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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

इंटरव्ह्यु में क्रीम बच जाती है !


संयम स्वर्ण महोत्सव

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चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की आयु के थोडा रह जाने पर आहार ग्रहण करने पर भी शरीर नहीं ठहरता! एक बार श्रधा के नष्ट हो जाने पर उसका पुनह प्राप्त होना दुर्लभ है ! तप में दोष लगने पर बहुत निर्जरा नहीं हो सकती ! बड़ा धंधा करने में जैसे बड़ी पूंजी लगती हैं उसी प्रकार संलेखना में पूरी शक्ति लगानी पड़ती है ! प्रशासन सम्बन्धी परीक्षाओं में संकेत दिया जाता है की तयारी करें और लाखों की संख्या में परीक्षार्थी परीक्षा में बैठते हैं लेकिन उसमे से लगभग 10 प्रतिशत (10000 ) को ही सेलेक्ट किया जाता है, उसमे से भी कई छट जाते हैं और इंटरव्ह्यु में क्रीम बच जाती है ! यह उदहारण है, ऐसे ही संलेखना में होता है, इसको मामूली नहीं समझों, इसमें सुप्प्लिमेंट्री ही नहीं फेल हो जाते हैं ! पेट भरने के बाद कई लोग त्याग करते हैं भोजन ! यहाँ प्रसंग चारो प्रकार के आहार का आजीवन नियम का चल रहा है ! उन मुनिराज के पास दूर – दूर से दर्शन करने आते हैं लोग ! जैसे विद्यार्थी को परीक्षा का ध्यान रहता है ऐसे ही व्रती को संलेखना स्मृति में रहना चाहिए ! जीवन में कभी भी कोई घटना, दुर्घटना हो सकती है ! मरण को मांगलिक समझें, मरण भी उत्साहपूर्वक होना चाहिए ! संकल्प का महत्त्व होता है ! यहाँ वेलकम नहीं वेलगो होता है !

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