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प्रवचन Reviews posted by रतन लाल
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मोह को जीतना मानवता का एक दिव्य-अनुष्ठान है, इसके सामने महान् योद्धा भी अपना सिर टेक देते हैं। विश्व का कोई भी ऐसा प्राणी नहीं है जो मोह की चपेट में न आया हो, लेकिन इसके रहस्य को जानकर इस मोह की शक्ति को पहचानकर, इस मोह की माया को जानकर, जो व्यक्ति इसके ऊपर प्रहार करता है वही इस संसार रूपी बाढ़ से पार हो जाता है।
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आज का भारतीय नागरिक भोग की ओर जा रहा है और भोग्य सामग्री को जोड़ता हुआ वह योग को पाना चाह रहा है। योग को पाने के लिए भोग का वियोग करना होगा, उसे एकदम विस्मृत करना होगा तभी योग को पाया जा सकता है।
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सत्य रुपी वरदान को आप छोड़िए मत और इस असत्य के ऊपर अपने जीवन का बलिदान करिये मत। सत्य के सामने अपना जीवन अर्पण हो जाये, तो वह मात्र अर्पण ही नहीं, एक दिन दर्पण बन जायेगा।
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ऋजोभावो आर्जव:। वक्रता का नाम धर्म नहीं है, अधर्म है। धर्म सीधा-साधा है वक्रता जो नहीं चाहते उसको प्राप्त करने वाला है।
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मार्दव शारीरिक चेष्टा का नाम नहीं है मार्दव का मतलब कोमलता, ऋजुता का भाव है।
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मोक्ष के लिए कारण भूत साक्षात् कोई है तो वह क्षमा धर्म ही है।
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सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र, आत्मा का स्वभाव। सरलता, ऋजुता आत्मा का स्वभाव। पानी का स्वभाव शीतल है, परन्तु उष्णता को धारण कर लेने के बाद पानी पीने पर कंठ व जीभ जला देता है। इसी प्रकार आत्मा के बारे में यही बात है।
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आवश्यकता है एक 'जन क्रांति' की, जो दुनिया के हिंसक वातावरण को अहिंसा और करुणा में बदल दे।
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मांस निर्यात पर अविलंब रोक लगाई जाए
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पशु वध पर अविलंब रोक लगाई जाए।
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दिल में जगह वही दे सकता है जिसका हृदय विशाल है। छोटे दिल वाला तो मात्र जमीन में जगह देता है, दिल में नहीं।
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जीवन में सहमति की अपेक्षा सहयोग की महता है। सहमति तो हर व्यक्ति दे देता है लेकिन सहयोग हर कोई नहीं देता, सहयोग की आवश्यकता है।
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आप अपनी ताकत जगाइए, आपके पास विराट शक्ति है। आप अपनी भावनाओं, भावों की शक्ति से सारी दुनिया बदल सकते हैं, आप अपनी सम्प्रेषण की शक्ति को जानिए। सम्प्रेषण का अर्थ भावों का खेल है, भावों की शक्ति का चमत्कार। आप अपनी सम्प्रेषण की शक्ति से सारी दुनिया को हिला सकते हैं। आप अपने भावों में करुणा, अहिंसा, दया को भरिए आप अपने अहिंसक भावों का सम्प्रेषण डालिए। यदि आपके भावों में सहानुभूति है तो बिना दवा के भी रोगी ठीक हो सकता है।
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अगर हम सब मिलकर बीड़ा उठालें और संकल्प करलें कि हम भारत से मांस निर्यात नहीं होने देंगे तो सरकार की क्या मजाल कि वह मांस निर्यात कर सके।
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भारत कृषि प्रधान देश है, माँस प्रधान नहीं। आज भारत में माँस का व्यापार हो रहा है, शराब का व्यापार हो रहा है, अण्डों की खेती हो रही है, यह सब भारत के लिये कलंक है।
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भले ही आप राम, महावीर को याद न करो लेकिन दया को याद रखो क्योंकि जहाँ दया है वहीं राम हैं, वहीं महावीर हैं। दया ही राम है, दया ही महावीर है। आज भारत के पास दया नहीं रही इसलिए वह मांस निर्यात जैसे खूनी कर्म करने लगा अन्यथा दूध का देश खून क्यों बेचता?
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परिश्रम का अभाव देश में गरीबी पैदा कर रहा है, हर व्यक्ति परिश्रम करने लगे तो देश का आर्थिक विकास बहुत जल्दी हो सकता है लेकिन देश की मौलिक चेतन सम्पदा को चौपट करके उसके बदले में कुछ विदेशी मुद्रा का लालच हमारे देश को चौपट कर रहा है।
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यदि हम अपना सर्वागीण चहुमुखी विकास चाहते हैं तो हमको अहिंसा धर्म की वेदी पर अपना माथा टेककर जीवन में उसको ट्रान्सलेट करना होगा।
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अशोक महान की मुद्रा ही आज हमारा राष्ट्रीय चिह्न है। हमारे देश का राष्ट्रीय चिह्न ही अहिंसा का प्रतीक है। जब हमारे देश की राष्ट्रीय मुद्रा ही अहिंसा का प्रतीक है तो फिर देश हिंसा का सहारा लेकर राष्ट्र की उन्नति का स्वप्न क्यों देख रहा है?
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गाय का दूध पीने वालो! गाय का खून मत होने दो, राष्ट्र की रक्षा और प्रजा का पालन हमारा धर्म होना चाहिए। यदि हम राष्ट्र की रक्षा और प्रजा का पालन नहीं कर सके तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा
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हमारा राष्ट्रीय ध्वज अहिंसा का प्रतीक है, अहिंसा के ध्वज को फहराने वाला देश, करुणा, विश्व मैत्री, विश्व शान्ति का अमर सन्देश देने वाला देश, गाय की आरती और पूजा करने वाला देश आज मांस निर्यात कर अपने आदशों को खो रहा है।
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भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए देश की पशु सम्पदा को बचाना आवश्यक है
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सोना, चाँदी, हीरा, मोती का निर्यात करने वाला यह भारत, आज खून, मांस, हड्डी का निर्यात कर रहा है। इन जानवरों को मारकर के, उनका मांस निर्यात करके यह भारत कभी भी अपनी उन्नति नहीं कर सकता।
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अण्डे कभी शाकाहारी नहीं हो सकते, अण्डे तो मांसाहारी ही हैं, अण्डों में जीव है, वह भ्रूण है, उसमें जीवन है। अण्डे किसी वृक्ष पर नहीं लगते। अण्डों का उत्पादन किसी वृक्ष पर नहीं होता, अण्डे कोई फल नहीं हैं, वह तो मुर्गी का बच्चा है। ऐसे जीवित अण्डों को शाकाहारी कहना सरासर अन्याय है। दुनिया का कोई भी अण्डा शाकाहारी नहीं हो सकता।
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प्रवचन प्रदीप 3 - दर्शन - प्रदर्शन
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In विद्या वाणी
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सुख की अनुभूति अपने ऊपर निर्धारित है, दूसरा कोई हमें सुख नहीं दे सकता। अनन्त चतुष्टय को धारण करने वाले भगवान् भी हमें अपना सुख नहीं दे सकते, स्व-पर का भेद-विज्ञान यही है। सम्यग्दृष्टि कम हैं, मिथ्यादृष्टि की संख्या अनन्त है।