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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

पुराने समय की बात


पुराने समय की बात

 

एक शाही घराना था। सेठ सेठानी प्रौढ अवस्था पर थे। जिन के पांच लड़के और सबसे छोटी लड़की थी। बड़े चारों लड़कों की शादियां होकर उनके बाल बच्चे भी हो गये थे। छोटे लड़के की भी शादी तो हो गई थी मगर बहू अभी अपने पिता के यहां ही थी। यहां घर पर एक कन्या चार बहुयें और एक सास इस प्रकार छह औरतें थी जो सब मिलजुल कर घर का कार्य चलाना चाहती तो अच्छी तरह से चला सकती थी परन्तु परस्पर प्रेम का अभाव होने से तेरे मेरे में ही उनका अधिकांश समय बरबाद हो जाता था।

 

एक सोचती थी कि मुझे काम कम करना पड़े और आराम विशेष मिले, तो दूसरी सोचती थी कि मैं ही काम क्यों करूं? इस तरह से कलह का साम्राज्य हो गया था। इसी बीच में छोटी बहू मायके (पीहर) से आई जो कि एक शिक्षित घराने की लड़की थी। उसने बालकपन में अच्छी शिक्षा पाई थी, भले संस्कारों में पली थी। वह जब आई और घर का वातावरण दूषित देखा तो घबरा गई । वह क्या देखती है कि सास और जेठानियां बिना कुछ बात पर आपस में लड़ रही हैं। यह देखकर वह रो पड़ी और मन ही मन सोचने लगी कि हे भगवान! क्या मेरे भाग्य में यही सिनेमा देखने को बचा है? मैं यहां किस तरह से अपनी जिन्दगी बिता सकूंगी। यों रोते-रोते वह थक गई और बेहोश सी हो गई। आवाज आई कि उठ सावधान हो! लोहे को कंचन बनाने के लिये पारस के समान तेरा समागम इस घर को सुधारने के लिये ही तो हुआ है।

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