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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

बहुत परिश्रम कर के शिक्षा और दीक्षा का प्रवाह बढ़ाया है


संयम स्वर्ण महोत्सव

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रामटेक (नागपुर / महाराष्ट्र) में राष्ट्रीय दिगंबर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के द्वारा 24 बाल ब्रह्मचारियों को दिगंबरत्व मुनि दीक्ष दी । इस अवसर पर 30-40 हजार की जनता अनुमानित होगी। उसी समय इंद्रदेव ने भी वर्षा के द्वारा दीक्षार्थियों का स्वागत किया। लोग छतों पर, टीनों के ऊपर बैठे थे। आचार्य श्री को भी नई पिच्छिका नये दीक्षार्थियों ने दी।

आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि यह दीक्षा खाने पीने की चीज नही है, अभी भी मेरा कहना है कि आप लोग की भावना देख कर मैं इससे स्थायी मान लूं। उनकी यह भावना फलीभूत होने जा रही है। हमने पहले कहा था कि आप उपवास का अभ्यास करिये। उसके लिये काफी तैयारी की आवश्यकता होती है। तो 64 ऋषि के उपवास दिये। सहर्ष रुप से स्वीकार किये इन्होने अल्प समय में पूर्ण किया। इन्होने कहा कि आगे कि साधना भी हमे दीजिये। इन्होने शीत, वर्षा, ग्रीष्म में उपवास किये। आज यह अवसर आपके सामने है। आगम में कहा है कि बार-बार मांगने पर एक बार दिया जाता है। हमें पूरे देश से नमोस्तु आते है। लोग कहते है कि हमें बहुत सारा आशीर्वाद दीजिए तो हम कहते है कि एक बार ही आशीर्वाद देते हैं। आपने इनको सुना और चेहरो को भी देखा होगा। अनुमोदना से सहयोग कर रहे है । कुछ चंद मिनटों के बाद उस लक्ष्य तक पहुचेंगे। त्याग करके आजीवन निर्वाह करना महत्वपूर्ण है। किसी को 30-40 वर्षो तक लग सकते है। लेने के बाद इन व्रतों को धारणाओ को मजबूत करते चले जाये। यह शांतिनाथ का क्षेत्र माना जाता है। वर्षो से लाखों की जनता ने उपासना की है। यह मंगल कार्य इस क्षेत्र पर सम्पन्न होने जा रहा है। आचार्य गुरुदेव ने कहा था कि दीक्षा तिथि नहीं दीक्षा क्यों ली यह याद रखना। जिन-जिन मुनियों से वैराग्य बढ़ता है उनको याद रखना। निश्चय से अनुभव ही हमारा व्यवहार चलाता है। आप लोग अपने सिरों से पगढ़िया उतार लें।

आचार्य श्री ने मंत्रोच्चारण किया फिर गंधोतक के जल से सिर का प्रच्छालन किया। आप चिंतन करिये, उनको जीवन के अंतिम समय तक याद रखियें । नागपुर जैन समाज ने सर्व सम्मति से मंदिर का स्वप्न सजाया है । प्रतिमाओं को दुसरी जगह शिफ्ट करना है। जब तक चार-पाच वर्षों तक मंदिर नहीं बन जायेगा विश्व से अपनी स्मृति में रखेंगे। आचार्य श्री ने कहा कि वस्त्र से अपने सिर साफ कर ले, आचार्य श्री ने 28 मुल गुणों के बारे में बताया और कहा कि आप लोग गाडी में नही चल सकते । फोन का इस्तेमाल नही कर सकते। आप लोग 28 मुल गुणों का पालन करेंगे। अब आभुषण उतारेंगे। इस अभुतपुर्व दृश्य देखियें। 24 ब्रम्हचारी जो वस्त्राभूषण सहित थे उनको आप दिगंबर देख रहे है। जैसे भगवान दिगंबर होते है, वैसे ही ये हो गये हैं। अब घर नही जा पायेंगे। अभुतपुर्वक दृश्य चेतन चैबीसी को आपने देख लिया। यह महावीर भगवान की आचार्य ज्ञान सागरजी की परंपरा में यह दीक्षित हो रहे है वीतराग मार्ग की ओर अग्रसर रहने का भाव बनायें रखेंगे। आज पंचम काल है डायरेक्ट इस मुद्रा के माध्यम से प्राप्त नहीं होता।

उपसर्गो के माध्यम से निर्वाह करना है। आपने घर को छोड दिया है, हमारे घर में प्रवेश कर गये है। अब इनका कोई नंबर नही रहेगा। आचार्य महाराज का महान उपकार है। जीव का जीव के ऊपर तो उपकार होता है। तु ज्ञानी और हम अचेतन यह बात तो आप करते है। अपने जीवन के बारे में जब सोचेंगे तो लगेगा कि यह क्या है? हमेशा हमेशा आपको अच्छे कार्य करना है। गुरुजी कों यह पसंद था कि गुरु का शिष्य के ऊपर तो उपकार होता है। जैसे सेवक के ऊपर मालिक करता है। ऐसे ही गुरु और शिष्य का आपस में उपकार होता है। जिस को आज्ञा दी है उसको पालन करेंगे तो गुरु के ऊपर भी उपकार होगा। शासन का प्रवाह चलेगा। जिनशासन का प्रवाह चलेगा, आप पालेंगे तो लोग देखेंगे। आप लोग शास्त्र और गुरु के कहे के अनुसार जैन धर्म और अहिंसा के क्षेत्र में कार्य करेंगे।

बहुत परिश्रम कर के शिक्षा और दीक्षा का प्रवाह बढ़ाया है। बढने से नही बढ़ता करना पडता है। आपने इस दृश्य को देखा है। गदगद होकर इस दृश्य को कैद कर लेना है। करोडो अरबों और खरबों रुपये खर्च कर के भी यह दृश्य नही मिलेगा। जो नही आये वह पश्चाताप करेंगे। जिस समय चर्या करेंगे तो लागों को यह दृष्य प्रेरक बनेगा। आज से असंख्यात गुणी कर्मो की निर्जरा प्रारंभ हो चुकी है। साहुकार तो ये हैं। हम हमेशा प्रसन्न रहें। हमेशा प्रसन्न रहेंगे तो सभी लोगों पर असर पडेगा। प्रतिकुलता में भी आनंद की अनुभूति होगी। जो हम चाहते थे वह मुद्रा मिल गयी। जीवन आनंदमय बन गया। इन लोगों के मुह में भी पानी आयेगा। इसको आप खर्चा करके नही खरीद सकते। यह हमारा स्वरुप आ गया। वीतरागता हमारा धर्म है। प्रभु और गुरुदेव से हम प्रार्थना करते है कि वह वीतरागता प्राप्त हो, अपना व्यापार बढाओं, हमें जल्दी ही मिल ही जायेगा। जितने आप प्रसन्न रहेंगे तो चुन-चुन कर ग्राहक आयेंगे। मोह को त्याग करना कठिन है। यह अनन्तकाल से लगा है।

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