आपका पुरुषार्थ जहां खत्म होता है वहां से आपका भाग्य शुरू होता है
परमपूज्य जैनाचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज ने रामटेक स्थित भगवान श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में उद्बोधन दिया है कि जब भी आप पूजा अर्चना करते हैं आपके साथ ही कई देवी-देवता भी पूजा अर्जना करते हैं। कोई भी क्रिया करते समय निःसही और अःसही बोलना चाहिए, जिनके लिए बोलते हैं उनका जो रूप है वैसा स्वीकार करें। उससे कहें कि आप और हम मिलकर अभिषेक पूजन करें।
जो मानसिक पीड़ा ग्रसित रहते हैं उनका वर्णन तत्वार्थ सूत्र में है। मानसिक पीड़ा को दुर करने के लिए घूमते हैं। स्वर्ग में शांति नहीं मिलती है इसलिए यहां आ जाते हैं। बहुत प्रयास करने पर खोजने से मिल जाता है। पन्ना में खोदने पर हर जगह हीरे व मानिक मिल जाते हैं। हम खान का ठेका लेते हैं धीरे-धीरे निकलते हैं। आप प्रचार प्रसार करके इससे आगे बढ़ा करते हैं। इन्द्र कहते हैं मुखिया को जिनकी आज्ञा चलती हो। जो भोग और उपभोग में इन्द्र के समान होते हैं उन्हें सामाजिक कहते हैं।
इन्द्र डायरेक्ट चाबी नहीं लगाता लेकिन चाबी घुमाता है। तीन लोक में तीर्थंकर रहते हैं। कई शब्द मुंह में बैठ जाते हैं तो उच्चारण करने पर तकलीफ देते हैं। सुखातु भूति इंद्रिय और मन से होती है। मनुष्य को बैठे बैठे रसोई खाने की आदत पड़ गई है। कुछ बनाना चाहिए फिर खाना चाहिए। जब आप पुरुषार्थ ही करेंगे आपके कार्य सिद्ध नहीं होंगे। आपका पुरुषार्थ जहां खत्म होता है वहां से आपका भाग्य शुरू होता है। आप इसका चिंतन किया करो। यह जानकारी एड. मनोज जैन ने दी।
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