शुद्ध प्रक्रिया को अपनाएं
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि जिस रास्ते का पता होता है उसी रस्ते पर चलने की आपकी आदत हो गई है अब एक नए रास्ते की तरफ आपको जाना होगा जो अपरिचित हो ,टेढ़ा मेढ़ा हो या सीधा हो बस सामने की तरफ देखकर चलते जाएँ इधर उधर देखने का उपक्रम न करें। समोशरण में 12 सभाएं होती हैं सभी प्रकार के देवों देवियों की अलग अलग व्यवस्था होती है सब अपने में व्यस्त रहते हैं ,मनुष्यों और मुनियों ,आर्यिकाओं की अलग अलग व्यवस्था रहती है इसी प्रकार धर्मसभा में अलग अलग व्यवस्था होती है तो कर्मसभा में आपको भी व्यवस्थित होने की आवश्यकता है।
जिस कार्य को आप करना चाहते हैं उसकी शुद्ध प्रक्रिया को अपनाएं ,जिस रोग की आप चिकित्सा करना चाहते हो उस रोग के आने बाले मार्ग के बारे में आप पहले जान लो और उसे ही बंद करने का प्रयास करो। किसी भी मार्ग में बढ़ने के पूर्व उस मार्ग की व्यवस्था को पहले समझना जरूरी होता है। अभिभावकों को ये समझना जरूरी है कि उनके बच्चे शिक्षा में किस मार्ग का अनुशरण कर रहे हैं फिर उस मार्ग के बारे में जानकर बच्चों को सही दिशा प्रदान करें। शारीरिक और मानसिक चिकित्सा बच्चों की तभी होगी जब अभिभावक स्वस्थ मानसिकता से सही मार्ग का अनुशरण उन्हें कराएँगे। आप के मन में श्रम करने के भाव जाग्रत होंगे तभी आपके बच्चे श्रम का महत्व समझ पाएंगे। आप जैंसी पद्धति बच्चों को बताएंगे बो बैंसी ही जीवनचर्या अपनाते जायेंगे। जैंसी नीति निर्धारण करेंगे बैसे ही परिणाम आपके विद्यार्थी बच्चे भविष्य में आपको देंगे। तना मजबूत रहता है तो डालियाँ भी मजबूत रहती हैं और फिर अच्छे फल उसमें लगते हैं। और छाया भी बो पेड़ अच्छी देते हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि जिंदगी केवल काटने के लिए ही नहीं होती बल्कि जिंदगी तो बनाने के लिए होती है। सब्जी और फल कटे नहीं जाते बल्कि बनाये जाते हैं क्योंकि काटना हमारी संस्कृति नहीं है बल्कि बनाना हमारी संस्कृति है।
उन्होंने कहा की घर के दरवाजे तभी बंद करें जब घर से बहार जाएँ जब घर में हों तो दरवाजा खोल कर रखें तभी लक्ष्मी प्रवेश करेगी बैसे भी धन तेरस आने वाली है। भाषा का सही उपयोग ही आपकी और आपके परिवार की खुशहाली का कारन बनता है इसलिए बोलते समय साबधानी अवश्य रखें। आपके परिवार का विद्यार्थी जब संस्कारित होकर शिक्षा ग्रहण करेगा तो बो समाज को भी और राष्ट्र को भी सही दिशा की और अग्रसर कर सकेगा।
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