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प्रवचन Reviews posted by रतन लाल
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शुद्ध खाओ, शुद्ध पीओ, स्वस्थ रहो
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डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ सर्वनाशकारी है
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इतिहास से ही किसी देश का भूत भविष्य जाना समझा जाता है
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जिसके भीतर आत्मविश्वास होता है वो परीक्षा से भयभीत नहीं होता है
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बहुत ही सुन्दर
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आज अंतरराष्ट्रीय होने की जरूरत नहीं है बल्कि अन्तर में राष्ट्रीय भावनाओं को जागृत करने की जरूरत है
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आज विद्यार्थियों को यदि शिक्षा के साथ सार्थक ज्ञान का भी बोध कराया जाए तो शोध की दिशा उन्हें सही दशा तक ले जा सकती है
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हजारों ग्रन्थ जिस भाषा में लिखे गए हैं उस भाषा को लोप कर दोगे तो अपनी संस्कृति से युवा पीढ़ी को विमुख कर दोगे।
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अर्थ, व्यर्थ और अनर्थ के बारे में किशोर अवस्था से ही प्रशिक्षण देने की जरूरत है। धर्म का संरक्षण करना है तो बच्चों में संस्कार का बीजारोपण करना प्रारम्भ कर दो।
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जो व्यक्ति जीवन और मृत्यु को समझ लेता है वो श्वांस और विश्वास से परिपूर्ण रहता है।
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जो झुकने की कला सीख लेते हैं उन्हें फिर जीवन में किसी के सामने झुकने की जरूरत नहीं पड़ती है।
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शिक्षा को व्यवसाय मत बनाओ
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हमारे यहाँ अंक से नहीं चलता, अनुभव से चलता है इसलिए अनुभव जरूरी है। सरकार सिंधु है जनता बिंदु है। बैठने का नाम सरकार नहीं होता है उसे तो जनता के हित में चलते रहना चाहिए।
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बहुत ही रचनात्मक सुझाव
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नकल से भौतिक परीक्षा तो पास की जा सकती है परन्तु जीवन की असल परीक्षा बिना अक्ल के पास नहीं की जा सकती है।
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यदि निरोगी रहना चाहते हो तो खानपान के क्रम को व्यवस्थित करो।
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शिक्षा का वास्तविक अर्थ व्यक्तिगत निर्माण, संस्कृति की रक्षा और समाज की उन्नति होता है परन्तु आज की शिक्षा रास्ते से भटक गई है।
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आदर्श नागरिक से शिक्षा लेना और अपने बच्चों को धन वितरण के संस्कार देना, जिसे दान कहते हैं। दान के संस्कारों से उनमें अभिमान नहीं पनप पाएगा और वे कुसंस्कारों में नहीं फैंस पाएँगे, दुर्गतियों से भी बच जाएँगे। ये संस्कार भारतीय संस्कृति के संस्कार हैं।
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हिंदी का सम्मान किजिए, हिंदी में समस्त राजकीय कार्य सम्पन्न हो
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मातृ भाषा का सम्मान
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विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करो
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हम गरीबी मिटाने के वास्ते गरीबों को मिटा रहे हैं, धनी होने के वास्ते देश को कंगाल बना रहे हैं ठीक ही है हिंसा से हम कुछ भी अच्छा नहीं कर सकते, यदि हम कुछ अच्छा चाहते हैं तो हमको देश से हिंसा को निकालना होगा, जब तक हिंसा नहीं निकलेगी देश अपना सुधार नहीं कर सकता।
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अहिंसा से किसी को भी जीता जा सकता है।
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आज तक किसी पशु की नजर आदमी को नहीं लगी, मनुष्य की नजर बहुत विषैली है, इतनी विषैली कि गाय के स्तनों में भरा दूध भी सूख जाता है, पत्थर कट जाता है-पिघल जाता है। आज आदमी की नजर पशुओं को लगी हुई है, आज आदमी विश्व भक्षी बन गया है।
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भारत को परतंत्र बना रखा है इण्डिया ने
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In भारत स्वाभिमान : हमारी पहचान
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हम स्वतंत्र तभी है जब हम हमारी भाषा में काम करें