ध्यान में समय का पता नहीं लगता
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में कहा की ध्यान में समय का पता नहीं लगता आप सब ध्यान में आगे हैं आप अनादिकाल से ध्यान कर रहे हैं। ध्यान के करसन संसार मिलता है ध्यान से ही मुक्ति मिलती है। परिचित को छोड़ना है और अपरिचित से परिचय करना है । मन आपको एक घोड़े की तरह दौडाता है जिस तरह घोड़े की लगाम जैंसे कसेगे बैसे ही मन भागेगा। मन को साधने से ही साधना को मजबूत बनाया जा सकता है।
उन्होंने कहा की एक अवसर पर रावण मन्त्र सिद्धि के लिए 4-5 साथियों के साथ जंगल गए और एकाग्र होकर मन्त्र की सिद्धि करने लगे विध्न बाधाएं उत्पन्न हो गई तो सभी साथी भाग गए परंतु रावण एकाग्रचित्त होकर बैठे रहे और उन्हें मन्त्र की सिद्धि हो गई । एकाग्रता रावण की अद्भुत थी मन्त्र भी थर थर कांपते थे क्योंकि मन पर पूरा नियंत्रण था उसका । मन्त्र का कोई आकार नहीं होता मन मुग्ध हो जाएँ तो मन्त्र आप पर मुग्ध हो जाता है । मन के सामने सब पीछे रह जाते हैं । रावण के पास हजारों मन्त्रों की सिद्धि हो गई थी और बो ये नहीं जानता था की मन्त्र का फल पुण्य के परिणामों से आता है । पुण्य नहीं होता तो मन्त्र फूल की तरह झड़ जाते हैं । संसार की बगिया में पुण्य और पाप दोनों के फल लगा करते हैं जो संकल्प के साथ कार्य करते हैं उसके पुण्य के फल हमेशा होते हैं । मंदिर में बैठकर माला फेरना धर्म ध्यान नहीं रौद्र ध्यान हो सकता है । ध्यान के आसान पर मन नहीं बंधता परंतु मन को बाँधने से ध्यान का उच्च आसन प्राप्त हो जाता है।
उन्होंने कहा की सीता के ऊपर जो उपसर्ग हुआ था उससे ज्यादा उपसर्ग मंदोदरी के ऊपर हुआ था । संकल्प पूर्वक ध्यान से ही सिद्धिया हो पाती हैं । जो व्यक्ति संकल्प लेता है बो ध्यान का मूल मन्त्र होता है । राम और सीता ने जो संकल्प लिया था बो मर्यादित संकल्प था और दोनों के मन एक दुसरे से बंधे थे इसलिए दूरी होने के बाद भी मन मर्यादित था इसलिए ये भी एक तरह से ध्यान की साधना थी। इतिहास लिखा नहीं जाता बल्कि इतिहास बनता है तब लिखा जाता है और इतिहास तब बनता है जब उसके लिए पुरुषार्थ किया जाता है । सरकार को अपने इतिहास से सबक लेकर जनहित में ऐंसे कार्य करना चाहिए जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो सकें । भारत का गौरवशाली इतिहास हमें बताता है राम के जीवन की ऐंसी गाथाएं जिनको लक्ष्य बनाकर नीतियां बनायीं जाएँ तो सार्थक परिणाम आएंगे । नीतिगत निर्णय ही सरकार को स्थिर और नेता को स्थाई बनाते हैं ।रावण के पास नीतियों का भंडार था परंतु अपने लिए उन नीतियों को सार्थक नहीं बनाने के कारन उसकी पराजय हो गई । इसलिए नीतियों का सदुपयोग ही आपको स्थायित्व प्रदान करता है।
आचार्य श्री ने कहा की दूरी नाप कर भी समय का ज्ञान हो सकता है इसलिए ध्यान दोनों तरह के है रौद्र ध्यान और धर्म ध्यान आप जिसे चाहे चुन सकते हैं यदि मन को स्थिर और एकाग्रचित्त बनाओगे तो धर्म ध्यान हो जायेगा और मन को बेकाबू घोड़े की तरह बनाओगे तो रौद्र ध्यान हो जाएगा । राम के जीवन को सामने रखकर ध्यान करोगे तो सिद्धि अवश्य हो जायेगी और रावण की तरफ देखकर करोगे तो असफलता ही हाथ लगेगी । जो व्यक्ति दूसरों के जीवन में व्यवधान उत्पन्न करते हैं कर्म उसके जीवन को अव्यवस्थित का देते हैं । सरकार आपके द्वारा बनाई जाती है इसलिए सरकार की अच्छी नीतियों में अपने कर्तव्यों का पालन आपको भी करना है क्योंकि आप स्थाई हो सरकार अस्थाई होती है । सरकार को ऐंसे उद्योग नहीं लगाना चाहिए जिसमें हिंसा होती हो।
इससे पूर्व लोकनिर्माण मंत्री रामपाल सिंह ने इस अवसर पर कहा की आचार्य श्री के कदम पड़ते ही भोपाल में अहिंसा धर्म की स्थापना स्वमेब ही हो गई है । हमारी सरकार द्वारा अहिंसा के और गौरक्षा के क्षेत्र में तो अभिनव योजनाओं के माध्यम से कार्य किये ही जा रहे हैं साथ ही कौशलविकास के क्षेत्र में भी अनेकों योजनाओं पर कार्य सतत् चल रहा है।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.
Create an account or sign in to comment
You need to be a member in order to leave a comment
Create an account
Sign up for a new account in our community. It's easy!
Register a new accountSign in
Already have an account? Sign in here.
Sign In Now