहां तथा कौन-सी है जहां कि वह उससे बचा रहे? 

 

हां, तो इसका क्या यह अर्थ है कि गले में अंगुली डाल कर मर जाना चाहिये? सो नहीं, क्योंकि ऐसा करना तो नर से नारायण बना देने वाले इस मानव शरीर के साथ विद्रोह करना है, चिन्तामणि रत्न को हथोड़े की चोट से बरबाद करना है। यह पहले दर्जे की बेसमझी है। परन्तु इसको किराये की कोठरी के समान समझते हुए रहना चाहिये। जैसे किसी को कुछ अभीष्ट करना हो और उसके पास अपना नियत स्थान न हो वह किसी किराये के मकान में रह कर अपने उस कार्य का साधन किया करता है। सिर्फ वहां पर रहकर अपना कार्य कर बताने पर दृष्टि रखता है, न कि उस मकान का मालिक ही बन बैठता है। मकान को तो मकानदार जब भी खाली करवाना चाहे करवा सकता है। यह उसे बेउजर खाली कर देने को तैयार रहता है। क्योंकि मकान उसका है। हां जब तक उसमें रहे यथा शक्य झाड़-पौंछ कर साफ-सुथरा किये रहे, यह उसकी समझदारी है। | जीवात्मा ने भी भगवान का भजन कर अपना कल्याण करने को इस शरीर रूपी कुटिया को अपना स्थान बनाया है तो इसमें रहते हुए इसके सम्मुख अनेक तरह के भले और बुरे प्रसंग आ उपस्थित होते हैं। उनमें से बुरे को बुरा मानकर उनसे दूर भागने की चेष्टा करना और भलों को भला मानकर उसके पीछे ही लगा रहना- उस उलझन में फंस जाना ठीक नहीं। किन्तु उन दोनों तरह के प्रसंगों में तटस्थ रूप से सुप्रसन्न होकर निरन्तर परम परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिये। फिर यह शरीर यदि कुछ दिन टिका रहे तो ठीक और आज ही नष्ट हो जावे तो भी कोई हानि नहीं, ऐसे सुप्रसिद्ध पुरुष के लिए मौत का कोई डर नहीं रह जाता, जिस मौत के नाम को सुन कर भी संसारी जीव थर-थर कांपा करते हैं।

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