भक्ति करते समय अपनी भवन व्यक्त
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा क़ि जो भगवान का भक्त होता है बो भक्ति करते समय अपनी भवन व्यक्त करता है । सम्यक दर्शन की विशेषता क्या होती है ये आप सभी को ज्ञात होना चाहिए ताकि आप भक्ति के मार्ग को और सुदृढ़ बना सको ।सम्यक दर्शन होने के उपरांत जो बंध के कारन बिभिन्न परिस्तिथियां जीवन में उत्पन्न होती हैं उसके बारे में ज्ञात होना चाहिये । थोडा सा स्वाध्याय करने से ये ज्ञान भी जागृत किया जा सकता है । जिस दुकान को या व्यापर को आप जिस बारी की के साथ और समूचे बाजार पर नजर रख कर चलाते हो तब आपको लाभ मिलता है उसी प्रकार कर्म सिद्धान्त की भी जानकारी होनी चाहिए। पुण्य और पाप के जो बंध निरंतर चलते हैं बो अपने भावों के माध्यम से आप चलाकर लाभ ले सकते हो । सम्यक दर्शन के माध्यम से आप पुण्य की प्रकृति कर सकते हो ,किसी से मांगने की आवश्यकता नहीं है अपने भावों की निर्मलता से आप सब पा सकते हो। जो हम सुबह कर्मों का बंध करते हैं बो अन्तरमुहर्त्त में काम आ सकता है। जिस प्रकार चोट लगने पर घर पर ही प्राथमिक चिकिसा की जाती है तो अस्पताल नहीं जाना पड़ता उसी प्रकार पुण्य का बंध भी आत्मा के प्राथमिक उपचार में सहभागी होता है। कर्म सिद्धान्त में मांगने का निषेध् है , संतोष को प्राथमिकता दी गई है। आप सभी के पास संतोष होना चाहिए नहिं तो धैर्य की परीक्षा हो जाती है । जो संतोष रखता है विवेक के साथ उसका विश्वास और सम्यक दर्शन प्रगाढ़ होता जाता है । आचार्यों ने ध्यान की अच्छी परभाषा दी है की हाथ पर हाथ रखना ध्यान नहीं है बल्कि जिनवाणी के कथन को ध्यानपूर्वक सुनना भी ध्यान है । जो व्यक्ति संतोष के साथ धैर्य और ईमानदारी के साथ 8 घंटे व्यापर करता है उसे धर्म का लाभ भी प्राप्त होता है। ये किसी सिद्धचक्र विधान से कम नहीं होता है। कर्म सिद्धान्त पर चलने बाला व्यक्ति यदि व्यापर में भी संतोष रखता है तो वो भगवान् की एक तरह से आज्ञा का पालन ही कर रहा होता है।
उन्होंने कहा क़ि आप भले ही बहुत व्यस्त रहते हो पर आपसे ज्यादा व्यस्त हम रहते हैं पर हमारा धर्म ध्यान निरंतर चलता रहता है ऐंसे ही आप भी कहीं भी व्यस्त रहें यदि धर्म का चिंतन मनन निरंतर चल रहा है तो आपका पुण्य का बंध हो रहा है , आपके सम्यक दर्शन , ज्ञान ,चारित्र में बृद्धि हो रही है। अन्तरमुहरत में जिन प्रकृतियों का बंध होता है बो प्राथमिक चिकित्सा का काम करते हैं । प्रतिपल , प्रतिक्षण जो भावों का परिणमन चल रहा है ये ही फलदायक होता है । इसलिए मांगने की प्रवत्ति का त्याग करो जो संतोष के साथ करोगे बो शुभ परिणाम देने बाला होगा।
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