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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

दोनों दिशाओं को एक साथ ले


संयम स्वर्ण महोत्सव

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आचार्य श्री के गृहस्थ जीवन के भ्राता महावीर प्रसाद जैन ने अपने उद्बोधन में कहा की जब हम स्कूल जाते थे तो हम दोनों एक ही सायकल पर जाते थे । हम नदी के किनारे के रहने वाले धर्मानुरागी हैं और आज पहली बार आचार्य गुरुवर के सामने बोलने का मौका मिला है मैं कृतज्ञ हो गया हू।
 

पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि दो विधाओं में जब हम लक्ष्य तक पहुँचने का प्रयत्न करते हैं तो दोनों बिंदुओं को एक साथ लेकर चलना पड़ता है । दोनों दिशाओं को एक साथ लेना पड़ता है ।उत्थान और पतन दोनों की तरफ देखना पड़ता है । विज्ञान ऊपर उड़ने के लिए प्रेरित करता है जबकि उड़ा नहीं जाता अपितु नीचे से ऊपर उठा जाता है । दोनों आँखें एक दुसरे की पूरक होती हैं। उन्होंने कहा की उजाला हमेशा मिलता रहे ये जरूरी नहीं है क्योंकि आँखों कोबिश्राम देना भी जरूरी है । पुरुष्कार का मतलब है आगे बढ़ो आगे बढ़ो । हम आज एक ही दिशा में दौड़ते जा रहे हैं पागलपन की हदों को पार कर रहे हैं । तनाव में जल्दी आने लगे हैं आज के विद्यार्थी इसलिये पहले तनाव से मुक्त होना आवश्यक है । अभिभावकों को चाहिए बे जल्दी से भावुक न बनें बल्कि अपने बच्चों की भावनाओं को मजबूत बनाएं ।

 

उन्होंने कहा की आज उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया में बहुत पिछड़ गए हैं क्योंकि उन्नति के लिए शिक्षा में जिन नीतियों की जरूरत है हमने उन्हें गौण कर दियाहै । भारत में पहले जो विश्वविद्यालय थे आज उनका नितांत आभाव हो गया है । आज अभिभावकों को ये गलत धारणा हो गई है कि इतिहास पढ़ने से विकास नहीं होगा । इतिहास पढ़ने से ही विद्यार्थी को सही ज्ञान मिलता है । संकेतों के पालन में केवल आँख और कान ही प्रभावी नहीं होते बल्कि विवेक भी महत्वपूर्ण होता है । परीक्षा के द्वारा ही मूल्याङ्कन नहीं होता बल्कि गुणवत्ता के आधार पर भी मूल्याङ्कन होता है । उन्होंने कहा कि आँखों से हर कार्य पूर्ण नहीं होता बल्कि ज्ञान चक्षु भी जरूरी है । आज बच्चों को शिक्षा में खानपान का भी बहुत महत्व है । शुद्ध आहार , शुद्ध पेय उनकी बुद्धि के विकास के लिए आवश्यक है । गुरुवर ने कहा कि कभी कभी कटु लगता है सत्य और सफ़ेद झूठ हो सकता है तो सत्य तो बोलना परम आवश्यक है । आज मार्क की तरफ ध्यान न दें बल्कि ज्ञान की तरफ ध्यान दें । पूरक परीक्षा ने विद्यार्थियों को कमजोर बना दिया है इसलिए पूरक की नीति बदलना चाहिए । आज किसी बात को जैंसे से नहीं बल्कि जो है बही सत्य है कहकर पुख्ता करना चाहिए।

 

गुरुवर ने कहां कि क्रमिक विकास की शिक्षा नीति चल रही है । लघु शोध प्रबंध का कार्य किया जा रहा है । लघु से गुरु बनने के लिए अपनी योग्यता और अनुभव को सुदृढ़ बनाना होगा । चिंता माथे पर रखोगे तो कैंसर होगा और छाती पर रखोगे तो छाती फूल जायेगी गर्व से । आज पराश्रित शिक्षा हो गई है जो स्वाश्रित होना चाहिए । नव सृजन कर्ता बनाने की जरूरत है । श्रम रहित शिक्षा नहीं बल्कि श्रम सहित शिक्षा होनी चाहिए । नीति न्याय का आभाव शिक्षा में नहीं होनी चाहिए । जैंसे परखी से गेंहू की जांच की जाती है सब तरफ से बैसे ही शिक्षा में भी ज्ञान की परखी की जरूरत है तभी भारत को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बनाया जा सकता है । शब्दों में ध्वनि होसकती है बजन हो सकता है परंतु विजन तो ज्ञान में होना चाहिए । आधुनिक शिक्षा के साथ साथ आत्म तत्व को जाननेे की जो शिक्षा महापुरुषों ने दी है बो भी अनिवार्य होना चाहिए । भारतीय दर्शन को जानना भी नितांत आवश्यक होना चाहिए।

 

उन्होंने कहा कि जलप्रबंधन के मामले में भी भारत बहुत पिछड़ गया है इस दिशा में भी ठोस कार्य होना चाहिए । भारत से दूध दही घी का निर्यात होता था आज क्या हो रहा है ये सोचना जरूरी है । हमें उजाले का चिंतन  करना है ।

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