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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

यह जीव जहां जाता है वहीं रम जाता है


संयम स्वर्ण महोत्सव

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परमपूज्य जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज ने रामटेक स्थित भगवान श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में उद्बोधन दिया है कि, तुमने जो विभिन्न माध्यमों से दुःख पायें है, उनका विचार करों। शारीरिक रोग ना हो और मन में कुछ विकल्प हो तो आप कैसा महसूस करते हो?

संबंध जोड़कर तोड़ना बहुत मुश्किल है, विवाहित होकर के फिर संबंध तोड़ना कठिन कार्य है। मन की वैयावृति मानसिक वैयावृति कैसे होती है, यह जानना बहुत आवश्यक है। मोक्षमार्ग में असंख्यात गुनी निर्जरा होती है, ऐसा चिंतन करना चाहिए। तुमसे मेरे कर्म कटे, मुझसे तुम्हें क्या मिला? तुमने अनेकों गतियों में भ्रमण करके संख्यात या असंख्यात काल पर्यंत बिना विश्राम किए दुख सहे है, तब अति अल्प काल के लिए इस भव में यह थोडा सा दुःख क्यों नही सहते हो?

काल ज्वर जब आता है तब मृत्यु को लेकर ही जाता है। यदि तुमने परवश होकर पूर्व में वह वेदनाएं सही हैं तो इस समय इस वेदना को धर्म मानकर स्वयं अपनी इच्छा से क्यों नही सहते? यह जीव जहां जाता है, जिस भी योनी में जाता है वहीं रम जाता है।

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