शब्द की यात्रा तीन लोक तक होती है !
चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की उचित स्मृति रहती है तो विषयांतर नहीं होता है ! यह समझ भी आ जाता है की ठोस ज्ञान कितना है ! आप कई पृष्ठ पढ़ लो लेकिन उपयोग में नहीं आया तो क्या मतलब ! प्रतिभा संपन्न विद्यार्थी हमेशा परीक्षा को लेकर अलर्ट रहता है ! खूब लिखने से भी कुछ नहीं होता सही लिखोगे तो ही नंबर मिलेंगे ! शब्द जो आप बोलते हैं तीन लोक तक जाता है ! नदी कभी घर तक नहीं आती हमें जाना पड़ता है ! लोग कहते हैं नल आ गया पर नल तो वहीं रहता है ! आज लोग चाहते हैं की हमारे मुख में बटन दबाते ही पाने आ जाए ! आचार्य ज्ञान, दर्शन और चारित्र में विशुद्ध होना चाहिए ! जैसे वस्त्र आदि से बनी पताका जय को प्रकट करती है ! वैसे ही आराधना भी संसार में विमुक्ति को प्रकट करती है ! जिसका जीवन वर्गीकृत नहीं है वह निश्चित फेल होगा ! किसी कार्य को करने से पहले कर्मठता जरुरी है !
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