संयोग से ही नियोग होता है
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि संयोग से ही नियोग होता है और फिर वियोग भी होता है। जीवन में दुःख और सुख दोनों बराबर आते रहते हैं न तो दुःख में घबराना चाहिए न सुख में इतराना चाहिए बल्कि हमेशा समता का भाव धारण करना चाहिए। जब भी आप संतों की शरण में जाओ अपना रोना लेकर मत जाओ बल्कि प्रसन्नता को लेकर जाओ।
उन्होंने कहा कि सौधर्म जैंसे बैभवशाली व्यक्ति के जीवन में भी संयोग और वियोग के क्षण आते हैं आप सब तो मनुष्य का दुर्लभ भव पाकर पुण्यशाली हो जो आपको वीतरागी परमात्मा की भक्ति का सौभाग्य प्राप्त है।
उन्होंने कहा कि विवेक तो आपके पास होता है परंतु उसका उपयोग समय पर आप नहीं कर पाते हो। जब बोलने का समय आता है तो मौन हो जाते हो और मौन के क्षणों में शांति नहीं रख पाते हो। आप विवेक पूर्वक कार्य करोगे तो पुण्य का बंध अवश्य होगा और राग द्वेष के बशीभूत होकर कार्य करोगे तो पाप का बंध होगा। विवेक के साथ काम करने में दुखों की उत्पत्ति नहीं होती। अपने स्वयं के ज्ञान को जागृत करने से ही शुभ परिणाम प्रकट होते हैं। जब दुःख के क्षण आते है तो नमकीन स्वाद होता है इस स्वाद को सहन करने का पुरुषार्थ होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि चातुर्मास का तीसरा चरण प्रारम्भ हो गया है अब तो आप समझो की गाडी बॉर्डर पर आ गई है अब इस गाड़ी की सवारी का थोडा आनंद और प्राप्त कर लो। आज वियोग की विभोक्षा का बर्णन समझो आपको इस भूमि पर वियोग का दुःख कम होता है जबकि देवों को ज्यादा होता है। संयोग और वियोग को समता पूर्वक ग्रहण करने के लिए अपनी आत्म शक्ति को जागृत करो।
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