भाव नगर में जहाज तोड़ते है !
चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान दिगम्बर जैन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की शरीर का त्याग करना सुख, शांति की प्राप्ति का कारण है ! उसके तीव्र वेदना होने पर जीवन की आशा नष्ट हो जाती है ! मुक्ति को खोजने वाला साधू परिग्रह को मन, वचन, काय से त्याग कर देता है ! गाडी में पेट्रोल सप्लाई बंद कर दो तो सब ठीक हो जाता है ! हांथी को भी जब मद आता है तो तीन उपवास करवा देते हैं तो ठीक हो जाता है ! जैसे परीक्षा देना कठिन है ऐसे ही संलेखना कठिन है ! अच्छे – अच्छे घबडा जाते हैं ! कितने भी हार्स पावर की मशीन हो चढ़ाव पर सभी परेशान कर देती है ! ढलान पर बिना पेट्रोल के भी गाडी चलती है ! पंचंम काल में भाव में कमी आ रही है ! आयु, शरीर की क्षमता आदि कम होती जा रही है ! 400 -500 वर्ष पुराने प्रासाद का मटेरिअल मजबूत होता था और आज इतना मजबूत नहीं है ! पुराने तजुर्बों की हड्डी मजबूत होती थी ! कहते थे की “यह पुराना घी है “! शरीर के प्रति लगाओ कितना है उसके अनुसार ही कर्मों की निर्जरा होती है ! जिनका जीवन सुख पूर्वक, विलासिता पूर्वक व्यतीत होता है उनको शरीर छोड़ते समय परेशानी ज्यादा होती है इसलिए सहन करना चाहिए ! शरीर के आश्रित रत्नत्रय सुरक्षित रहे इसको ध्यान में रखकर संलेखना लेते हैं! पुराने वस्त्र भी छुटते नहीं है ! भाव नगर में जहाज रात में तोड़ते हैं क्योंकि मोह रहता है परिग्रह से मोह होता है तो छूटता नहीं है !
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