सत्य परमेश्वर है
सत्य परमेश्वर है
मैं जब बालबोध कक्षा में पढ़ रहा था तो एक दोहा मेरी किताब में आया।
साँच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप।
जाके मन में साँच है, वाके मन में आप॥
इसमें आये हुए आप शब्द का अर्थ अध्यापक महोदय ने परमेश्वर बतलाया जो कि मेरी समझ में नहीं आया। मैं सोचने लगा साँच तो झूठ का प्रतिपक्षी है, बोलचाल की चीज है, उसका ईश्वर के साथ में क्या संबंध हुआ? परन्तु अब देखता हूं कि उनका कहना ठीक था। क्योंकि दुनियां के जितने भी कार्य हैं वे सब सत्य के भरोसे पर ही चल रहे हैं। आप लोगों की धारणा भी यही है कि दुनियां का नियन्ता या कर्ता-धर्ता परमेश्वर है। ऐसी हालत में यह ठीक ही है कि सत्य ही परमेश्वर है जिसके कि सर्वथा न होने पर विश्व के सारे काम ठप्प हो जाते हैं। महात्मा गांधी ने जब सत्याग्रह का काम चालू किया तो सबसे पहले उन्होंने यही कहा कि जो लोग परमेश्वर पर भरोसा रखते हों वे ही लोग मेरे इस आन्दोलन में शामिल होवे। इस पर किसी भद्र पुरुष ने सवाल किया कि क्या फिर आपके इस काम में जैन लोग न आवें? क्योंकि वे लोग ईश्वर को नहीं मानते हैं, परन्तु महात्माजी ने कहा कि तुम भूलते हो क्योंकि जो सत्य और अहिंसा को मानता है वह ईश्वर को अवश्य मानता है।
मतलब यह कि जैन लोग ईश्वर को नहीं मानते सो बात नहीं किन्तु उनके विचारानुसार ईश्वर हमारे हरेक कार्य करने वाला हमारा कोई नौकर नहीं है किन्तु पदार्थ परिणमानशील स्वभाव है जिसका कि दूसरा नाम सत्य है। उस पर भरोसा लाकर अपना काम खुद करते हैं। हमें जब जो काम करना होता है तब अपने साहस, धैर्य और प्रयत्न से उसके योग्य साधन सामग्री को जुटाकर एवं उसकी बाधक सामग्री से बचते हुए रहकर उसे कर बताते हैं। हां, हम छद्यस्थों की बुद्धि की मन्दता से उपर्युक्त प्रयत्न में जो कुछ कमी रह जाती है तो उतनी ही उस कार्य में सफलता कम मिलती है एवं प्रयत्न विपरीत हो जाने पर कार्य भी विपरीत होता रहता है। हां, कितने ही कार्य जैसे वर्षा का होना, सर्दी का फैलना, गर्मी का पड़ना आदि कार्य उपर्युक्त सत्य के आधार पर तत्काल के वातावरण को पाकर ही सम्पन्न होते रहते हैं उन्हें प्राकृतिक कहा जाता है। परन्तु उपर्युक्त वातावरण के समुद्गम में भी हम सरीखे प्राणियों का अहिंसा भाव उपयोगी होता है। इस तरह से सत्यनारायण को विश्व का सम्पादक तथा अहिंसा उसकी शक्ति है ऐसा कहा जावे तो कोई अनहोनी बात नहीं है।
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