गरीब कौन है
गरीब कौन है
जिसके पास कुछ नहीं है वह। ऐसा कहना भूल से खाली नहीं है। जिसके पास भले ही कुछ न हो परन्तु उसे किसी बात की चाह भी न हो तो वह गरीब नहीं, वह तो अटूट धन का धनी है। गरीब तो वही है जिसके पास में अपने निर्वाह से भी अधिक सामग्री मौजूद है फिर भी उसकी चाह पूरी नहीं हुई है। जिसके पास खाने को कुछ भी नहीं है और उसने खाया भी नहीं मगर भूख बिल्कुल नहीं है तो क्या उसे भूखा कहां जावे? नहीं। हां जिसने दो लडडू तो खा लिए हैं और चार लडडू उसकी पत्तल में धरे हैं जिसको कि वह खाने लग रहा है किन्तु फिर भी कह रहा है मुझे और चाहिये, इतने ही से मुझे क्या होगा? क्या इनसे मेरा पेट भर सकता है? तो कहना होगा वही भूखा है।
एक समय किसी वृक्ष के नीचे एक परमहंस महात्मा बैठे हुए थे? उनके पास होकर के भोला गृहस्थ निकला तो-ओह ! वह बड़ा गरीब है, इसके तन पर कपड़ा नहीं, खाने को एक समय का खाना नहीं। ऐसा सोचकर कहने लगा स्वामिन् ! ये दो लडडू हैं, खा लीजिये। यह धोती है इसे पहन लीजिये और यह चार पैसे आपके हाथ खर्चे के लिए देता हूं सो भी ले लीजिये एवं आराम से रहिये। साधुजी बोले- भाई ! लडडू किसी भूखे को, धोती किसी नंगे को और पैसे किसी गरीब को दे दो। यह सुनकर आश्चर्यपूर्वक गृहस्थ बोला-प्रभो ! आपके सिवा दूसरा ऐसा कौन मिलेगा? तब फिर साधुजी बोले, भाई ! मैं तो भगवान का भजन कर रहा हूं जिससे मेरा पेट भरा रहता है। कुदरत ने मुझे बहुत लम्बी आसमान की चादर दे रखी है और चलने फिरने के लिए मेरे पैर हैं, अब मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है। यदि तुझे देना ही है तो मेरे पास बैठ जा- मैं बताऊंगा उसे दे देना।
थोड़ी देर में मोटर में बैठा हुआ एक महाशय आया जिसे देखकर साधु ने उस गृहस्थ को इशारा किया कि इसको दे दो। गृहस्थ - मैं मेरी ये चीजें किसी गरीब को दे देना चाहता था। स्वामी जी ने कहा, वह मोटर में बैठा जा रहा है। सो गरीब है इसे दे दो। इसलिये आपको दे रहा हूं- ऐसा कहकर उसकी गोद में रखने लगा तो वह चौंक उठा और नीचे उतरकर साधुजी के पास आ, नमस्कार पूर्वक बोला-स्वामिन् ! आपने मुझे गरीब कैसे समझा? देखिये मेरे पास यह मोटर ही नहीं और भी कई मोटरे हैं। घोड़ा गाड़ी, टम-टम भी है, दस खत्तियां अनाज की भरकर रखता हूं जो कि फसल पर भी ली जाती है और फिर तेजी होने पर बेच कर खलास कर ली जाती है। एक सराफे की दुकान चलती है जिसमें पाकिस्तान से ले आया हुआ सोना खरीदकर रखा जाता है। और वह दो रुपये तोला सस्ते में अपने ग्राहकों को दिया जाता है ताकि दुकान खूब अच्छी चलती है। लोग समझते हैं कि पाकिस्तान का सोना खरीदना और बेचना बुरी बात है। परन्तु मैं जानता हूं कि इसमें कौनसी बुराई है? गैर देश का माल अपने देश में आता है एवं यहां के लोगों को सस्ते में मिल जाता है सो यह तो बहुत अच्छी बात है। अगर कोई सरकारी निरीक्षक आया तो उसकी जेब गरम कर दी जाती है, काम बेखटके चलता है। एक कपड़े की दुकान है जिसमें खादी वगैरह मोटा कपड़ा न बेचा जाकर फैशनी बारीक कपड़ा बेचा जाता है। ताकि मुनाफा अच्छा बैठता है। अब एक कपड़े की मिल खोलना चाहता हूं जिसमें दो करोड़ रुपये लगेंगे। सो एक करोड़ रुपये तो मेरे दानेश्वरसिंह की तरफ हैं। यद्यपि वह इस समय देना नहीं चाह रहा है परन्तु मेरा नाम भी शोषणसिंह है। उसने महाविद्यालय, अनाथालय आदि संस्थायें खोल रखी हैं। जो कि उसके नाम से चलती हैं। मैं कचहरी जाता हूं नालिस करके उसकी संस्थाओं की इमारत को कुड़क करवाकर वसूल कर लूंगा। बाकी एक करोड़ रुपयों के शेयर बेचकर लिए जावेंगे। इस पर साधुजी ने कहा कि इसलिये मैं तुमको गरीब बतला रहा हूं। तुम्हें पैसा प्राप्त करने की बहुत ज्यादा जरूरत है, ताकि किसी सज्जन के द्वारा स्थापित की हुई पारमार्थिक संस्थाओं को नष्ट-भ्रष्ट करके भी अपनी हवस पूरी करना चाहते हो, एवं अन्नादि का अनुचित संग्रह करके भी पैसा बटोरने की धुन रखते हो।
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