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रात्रि में भोजन करना मनुष्य के लिए अप्राकृतिक है


संयम स्वर्ण महोत्सव

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रात्रि में भोजन करना मनुष्य के लिए अप्राकृतिक है

 

शारीरिक शास्त्र जो कि मनुष्य स्वास्थ्य को दृष्टि में रख कर बना उसका कहना है कि दिन में पित्त प्रधान रहता है तो रात्रि में कफ। एवं भोजन को पचाना पित्त का कार्य है अतः मनुष्य को दिन में ही भोजन करना चाहिये। इसलिये वैद्य लोग अपने रोगी को लंघन कराने के अनन्तर जो पथ्य देते हैं वह कर्तव्य पथ प्रदर्शन रात्रि में कभी भी न देकर दिन में ही देते हैं। दिन में भी सूर्योदय से एक डेढ़ घण्टे बाद से लगातार मध्यान्ह के बारह बजे से पहले ही पथ्य देने का आदेश करते हैं क्योंकि पित्त का समुत्तम काल यही है। हां एक बार का योग्य रीति से खाया हुआ अन्न अधिक से अधिक छः घण्टे में पचकर फिर दुबारा खाने की प्रेरणा देता है। यानी दस बारह बजे के बीच में जिस आदमी ने भोजन किया है। उसे चार छ: बजे के बीच में फिर खाने की आवश्यकता हो जाती है। परन्तु अपरान्ह में जो किया जाये वह स्वल्प मात्रा में होना चाहिये ताकि वह कफ का काल आने से पहले पचा लिया जा सके। ऐसी हमें हमारे वैद्यक शास्त्र की आज्ञा है।

 

रात्रि में कफ प्रधान, काम सेवन का और शयन का समय आ जाता है सो काम सेवन भी भोजनानन्तर में नहीं किन्तु भोजन का परिपाक होने पर करना ठीक होता है तथा शयन करना, नींद लेना तो भोजनानन्तर में बिल्कुल ही विरुद्ध कहा गया है। दिन में भी जब किसी रोगी को पथ्य दिया जाता है तो उसे उस अन्न के गहल से नींद आने लगती है फिर भी हमारे प्राणाचार्यों का कहना होता है कि अभी इसे नींद नहीं लेने देना अन्यथा तो यह खाया हुआ अन्न जहर बन जायेगा।

 

दिनभर काम करके थे कुएं मनुष्य को अपनी थकान दूर करने के लिए कम से कम छ:घण्टे नींद लेना भी जरूरी माना गया है। अतः सूर्यास्त के समय सन्ध्या वन्दन करने के अनन्तर कुछ समय हास्यविनोद में बिताकर फिर रात्रि के दस बजे से लेकर चार बजे रात तक नींद लेनी चाहिये। चार बजे के बाद प्रातः काल में अपने शरीर रूप यंत्र के पुरजों को संशोधन कर साफ सुथरा बनाने के लिए भगवद्भजन पूर्वक शौच जाना और स्नान करना भी जरूरी हो जाता है।

 

फलितार्थ यह निकला कि दिन के नौ दस बजे से लेकर दिन के चार पांच बजे तक का समय मनुष्य के लिए भोजन के योग्य होता है। उसमें त्यागी, ब्रह्मचारियों के लिए तो महर्षियों ने एक ही बार भोजन करने का आदेश दिया है। गृहस्थ लोग पूर्वान्ह में और अपरान्ह में इस तरह दो बार भोजन कर सकते हैं किन्तु जो लोग रात दिन में कई बार भोजन करते हैं, जब चाहा तभी खा लिया ऐसी आदत वाले होते हैं, वे लोग अपने मनचलेपन की वजह से मनुष्यता को भूले हुए हैं ऐसा हमारे महापुरुषों का कहना है। एवं जो लोग रात में भी खाने से ही धंधा रखते हैं उनमें और निशाचरों में तो फिर कोई भी अन्तर नहीं रह जाता है।

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