Kalpesh Khandhar
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किसको तजूँ, - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २४०
In आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा हायकू छन्द और आपकी समझ
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इस संसार में मेरे आत्मा के अलावा सब पर दृव्य है, इसमें क्या तजू और क्या अपनाऊं? सब दृव्य के अस्तित्व का स्वीकार करूं और सब को सिर्फ देखूं और जानूं.
सिद्ध घृत से - आचार्य विद्यासागर जी द्वारा रचित हायकू २१९
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सिद्ध भगवान घृत के समान है जैसे घृत में गन्ध है और हम दूध के समान है जिसमें गन्ध नहीं है. अर्थ यह कि जैसे दूध में घी छिपा है वैसै ही हम में भी सिद्धपना है पर उसका अनुभव अभी हम नहीं कर सकते. जब दूध से घी बनेगा तभी महेकेगा उसी तरह जब हम सिद्ध बनेंगे तभी महेकेंगे, अनुभव होगा. मैं भगवान हूं यह न कहकर यह कहो कि मैं भगवान बन सकता हूं, बनना है.