रायपुर पंचकल्याणक महोसत्व के सानन्द समापन पर "विशिष्ट भक्तो" ने खेली होली
संयम स्वर्ण जयंती वर्ष में परमपूज्य आचार्यश्री ससंघ के सानिध्य में छतीसगढ़ के तृतीय पंचकल्याणक रायपुर में सानन्द सम्पन्न हुए अभी कुछ ही मिनट हुए थे लेकिन आचार्यश्री के इन विशिष्ट भक्तों ने दो तीन पहले तैयारी कर रखी थी वह भला हो जो सूरजदादा के रौद्र रूप को देख चुप हो जाते थे।
आज ज्योहीं वृषभ रथ पर भगवान आदिनाथ की फेरी का समापन हुआ श्रीजी पांडाल में पहुचे थे वैसे ही इंद्रदेव हर्षित होकर तांडव नृत्य जिसे हम आम बोलचाल में भांगड़ा कहते है के लिए एक पैर पर खड़े थे पवनदेव अपने संग काली, कजरारी, अल्हड़, बदलियों की टोली को संग ले आये इन सबकी योजना देख आज सूरजदादा समझ गये थे कि होसकता है आचार्यश्री मंच पर नही आ रहे है सो इनको मेरी तो मानना ही नही है अपन यहा से हट चलो। इनकी संगत में अपन क्यो बदनाम हो।
परमपूज्य मुनिश्री निर्लोभसागरजी, पूज्य सम्भवसागर जी महाराज के प्रवचन के बाद ज्येष्ठ श्रेष्ठ मुनिराज योगसागरजी महाराज ने संक्षिप्त लेकिन सारगर्भित उपदेश दिए जैसे ही समस्त मुनिराज पांडाल से सन्त भवन की ओर बढ़ रहे थे वैसे ही पवनदेव के संग मूकमाटी की वंशज धूल भी इठलाती संग हो ली इन इन्द्र परिवार के टोले में पेड़ो वृक्षो ने भी खूब झूम झूम कर नृत्य किया कई अल्हड़ वृक्षो के बेढंगे नृत्य ने बड़े बुजुर्ग पेड़ो को या तो उन्हें घायल कर दिया या धराशाई कर दिया ।
हम सभी श्रावक परिवार इनके हुड़दंग मन मसोस कर देख रहे थे कब ये शांत हो और कब हम सन्ध्या भोजन कर अपने नगरो की ओर प्रस्थान करें।
कुछ भी कहे आचार्यश्री के ये विशिष्ट भक्त भी बहुत शरारती बच्चों जैसे है जब सन्ध्या गुरुभक्ति के समय आचार्यश्री अस्थाई जिनालय में आये उस समय ऐसा बिल्कुल नही लग रहा था कि यहां इन भक्तो ने आनन्द मनाया होगा।
हम श्रावकगण भी खैर मनाते आश्वस्त रहे कि इन भक्तो की होली मात्र एक से डेढ़ घण्टे ही रही वरना बेमौसम रंगोत्सव से भीगते और सन्ध्या भोजन से भी चूक जाते लेकिन यह हम सभी के मन का भ्रम था कुछ भी कहे आचार्यश्री के ये विशिष्ट भक्त सब कर सकते है लेकिन गुरुभक्तों को परेशानी कष्ट हो ऐसा वे सोच भी नही सकते
रायपुर पंचकल्याणक महोसत्व के समापन पर इस रंगोत्सव की आंखों देखी की झलक के साथ
-राजेश जैन भिलाई
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