श्रावक की सार्थकता
श्रावक की सार्थकता
श्रावक शब्द का सीधा सा अर्थ होता है, सुनने वाला एवं सुनने वाले तो वे सभी प्राणी हैं जिनके कान हैं। अत: ऐसा करने से कोई ठीक मतलब नहीं निकलता। हम देखते हैं कि किसी भी पंचायत या न्यायालय में कोई पुकारने वाला पुकारता है। उसकी पुकार पर ध्यानपूर्वक विचार करके यदि उसका समुचित प्रबन्ध नहीं किया जाता है तो वह कह उठता है कि यहां पर किसकी कौन सुनने वाला है? कितना भी क्यों न पुकारों। मतलब उसका यह नहीं कि वहां सभी बहरे हैं, परन्तु सुनकर उसका ठीक उपयोग नहीं, पुकारने वाले की पीड़ा का योग्य रीति से प्रतिकार नहीं, बस इसीलये कहा जाता है कि कोई सुनने वाला नहीं।
हमारे पूर्वजों ने भी उसी को श्रावक कह पुकारा है जो कि आर्ष वाक्यों को न्यायालय के नियमों के रूप में अटल मान कर श्रद्धा पूर्वक स्वीकार किये हुये हो, जिसका हृदय विचार पूर्ण भावना से ओत-प्रोत हो। अत: किसी को भी कोई प्रकार की विपत्ति में पड़ा हुआ पाकर उसका वहां से उद्धार किये बिना जिसे कभी चैन नहीं हो एवं अपने तन,मन और धन के द्वारा सब तरह से समाज सेवा के लिए हर समय तैयार रहने वाला हो।
वह खुद अनीति-पथ में पैर रखे यह तो कभी संभव ही नहीं हो सकता, प्रत्युत वह औरों को भी कुमार्ग में जाते हुए देखता है तो आश्चर्य में डूबा रहता है कि यह ऐसा क्यों हो रहा है? इस प्रकार मधुर और कोमल दिल वाला जो कोई हो जाता है वही श्रावक कहलाता है। भले ही वह परिस्थिति के वश होकर अपना कायिक संबंध कुछ लोगों के साथ में ही स्थापित किये हुए हो फिर भी अपनी मनोभावना से सब लोगों को ही नहीं अपितु प्राणी मात्रा को अपना कुटुम्ब समझता है- अत: किसी का भी कोई बिगाड़ कर देना या हो जाना उसकी निगाह में बहुत बात होती है। हां, सन्मार्ग के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धावान होता है। अतः सन्मार्ग पर चलने वालों पर उसका विशेष अनुराग हुआ करता है एवं वह हर तरह से उनकी उपासना में निहित रहता है। इसलिये उपासक भी कहा जाता है।
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