दूध का उपयोग
दूध का उपयोग
भोले भाई ही नहीं बल्कि कुछ पढ़े लिखे लोग भी ऐसा कहते हुए पाये जाते हैं कि जो दूध पीता है वह भी तो एक प्रकार से मांस खाने वाला है, क्योंकि दूध मांस से ही होकर आता है, फिर दूध तो पिया जाये और मांस खाना छोड़ा जाए यह व्यर्थ की बात है। उन ऐसा कहने वाले भले आदमियों को जरा सोचना चाहिये कि अन्न भी तो खाद में से पैदा होता है सो क्या अनाज को खाने वाला खाद को भी लेता है? नहीं, क्योंकि खाद के गुण -धर्म कुछ और हैं तो अन्न के गुण -धर्म कुछ और ही। अत: खाद जुदी चीज है तो अन्न उससे जुदी चीज। इसी प्रकार मांस जुदी चीज है और उसी जगह पैदा होने वाला दुध उससे जुदी चीज। मांस तमोगुण समुत्पादक है तो दूध सतोगुण सम्पादक। किसी के मांस को नोचा जावे तो कष्ट देने वाला हो रहता है। किन्तु दुध को अगर न निकाला जावे तो कष्ट देने वाला हो रहता है। मांस उस-उस प्राणी के शरीर का आधारभूत होता है तो दूध किसी के किसी समय कुछ काल तक के लिये। मांस हर समय हर हालत में कीटाणुओं का समुत्पत्ति स्थान होता है। तो ताजा दूध कीटाणुओं से रहित, इत्यादि कारणों से मांस अग्राह्य है किन्तु दूध ग्रहण करने योग्य।
यहां पर एक तर्क और भी उठाया जा सकता है कि गाय का दूध निकालने वाला आदमी उसके बच्चे के हक को छीन लेता है। अत: वह ठीक नहीं करता, परन्तु इस ऐसा कहने वाले को जरा सोचना चाहिये कि अगर गाय के दूध पर सर्वथा उसके बच्चे का ही अधिकार है, वह उसी के हक की चीज है तो फिर जो उस गाय को पालता पोषता है उसका भी कोई हक है या नहीं। यदि कहा जावे कि कुछ नहीं, तो फिर वह उसे क्यों पालता-पोषता है? हां, जब तक कि बच्चा घास खाना न सीख जावे तब तक उसका ध्यान अवश्य रखना चाहिये। बाद में भी सारा का सारा ही न निकालकर कुछ दूध उसके लिये भी छोड़ते रहना चाहिए।
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