Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

अहिंसा की निरूक्ति


संयम स्वर्ण महोत्सव

278 views

अहिंसा की निरूक्ति

 

हिंसा के अभाव का नाम अहिंसा है। हनन हिंसा, इस प्रकार हन धातु से हिंसा शब्द निष्पन्न हुआ है जो कि हन धातु सकर्मक है। यानी किसी को भी मार देना, कष्ट पहुंचाना, सताना हिंसा है। परन्तु किसी भी अबोध बालक का पिता, गलती करते हुऐ अपने उस बच्चे की गलती सुधारने के लिए उसे डराता, धमकाता है और फिर भी नहीं मानने पर उसे मारता, पीटता है। अब शब्दार्थ के ऊपर ध्यान देने से पिता का यह काम हिंसा में आ जाता है

 

एवं यह हिंसक बनकर पापी ठहरता है जो कि किसी भी प्रकार किसी को भी अभीष्ट नहीं है। अत: उस दुर्गुण से बचने के लिए हमारे महापुरुषों ने इसमें एक विशेषता स्वीकार की है। वह यह कि किसी को भी बरबाद कर देने की दृष्टि से उसे कष्ट दिया जावे तो वह हिंसा है। जैसा कि उमास्वामी महाराज के प्रमत्त योगात्प्राणज्यपरोपणं हिंसा' इस सूत्र से स्पष्ट है। मतलब यह है कि जो उसके पालन-पोषण का पूर्ण अधिकारी है वह बालक के जीवन को निराकुल बनाने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहता है। तो बालक जबकि अपने भोलेपन के कारण उसके जीवन को समुन्नत बनाने वाली भलाई की ओर न बढ़कर प्रत्युत बुराइयों में फंसने लगता है तब ऐसा करने से रोकने के लिए उसे डांट बताना पिता का कर्तव्य हो जाता है। इस प्रकार अपने कर्तव्य का निवार्ह करता हुआ पिता पुत्र का मारक नहीं किन्तु, संजीवक, संरक्षण होकर उसके द्वारा सदा के लिए समादरणीय होता है।

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
  • बने सदस्य वेबसाइट के

    इस वेबसाइट के निशुल्क सदस्य आप गूगल, फेसबुक से लॉग इन कर बन सकते हैं 

    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें |

    डाउनलोड करने ले लिए यह लिंक खोले https://vidyasagar.guru/app/ 

     

     

×
×
  • Create New...