मन का काम नहीं करना
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा कि जैंसा हम प्रयोग करते हैं बैंसा योग होता जाता है ,भावों के साथ प्रयोग करने पर शुभ योग होता है । जीवन एक प्रयोगशाला है जिसमें नित नए प्रयोग किये जाते हैं , आनंद की अनुभूति प्रयोग के बिना नहीं होती है।
भक्ति का प्रयोग जीवन में सतत् चलता रहना चाहिए , परंतु भक्ति के प्रयोग में अपने साधर्मी बंधुओं का ध्यान भी रखना चाहिए । भक्ति की अंजुली किसी की छोटी हो सकती है ,किसी की बड़ी हो सकती है ,किसी की अंजुली ऊपर से छोटी है परंतु भावांजलि बहुत बड़ी है , किसी की भावांजलि छोटी है और बाहर की अंजुली बहुत बड़ी है।भावपूर्वक अर्घ चढ़ाने से ही अनर्घ् पद की प्राप्ति होती है। बड़ा ही अदभुत हिसाब है जैंसे आप व्यापर करते हो तो प्रतिशत में लाभ की गणना करते हो , कभी कभी प्रतिशत कम होता जाता है बैसे ही ये जो भक्ति रुपी दुकान है वो गुणित प्रतिशत की है ,कितने गुणा बढ़ोतरी हो रही है कह नहीं सकते । असंख्यात गुणी कर्म की निर्जरा होती है ,अपनी भक्ति की कूबत को बढ़ाते जाइए परिणाम पर ध्यान केंद्रित मत कीजिये।
देव गति में जाकर कितनी ही भगवान् की पूजन भक्ति करते रहो बहा असंखात गुणी निर्जरा नहीं हो सकती ।जो रईस का बच्चा होता है बो रईसी के साथ पढाई करता है पड़ोस का बच्चा साधारण परिवार का था बो भी पढाई करता था ,उसके पास कोई विशेष सुविधा उपलब्ध नहीं थी । बल्कि बह सरकारी बिजली के खम्बे की टिमटिमाती रौशनी में पढाई करता था । जब परीक्षा का परिणाम आता है तो रईस कमजोर परिणाम लाता है और गरीब सतप्रतिशत परिणाम लाता है। आज लगभग भारत की यही स्थिति है बिना श्रम के अच्छे परिणाम की कल्पना की जा रही है जबकि अच्छे परिणाम के लिए श्रम और पुरुषार्थ की सबसे ज्यादा महत्ता है।
उन्होंने कहा क़ी धर्म को हीरे की खान कहा गया है यहां जितनी गहराई में उतरोगे उतनी ही मातरा में सम्यक दर्शन, ज्ञान, चारित्र रुपी हीरे प्राप्त होते चले जायेंगे । थोडा सा द्रव्य चढ़ाकर अधिक फल की कामना व्यर्थ है इस मार्ग में तो भावों के अनुसार स्वयं ही फल की प्राप्ति होती है। असली योग बही है जो प्रयोग के साथ चलता रहे।
समय धीरे धीरे व्यतीत हो रहा है।राजधानी का चातुर्मास है ,अपने मुहं से न कहो बल्कि अपने हाथों से करो तभी सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे। सही दिशा में पसीना बहाते जाओ क्योंकि पसीना न बहे तो अस्पताल जाना पड़ता है, पसीना बहाने से स्वास्थ और मन दोनों अच्छे रहते हैं।स्व धर्म और श्रमण धर्म तीर्थंकरों की देन है, हम तारने की बात तो भगवान से करते हैं परंतु उनकी वाणी को जीवन में उतारने का उपक्रम नहीं करते हैं । अपने जीवन में प्रयोग प्रारम्भ कर दें , प्रमाद न करें और कार्य का लक्ष्य और गति निर्धारित कर आगे बढ़ने का क्रम शुरू करें। विवेक पूर्ण निर्णय लें क्योंकि विवेक से ही सार्थक फल की प्राप्ति होती है।
उन्होंने कहा कि स्पर्धा से नहीं बल्कि साफ़ मन से परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रयास करें ,कोई सिफारिश न करें , कोई मांग न करें बस अपने उत्कृष्ट कार्य करने का पुरुषार्थ करें। मन का काम न करना बल्कि मन से काम लेना यही क्षत्रियता होने का प्रमाण है , काम को रोकने से काम नहीं रुकता बल्कि मन को रोकने से काम होता है ,अपने अनुसार मन को चलाओ मन के अनुसार मत चलो ,मन को कर्मचारी बनाओ ,उसे अपने नियंत्रण में रखो ,उसे अपने ऊपर हावी मत होने दो । मन का काम नहीं करना बल्कि मन से काम लेना।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.
Create an account or sign in to comment
You need to be a member in order to leave a comment
Create an account
Sign up for a new account in our community. It's easy!
Register a new accountSign in
Already have an account? Sign in here.
Sign In Now