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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

जिसकी जितनी कुब्बत होती है


संयम स्वर्ण महोत्सव

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पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि जिसकी जितनी कुब्बत होती है उससे उतना ही काम लेना चाहिए क्योंकि ज्यादा भार किसी के कन्धों पर डालना अच्छी बात नहीं है । भगवान् से यही प्रार्थना करना चाहिए कि हे भगवन हमने तो अपने जीवन डोर आपके हाथों  में सौंप दी है अब आप अपनी ओर खींचो। जो श्रावक् अणुुब्रतों की ओर अनवरत खींचता चला जाता है वही अणुव्रती कहलाता है। जैंसे थोक व्यापारी के पास जाकर फुटकर व्यापारी अपना काम चला लेता है ,उसे उधार माल भी प्राप्त हो जाता है उसी प्रकार महावीर भगवान का जो तीर्थ काल चल रहा है वो ज्ञान के थोक भण्डार हैं परंतु आप उन तक नहीं पहुँच पा रहे हैं तो एक दुसरे से मेल मिलाप करके अपना काम चला लें। तीर्थंकरों के आभाव में धर्म तीर्थ के रथ को आप सब मिलकर खींच रहे हैं तो ऐंसे ही एक दूसरे को सहयोग करते हुए इस रथ को दूर तक खींच कर ले जाना है। इसी में आप सबका कल्याण निहित है।

 

उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को,युवा पीढ़ी को भी ये बताना है कि ये धर्म का अक्षुण्ण रथ है इसे चलाते रहेंगे तो अहिंसा सदियों तक सलामत रहेगी। सभी के अच्छे भविष्य का लेखा जोखा इसी रथ पर आधारित है ,बहुत जिम्मेदारी का कार्य है सबको मिलकर करना होगा। बिघ्न बाधाओं से घबराने की आवश्यकता नहीं है बस सब मिलकर साथ चलेंगे तो ये रथ सतत् चलता रहेगा।

 

उन्होंने कहा की योग्यता के आधार पर प्रोत्साहन करते रहना चाहिए, विचारपुर्वक और समन्वय के साथ जो काम कर रहे हैं उन्हें प्रोत्साहित करें। कर्तव्य में कोई शर्त नहीं होना चाहिये। अपनी अपनी कुब्बत के आधार पर कर्तव्यों का निर्बाहन् होना चाहिए। जो अपने कर्तव्यों का निर्वाहन अपनी योग्यता के आधार पर कर रहे हैं ,अपनी कुब्बत के अनुसार कर रहे हैं उनकी अनुमोदना करना सभी का कर्तव्य है।

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