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नशेबाजी से दूर हो


संयम स्वर्ण महोत्सव

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नशेबाजी से दूर हो

 

दुनिया की चीजों में से कुछ अन्न आदि चीजें तो ऐसी हैं जिनका संबंध मनुष्य की बुद्धि के साथ में नहीं होकर वे सब केवल शरीर के सम्पोषण के लिये ही खाये जाते हैं। ब्राह्मी, शंख पुष्पी आदि जड़ी बूटियां ऐसी हैं जो मनुष्य की बुद्धि को ठिकाने पर रखकर उसके बढ़ाने में सहायक होती है परन्तु भांग, तम्बाकू, चरस, गांजा, सुलफा वगैरह वस्तुएं ऐसी भी हैं जो उत्तेजना देकर मनुष्य की बुद्धि को विकृत बना डालती हैं। जिनके सेवन करने से काम वासना उद्दीप्त होती है। अतः ऐस चीजों को कामुक लोग पहले तो शौकिया रूप से सेवन करने लगते हैं मगर जिस चीज का उन्हें नशा करने की आदत हो जाती है वह चीज यदि नहीं मिले तो विकल हो उठते हैं। बाज-बाज आदमी तो नशे का इतना आदी हो जाता है कि उस नशे की धुन में अपने आपको भी भूलकर न करने लायक घोर अनर्थ करने को उतारू हो जाता है।

 

एक बार की बात है कि एक अफीमची अपनी औरत को ले आने के लिए सुसराल को गया। वहां से अपनी प्राणप्यारी को लेकर वापस लौटा तो अपनी अफीम की डिबिया को वहीं भूल कर आ गया। रास्ते में जब उसके अफीम खाने का समय आया, देखे तो अफीम की डिबिया तो है नहीं। यह देखकर वह बड़ी चिन्ता में पड़ गया और वहीं पर एक वृक्ष के नीचे बैठ गया।

 

औरत बोली कोई बात नहीं, गांव अब थोड़ी ही दूर रहा है अभी चले चलते हैं। मर्द ने कहा मेरे से तो अब बिना अफीम के एक पैंड भी नहीं चला जावेगा। स्त्री ने कहा यहां जंगल में अफीम कहां रखी है? फिर भी अफीमची ने नहीं माना। स्त्री बड़ी उलझन में पड़ी और इधर-दधर देखने लगी तो एक कुटिया दीख पड़ी, वहां गई तो उसमें एक आदमी बैठा पाया। जाकर बोली कि महाशय! क्या आपके पास में कुछ अफीम मिल सकती है? मेरे स्वामी अफीम खाया करते हैं, उनके पास अफीम नहीं रही है। वह बोला अफीम है। तो सही मगर वह मुफ्त में थोड़े ही मिलती है। स्त्री ने कहा आप जो उचित समझें वह मूल्य ले लीजिये और एक खुराक की दे दीजिये। कुटीचर ने कहा अफीम की एक खुराक का मूल्य एक बार एकान्तवा । यह सुनते ही स्त्री दंग रह गयी और अपने स्वामी के पास लौटकर आयी तो स्वामी ने फिर यही बात कहीं कि मैं क्या करूं? मैं तो अफीम के पीछे विवश हूं अतः जैसे हो वैसे ही मुझे अफीम लाकर दे तभी कुछ आगे की सूझेगी।

 

बन्धुओ ! देखा आपने अफीमची का हाल ! अफीमची का ही नहीं सभी तरह के नशेबाजों का ऐसा ही हिसाब है! कोई कैसा भी नशा करने वाला क्यों न हो उसकी चेतना तो उस नशे के आधीन हुआ करती है। कम से कम तम्बाकू बीड़ी पीने वाले को ही ले लीजिये। उनके पास भी समय पर तम्बाकू न होगा तो वह भी चाहे जिससे तम्बाकू मांगकर पीना चाहेगा। इसीलिए कहावत भी प्रसिद्ध है कि - "अगर नहीं मांगना जानता भीख, तो तम्बाकू पीना सीख' तम्बाकू पीने वाला स्वयं यह अनुभव करता है कि इसकी ही वजह से मुझे खांसी, श्वासादि अनेक रोग हो रहे हैं, फिर भी वह उसे छोड़ने के लिये लाचार हो रहता है। मतलब यह कि नशेबाज आदमी धर्म, धन और शरीर तीनों का ही खो डालता है इसीलिये हमारे महर्षियों ने इसे दुर्व्यसन बताया है। उन सब नशों में शराब का नशा सबसे अधिक बुरा है। गुड़, महुआ आदि चीजों को सड़ाकर उनसे शराब बनायी जाती है जो कि बहुत से त्रस जीवों को कलेवरमय हुआ करती है अतः उसका पीने वाला प्रथम तो बहुत से त्रस जीवों की हिंसा का पातकी बनता है फिर शराब की लत भी ऐसी बुरी होती है कि जिसमें भी वह पड़ गई , छूटना दुश्वार हो जाता है, शराब के नशे में चूर हुआ मनुष्य पागल ही क्या बाज-बाज मौंके पर तो बिल्कुल बे-भाव ही हो रहता है। इस शराबखोरी में पड़कर कितने ही भले घराने भी बिगड़कर बरबाद हो गये हैं। शराब पीये हुए के मुंह से ऐसी बुरी दुर्गन्ध आती है कि कोई भी भला आदमी उसके पास बैठना नहीं चाहता है। शराब पीना या और भी किसी प्रकार का नशा करना व्यभिचार का तो मूल सूत्र है। साथ ही वह मांस खाने की प्रेरणा देता है, मांस खाने वाला शिकार करने को बाध्य होता है। शिकार करना चोरी या दगेबाजी से खाली नहीं है। हठात् किसी के प्राणधन को अपहरण करना तो सबसे बड़ी चोरी है। इस प्रकार शराबखोरी सब तरह के अनर्थों का प्रधान कारण है ऐसा सोचकर समझदारों को इससे सर्वथा दूर ही रहना चाहिए।

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